Saturday, 21 May 2016

रसिक बिहारी मंदिर: राजस्थानी वास्तुशैली के साथ शिल्प व स्थापत्य कला की जीवंत तस्वीर

घनश्याम डी रामावत
जोधपुर शहर में अनेक ऐसे मंदिर हैं जो शिल्प व स्थापत्य कला की उन्नत परम्पराओं को मनमोहक रूप देते हुए अपनी पहचान कायम किए हुए हैं। उदयमंदिर मार्ग स्थित रसिक बिहारी जी का भव्य मंदिर भी ऐसी ही अद्भुत/नायाब विशेषताओं को स्वयं में समेटे हुए हैं। यह मंदिर शिल्प व स्थापत्य कला को तो स्वयं में संजाए हुए ही हैं, आस्था/श्रद्धा के साथ राजस्थानी की सुदृढ़ वास्तुशैली के दर्शन भी कराता हैं। जोधपुर अर्थात सूर्यनगरी के वाशिंदे रसिक बिहारी जी के मंदिर को ‘नैनी बाई के मंदिर’ के नाम से भी जानते हैं। महाराजा जसवंतसिंह(द्वितीय) ने विक्रम संवत 1926 में अपनी प्रेयसी नन्हीं भगतन की इच्छा से मंदिर बनवाया था।

17 फुट आयताकार चबूतरे पर बना हैं मंदिर
रसिक बिहारी मंदिर 17 फुट आयाताकार चबूतरे पर बना हैं। लाल घाटू के पत्थरों से सुघड़ 56 स्तंभों से बने गर्भगृह व परिक्रमा परिसर के बीच रसिक बिहारी विराजित हैं। मंदिर का कलात्मक मुख्यद्वार, तोरणद्वार, कंगूरे, मेहराब व कलात्मक छतरियां तत्कालीन वास्तु कौशल को दर्शाती हैं। कामनंदी व दक्षिणामुखी गणेश मंदिर प्रांगण में महाराजा जसवंतसिंह की ओर से कामनंदी प्रतिमा को विक्रम संवत 1992 में भेंट किया गया। नंदी के पास ही शिलापट्ट पर इसका वर्णन भी हैं। मंदिर में भगवान गणेश की दक्षिणामुखी रिद्धि-सिद्धि, शुभ लाभ व मूसक की अनूठी अखंड प्रतिमा, रथ पर सवार सूर्यदेव, राम लक्ष्मण व शिवालय भी हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व गणेश चतुर्थी के दिन यहां खास उत्सव मनाया जाता हैं।

महर्षि दयानंद की मृत्यु की जिम्मेदार थी नन्हीं भगतन
महर्षि दयानंद का बलिदान नन्हीं भगतन से सबंध रखता हैं। आर्य समाज के इतिहास से परिचित लोग ‘नन्हीं भगतन’ के नाम से अपरिचित नहीं हैं। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद का असामयिक निधन नन्हीं भगतन के षडयंत्र का ही परिणाम था। गायन नर्तन में निपुण नन्हीं बाई एक ऐसी रूपसी थी जिसे महाराजा जसवंतसिंह ने ‘पासवान’ का दर्जा तो नहीं दिया लेकिन उसे जीवन भर किसी भी वैभव राजसी ठाट बाट से वंचित भी नहीं रखा। महाराजा जसवंत सिंह के छोटे भाई व तत्कालीन प्रधानमंत्री सर प्रताप सिंह महाराजा की इन्हीं हरकतों से परेशान थे। महर्षि दयानंद के जोधपुर प्रवास के दौरान राई का बाग महल में महाराजा से भेंट के दौरान नन्हीं बाई के लिए कुछ कड़वे बोल कहे। उसके बाद महाराजा जसवंत सिंह को लिखे पत्र में राज की भलाई के लिए नन्हीं बाई से दूर रहने की नसीहत दी। यह पत्र नन्हीं बाई के हाथों लगा और उसे महर्षि दयानंद की यह बात नागवार गुजरी। आखिरकार उसने षडयंत्र रचकर महर्षि दयानंद को दूध में विष पिलाने में कामयाब रही। कुछ समय बाद में महाराजा जसवंत की अनुपस्थिति में महल छोडऩे का आदेश जारी करने के बाद नन्हीं भक्तन रसिक बिहारी मंदिर के पीछे कमरों में रहने लगी।

61 साल की उम्र में नन्हीं बाई ने आंखे मूंदी
रसिक बिहारी मंदिर परिसर में कई साल बिताने के बाद 23 अगस्त 1909 को 61 साल की उम्र में असाध्य रोगों से पीडि़त नन्हीं बाई ने आंखे मूंदी। कहते हैं मरने के बाद उसके पास से छह सौ जोड़ी रत्न जडि़त जूतियां, 800 से अधिक रेशमी घाघरे, घोड़े, बग्घी, सहित तत्कालीन करीब 20 लाख रुपए का बेशकीमती सामान मिला था। नि:संतान होने के कारण राज-नियमानुसार सारा सामान जब्त कर शिक्षण संस्थाओं को दान किया गया। ज्ञातव्य रहें, तत्कालीन राजपुताने में भगतन एक जाति का नाम रहा हैं। इसकी उत्पत्ति साधुओं से कही जाती हैं। महाराजा तख्तसिंह के समय मारवाड़ में करीब डेढ़ सौ परिवार आबाद थे।

No comments:

Post a Comment