घनश्याम डी रामावत
गुरों का तालाब(जोधपुर) स्थित चिन्तामणी पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पेढ़ी/तीर्थ सूर्यनगरी के प्रमुख आराध्य स्थलों में गिना जाता हैं।
यह मंदिर जैन समाज के मुख्य आराध्य स्थलों में हैं, जहां आज भी नित्य पारंपरिक तरीके से पूजा की जाती हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता हैं कि नागों(सर्पों) ने इस मंदिर व तपो भूमि को सैंकड़ों वर्षो से सुरक्षित कर रखा हैं। मंदिर संचालन समिति के सचिव पारसमल भंसाली के अनुसार यह मंदिर 175 वर्ष पुराना हैं। राजा मानसिंह ने 40 बीघा जमीन धार्मिक कार्यों के लिए दान की थी। इस मंदिर की स्थापना सन् 1840 में की गई। मंदिर की स्थापना गुरोंसा(जैन समाज में जो यति होते हैं, उनको गुरोंसा कहा जाता हैं) निहालचंद के शिष्यों गुरोंसा दीपचंद, वनेचंद तथा हरखचंद ने किया था, इसलिए इस मंदिर का नाम गुरों तालाब से पड़ा। इस चालीस बीघा जमीन पर मंदिर, तालाब, बाग व अंतिम गुरोंसा लालचंद द्वारा निर्मित चरण पादुकाएं हैं।
भाद्रपद शुक्ला दशमीं को ध्वजा/सांप देते हैं दर्शन
मंदिर संचालन समिति के सचिव पारसमल भंसाली के अनुसार इस मंदिर का निर्माण गुरोंसा ने अपने तंत्र-मंत्र की विशेष विद्या द्वारा कराया था। इस मंदिर में पाश्र्वनाथ भगवान के साथ पद्मावती माता की प्राचीन/चमत्कारी प्रतिमा हैं। मंदिर पर प्रत्येक भाद्रपद शुक्ला दशमीं का ध्वजा चढ़ाई जाती हैं। ऐसी मान्यता हैं कि ध्वजा का लाभ लेने वालों की हर मनोकामना पूरी होती हैं। जैन संघ से ताल्लुक रखने वाले धनराज विनायकिया की माने तो यह मंदिर नागों द्वारा सुरक्षित हैं। यहां विभिन्न प्रजातियों के सर्प दर्शन देते रहते हैं। उनके अनुसार सर्पों ने आजतक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया हैं। उन्होंने बताया कि यहां कभी काला, कभी चितकबरा तो कभी पांच मुंह वाला नाग भी घूमता दिखाई दिया हैं। विनायकिया के अनुसार नाग मंदिर की सुरक्षा करते हैं। यह मंदिर कला की दृष्टि से भी बेजोड़ा हैं। इस मंंदिर का रंग मण्डप किले के रंग मण्डप जैसा हैं। यहां समय-समय पर साधु-संतों के चातुर्मास होते रहते हैं।
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