घनश्याम डी रामावत
एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को देशभर में प्रदर्शन किया। भारत बंद के आह्वान पर देश के अलग-अलग शहरों में दलित संगठन और उनके समर्थकों ने ट्रेने रोकीं और सडक़ों पर जाम लगाया। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में तोडफ़ोड़, जाम और आगजनी की घटनाएं सामने आई। सही अर्थों में दलितों का यह भारत बंद अनेक सवाल खड़े कर गया। न केवल भारत बंद/आंदोलन की सार्थकता व औचित्य पर, केन्द्र व राज्य की सरकारों की मौजूदा कानून व्यवस्था पर भी/जिसके चलते वे इस भारत बंद में उपजी हिंसा को पहले से भांपने में नाकाम रहे। दलित संगठनों को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में किए गए बदलाव को सही तरीके से समझना चाहिए। संभव हैं उसके बाद आंदोलन अथवा भारत बंद की जरूरत ही नहीं पड़े।
कानून विशेषज्ञों की माने तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया गया हैं जिससे संबंधित वर्गों के हितों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़े। उम्मीद की जानी चाहिए दलित संगठनों से ताल्लुक रखने वाले बुद्धिजीवी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सही तरीके से विवेचना करेंगे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में यदि कोई आंदोलन होता हैं तो वह हिंसक/अराजकतापूर्ण नहीं होगा। आखिरकार भारत बंद अथवा अन्य किसी आंदोलन के तहत जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता हैं वह राष्ट्र की/अपनी ही संपत्ति हैं। हिंसा अपने ही समाज के विरूद्ध होती हैं, इसे जायज कैसे ठहराया जा सकता हैं। बहरहाल! राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलग-अलग इलाकों में हालात अभी भी काफी नाजुक हैं। राजस्थान में एक व्यक्ति की मौत और मध्यप्रदेश में अब तक 5 की मौत हो चुकी हैं। राजस्थान के बाडमेर में एक हिंसक झड़प में 25 लोग घायल हुए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एससी/एसटी एक्ट में कई बदलाव हुए थे। जिसके बाद केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि अदालत में इस मामले पर मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया। जिसके विरोध में 2 अप्रैल सोमवार को दलित संगठनों की तरफ से भारत बंद बुलाया गया। हालांकि, सरकार की ओर से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की गई किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 मार्च के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हैं। अब सप्ताह भर बाद पुन: इस मामले में सुनवाई होगी।
बेअसर नजर आई पुलिस/दहशत का माहौल रहा
चूंकि व्यक्तिगत रूप से मैं जोधपुर से हूं, जोधपुर का उल्लेख करना आवश्यक हैं। जोधपुर में 2 अप्रैल/सोमवार को भारत बंद के दौरान जमकर उपद्रव हुआ। बंद समर्थकों ने सरकारी, निजी वाहनों और अनगिनत दुकानों में तोडफ़ोड़ की। भारत बंद समर्थक दिन भर शहर में सभी जगह उत्पात मचाते रहे। पुलिस व उनके बीच कई बाद लाठी-भाटा जंग हुई। अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए। जोधपुर उदयमंदिर पुलिस थाने के उप निरीक्षक महेन्द्र चौधरी के चोट लगने से कार्डियक अटेक आ गया, जिनकी आखिरकार 3 अप्रैल मंगलवार को अहमदाबाद इलाज हेतु ले जाते वक्त मृत्यु हो गई। उपद्रवियों को काबू में करने के लिए पुलिस ने 100 से अधिक आंसू गैस के गोले छोड़े। जोधपुर जिले के फलोदी, ओसियां और बाप में भी जमकर उपद्रव हुआ। फलोदी में हालात बेकाबू होने पर मजिस्ट्रेट को धारा 144 लगानी पड़ी। जोधपुर ग्रामीण इलाकों में 6 अप्रैल तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा सुप्रीमों मायावती ने हिंसा की निंदा की हैं, लेकिन उन्होंने एससी-एसटी एक्ट का समर्थन किया हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने हिंसा भडक़ाई हैं। साथ ही यह मांग भी की जिन्होंने हिंसा फैलाई उनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए।
देशभर में 10 से अधिक लोगों की जान गई
देश के विभिन्न शहरों में पुलिस थानों को भी निशाना बनाया गया हैं। साथ ही सरकारी वाहनों में आगजनी की गई हैं। प्रदर्शनकारियों के बवाल के चलते कई मार्गों पर ट्रेनें चल नहीं पाईं। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग कई घंटों तक जाम रहे। एसटी-एसी एक्ट 1989 में संशोधन के खिलाफ दिल्ली एनसीआर में भारत बंद ने हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया। बिहार में बंद का असर अधिक रहा। देशभर में बंद के दौरान भडक़ी हिंसा में 10 लोगों की जान चली गई। चहुंओर तोडफ़ोड़/आगजनी को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। विरोध का अपना तरीका हैं, हिंसा के लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं। भारत बंद अथवा अन्य आंदोलनों के नाम पर ऐसी हिंसक/अराजक वारदातों को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके चलते आंदोलन की सार्थकता/औचित्य पर सवाल उठना लाजमी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए देश को आगे फिर कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।
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