घनश्याम डी रामावत
आज बाऊजी की पुण्य तिथि हैं। देखते ही देखते कैसे
8 साल बीत गए, मालूम ही नहीं चला। ऐसा प्रतीत होता हैं, मानो कल की ही बात हैं। 12 मार्च 2010/यकीनन बेहद क्रूर
दिवस था यह मेरे लिए.. मैं इसे जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता। दोस्तों! ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस जीवन में मेरे लिए सबसे
प्रिय/अनमोल/सम्मानीय अर्थात जिसे मैं अत्यधिक प्रेम व स्नेह करता था/चाहता था, वो बाऊजी थे। बाऊजी मेरे लिए एक ऐसी चाहत थे जिसे मैं कभी भी खोना
नहीं चाहता था या यूं कहूं उनको खोना मुझे बर्दाश्त/स्वीकार्य नहीं था। किंतु
ईश्वर के द्वारा बनाए नियमों के आगे इंसान की चाहत/सिद्धांत/पसंद/नापसंद क्या वक्त
रखती हैं, बाऊजी को छीन लिया नियति के क्रूर हाथों ने। यह
वाकई विडम्बना ही थी कि जीवनभर अस्पताल और खासकर इंजेक्शन से दूरी बनाकर रखने वाले
बाऊजी का अंतिम समय अस्पताल में गुजरा। फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से करीब तीन
दिन तक वे जोधपुर एमडीएम अस्पताल की आपातकालीन इकाई में भर्ती रहे, चिकित्सकों के अथक प्रयासों पर मर्ज भारी पड़ा/बाऊजी ने अपनी अंतिम
विदाई यही से ली। बाऊजी द्वारा इस जहां से रूखसत हो जाने के बाद पैदा हुआ सन्न कर
देने वाला वातावरण/एक अलग तरह की शून्यता मेरे जीवन में आज भी यथावत हैं।
बाऊजी परिवार में सभी लोगों को बेहद प्यार करते
थे/मुझसे कुछ अधिक (ऐसा मेरा मानना हैं)। सभी की जरूरतों का/पसंद और नापसंद का
अत्यधिक ख्याल रखते थे। दूसरों को कष्ट/तकलीफ देना उनके स्वभाव में नहीं था, परिजनों को भी नहीं। सकारात्मक सोच/नैतिकता व अपने सिद्धांतों पर
चलकर जीवन जीने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे बाऊजी। सरकारी सेवा में होने के बावजूद
अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने। शिक्षा विभाग में अध्यापक और
बाद में प्रधानाध्यापक रहें बाऊजी। निवास स्थान से विद्यालय करीब चालीस किलोमीटर
दूरी पर था, सेवानिवृति तक अनवरत रूप से साईकिल पर आना-जाना
करते रहें(मारवाड़ जंक्शन(पाली)
पंचायत समिति क्षेत्र सहित सोजतरोड़/कंटालिया/मुसालिया/बोरनडी/मेलाप इलाकों में ‘भंवरलाल जी साईकिल वाले मास्टर साहब’ के
रूप में लोग याद करते हैं बाऊजी को)। कभी भी नजदीकी स्थानांतरण
अथवा किसी भी निजी समस्या के चलते यहां वहां पोस्टिंग हेतु विभाग के समक्ष आवेदन
नहीं किया। यह बाऊजी के अपने अनूठे सिद्धांत/कार्य शैली/जीवन पद्धति थी। बाऊजी
की इस जीवन पद्धति और सिद्धांतों का भरपूर असर मुझ सहित पूरे परिवार पर पड़ा हैं।
व्यक्तिगत रूप से मेरा मौजूदा व्यक्तित्व/जीवन शैली बाऊजी द्वारा प्रदत्त
संस्कारों व आशीर्वाद का ही प्रतिफल हैं।
संस्मरण बहुत हैं पर लिखने का हौसला नहीं हैं।
आंखे डबडबानें लगी हैं। बाऊजी की स्मृतियां/उनकी परवरिश/सानिध्य में बीता वक्त
मेरी कलम/लेखनी पर भारी पडऩे लगा हैं। गला रूंधा सा जा रहा हैं। अनायास ही अश्रुओं
ने अपना आधिपत्य जमा लिया हैं। सकारात्मक सोच के साथ हर किसी की मदद के लिए तत्पर
रहना/सभी को हंसते-हंसाते रहना और हौसला आफजाई करना..
अद्भुत/शालीन/सादगीपूर्ण/संजीदा व्यक्तित्व था बाऊजी का। अपनी नियमित दिनचर्या के
बीच स्वयं से अधिक परिजनों की अर्थात हम सभी की खुशियों की चिंता करने वाले बाऊजी
अब इस जहां में नहीं हैं, किंतु उनका आशीर्वाद/उनके दिए संस्कार/मुझ
सहित पूरे परिवार के सदस्यों के साथ हैं। बाऊजी के जाने से पैदा हुई शून्यता कभी
खत्म होगी/ऐसा मैं नहीं मानता,
हां! उनका आशीर्वाद/प्रदत्त संस्कार हमारे जीवन की
अनमोल पूंजी हैं/इससे ही अब तक संबल मिला हैं और आगे भी यहीं ताकत जीवन जीने की
राह को आसान बनाएगी, ऐसा मेरा मानना हैं। बाऊजी का प्रिय भजन या यूं कहे वो चंद पंक्तियां जो वह अक्सर
गुनगुनाया करते थे-‘रे मन क्यूं अकर्म कर खोते हो, मिले ना बारम्बार शरीर..।’ और ‘राजाओं के राजा यहां बजा गए हैं बाजा, बल-जल होई भस्म की ढ़ेरी/तेरा सुंदर सुगड़ शरीर..।’ बाऊजी ने वर्षों
पूर्व इन पंक्तियों को चरितार्थ कर लिया और अनूठी अदृश्य शक्ति में विलीन हो गए।
किसी ने सच कहा हैं-पिता से ही बच्चों के ढ़ेर
सारे सपने हैं/पिता हैं तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं। इसे और बेहतर
तरीके से अनुभूत करना हैं तो सिर्फ एक दिन के लिए अंगूठे के बगैर सिर्फ अंगुलियों
से अपने सारे काम करके देखें/पिता की कीमत पता चल जाएगी। "पिता" जीवन हैं/सम्बल हैं/शक्ति हैं। सृष्टि में 'निर्माण' की अभिव्यक्ति हैं। पिता की लाठी कठोर अवश्य होती हैं, किंतु हमें गिरने नहीं देती..!! #In the current perspective, it's very important that।everyone। understand it seriously and live their life by assimilating it।🙏
Baau
ji! We all are missing you too much..
#नमन/विनम्र
आत्मीय श्रद्धांजलि/कोटि-कोटि प्रणाम!
(ब्लॉग 12 मार्च 2018 को प्रात: लिखा हुआ हैं, पोस्टिंग 13 मार्च अर्थात आज हुई हैं)
(ब्लॉग 12 मार्च 2018 को प्रात: लिखा हुआ हैं, पोस्टिंग 13 मार्च अर्थात आज हुई हैं)
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