Wednesday, 7 March 2018

शीतला सप्तमी पर्व : ‘बसौड़ा’

घनश्याम डी रामावत
आज शीतला सप्तमी हैं अर्थात मां शीतला का पर्व। देश के हर कोने में किसी न किसी रूप में यह पर्व मनाया जाता हैं। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी व अष्टमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन महिलाएं विधि-विधान से मां शीतला की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली के साथ उत्तम स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस अवसर पर मां को ठंडे भोजन/व्यंजनों का भोग लगाने/पूजा अर्चना के साथ ही आज के दिन सभी लोग एक दिन पूर्व अर्थात षष्ठी की शाम तैयार किए गए भोजन का ही सेवन करते हैं। इसीलिए इस पर्व को ‘बसौड़ा’ भी कहते हैं। इस दिन अनेक स्थानों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता हैं।

जोधपुर में भी आज से दस दिवसीय शीतला माता मेले की शुरूआत हुई। शहर के नागौरी गेट के बाहर कागा क्षेत्र में भरने वाले इस मेले का आगाज झण्डारोहण से हुआ। सूर्यनगरी जोधपुर में मां शीतला की पूजा अष्टमी के दिन की जाती हैं अर्थात यहां पर शीतलाष्टमी मनाई जाती हैं। शीतला माता पूजन से संबंधित विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता हैं। हिंदू व्रतों में केवल शीतला सप्तमी/शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा हैं जिसमें बासी भोजन किया जाता हैं। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता हैं। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता हैं। ऐसी प्राचीन मान्यता हैं कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। कहते हैं कि नवरात्रि के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से मां के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं। यह भी मान्यता हैं कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

शीतला माता की प्रामाणिक पूजा विधि
शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, पूड़ी व सब्जी आदि बना लेनी चाहिए। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमेे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इसी दिन यानि सप्तमी के एक दिन पहले छठ को रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करनी चाहिए। यह पूजा रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर हो तो उत्तम रहता हैं। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता हैं। शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए। बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं। एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ व बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें। एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, होली वाली बडक़ुले की एक माला व सिक्का रखें। शीतल जल का कलश भर कर रखें। पानी से बिना नमक का आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता हैं। पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए। पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें। मंदिर में जाकर हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना की जानी चाहिए कि-हे माता! पूजा को स्वीकार करें एवं हमारे पर कृपा दृष्टि बरसाएं/शीतलता बनाए रखें। 

घर पर की जा सकती हैं पूजा अर्चना
घर पर भी मां शीतला को स्थापित कर पूजा की जा सकती हैं। सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं। रोली और हल्दी से टीका करें। काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें। पूजन सामग्री अर्पित करें। आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करें तथा आरती या गीत आदि गा कर मां की अर्चना करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता हैं, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता हेै। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिडक़ना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा आती हैं। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं व पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। मटकी की पूजा करें। इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती हैं। ठंडे व्यंजन/भोजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं और शीतला माता पर्व का आनंद उठाएं। (अधिकांश स्थानों पर शीतला मां के पूजनोपरांत गर्दभ तथा काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ (गधा) को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी हैं)।

मां शीतला स्तुति मंत्र
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नम:।।

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