Friday, 6 April 2018

सुरेश वाडेकर : पाश्र्व गायिकी का सुरीला/मजबूत हस्ताक्षर

घनश्याम डी रामावत
‘मेघा रे मेघा रे’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’, ‘पतझड़ सावन वसंत बहार’ जैसे गीतों से पार्श्व गायिकी में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सुरेश वाडेकर ने अपने पिता का सपना पूरा कर अपने नाम को सार्थक किया हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार और लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित वाडेकर अपनी मधुर आवाज के बूत संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते हैं। पाश्र्व गायिकी का मजबूत हस्ताक्षर कहे जाने वाले सुरेश वाडेकर का जन्म 7 अगस्त, 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। इन्हें बचपन से ही गायिकी का शौक था/इनका पूरा नाम सुरेश ईश्वर वाडेकर हैं। पिता ने इनका नाम सुरेश (सुर+ईश) इसलिए रखा, ताकि वह अपने बेटे को बड़ा गायक बनता देख सकें। सुरेश ने कोशिश जारी रखी और आखिरकार उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया। महज 10 साल की आयु से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था। वाडेकर ने बहुत ही कम उम्र में अपने गुरू पंडित जियालाल वसंत से विधिवत संगीत सीखना शुरू किया। न सिर्फ हिंदी, बल्कि मराठी सहित कई भाषाओं की फिल्मों के लिए भी गाया और भजनों को अपनी आवाज दी।

पिछले महिने जोधपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे सुरेश वाडेकर से होटल चंद्रा इंपीरियल में मुलाकात हो गई। वही सुर/वही ताल और वही दिलकश/सुरीली/मधुर आवाज.. पाश्र्व गायिकी में इतने लंबे सफर के बाद भी कुछ भी नहीं बदला। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर गायिकी के इस बेताज बादशाह के संगीत व कामयाबी से ताल्लुक रखने वाली किताब/सफर के पन्ने भी खुलते गए। सुरेश वाडेकर ने 20 वर्ष की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता ‘सुर श्रृंगार’ में भाग लिया, जहां संगीतकार जयदेव और दादू यानी रवींद्र जैन बतौर जज मौजूद थे। सुरेश की आवाज से दोनों जज इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें फिल्मों में पाश्र्व गायिकी के लिए भरोसा दिलाया। रवींद्र जैन ने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘पहेली’ में उनसे पहला फिल्मी गीत ‘वृष्टि पड़े टापुर टुपुर’ गवाया था। जयदेव ने उनसे फिल्म ‘गमन’ में ‘सीने में जलन’ गाना गवाया, इसके बाद वह लोकप्रिय होने लगे, सभी उन्हें प्रतिभाशाली गायक की दृष्टि से देखने लगे। उन्होंने वर्ष 1998 में ‘शिव गुणगान’, 2014 में ‘मंत्र संग्रह’, 2016 में ‘तुलसी के राम’ नामक एलबम बनाए। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने 1981 की फिल्म ‘क्रोधी’ में ‘चल चमेली बाग में’ नामक गीत लता जी के साथ गाने का मौका दिया। उन्होंने फिल्म ‘प्यासा सावन’ का मशहूर गीत ‘मेघा रे मेघा रे’ लता जी के साथ गाया. फिल्म ‘प्रेम रोग’ में उन्होंने ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’ जैसे मधुर गीत गाए। इसके साथ ही उनके सितारे बुलंद होने लगे, वह घर-घर पहचाने जाने लगे। इस फिल्म में ऋ षि कपूर के साथ उनकी आवाज इतनी जमी कि उन्हें ऋ षि कपूर की फिल्मों के गीतों के लिए चुना जाने लगा। सुरेश ने कई बड़े संगीत निर्देशकों के लिए गीत गाए। इनमें ‘हाथों की चंद लकीरों का’ (कल्याणजी आनंदजी), ‘हुजूर इस कदर भी न’ (आर डी बर्मन), ‘गोरों की न कालों की’ (बप्पी लाहिड़ी), ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ (इलैया राजा) और ‘लगी आज सावन की’ (शिव-हरि), जैसे कई गीत शुमार हैं, जिन्हें सुरेश ने अपनी आवाज में कुछ ऐसे गाया हैं कि आज भी हम इन गीतों में किसी और गायक की कल्पना नहीं कर पाते।

गीतों का अद्भुत गुलदस्ता/भूला पाना मुश्किल
सुरेश वाडेकर ने फिल्मी-दुनिया को गीतों के रूप में ऐसा गुलदस्ता दिया हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। वाडेकर ने आर डी बर्मन और गुलजार के साथ मिलकर कुछ गैर फिल्मी गीतों के कई अलबम भी बनाए, जो व्यावसायिक दृष्टि से भले ही कम कामयाब हो पाए लेकिन सच्चे संगीत प्रेमियों के लिए संकलन में वे शीर्ष स्थान पर हैं। गुलजार भी लता और सुरेश से बहुत अधिक प्रभावित रहे। उन्होंने लंबे अंतराल के बाद अपनी फिल्म ‘माचिस’ में उनसे ‘छोड़ आए हम’ और ‘चप्पा चप्पा चरखा चले’ जैसे गीत गवाए। विशाल भारद्वाज के साथ सुरेश ने फिल्म ‘सत्या’ और ‘ओमकारा’ में कुछ बेहद अनूठे गीत गाए। वाडेकर ने हिंदी और मराठी गीत के अलावा कुछ गीत भोजपुरी और कोंकणी भाषा में भी गाए हैं। इन्होंने अलग-अलग भाषाओं में कई भक्ति गीत गाए। 2007 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र प्राइड अवॉर्ड से सम्मानित किया। वर्तमान गायिकी को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वाडेकर ने कहा कि सब कुछ लोगों की पसंद/नापसंद के अनुरूप हैं। उन्होंने कहा कि गायक को अपनी आवाज पर ध्यान देने के साथ लोगों की भावनाओं के अनुरूप भी व्यवहारगत होना पड़ता हैं। उन्होंने कहा कि गायक कभी भी रिटायर नहीं होता। वाडेकर के अनुसार यह एक ऐसी साधना/आराधना हैं जिसका कभी कोई अंत नहीं होता।

अनेक राष्ट्रीय/प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित
वर्ष 2011 में उन्हें को मराठी फिल्म ‘ई एम सिंधुताई सपकल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। मध्यप्रदेश में उन्हें प्रतिष्ठित लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। मुंबई और न्यूयॉर्क में सुरेश का अपना संगीत स्कूल हैं, जहां वह संगीत के विद्यार्थियों को विधिवत शिक्षा देते हैं। सुरेश वाडेकर ने संगीत की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ा। आजिवसन म्यूजिक अकादमी नामक पहला ऑन लाइन संगीत स्कूल खोला/जिसके माध्यम से वह नए संगीत महत्वाकांक्षी छात्रों को अपना संगीत ज्ञान और अनुभव देते हैं। इनके प्रशंसक आज भी उनके गीतों को सुनते हैं और अपने पसंदीदा सुरेश वाडेकर से अब भी नए गीतों की आस लगाए हुए हैं। अभी पिछलेे महिने 30 मार्च को विख्यात सारंगीवादक उस्ताद गुलाब खां की स्मृति में जोधपुर मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित खास कार्यक्रम में सुरेश वाडेकर को ‘उस्ताद गुलाब खां लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-2018’ से नवाजा गया हैं। पाश्र्व गायिकी के बेताज बादशाह/सुरीले/सुनहरे/मजबूत हस्ताक्षर सुरेश वाडेकर को दिल से बधाई/लम्बी उम्र के साथ उत्तम स्वास्थ्य हेतु ईश्वर से प्रार्थना।

No comments:

Post a Comment