घनश्याम डी रामावत
जिस समय यह ब्लॉग लिखा जा रहा हैं बिहार में दूसरे चरण को लेकर मतदान खत्म होने को हैं। अत्यधिक प्रतिष्ठात्मक इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के नेता अपने-अपने गठबंधन दलों के साथ प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं एवं उनकी नजरे पूरी तरह शेष बचे चुनावी चरणों पर हैं। समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाएं तो इस बार के बिहार चुनाव परिणामों के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य में व्यापक फेरबदल आना निश्चित हैं। हकीकत में इस बार के चुनाव को बिहार के मतदाताओं तथा देश की विकास की अग्रि परीक्षा के तौर पर भी देखा जा रहा हैं। देश ही नहीं विदेशों में भी बिहार चुनाव के परिणामों को लेकर बेहद जिज्ञासा हैं।
राजनीतिक विश£ेषक बड़े स्तर पर ऐसी सोच रखते हैं कि यदि चुनाव में जीत को सेहरा भारतीय जनता पार्टी के सिर बंधता हैं तो फिर इसे सीधे तौर पर मोदी सरकार के कामकाज और उनके विकास के दावों पर मुहर के रूप में देखा जाएगा। अगर ऐसा नहीं हो पाता हैं तो यह माना जाएगा कि बिहार अभी भी जातिवाद की संकीर्णता से उबर नहीं सका हैं और बिहार के चारा घोटाले के आरोपी नेता लालू यादव अपना जाति कार्ड खेलने में सफल रहे हैं। हालांकि एक बड़ा वर्ग ऐसा भी हैं जो भाजपा की हार को नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि से जोडक़र भी देखेगा। बिहार में भाजपा की पराजय से नकारात्मक राजनीति कर रहे कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी को मजबूती मिलेगी, भले ही सीटे कांग्रेस को महज चार ही क्यों न मिले।
बिहार के चुनाव केन्द्र सरकार की मजबूती का आधार बिंदु हैं क्योंकि बिहार में भाजपा का बहुमत आ जाने से राज्यसभा में भी एनडीए का बहुमत आ जाएगा और फिर अगला उपराष्ट्रपति व राष्ट्रपति भी भाजपा का आसानी से आ सकेगा। यही कारण हैं कि सभी दलों ने अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झौंक दी हैं। जेडीए नेता नीतीश कुमार व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन ने अपने सभी उम्मीदवारों का चयन जातिगतत तथा परिवारवाद के आधार पर किया हैं। यही काम एनडीए की ओर से भी किया गया हैं। बिहार के चुनावों में भाजपा सहित सभी दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए कुछ न कुछ खास घोषणाएं की हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार को पहले ही विशेष पैकेज देने का ऐलान किया हैं जिसे लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार यादव झूठ का पुलिंदा बता रहे हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपने दोनों पुत्रों का राजनीतिक पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यही कारण हैं कि वह विकास को छोडक़र जातिवाद का जहर पूरी ताकत के साथ बिहार की जनता में घोल रहे हैं और उसमें सांप्रदायिकता का तडक़ा लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं। अभी पहले चरण के मतदान से ठीक पहले लालूप्रसाद गौमांस मुद्दे पर कुछ ऐसा बोल गए कि अब सोनिया गांधी व राहुल गांधी को उनके साथ मंच साझा करने में परेशानी हो रही हैं। बिहार चुनावों में सबसे बड़ी परीक्षा सेकुलर जमात की भी होने जा रही हैं। लालू यादव ने इस बार शब्दावली की सारी की सारी मर्यादाओं को ध्वस्त करने का जैसे रिकॉर्ड कायम करने की ठान ली हैं। वे बेखौफ होकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं।
लालू यादव ने एक प्रकार से जाति युद्ध छेड़ते हुए सभी पिछड़ी जातियों को एक साथ आने की अपील की हैं। उन्होंने यह ऐलान भी किया हैं कि यह चुनाव अगड़ी और पिछड़ी जातियों का वर्चस्व का चुनाव बन गया हैं। यदि सभी पिछड़ी जातियां एक नहीं हुई तो सवर्ण फिर सरकार पर कब्जा कर लेंगे। हालांकि लालू यादव के इस बयान को चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया हैं और चेताया हैं कि वे आगे से इस प्रकार के जातिवादी जहर घोलने वाले शब्दों का प्रयोग चुनाव प्रचार के दौरान नहीं करे। यहीं हाल कमोबेश समाजवादी गठबंधन और बसपा का हैं। समाजवादियों व बसपाइयों का बिहार में जनाधार वैसे नहीं के बराबर हैं। इन दलों का चुनाव लडऩे का एकमात्र अंध भाजपा विरोध तथा खोखली सेकुलर मानसिकता हैं। बिहार में बसपा ने अपने जनाधार को बनाने के लिए आरक्षण को बचाने का बहाना बनाया हैं और वह अपने बयानों के जरिये यह साबित करने का प्रयास कर रही हैं कि यदि आरक्षण को बचाना हैं तो बसपा को वोट दो।
बहुजन समाजवादी पार्टी द्वारा अपने संपर्क अभियान में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों को आधार बनाया जा रहा हैं। किसी न किसी कारणवश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी कार्यशैली से नाराज लोग बिहार में उनके खिलाफ जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इसमें भाजपा के धुर विरोधी व कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ चुनाव लड़ चुके वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी भी पीएम मोदी से अपनी नाराजगी का इजहार बिहार के मतदाताओं से नीतीश कुमार को वोट देने की अपील से कर रहे हैं।
जिस समय यह ब्लॉग लिखा जा रहा हैं बिहार में दूसरे चरण को लेकर मतदान खत्म होने को हैं। अत्यधिक प्रतिष्ठात्मक इस चुनाव में सभी राजनीतिक दलों के नेता अपने-अपने गठबंधन दलों के साथ प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं एवं उनकी नजरे पूरी तरह शेष बचे चुनावी चरणों पर हैं। समीक्षात्मक दृष्टि से देखा जाएं तो इस बार के बिहार चुनाव परिणामों के बाद देश के राजनीतिक परिदृश्य में व्यापक फेरबदल आना निश्चित हैं। हकीकत में इस बार के चुनाव को बिहार के मतदाताओं तथा देश की विकास की अग्रि परीक्षा के तौर पर भी देखा जा रहा हैं। देश ही नहीं विदेशों में भी बिहार चुनाव के परिणामों को लेकर बेहद जिज्ञासा हैं।
राजनीतिक विश£ेषक बड़े स्तर पर ऐसी सोच रखते हैं कि यदि चुनाव में जीत को सेहरा भारतीय जनता पार्टी के सिर बंधता हैं तो फिर इसे सीधे तौर पर मोदी सरकार के कामकाज और उनके विकास के दावों पर मुहर के रूप में देखा जाएगा। अगर ऐसा नहीं हो पाता हैं तो यह माना जाएगा कि बिहार अभी भी जातिवाद की संकीर्णता से उबर नहीं सका हैं और बिहार के चारा घोटाले के आरोपी नेता लालू यादव अपना जाति कार्ड खेलने में सफल रहे हैं। हालांकि एक बड़ा वर्ग ऐसा भी हैं जो भाजपा की हार को नीतीश कुमार की सुशासन बाबू की छवि से जोडक़र भी देखेगा। बिहार में भाजपा की पराजय से नकारात्मक राजनीति कर रहे कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी को मजबूती मिलेगी, भले ही सीटे कांग्रेस को महज चार ही क्यों न मिले।
बिहार के चुनाव केन्द्र सरकार की मजबूती का आधार बिंदु हैं क्योंकि बिहार में भाजपा का बहुमत आ जाने से राज्यसभा में भी एनडीए का बहुमत आ जाएगा और फिर अगला उपराष्ट्रपति व राष्ट्रपति भी भाजपा का आसानी से आ सकेगा। यही कारण हैं कि सभी दलों ने अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत झौंक दी हैं। जेडीए नेता नीतीश कुमार व राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के महागठबंधन ने अपने सभी उम्मीदवारों का चयन जातिगतत तथा परिवारवाद के आधार पर किया हैं। यही काम एनडीए की ओर से भी किया गया हैं। बिहार के चुनावों में भाजपा सहित सभी दलों ने मतदाताओं को रिझाने के लिए कुछ न कुछ खास घोषणाएं की हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार को पहले ही विशेष पैकेज देने का ऐलान किया हैं जिसे लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार यादव झूठ का पुलिंदा बता रहे हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व राजद प्रमुख लालू प्रसाद अपने दोनों पुत्रों का राजनीतिक पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यही कारण हैं कि वह विकास को छोडक़र जातिवाद का जहर पूरी ताकत के साथ बिहार की जनता में घोल रहे हैं और उसमें सांप्रदायिकता का तडक़ा लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं। अभी पहले चरण के मतदान से ठीक पहले लालूप्रसाद गौमांस मुद्दे पर कुछ ऐसा बोल गए कि अब सोनिया गांधी व राहुल गांधी को उनके साथ मंच साझा करने में परेशानी हो रही हैं। बिहार चुनावों में सबसे बड़ी परीक्षा सेकुलर जमात की भी होने जा रही हैं। लालू यादव ने इस बार शब्दावली की सारी की सारी मर्यादाओं को ध्वस्त करने का जैसे रिकॉर्ड कायम करने की ठान ली हैं। वे बेखौफ होकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर रहे हैं।
लालू यादव ने एक प्रकार से जाति युद्ध छेड़ते हुए सभी पिछड़ी जातियों को एक साथ आने की अपील की हैं। उन्होंने यह ऐलान भी किया हैं कि यह चुनाव अगड़ी और पिछड़ी जातियों का वर्चस्व का चुनाव बन गया हैं। यदि सभी पिछड़ी जातियां एक नहीं हुई तो सवर्ण फिर सरकार पर कब्जा कर लेंगे। हालांकि लालू यादव के इस बयान को चुनाव आयोग ने गंभीरता से लिया हैं और चेताया हैं कि वे आगे से इस प्रकार के जातिवादी जहर घोलने वाले शब्दों का प्रयोग चुनाव प्रचार के दौरान नहीं करे। यहीं हाल कमोबेश समाजवादी गठबंधन और बसपा का हैं। समाजवादियों व बसपाइयों का बिहार में जनाधार वैसे नहीं के बराबर हैं। इन दलों का चुनाव लडऩे का एकमात्र अंध भाजपा विरोध तथा खोखली सेकुलर मानसिकता हैं। बिहार में बसपा ने अपने जनाधार को बनाने के लिए आरक्षण को बचाने का बहाना बनाया हैं और वह अपने बयानों के जरिये यह साबित करने का प्रयास कर रही हैं कि यदि आरक्षण को बचाना हैं तो बसपा को वोट दो।
बहुजन समाजवादी पार्टी द्वारा अपने संपर्क अभियान में संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों को आधार बनाया जा रहा हैं। किसी न किसी कारणवश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उनकी कार्यशैली से नाराज लोग बिहार में उनके खिलाफ जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। इसमें भाजपा के धुर विरोधी व कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के खिलाफ चुनाव लड़ चुके वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी भी पीएम मोदी से अपनी नाराजगी का इजहार बिहार के मतदाताओं से नीतीश कुमार को वोट देने की अपील से कर रहे हैं।
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