घनश्याम डी रामावत
पश्चिमी राजस्थान के प्रमुख शहर जोधपुर से 7 किमी उत्तर में स्थित हैं ‘मंडोर’। इसका पुराना नाम मंडोदर या मांडव्यपुर हैं और किसी जमाने में इसकी पहचान मारवाड़ राज्य की राजधानी के तौर पर थी।
एक मान्यता के अनुसार यहां मांडव्य ऋ षि का आश्रम था इसी कारण इसे मांडव्यपुर कहा जाता था। अन्य धारणा यह भी हैं कि नगर का नाम रावण की रानी मंदोदरी के नाम से ताल्लुक रखता हैं। लंका के राजा रावण के साथ मंदोदरी का विवाह इस स्थान पर ही हुआ था, इस दृष्टि से मंडोर को रावण का ससुराल भी कहा जाता हैं।
गुर्जर प्रतिहार राजाओं ने सातवीं शताब्दी के आसपास मंडोर को अपनी राजधानी बनाया था। जोधपुर का शिलालेख(836 ई.) तथा घटियाले के शिलालेख(837 ई. व 861 ई.) के अनुसार मंडोर के प्रतिहार पराक्रमी शासक थे। किंतु 12वीं सदी में मंडोर दुर्ग को छोड़ कर शेष भाग पर चौहान राजाओं का अधिकार हो गया तथा प्रतिहार उनके सामंत बन कर रह गए। तब उनसे परेशान होकर प्रतिहार सामंतो ने राठौड़ वीरम के पुत्र राव चूंडा को 1395 में मंडोर का दुर्ग दहेज में दे दिया। यह भी कहा जाता हैं कि राव चूंडा ने इस दुर्ग पर बलपूर्वक अधिकार किया था। इसके बाद जब सन् 1459 में राव जोधा ने मंडोर को असुरक्षित मान कर अपने नाम से पास ही जोधपुर नगर बसा लिया और उसे मारवाड़ की राजधानी बनाया। उन्होंने जोधपुर के चिडिय़ाटूक पर्वत पर विशाल व सुरक्षित मेहरानगढ़ किले का निर्माण करवा कर राजधानी को जोधपुर स्थानांतरित कर दिया। मंडोर में आज भी बौद्ध स्थापत्य शैली के आधार पर बने प्राचीन खजूरनुमा ‘मंडोर दुर्ग’ के भग्नावशेष मारवाड़ के वीरों की गाथा का बयान करते हैं। इस दुर्ग में बड़े-बड़े प्रस्तरों को बिना किसी मसाले की सहायता से जोड़ा गया था।
वर्तमान में मंडोर में एक सुन्दर उद्यान बनाया गया हैं जिसमें अजीतपोल, वीरों का दालान(हॉल ऑफ हीरोज), देवताओं की साल, अन्य मंदिर, बावडी, जनाना महल, एक थम्बा महल, नहर, झील व जोधपुर के विभिन्न महाराजाओं के देवल(स्मारक) इत्यादि स्थित हैं जो स्थापत्य कला के बेहद खूबसूरत और अद्वितीय नमूने हैं। ये देशी, विदेशी पर्यटकों को बरबस ही लुभाते हैं। इस उद्यान में स्थित कलात्मक इमारतों का निर्माण जोधपुर के तत्कालीन नरेश अजीत सिंह व उनके पुत्र अभय सिंह के शासनकाल में सन् 1714 से 1749 के बीच हुआ था। उसके पश्चात् जोधपुर के विभिन्न राजाओं ने इस उद्यान की मरम्मत करवाई तथा इसे आधुनिक रूप प्रदान कर विकसित किया।
उद्यान में अजीतपोल से प्रवेश करने पर एक बड़ा बरामदा(दालान) दिखाई देता हैं जिसमें विभिन्न देवी-देवताओं, लोक देवताओं व मारवाड़ के वीरपुरुषों की मूर्तियां एक पहाड़ी चट्टान को काट कर उत्कीर्ण की गयी हैं। इसे देवताओं की साळ व वीरों का दालान(हॉल ऑफ हीरोज) कहते हैं। वीरों का दालान(हॉल ऑफ हीरोज) में जहां 16 वीर योद्धाओं की आकर्षक प्रतिमाएं हैं वहीं, देवताओं की साल में 33 करोड़ देवताओं का सुंदर चित्रण हैं।
इसके साथ ही एक सुंदर बावड़ी बनी हैं और साथ ही स्थित हैं जनाना महल। जनाना महल में वर्तमान समय में राजस्थान के पुरातत्व विभाग ने एक सुन्दर संग्रहालय(मंडोर संग्रहालय) बना रखा हैं। इसमें पाषाण प्रतिमाएं, शिलालेख, चित्र एवं विभिन्न प्रकार की कलात्मक सामग्री प्रदर्शित कर रखी हैं। जनाना महल का निर्माण तत्कालीन महाराजा अजीत सिंह(1707-1724) के शासन काल में हुआ जो स्थापत्य की दृष्टि से एक अद्वितीय धरोहर हैं। जनाना महल के प्रवेश द्वार पर एक कलात्मक द्वार निर्मित हैं जिसमें सुंदर झरोखे हैं। इस भवन का निर्माण राजघराने की महिलाओं को राजस्थान में पडऩे वाली अत्यधिक गर्मी से राहत दिलाने के लिए कराया गया था। इस हेतु प्रांगण में फव्वारे भी लगाए गए हैं। महल प्रांगण में ही एक पानी का कुंड हैं जिसे नाग गंगा के नाम से जाना जाता हैं। इस कुंड में पहाड़ों के बीच से एक पानी की छोटी सी धारा अनवरत प्रवाहित रहती हैं। महल व बाग के बाहर एक तीन मंजिली प्रहरी इमारत बनी हैं। स्थापत्य कला की इस बेजोड़ इमारत को ‘एक-थम्बा महल’ कहते हैं। इसका निर्माण भी तत्कालीन नरेश अजीत सिंह के शासन काल में ही हुआ था।
मंडोर उद्यान के मध्य भाग में दक्षिण से उत्तर की ओर एक ही पंक्ति में जोधपुर के महाराजाओं के देवल(स्मारक) ऊंची प्रस्तर की कुर्सियों पर बने हैं जिनमें हिन्दू तथा मुस्लिम स्थापत्य कला का उत्कृष्ट समन्वय देखा जा सकता हैं। इनमें से महाराजा अजीत सिंह का देवल सबसे विशाल हैं। इनके पास ही एक फव्वारों से सुसज्जित नहर बनी हंै जो नागादडी से शुरू होकर उद्यान के मुख्य दरवाजे तक आती हैं। नागादड़ी झील का निर्माण कार्य मंडोर के नागवंशियों ने कराया था जिस पर उस समय के महाराजा अजीत सिंह व तत्कालीन नरेश अभय सिंह के शासन काल में बांध का निर्माण कराया गया।
मंडोर उद्यान के नागादड़ी झील से आगे सूफी संत तनापीर की दरगाह हैं जो श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। यहां दूर-दूर से यात्री जियारत के लिए आते हैं। इस दरगाह के दरवाजों व खिड़कियों पर सुन्दर नक्काशी की हुई हैं। दरगाह पर प्रतिवर्ष उर्स के अवसर पर मेला लगता हैं। दरगाह के पास ही फिरोज खां की मस्जिद हैं। मंडोर के प्राचीन और दर्शनीय जैन मंदिर व दादाबाड़ी भी विश्व प्रसिद्ध हैं। दरगाह, मस्जिद तथा हिंदू व जैन मंदिरों का एक ही जगह पर होना कौमी एकता की अनूठी मिसाल हैं।
तनापीर की दरगाह से कुछ आगे पंच कुंड नामक पवित्र तीर्थ स्थल हैं, यहां पांच कुंड बने हैं। साथ ही मंडोर के राजाओं के देवल(स्मारक) बने हैं जिनमें राव चूड़ा, राव रणमल और राव गंगा के देवल का स्थापत्य दर्शनीय हैं। पास ही मारवाड़ की रानियों की 56 छतरियां भी बनी हुई हैं, ये छतरियां भी शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण हंै।
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