Sunday 7 November 2021

कार्तिक पूर्णिमा 19 को, 5 उपाय अत्यधिक महत्वपूर्ण

 घनश्याम डी रामावत

इस बार कार्तिक पूर्णिमा 19 नवंबर शुक्रवार को हैं। सनातन परम्परा में इस दिन का खास महत्व हैं। यहीं कारण हैं सदियों से सभी लोग इस पर्व को पूरे विधि विधान से मनाते चले आ रहे हैं एवं इस बार भी इसे पूरे धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस पूर्णिमा को अन्य पूर्णिमाओं से अधिक महत्वपूर्ण माना गया हैं। इस दिन अर्थात कार्तिक पूर्णिमा को देव दिवाली भी कहा जाता हैं, क्योंकि गंगा के तट पर देवता स्नान करके दीप जलाकर स्वर्ग प्राप्ति का उत्सव मनाते हैं (ऐसा धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख हैं)। 

इंडो अमेरिकन एस्ट्रोलॉजी अवार्ड से सम्मानित ज्योतिष संस्थान प्रिंस एस्ट्रो लाइन, जोधपुर के निदेशक एवं जाने माने ज्योतिर्विद्/लाल किताब विशेषज्ञ नरेन्द्रसिंह राठौड़ की माने तो इस दिन कुछ खास बातों का ध्यान रखकर इस पर्व की महत्ता व इसके चमत्कारिक प्रभावों से हर कोई लाभान्वित हो सकता हैं। राठौड़ के अनुसार इस दिन 5 उपाय अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। ये उपाय प्रत्येक व्यक्ति के जीवन से जुड़े हैं एवं इसकी सही से पालना व विधिसंगत पूजा अर्चना से जीवन में धन संबंधी समस्या से पार पाया जा सकता हैं। राठौड़ के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ये पांच उपाय इंसान के जीवन के लिए ऐसा अचूक मंत्र हैं, जिसकी सही से पालना व अनुसरण उसे मालामाल बना सकता हैं। उन्होंने बताया कि इस दिन चन्द्रोदय के समय शिवा, सम्भूति, प्रीति, संतति अनसूया और क्षमा इन छ: तपस्विनी कृतिकाओं का पूजन करना चाहिए। क्योंकि ये स्वामी कार्तिक की माता हैं और कार्तिकेय, खड्गी, वरूण हुताशन और सशूक ये सायंकाल में द्वार के ऊपर शोभित करने योग्य हैं। अत: इनका धूप-दीप, नैवेद्य द्वारा विधिवत पूजन करने से शौर्य, बल, धैर्य आदि गुणों में वृद्धि होती हैं। साथ ही धन-धान्य में भी वृद्धि होती हैं। 

देव स्वयं दीप जलाकर करतेे हैं खुशी का इजहार
सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर नरेन्द्रसिंह राठौंड़ की माने तो धार्मिक स्तर पर ऐसी मान्यता हैं कि देव दीपावली के दिन सभी देवता गंगा नदी के घाट पर आकर दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता को दर्शाते हैं। इसलिए दीपदान का बहुत ही महत्व हैं। नदी, तालाब आदि जगहों पर दीपदान करने से सभी तरह के संकट समाप्त होते हैं और जातक कर्ज से भी मुक्ति पा जाता हैं। उनके अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को घर के मुख्यद्वार पर आम के पत्तों से बनाया हुआ तोरण अवश्य बांधना चाहिए और इस दिन दीपावली की ही तरह दीपक जलाने चाहिए। उन्होंने बताया कि इस दिन शालिग्राम के साथ ही तुलसी की पूजा, सेवन और सेवा करने का भी बहुत ज्यादा महत्व हैं। इस कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया हैं। इस दिन तीर्थ पूजा, गंगा पूजा, विष्णु पूजा, लक्ष्मी पूजा और यज्ञ एवं हवन का भी बहुत ही महत्व हैं। अत: इसमें किए हुए स्नान, दान, होम, यज्ञ और उपासना आदि का अनंत फल होता हैं। इस दिन तुलसी के सामने दीपक जरूर जलाना चाहिए जिससे मनोरथ पूर्ण हो और दरिद्रता दूर हो। उनके अनुसार इस दिन व्रत का भी बहुत अधिक महत्व हैं। 

व्रत करने पर अग्निष्टोम यज्ञ समान फल की प्राप्ति
उन्होंने बताया कि इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती हैं। कार्तिक पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद कार्तिक व्रत पूर्ण होते हैं। साथ ही कार्तिक पूर्णिमा से एक वर्ष तक पूर्णिमा व्रत का संकल्प लेकर प्रत्येक पूर्णिमा को स्नान दान आदि पवित्र कर्मों के साथ श्री सत्यनारायण कथा का श्रवण करने का अनुष्ठान भी प्रारंभ होता हैं। अंतिम पांचवे उपाया के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन दानादिका दस यज्ञों के समान फल होता हैं। इस दिन में दान का भी बहुत ही ज्यादा महत्व हंै। इंसान को अपनी क्षमता अनुसार अन्न दान, वस्त्र दान और अन्य जो भी दान किया जा सकता हैं, वह करना चाहिए। इससे घर परिवार में धन- समृद्धि और बरकत बनी रहती हैं।


Tuesday 17 August 2021

रक्षा बंधन 2021: इस बार 3 शुभ योगों में बंधेगा रक्षा सूत्र

 घनश्याम डी रामावत

भारतीय अध्यात्म ने समाज के प्रत्येक वर्ग के सम्बन्धों को सुरक्षित रखने के लिए बहुत से अवसर और उपाय दिए हैं। इन्ही में से एक हैं ‘रक्षा बंधन’ पर्व। रविवार 22 तारीख को श्रावण मास की पूर्णिमा हैं। इसी दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। जोधपुर के जाने माने ज्योतिषविद्/लाल किताब विशेषज्ञ नरेन्द्रसिंह राठौड़ के अनुसार 22 अगस्त 2021 पूर्णिमा के दिन प्रात:कालीन शोभन, मातंग और सर्वार्थ सिद्धि योग होने से श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा का यह पर्व एक बहुत ही शुभ योग बन गया हैं। इस बार शुभ मुहूर्त प्रात: 05.50 बजे से शाम 06.03 बजे तक और दोपहर में 01.44 बजे से शाम 04.23 बजे तक हैं। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.04 बजे से 12.58 बजे तक हैं। ब्रह्म मुहूर्त 04.33 बजे से शाम 05.21 बजे तक हैं। इस बार रक्षा बंधन हेतु कुल समयावधि 12 घंटे 11 मिनट हैं।

ज्योतिष संस्थान प्रिंस एस्ट्रो लाइन के निदेशक नरेन्द्रसिंह राठौड़़ के अनुसार 22 तारीख को इस बार भद्रा का साया नही हैं इसलिए पूरे दिन रक्षा सूत्र बांधा जा सकेगा। राठौड़ के अनुसार पद्म पुराण में कई कथाएं इस पर्व से जुड़ी हैं। एक कथा विष्णु भगवान के वामन अवतार और राजा बली की भी हैं। इस कथा में वर्णन हैं कि इस अवतार में भगवान विष्णु राजा बली की कर्तव्यपरायणता से प्रसन्न होकर स्वेच्छा से उनके द्वारपाल बनकर पाताल लोक चले जाते हैं। तब मां लक्ष्मी राजा बली को श्रावण पूर्णिमा को भाई के रूप में रक्षा सूत्र बांधती हैं और अपने पति विष्णु को वापस लेकर आ जाती हैं। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने रक्त रोकने के लिए साड़ी फाडक़र उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा थी।  

भाई को पूर्व दिशा में मुख करके बैठाएं
रक्षा बंधन के दिन पूजा के दौरान भाई को पूर्व दिशा में मुख करके बैठाएं तथा बहिन पश्चिम की ओर मुख कर, जल शुद्धि करके भाई को रोली और अक्षत का तिलक लगा कर इस विशेष मंत्र का उच्चारण करते हुए रक्षा सूत्र बांधें, ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल:।।’ इसके बाद भाई की आरती उतार कर मिष्ठान्न खिलाएं। इस दिन सभी ज्ञानवान और आदरणीय जनों को रक्षा सूत्र बांधा जा सकता हैं। छोटे बच्चों के लिए रक्षा बंधन का दिवस विद्यारम्भ का दिन भी माना जाता हैं।

इस वर्ष भद्रा का साया रक्षा बंधन पर नहीं
ज्योतिषविद् नरेन्द्रसिंह राठौड़़ के अनुसार भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ होता हैं। खुशी की बात यह हैं कि इस बार भद्रा का साया राखी पर नहीं हैं। भद्रा काल 23 अगस्त 2021 को प्रात: 05.34 बजे से 06.12 बजे तक हैं। इसलिए 22 अगस्त को पूरे दिन राखी बांधी जा सकेगी। उनके अनुसार राहुकाल और भद्रा के समय शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भी भद्रा में राखी न बांधने/बंधवाने की पीछे कारण हैं कि लंकापति रावण ने अपनी बहन से भद्रा में राखी बंधवाई और एक साल के अंदर उसका विनाश हो गया। इसलिए इस समय को छोडक़र ही बहनें अपने भाई के राखी बांधती हैं। वहीं यह मान्यता भी हैं कि भद्रा भगवान श्री शनि महाराज की बहन हैं एवं उन्हें ब्रह्मा जी ने शाप दिया था कि जो भी व्यक्ति भद्रा में शुभ काम करेगा, उसका परिणाम अशुभ ही होगा। रक्षा बंधन के दिन क्रोध, अहंकार और विवाद की स्थिति से बचना चाहिए। इसके साथ कोई ऐसा कार्य न करें जिससे लोगों को पीड़ा पहुंचे और सार्वजनिक जीवन में निर्धारित नियमों के विरूद्ध हो। इस पर्व को हर्षोल्लास और पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ मानना चाहिए।

इस बार राखी बांधने का सही मुहूर्त
प्रात: 05.50 बजे से शाम 06.03 बजे तक और दोपहर में 01.44 बजे से शाम 04.23 बजे तक शुभ मूहूर्त हैं। अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12.04 बजे से 12.58 बजे तक हैं। ब्रह्म मुहूर्त 04.33 बजे से शाम 05.21 बजे तक हैं। इस बार रक्षा बंधन हेतु कुल समयावधि 12 घंटे 11 मिनट हैं। ज्योतिषविद् नरेन्द्रसिंह राठौड़ की माने तो भद्राकाल में राखी बांधना अशुभ माना जाता हैं। प्रसन्नता की बात हैं कि इस बार भद्रा काल 23 अगस्त 2021 को प्रात: 05.34 बजे से 06.12 बजे तक हैं अर्थात राखी के दिन नहीं हैं। इस बार रक्षा बंधन के दिन चंद्रमा मंगल के नक्षत्र और कुंभ राशि पर संचार करेंगे।

Sunday 25 July 2021

इम्यूनिटी उत्तम स्वास्थ्य का मुख्य आधार स्तम्भ, सजगता जरूरी

 घनश्याम डी रामावत

कोरोना महामारी की पहली एवं फिर दूसरी लहर ने आमजन को खासा परेशान किया। महामारी के दौरान अनगिनत लोगों ने जहां अपनों को खोया, वहीं आमजन के स्वास्थ्य पर भी बड़े पैमाने पर प्रतिकूल असर देखने को मिला। रोजाना की दिनचर्या में अनेक लोग संक्रमण के दुष्प्रभाव के बाद उपजी शारीरिक अनेक प्रकार की व्याधियों के संदर्भ में चर्चा करते आसानी से मिल जाते हैं। 

अब जबकि कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर आने को लेेकर चर्चा चल रही हैं और आमजन असमंजस की स्थिति में हैं। आम व्यक्ति इससे अपने आप को किस प्रकार सुरक्षित रख सकता हैं तथा कैसे मौजूदा जीवन शैली मेंं कोरोना सहित अन्य बीमारियों का उस पर कम से कम दुष्प्रभाव हो, जोधपुर के जाने माने काय चिकित्सक/जनरल फिजिशियन डॉ. संजय श्रीवास्तव से खास बातचीत की। ‘होप ऑफ लाइफ’ से अपनी बात की शुरूआत करने वाले डॉ. श्रीवास्तव की माने तो इम्युनिटी/प्रतिरोधक क्षमता अच्छे स्वास्थ्य का मूल मंत्र हैं। उन्होंने कहा कि इसे हर हाल में व्यवस्थित रखा जाना जरूरी हैं। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार मजबूत इम्युनिटी कोरोना सहित अन्य सभी बीमारियों के खिलाफ ढ़ाल का काम करती हैं।

कोरोना महामारी ने अत्यधिक प्रभावित किया
डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि कोरोना की पहली व दूसरी लहर के बाद लोगों की जीवन शैली में काफी बदलाव आया हैं एवं आमजन को अपने स्वास्थ्य को लेकर अत्यधिक सजग रहने की जरूरत हैं। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार पोषक तत्वों की शरीर में प्रमुख भूमिका रहती हैं। इन्हें नकार कर अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती हैं। उनका कहना हैं कि इम्युनिटी मजबूत रखेंगे तो शरीर स्वत: ही तंदरूस्त रहेगा। कोरोना काल में स्वयं एवं परिवार को सुरक्षित बनाए रखने का प्रतिरोधक क्षमता सबसे सशक्त तरीका/रक्षा कवच हैं। जाने माने काय चिकित्सक/फिजिशियन डॉ. संजय श्रीवास्तव ने बताया कि शरीर की इम्युनिटी बढ़ाना कोई मुश्किल और बड़ा काम नहीं हैं। प्राकृतिक पोषक तत्वों को भोजन में शामिल करने से लेकर, नियमित दिनचर्या के साथ खेलने/कसरत करने को जीवन शैली में अपनाकर इसे बढ़ाया जा सकता हैं।

पोषक तत्वों को डाइट में प्रमुखता से शामिल करें
डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार मौजूदा दौर में चाय से दूरी बनाने के साथ जंक फूड से भी बचने की आवश्यकता हैं। उन्होंने कहा कि फाइबर अर्थात रेशेयुक्त भोजन, फल, सब्जियां आदि खाने पर ध्यान देना चाहिए और फैट यानी वसा वाले भोज्य पदार्थ खाना बंद करना होगा। बेशक गर्मी के दिन हैं, लेकिन कोल्ड ड्रिंक और ठंडी चीजों के सेवन से भी बचना होगा। फलों के जूस पीने के बजाय फल काटकर खाने पर ध्यान दें, जिससे फाइबर ज्यादा मिलेगा। क्रीम की अपेक्षा वेज सैंडविच और पनीर सैंडविच खाया जा सकता हैं। शाम को ड्राईफ्रूट्स लिए जा सकते हैं जिससे स्वाद भी आयेगा और पेट भी भरेगा। बच्चों-किशोरों को आयरन, विटामिन-डी और कैल्शियम की जरूरत ज्यादा होती है। इसके लिए दूध, दही व पनीर इत्यादि भी खाने में शामिल करें। अंकुरित अनाज यानी स्प्राउट्स ले सकते हैं। स्प्राउट्स को सैंडविच के साथ अथवा पराठे में भरकर भी खा सकते हैं। स्टीम फूड अर्थात बिना घी-तेल की बनी चीजें बच्चों और किशोरों के लिए बेहतर हैं। इम्युनिटी के लिए सभी को आयरन, कैल्शियम और विटामिन सी की जरूरत होती हैं। प्रोटीन, फल और सब्जियां खाएं ताकि हड्डियां मजबूत हों और पोषण की कमी न हो।

ईश्वर के प्रति विश्वास/समर्पण का भाव जरूरीे

सूर्यनगरी में वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. संजय श्रीवास्तव की मान्यता हैं कि मरीज को चिकित्सा के दौरान अच्छी दवाइयों के साथ ईश्वर के प्रति उसके विश्वास व समर्पण की भी प्रमुख भूमिका रहती हैं। डॉ. श्रीवास्तव के माने तो प्रत्येक इंसान को ईश्वर के प्रति अपने भरोसे को हमेशा कायम रहना चाहिए। उनके अनुसार बेहतर इम्युनिटी के लिए अच्छी डाइट आवश्यक हैं। शरीर में पोषक तत्वों की कमी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। उनकी मान्यता हैं कि उत्तम सेहत के लिए दवाइयों की नहीं, अच्छी डाइट की जरूरत होती हैं। डॉ. श्रीवास्तव के अनुसार इम्युनिटी बरकरार रखने के लिए जितना संभव हो सके बाहर के खाने से बचना चाहिए। अपने खाने में ज्वार, जौ व बाजरा जैसे अनाज को शामिल करें। रागी का दलिया उत्तम हैं। सुबह उठकर गुनगुना पानी लें। एक बार में ज्यादा खाना लेने और छोड़ देने के बजाय नियमित अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाएं। प्रतिदिन एक्सरसाइज करें। नाश्ते में नट्स, बीज और दलिया शामिल करें। चाय न पिएं तो अच्छा हैं। सोते वक्त हल्दी डालकर दूध लें। 

सबसे अच्छी बात डॉ. श्रीवास्तव ने बताई कि ईश्वर को प्रसाद/भोग में चढ़ाई जाने वाली प्रत्येक चीज श्रेष्ठ होती हैं, इसे डाइट में अवश्य शामिल करना चाहिए। उत्तम स्वास्थ्य के लिए नियमित दिनचर्या बेहद जरूरी हैं। इम्युनिटी बढिय़ा रखने के लिए खान-पान में पर्याप्त मैक्रो-न्यूट्रिएंट्स और सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरूरत होती हैं, इस ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए। पढऩे, खाने, खेलने व सोने का समय तय करने के साथ ही हल्का व्यायाम आवश्यक हैं।

Saturday 30 January 2021

गांधीजी के विचारों के सम्मान से ही समृद्धि संभव (पुण्यतिथि विशेष)

घनश्याम डी रामावत

भारत के बारे हमारे देश के महापुरूषों की स्पष्ट सोच थी। भारत की जड़ों से बहुत गहरे तक जुड़े हुए थे। वर्तमान में भारत का जो स्वरूप हमारी आंखों के सामने हैं, वह भारत के महापुरूषों की मान्यताओं के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। गांधीजी सत्य को जीवन का बड़ा आधार मानते थे। मौजूदा समय में हमें नैतिकता और सिद्धांत के केवल भाषण सुनाई देते हैं, वास्तविकता इसके उलट हैं। गांधीजी का जीवन दर्शन स्वदेशी की भावना पर ही आधारित था। जबकि आज भारत में लोग विदेशी पहनावा, विदेशी खानपान और विदेशी विचारों को आत्मसात करने में गर्व महसूस करने लगे हैं। भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इस बात पर गहन चिंतन किया गया कि अब कैसा भारत बनाना चाहिए। महात्मा गांधी की इस बारे में स्पष्ट कल्पना थी। वे कहते थे कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहता हूं जिसमें शराब जैसी बुराई का नामोनिशान न हो, जहां समाज में भेदभाव न हो, गौहत्या पाप हो और रामराज्य स्थापित हो।
 
भारत का आधार राम, भारत की संस्कृति राम
गांधीजी की दृष्टि में भविष्य के भारत की बुनियाद में पुरातन और सांस्कृतिक मान बिन्दुओं का समावेश था। वे जानते थे कि इसके बिना भारत नहीं, क्योंकि भारत का आधार ही राम हैं, राम भारत की संस्कृति हैं। आज भगवान राम को भले हिन्दू समाज का आराध्य मानकर प्रचारित किया जा रहा हो लेकिन यह सत्य है कि भारत में मुगलों और अंग्रेजों के शासन से पूर्व भी इस देवभूमि में श्रीराम का अस्तित्व था और आज भी है। आज भारत को श्रीराम के जीवन के अनुशासन और मर्यादा को आत्मसात करने की आवश्यकता हैं। महात्मा गांधी के इन विचारों को हमारे राजनीतिक दल आत्मसात करने में संकोच कर रहे हैं। कहीं न कहीं इन बातों को सांप्रदायिक बताने का खेल भी चल रहा है, लेकिन ऐसा करने में वे भूल जाते हैं कि भारत में रामराज्य की संकल्पना स्वतंत्रता मिलने के बाद की नहीं है और न ही यह केवल महात्मा गांधी का ही विचार है, बल्कि महात्मा गांधी ने उसी बात को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, जो भारत में सनातन काल से चल रहा है। भारत के मनीषियों ने जो सांस्कृतिक मूल्य स्थापित किए थे, गांधीजी ने उनका हृदय से अनुगमन किया और आत्मसात किया। इसीलिए वे भारत में इसके स्थापन का प्रयास करते दिखाई दिए।
 
अंग्रेजों की विभाजन नीति का विरोध किया
महात्मा गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों की उस नीति का भी विरोध किया, जो समाज में विभाजन की रेखा खींचती थी। इसलिए वे समाज में भाईचारे के भाव का विस्तार चाहते थे। महात्मा गांधी जैसा चाहते थे, उन्हें वैसा दृश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में दिखाई दिया। उन्होंने संघ के वर्धा शिविर में भाग लिया। वहां उन्होंने भेदभाव रहित समाज का दर्शन किया, जो उस समय उनकी कल्पना में अपेक्षित था। गांधीजी जानते थे कि सामाजिक एकता इस देश के लिए कितनी आवश्यक हैं। वर्तमान में समाज की फूट के चलते अनेक विसंगतियों का जन्म हो रहा हैं। व्यभिचार बढ़ रहे हैं। जो गांधीजी के विचारों के प्रतिकूल हैं। गांधीजी भगवान राम को सभी धर्म और संप्रदाय से ऊपर मानते थे। आज भगवान राम को जिस प्रकार केवल हिन्दू समाज से जोडक़र देखा जाता है, वह दृष्टि महात्मा गांधी की नहीं थी। श्रीराम जी का जीवन एक ऐसा आदर्श है जो सबके लिए उत्थानकारी है। गांधीजी ने राम को भारतीय दृष्टि से देखा। आज के समाज से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वह राम जी को संकुचित दायरे से न देखकर भारतीयता की दृष्टि से देखें। ऐसा करेंगे तो उन्हें राम अपने दिखाई देंगे, भारत के दिखाई देंगे। महात्मा गांधी का पूरा चिंतन भारत के विकास पर भी केंद्रित रहा। उन्होंने देश में स्वदेशी भावना को जगाने के लिए स्वयं के जीवन से कई उदाहरण दिए।
 
स्वदेशी को अपनाया, समाज को प्रेरित किया
इस समय बाजार में जिस प्रकार से विदेशी वस्तुओं का आक्रमण हुआ हैं, उसके कारण हमारे देश का पैसा विदेशी संस्थाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है। अपने देश का पैसा अपने देश में ही रहे, इसलिए गांधीजी ने स्वदेशी का विचार अपने जीवन में अपनाया और समाज को प्रेरित किया। आज इस भाव को इसलिए भी अपनाने की आवश्यकता हैं, क्योंकि आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता हैं, जो केवल स्वदेशी के विचार से ही संभव हैं। इतना ही नहीं गांधी जी भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना को भी देश के विकास का मजबूत आधार मानते थे। हालांकि अब भारत का समाज स्वदेशी की ओर जाग्रत भाव के साथ अग्रसर हुआ हैं। महात्मा गांधी गौहत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध चाहते थे। हम जानते हैं गौ हमारे देश का अर्थशास्त्र हैं। गाय देश की आर्थिक उन्नति से जुड़ी हैं। देश में जब गौ आधारित खेती होती थी, तब देश धन धान्य से संपन्न था। धरती के सोना उगलने का समय भी यही था। वास्तव में गांधीजी का चिंतन अद्भुत था। उनका हर शब्द भारत की आत्मा ही था। हमें भारत की आत्मा को बचाना है तो गांधीजी के विचारों को आत्मसात करना होगा। इसी से भारत की समृद्धि का मार्ग निर्मित होगा और हम आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे।

मण्डोर उद्यान: देवताओं की साळ का कार्य अधूरा

 घनश्याम डी रामावत

जोधपुर का मण्डोर उद्यान किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। ऐतिहासिक मण्डोर उद्यान में स्थित देवताओं की साळ में मारवाड़ के वीरों, लोकदेवता और विभिन्न देवी देवताओं की विशालकाय प्रतिमाओं की मरम्मत व जीर्णोंद्धार का काम अब भी अधूरा पड़ा हैं। देश ही नहीं विश्व स्तर पर अपनी खास अहमियत रखने वाले इस उद्यान से संबंद्ध देवताओं की इस साळ की मरम्मत के लिए राजस्थान सरकार ने 70 लाख रूपये जारी किए थे। इससे देवताओं की साळ के जर्जर छज्जे, सुरक्षा दीवार और प्रतिमाओं को तो नया स्वरूप प्रदान कर दिया गया हैं, लेकिन साळ में लाइटें और पारदर्शी कांच लगाने का कार्य अब भी पूरा नहीं हो सका हैं। सूत्रों के अनुसार पुरातत्व विभाग के जोधपुर वृत अधिकारी सेवानिवृत हो गए हैं तो मण्डोर संग्रहालय के प्रभारी को पाली का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया हैं। ऐसे में काम की मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही हैं।
 
ये प्रतिमाएं विशेष आकर्षण का केन्द्र
देवताओं की साळ में राठौड़ों की इष्ट देवी और परिहारों (ईदों) की कुलदेवी मां चामुण्डा, महिषासुर मर्दिनी, गुसाई सम्प्रदाय के महात्मा गुंसाई जी, रावल मल्लीनाथ, पाबू जी राठौड़, लोकदेवता बाबा रामदेव, हड़बू जी, मेहा जी, गोगा जी, ब्रह्मा जी, सूर्यदेव, रामचन्द्र, कृष्ण, महादेव, जलंधरनाथ जी व श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं खास आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं।

उखड़ गई थी अधिकांश प्रतिमाएं
देवताओं और वीरों की प्रतिमाएं सीलन के कारण जगह-जगह से उखड़ गई थी। जीर्णोद्वार के दौरान यथा स्थिति का प्रयास किया गया लेकिन मूर्तियों के स्वरूप में काफी बदलाव हुआ हैं। जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह एवं महाराजा अभयसिंह के शासन काल में सन् 1707 से 1749 के मध्य निर्मित मूर्तियों में 7 देवताओं और 9 मारवाड़ के वीर पुरूषों की प्रतिमाएं शामिल हैं। करीब 15 फीट ऊंची मूर्तियां मारवाड़वासियों की श्रद्धा का केन्द्र भी हैं।

काफी काम अभी भी बाकी
मण्डोर पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के परिरक्षक महेन्द्र कुमावत के अनुसार मण्डोर उद्यान से संबद्ध देवताओं की साळ परिसर में पक्षियों के प्रवेश और मिट्टी को रोकने के लिए 15 एमएम का कांच तथा लाइटे लगाने का कार्य बाकी हैं। विभाग के जोधपुर वृत अधीक्षक के सेवानिवृत होने के कारण काम शेष रह गया, जिसे जल्दी ही पूरा करा लिया जाएगा।

Tuesday 24 December 2019

आग से भरी अंगूठी की तरह नजर आएगा ’सूर्य’ ('Sun' will look like a ring filled with fire)

घनश्याम डी रामावत
26 दिसंबर अर्थात पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या/गुरूवार को साल का तीसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण लगेगा। इस बार ग्रहण के दौरान सूर्य भारत में आग से भरी अंगूठी की तरह नजर आएगा। इसे वलयाकार सूर्य ग्रहण भी कह सकते हैं। सूर्य ग्रहण में ऐसा नजारा लगभग 150 साल बाद दिखाई देगा। यह देश के अधिकांश राज्यों में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा। ग्रहण का सूतक 25 दिसंबर रात 8 बजे से शुरू होकर 26 दिसंबर प्रात: 11 बजे समाप्त होगा। जबकि जोधपुर शहर में ग्रहण का स्पर्श काल 26 दिसंबर को प्रात 8.08 मिनट से होकर प्रात: 10.57 मिनट रहेगा। यह भारत के अलावा श्रीलंका, उत्तर-पश्चिम आस्ट्रेलिया, सऊदी अरब, कतर, सुमात्रा, मलेशिया, ओमान, सिंगापुर और पूर्वी अफ्रीका में भी दिखाई देगा।

नक्षत्रलोक ज्योतिष विज्ञान शोध संस्थान, जोधपुर के निदेशक एवं प्रख्यात ज्योतिर्विद/पंचांगकर्ता पण्डित अभिषेक जोशी के अनुसार इस बार एक माह में दो ग्रहण होने जा रहे हैं जिसे किसी तरीके से ठीक नहीं कहा जा सकता। पण्डित जोशी की माने तो यह प्राकृतिक आपदाओं हिंसक घटनाओं के बढऩे का संकेत हैं। पण्डित जोशी के अनुसार आने वाले : माह में देशद्रोही ताकते साम/दाम/दंड/भेद की नीति अपनाते हुए शासन व्यवस्था को कमजोर नुकसान पहुंचाने का हर सम्भव प्रयास करेगी। यद्यपि यह प्रयास निकट भविष्य में स्वयं उनके लिये ही आत्मघाती ही सिद्ध होगा। राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पंहुचाने के साथ ही आम जनता से लूटपाट, चोरी डकैती महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं भी बढ़ेगी। पण्डित जोशी के अनुसार 26 दिसम्बर पौष कृष्ण पक्ष अमावस्या/गुरूवार को सूर्यग्रहण एवं इसके ठीक 15 दिन बाद 10 जनवरी, 2020 पौष पूर्णिमा/शुक्रवार को उपछाया चन्द्र ग्रहण होगा। जोशी के अनुसार 25 दिसम्बर को बुध धनु राशि में प्रवेश कर जाएगा जो पंचग्रही योग बनाएगा। 25 दिसम्बर को ही मंगल तुला से वृश्चिक राशि मे प्रवेश कर धनु राशि में स्थित सूर्य, गुरु, शनि, केतु बुध के साथ द्विद्वादश योग मिथुन राशि मे स्थित राहु से मङ्गल का षडाष्टक योग बनेगा। यह ग्रह गोचर बड़ी अशांति की वजह बनने के प्रबल संकेत दे रहे हैं। आपराधिक विघटनकारी घटनाओं में वृद्धि के साथ आंतरिक स्तर पर आपसी प्रेम, भाईचारा/सौहार्द पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव नजर आएगा।

हर क्षेत्र में नजर आएगा व्यापक प्रभाव
जाने माने ज्योतिर्विद एवं पंचांगकर्ता पण्डित जोशी के अनुसार 25 दिसम्बर/बुधवार को ही धनु राशि में चन्द्र का भी प्रवेश हो जाएगा और यहां षटग्रही योग बनेगा। एक ही राशि में : ग्रहों का एकत्र होना बड़ी प्राकृतिक आपदा अर्थात भूकम्प, तूफान, सुनामी, अतिवृष्टि की तरफ संकेत के साथ ही अग्नि से संबंधित घटनाएं एवं ज्वालामुखी के सक्रिय होने की स्थिति बना रहा हैं। 31 दिसम्बर को न्याय का कारक ग्रह शनि भी अस्त हो जाएगा। ज्ञान, विवेक बुद्धि के कारक ग्रहों के अस्त होने के बाद न्याय, कानून सहनशीलता के कारक ग्रह का अस्त होने के कारण अनाचार, अत्याचार के साथ न्याय के विरुद्ध घटनाएं घटित होना संभव हैं। यह स्थिति सरकार या प्रशासन के किसी कार्य या फैसले को लेकर असहनशीलता या असंतोष आक्रोश बढऩे का संकेत भी हैं। ज्ञातव्य रहें, 15 दिसम्बर को देवगुरू ब्रहस्पति अर्थात गुरू ग्रह अस्त हो चुका हैं। गुरु का अस्त होने का अर्थ हैं ज्ञान विवेक पर पर्दा पडऩा। पण्डित जी के अनुसार इस स्थिति में अज्ञान अनाचार की घटनाओं में वृद्धि होना लाजमी हैं। 16 दिसम्बर को सूर्य वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश कर चुका हैं जो गुरू-शनि केतु के साथ युति के बाद चतुर्ग्रही योग का कारण हैं। राहु से समसप्तक योग निर्मित हुआ हैं जो प्राकृतिक आपदा को निमंत्रित करने वाला हैं। जोशी के अनुसार 22 दिसम्बर को बुद्धि का कारक ग्रह बुध अस्त हो चुका हैं। यही कारण हैं कि पिछले दिनों देश में अचानक अधर्म अनाचार की घटनाओं की बाढ़ सी गई। ग्रहों की स्थिति के कारण आमजन को विशेष सावधानी सतर्कता रखना श्रेयकर होगा। 26 दिसम्बर को धनु राशि में : ग्रहों की युति के बीच साल का यह आखिरी सूर्यग्रहण होगा। इसका प्रभाव मेष राशि को अपमान, वृषभ को कष्ट, मिथुन को जीवनसाथी कष्ट, कर्क को सुख, सिंह को चिंता, कन्या को कष्ट, तुला को धनलाभ, वृश्चिक को हानि, धनु को घात, मकर को हानि, कुम्भ को लाभ मीन को सुख के रूप में फलीभूत होगा। 26 दिसम्बर को होने वाले सूर्यग्रहण के ठीक 15 दिन बाद 10 जनवरी 2020 पौष पूर्णिमा/शुक्रवार को उपछाया चन्द्रग्रहण होगा। यह ग्रहण भी भारत में दृश्य होगा एवं इसका प्रभाव देखने को मिलेगा। पण्डित जोशी की माने तो यह दोनों ग्रहण भारतीय राजनीति में प्रतिष्ठित व्यक्तियों, व्यापारियों, सरकारी कर्मचारियों को प्रभावित करने वाले हैं। पाकिस्तान, अमरीका, इजरायल, उत्तर कोरिया एवं भारत की शासन व्यवस्था में भी व्यापक उलटफेर की स्थिति निर्मित होगी। आने वाले समय में ग्रहण का प्रभाव भारतीय राजनीति पर भी दिखाई देगा। सत्तारूढ़ दल के प्रमुख नेता के सत्ताच्युत होने से भाजपा के लिये सन 2020 कठिनाई भरा रहेगा। कांग्रेस को पुनर्जीवित होने में अभी समय लगेगा। भारत की जनता वंशवाद की राजनीति से विमुख हो राष्ट्रवादी मानसिकता को बल प्रदान करेगी।

नियमों का पालन जरूरी/मंत्र जाप श्रेष्ठकर
प्रख्यात ज्योतिर्विद/पंचांगकर्ता पण्डित अभिषेक जोशी के अनुसार सूतक काल से ही भोजन/जल ग्रहण स्त्री संसर्ग आदि बन्द कर देना चाहिए। ग्रहण काल में विशेष रूप से इसका पालन करना चाहिए। बच्चे, बूढ़ें, अशक्त रोगी के लिये कोई भी नियम पालनीय नही हैं ग्रहण काल मे शयन भी करना चाहिए। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आती हैं प्रकृति के नियमानुसार तो ग्रहण देखें ही इस समय बाहर निकलें। कुशा अथवा डाब अपने पास रखें। पानी के टांके में घी आटे मसाले दूध इत्यादि जो प्रचुर मात्रा में घर में रखे हुए हैं,उनमें कुशा/तुलसी अवश्य डालें। ग्रहण काल में अपनी राशि के अनुसार ईष्ट देव के मंत्रों का मानसिक जाप अवश्य करें। पण्डित अभिषेक जोशी के अनुसार मेष राशि के जातक  ह्रीं श्रीं लक्ष्मी नारायणाय नम: का जाप करें। वृषभ राशि के जातक  गोपालाय उसरध्वजाय नम: का जाप करें। मिथुन राशि के जातक क्लीं कृष्णाय नम: का जाप करें। कर्क राशि के जातक  हिरण्य गर्भायै अव्यक्त रुपिणे नम: का जाप करें। सिंह राशि के जातक क्लीं ब्रह्मणे जगदाधारायै नम: का जाप करें। कन्या राशि के जातक प्रीं पिताम्बरायै नम: का जाप करें। तुला राशि के जातक  तत्व निरञ्जनायै तारक रामाय नम: का जाप करें। वृश्चिक राशि वाले  नारायणाय सूरसिंहाय नम: का जाप करें। धनु राशि वाले  देवकी कृष्णाय उर्ध्वषताय नम: का जाप करें। मकर राशि वाले श्रीवत्सलाय नम: का जाप करें एवं कुम्भ राशि वाले श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नम: का जाप करें। इसी प्रकार मीन राशि वाले जातक क्लीं उद्धृताय उद्धारिणे नम: का जाप करें। ग्रहण के उपरांत स्नान कर घर की सफाई झाड़ू पोछा कर वस्त्र अन्न का सफाईकर्मी को दान देवें। गर्भवती स्त्री और नवजात शिशु को ग्रहण काल में बाहर नही निकलना चाहिए, इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए।