Sunday, 13 August 2017

महेन्द्रा गुणसार लोक संगीत संस्थान : कार्यशाला के माध्यम से पारंपरिक कलाओं के संरक्षण का अभिनव प्रयास

घनश्याम डी रामावत
देश विदेश में राजस्थानी लोक संगीत और लोकवाद्यों के रिदम से श्रोताओं को दीवाना बनाते हुए झूमने को मजबूर करने वाली पारंपरिक लोक कलाओं को बचाये रखने के लिए नए अनूठे प्रयास शुरू किये गए हैं। वीरता के साथ अपनी अनूठी परम्पराओं व अनूठी संस्कृति के रूप में देश ही नहीं विदेश तक में अपनी खास पहचान रखने वाले राजस्थान के जैसलमेर में लंगा मांगणियार से जुड़ी गुणसार लोक संगीत संस्थान ने क्लब महेन्द्रा के सहयोग से लंगा मंगणियार जाति के 40 बच्चों के लिए एक कार्यशाला की शुरूआत की हैं। 

गाने व वाद्यों को बजाने का विधिवत प्रशिक्षण
रोजाना चलने वाले महेन्द्रा गुणसार लोक संगीत स्कूल में चल रहे इस प्रशिक्षिण शिविर में लुप्त हो रहे पारंपरिक लोक वाद्यों को बजाने और लोक गीतों को गाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। इसमें खासकर ऐसे
गीत गवाये जा रहे हैं जिनका प्रचलन धीमे-धीमे कम होता जा रहा हैं। जैसलमेर के लोक संगीत की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच चुकी हैं। हर साल लाखों की संख्या में देशी विदेशी सैलानी पारम्परिक लोक कलाओं को देखने संगीत को सुनने यहाँ आते हैं। जैसलमेर के लोक संगीत को बचा कर रखने वाली जातियां लंगा और मांगनियार इस संगीत को बचा कर रख बैठी हैं लेकिन आज की पीढिय़ों में इस लोक संगीत का मोह धीरे धीरे ख़त्म हो रहा हैं। इस संगीत को संरक्षण देने और आने वाली पीढिय़ों में इसे जागृत रखने के लिए जैसलमेर के एक संस्थान गुणसार लोक संगीत संस्थान द्वारा क्लब महेन्द्रा के सहयोग से यह अनूठा प्रयास शुरू किया गया हैं, जिसमें बच्चों को अपनी लोक कला को सिखाया जा रहा हैं। उन्हें रूबरू करवाया जा रहा है ताकि इस लोक संगीत का संरक्षण हो सके। 

पारंगत लोगों द्वारा तराशा जा रहा हैं बच्चों को
असल में जैसलमेर सहित पश्चिमी राजस्थान में कई क्षेत्रो में बजाये जाने वाले लोक वाद्य जिसमें सारंगी, कमायचा, शहनाई आदि प्रमुख हैं का उपयोग धीमे-धीमे काफी कम होता जा रहा हैं। इसके बजाने वाले कलाकार भी काफी गिने चुने रह गए हैं। अब केवल हारमोनियम व ढोलक आदि वाद्ययंत्र कलाकारों द्वारा बजाया जा रहा हैं। इसी तरह कई प्राचीन लोक गीत लुप्त होने के कगार पर हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई हैं कि इनके लिरिक्स भी वर्तमान की नई पीढ़ी को याद नही हैं, इसको देखते हुए लोक गीतों व लोक वाद्यों को बचाने के लिए महेन्द्रा गुड़सार संगीत स्कूल शुरू किया हैं जिसमें लंगा मंगणियार व अन्य जातियों के छोटे-छोटे बच्चों को इन लोकगीतों व वाद्य यंत्रों में पारंगत किया जा रहा हैं। इसमें फिरोज खान द्वारा मोरचंद व खड़ताल बजाने, रफीक द्वारा ढोलक, खेते खान द्वारा खड़ताल व चंग, सतार खान द्वारा सारंगी, सच्चू खां द्वारा कमायचा, अमीन खांन द्वारा हारमोनियम, डालूदास द्वारा मंजीड़ा व वीणा, रसूल खां द्वारा गायन व अली खान द्वारा गायन व बाकी वाद्य यंत्रो को बजाने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं।

लोक कलाओं को पोषित/संरक्षित करने का काम
गुणसार लोक संगीत संस्थान के बख्स खान के अनुसार कार्यशाला में सभी प्रकार के वाद्ययंत्र जिसमें तबला, नगाड़ा, चंग, ढोल, ढोलक हारमोनियम तबला, सिंधी सारंगी, खंजरी, मुरली, तासा, मदिरा, भपंग, अलगोजा, शहनाई, मोरचंग, वीणा आदि वाद्य यंत्रो को क्लब महेन्द्रा के सहयोग से खरीदा गया हैं। इन वाद्ययंत्रो को बच्चे बजाना सीख रहे हैं व इनके साथ गायन भी कर रहे हैं। इसके अलावा ऐसे कई प्राचीन गीतों के गायन की ट्रेनिंग दी जा रही हैं जो लुप्त हो रहे हैं। गुणसार लोक संगीत संस्थान का यह प्रयास निश्चित रूप से अपने आप में अभिनव हैं जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम हैं। ऐसे समय में जबकि पाश्चात्य संस्कृति व पश्चिमी गीत संगीत लगातार तरीके से लोगों पर अपना प्रभाव बनाता जा रहा हैं, गुणसार लोक संगीत संस्थान की यह अनूठी मशक्कत/भूमिका पारंपरिक गीत संगीत से युवाओं का रूबरू कराने के साथ उन्हें पारंगत तो बनाएगी ही, पारंपरिक लोक कलाओं को पोषित व मजबूती से संरक्षित करने का काम भी करेगी।

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