घनश्याम
डी रामावत
’रत्न’
प्रकृति प्रदत्त
मूल्यवान निधि
हैं जिसका
अनादिकाल से
ही मानव
से सीधा
संबंध रहा
हैं। यहीं
कारण हैं
कि मनुष्य
का रत्नों
की तरफ
आकर्षण आज
भी यथावत
रूप से
कायम हैं।
यह कहने
में कोई
अतिश्योक्ति नहीं कि यह भविष्य
में भी
यूं ही
रहेगा। रत्न
विशेषज्ञों की माने तो यह
सुवासित, चित्ताकर्षक,
चिरस्थायी व दुर्लभ होने तथा
अपने अद्भुत
प्रभाव के
कारण भी
मनुष्य को
अपने मोहपाश
में बांधे
हुए हैं।
रत्न आभूषणों
के रूप
में शरीर
की शोभा
तो बढ़ाते
ही हैं/अपनी दैवीय
शक्ति के
प्रभाव के
कारण रोगों
का निवारण
भी करते
हैं, ऐसा
रत्न विशेषज्ञों
का मानना
हैं।
प्रकृति
द्वारा प्रदत्त
अनुपम निधियों
में शुमार
रत्नों में
चिरस्थायित्व का ऐसा गुण हैं
कि ये
ऋ तुओं
के परिवर्तन
के कारण
तथा समय-समय पर
प्रकृति के
भीषण उथल-पुथल से
तहस-नहस
होने के
कारण भी
प्रभावित नहीं
होते हैं।
ऐसी मान्यता
हैं कि
मानव द्वारा
इसके सही
तरीके से
उपयोग किए
जाने पर
यह उसके
जीवन में
व्यापत नकारात्मकता
को नष्ट
करता हैं
एवं उसके
जीवन में
सकारात्मकता का प्रादुर्भाव करते हुए
खुशहाली के
रंग घोलता
हैं। सूर्यनगरी
जोधपुर के
जाने माने
ज्योतिषी, रत्न एवं वास्तु विशेषज्ञ
सुरेश सोनी
की माने
तो आज
की भागदौड़
भरी जिन्दगी
में अधिकांश
व्यक्ति किसी
न किसी
तरीके से
परेशान हैं।
अत्यधिक व्यस्तताओं
के बीच
इंसान को
यह सोचने
का भी
अवसर नहीं
मिलता कि
आखिर उसके
साथ ऐसा
क्यों हैं?
ज्योतिषी/वास्तु
विशेषज्ञ सोनी
के अनुसार
इंसान के
जीवन में
यह स्थिति
नकारात्मकता की बहुलता के कारण
उत्पन्न होती
हैं जो
ग्रह, नक्षत्र
व समय
विशेष के
प्रभाव में
उसकी जिन्दगी
में अदृश्य
रूप से
अपना स्थान
बना लेती
हैं।
सही
रत्न बनाता
हैं जीवन
को खुशहाल
’रत्न
और मानव
जीवन पर
उसका प्रभाव’
विषयक परिचर्चा
के दौरान
ज्यातिष एवं
वास्तुविद् सुरेश सोनी ने बताया
कि मानव
का शरीर
अग्नि, पृथ्वी,
वायु, आकाश
एवं जल
रूपी पंच
तत्वों के
मिश्रण से
बना हैं।
सृष्टि संचालन
तथा मानव
शरीर संचालन
के लिए
इन तत्वों
का संतुलन
परम आवश्यक
हैं। इन
तत्वों के
असंतुलित होने
पर मनुष्य
रोग ग्रस्त,
चिड़चिड़ा, दुखों से पीडि़त एवं
कांतिहीन हो
जाता हैं।
ऐसे में
इन तत्वों
को संतुलित
करने का
आधार हैं
ऊर्जा, प्रकाश
और रंग।
’रत्न’ भी
इसी सिद्धांत
पर काम
करता हैं।
सोनी के
अनुसार प्रकृति
की अनुपम
कृति 9 रत्न
व 84 उप
रत्नों में
से योग्य
ज्योतिषी के
सलाह पर
सही रत्न
धारण कर
मनुष्य जीवन
में व्यापत
नकारात्मकताओं व असफलताओं पर विजय
प्राप्त कर
सकता हैं/अपने जीवन
को खुशहाल
बना सकता
हैं। रत्न
खुद ऊर्जा
का स्रोत
नहीं होता
अपितु अपनी
संरचना, बनावट,
अपने रंग,
स्वभाव के
अनुसार विशेष
प्रकार की
ऊर्जा, कंपन
शक्ति व
चुम्बकीय शक्ति
को अपनी
ओर खींचता
हैं और
उसको अवशोषित
करके परावर्तित
अर्थात प्रसारित
करता हैं।
रत्न का
स्पर्श ऊर्जा
चालक से
होने पर
यह ऊर्जा,
कंपन शक्ति,
चुम्बकीय शक्ति
व प्रकाश
को प्रसारित
करता हैं।
वास्तु विशेषज्ञ
सोनी के
अनुसार ’रत्न’
सही अर्थों
में ग्रह
से सम्बंधित
ऊर्जा को
बढ़ाता हैं।
रत्न के
सही उपयोग
अर्थात मन
वांछित फायदे
के लिए
इसको धारण
करने हेतु
विशेषज्ञ ज्योतिषी
से परामर्श
आवश्यक हैं,
बिना परामर्श
पहना हुआ
रत्न परेशानियों
को और
अधिक बढ़ा
सकता हैं।
रत्न
का प्रभाव
गुण धर्म
आधारित, परामर्श
जरूरी
प्रख्यात
ज्योतिषी सुरेश
सोनी के
अनुसार सभी
9 रत्नों एवं
84 उप रत्नों
का प्रभाव
इनके मूल
अस्तित्व ब्राह्मण,
क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र आधारित
हैं। इनके
अस्तित्व अर्थात
स्वरूप/प्रकृति
अनुसार ही
गुणधर्म भी
हैं। रत्न
ग्रहों की
स्थिति के
अनुसार धारण
करना चाहिए।
प्राकृतिक होना चाहिए एवं किसी
प्रकार से
दोषयुक्त नहीं
होना चाहिए।
सोनी के
अनुसार आजकल
चीन निर्मित
सिंथेटिक/कृत्रिम
रत्न भी
बाजार में
उपलब्ध हैं
जो किसी
प्रकार का
प्रभाव नहीं
रखते हैं।
9 रत्नों में
से मूंगा
व मोती
समुद्र से
एवं शेष
सभी रत्न
खदानों से
प्राप्त होते
हैं। रत्न
का सही
प्रभाव/लाभ
प्राप्त करने
के लिए
समस्या संदर्भ
में योग्य
ज्योतिषी/विशेषज्ञ
से परामर्श
पश्चात विश्वसनीय
प्रतिष्ठान से इसे खरीदना चाहिए।
ग्रहों की
स्थिति व
समय/काल
आधारित सुझाए
गए रत्न
को सही
मुहुर्त में
ही धारण
करना चाहिए।
रत्न व
वास्तु विशेषज्ञ
सोनी की
माने तो
सही रत्न
का धारण
किया जाना
जीवन में
खुशहाली तो
लाता ही
हैं, यह
असाध्य रोगों
से मुक्ति
भी दिलाता
हैं। ज्योतिषविद्,
रत्न एवं
वास्तु विशेषज्ञ
सोनी के
अनुसार प्रमुख
9 रत्नों में
से माणक-आत्मविश्वास के
लिए, मोती-मन की
शांति, मूंगा-शारीरिक बल
व रक्त
दोष निवारण
(मूंगा गुस्सा
भी देता
हैं), पन्ना-
बौद्धिक विकास
एवं धन
प्राप्ति, पुखराज-व्यापारिक प्रसिद्धि तथा
मान सम्मान/मांगलिक प्रसंग,
हीरा-भौतिक
सुख सुविधाओं
हेतु, नीलम-सामाजिक प्रतिष्ठा,
गौमेद-राजनैतिक
प्रतिष्ठा तथा लहसुनिया का प्रयोग
आध्यात्मिक उन्नति व मानसिक विकारों
के निवारणार्थ
किया जाता
हैं।
9 रत्नों
के अलावा
84 उप रत्न,
सबका अपना
प्रभाव
वास्तु विशेषज्ञ सुरेश सोनी के अनुसार रत्न का प्रभाव स्पर्श आधारित हैं। इसलिए इसे संपूर्ण विधि/प्रक्रिया समझने के पश्चात अंगुली में अर्थात अंगूठी में स्थापित कर धारण करना अधिक श्रेष्ठकर हैं। इनके अलावा 84 उप रत्न हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं-सुनहला, कटैला, स्फटिक, दाना फिरंग, फिरोजा, जबरजद्द, तुरमली, ओपल, संगसितारा, जरकन, माहेमरियम, लाजवर्त, तामड़ा, चंद्रकांतमणि, गनमेटल, मकनातीस, काला स्टार, टाइगर, मरगज, ओनेक्स,हकीक, सुलेमानी, हकीक यमनी, बैरुज, धुनैला, सजरी, होलदिली, अलेक्जैंडर, लालडी, रोमनी, नरम, लूधिया, सिंदूरिया, नीली, पितौनिया, बासी, दूरे नजफ़, आलेमासी, जजेमानी, सीवार, तुरसावा, अहबा, आबरी, कुदरत, चित्ती, संगसन, लारू, मार्बल, कसौटी, दारेचना, हकीक गलबहार, हालन, मुवे नजफ़, कहरवा, झरना, संगबसरी, दांतला, मकड़ा, संगिया, गुदड़ी, सिफरी, कांसला, हदीद, हवास, सींगली, ढेडी, गौरी, सीया, सीमाक, मूसा, पनघन, अमलीया, शद्घ, डुर, तिलियर, खारा, फात जहर, सेलखड़ी, जहर मोहरा, रवात, सोन मक्खी, हजरते ऊद, सुरमा, पारस एवं रेनबो।
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