Thursday, 8 March 2018

शुभ होती हैं होली की ‘भस्म’

घनश्याम डी रामावत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली शब्द हिरण्याकश्यप की बहन होलिका के नाम पर पड़ा हैं। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था, जिसे पहनने पर आग में नहीं जलते थे। होलिका ने अपने भाई की बात मानते हुए हिरण्याकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठ गई थी। मगर, भगवान विष्णु की कृपा से होली जल कर भस्म हो गई और प्रह्लाद उससे सकुशल निकल आए थे। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता हैं। इसके साथ ही इस त्योहार को प्रेम के त्यौहार के रूप में लोग मनाते हैं। होली के पर्व पर लोग आपस के मन-मुटावों को भूलाकर एक दूसरे से प्रेम की भावना से गले मिलते हैं।

होली की भस्म में देवताओं की कृपा
अक्सर यह देखने को मिलता हैं कि लोग होलिका दहन के अगले दिन सुबह होली जलने के स्थान पर जाते हैं और वहां होली की भस्म उड़ाकर धुलंडी मनाते हैं। कुछ लोग इस दौरान होली की भस्म को अपने घर भी ले आते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस भस्म का महत्व क्या हैं और इसे लोग घर क्यों लाते हैं? एक मान्यता के अनुसार होली की भस्म शुभ होती हैं और इसमें देवताओं की कृपा समाहित होती हैं। इस भस्म को माथे पर लगाने से भाग्य अच्छा होता हैं और बुद्धि बढ़ती हैं। एक अन्य मान्यता यह हैं कि इस भस्म में शरीर के अंदर स्थित दूषित द्रव्य सोख लेने की क्षमता होती हैं। लिहाजा, इस भस्म लेपन करने से कई तरह के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं। 

नकारात्मक शक्तियां होती हैं बेअसर
मान्यता यह भी हैं कि होली की भस्म को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को नकारात्मक शक्तियों और अशुभ शक्तियों का असर नहीं होता हैं। कुछ लोग ताबीज में भरकर इसे पहनते हैं, ताकि बुरी आत्माओं और तंत्र-मंत्र का उन पर असर नहीं हो।

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