Tuesday, 19 December 2017

2017 अलविदा कह देने को सज्ज, बेरोजगारी यथावत

घनश्याम डी रामावत
वर्ष 2017 खत्म होते-होते भी सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार की झोली में ढ़ेरों खुशियां डाल गया। गुजरात व हिमाचल प्रदेश में भाजपा की जीत से न केवल इन दोनों प्रदेशों में पार्टी की सरकार बनेगी, राजग भी पहले से अधिक मजबूत हुआ हैं। राजग इस विजय को अपनी सरकार द्वारा लिए गए विभिन्न फैसलों पर जनता का निर्णय मान रही हैं। इन सबके बीच कोई नाखुश हैं तो वह हैं देश का युवा वर्ग। सही मायने में युवा वर्ग के लिए वर्ष 2017 अच्छा नहीं रहा। पूरा वर्ष बेराजगारी मुंह चिढ़ाती रही और युवा सरकार की ओर से रोजगार के विकल्पों का इंतजार करता रहा। यह इन्तजार बस इन्तजार ही रह गया। साल 2017 बीतने में महज चंद दिन शेष हैं और वह पूरी तैयारी के साथ अलविदा कह देने को सज्ज हैं।

मौजूदा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) सरकार के साढ़े तीन साल बाद भी तरक्की के उपलब्ध आंकड़ों में सबसे खराब प्रदर्शन रोजगार और नौकरियों के क्षेत्र में ही हैं। नोटबंदी और जीएसटी के बाद नौकरियां गंवाने वालों के आंकड़े ने इस धधकती आग में घी डालने का काम किया, तो कई निजी क्षेत्रों में छंटनी भी हुई और आईटी सेक्टर से लेकर कारखानों तक पर आटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी का नकारात्मक असर पड़ा। अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने जीडीपी, नोटबंदी, बैंक के फंसे कर्ज को लेकर उठाए गए कदमों, आधार कार्ड और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर को भले ही उल्लेखनीय कदम बताया हो, लेकिन रोजगार सृजन करने और युवाओं को नौकरियां देने के मामले में पिछड़ेपन पर बना सवाल दिन-प्रतिदिन गहराता ही जा रहा हैं। कुल मिलाकर इसे यूं भी कह सकते हैं कि विकास और आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बावजूद रोजगार का परिदृश्य और भविष्य धुंधला बना हुआ हैं। 

बढ़ती ही जा रही हैं बेरोजगारी दर
बेरोजगारी दर बढ़ती ही जा रही हैं। एक आंकलन के अनुसार रोजाना सैंकड़ों की संख्या में नौकरियां गायब हो रही हैं या फिर इनका चोला तेजी से बदल रहा हैं। इस बावत केन्द्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार के ही सालाना सर्वेक्षण के अध्ययन अच्छी तस्वीर नहीं पेश कर रहे हैं। केंद्र में सत्ता संभालने के बाद रोजगार को लेकर अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण 2016 में करवाया गया था। उस क्रम में पाया गया कि देश के 68 प्रतिशत घरों की मासिक आय 10 हजार रुपये हैं। इस सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में बेरोगारी अधिक हैं। 42 फीसदी कामगारों को 12 महीने काम नहीं मिलता हैं। महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 प्रतिशत पर पहुंच गई हैं। चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों के लिए लाखों में मिलने वाले शिक्षित बेरोजगारों के आवेदन नौकरी की कमी को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं। यह स्पष्ट हैं कि सरकार के तमाम दावों, चाहे फिर वो मेक इन इंडिया हो या फिर स्टार्ट अप इंडिया अथवा स्वरोजगार के लिए मुद्रा बैंक की योजनाओं के जरिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने के दावे, इस सबके बाद भी हालात जस के तस हैं। 

रोजगार वाले वादे पूरे हो पाएंगे संशय
सरकार की कोई भी ऐसी योजना नहीं हैं जिसने नौकरियां पैदा करने के अपने लक्ष्य को पूरा किया हो। हर दावा फेल हो चुका है। इसे देखते हुए अब कोई यह नहीं कह सकता कि लोकसभा चुनाव में हर साल दो करोड़ रोजगार वाले भाजपा के वादे पूरे हो पाएंगे। इसकी कई वजहों में पहली वजह हर किसी में सरकारी नौकरी की ख्वाहिश भी हैं। दूसरा कारण निजी नौकरियों में असुरक्षा, पारिवारिक-सामाजिक दायरे में अस्तित्व को लेकर कायम सवाल और कम वेतन की समस्या का भी हं। तीसरी वजह वैसे बेरोजगारों के संदर्भ में हैं, जिन्होंने महंगी और लंबे समय तक पढ़ाई कर प्रोफेशनल डिग्रियां हासिल की हैं। बीसीए, एमसीए, बीटेक, एमटेक या अन्य कोर्स करने वालों के पास डिग्रियां हैं, लेकिन उन्हें मनमाफिक नौकरियां नहीं मिल रही हैं। वैसे यह भी सच हैं कि अधिकतर डिग्रीधारियों में काबिलियत की कमी पाई गई हैं। एक रिसर्च के अनुसार देश के 80 फीसदी इंजीनियर नौकरी के काबिल नहीं पाए गए हैं। दूसरी तरफ आज के उद्योग जगत को इंजीनियर और मैनेजर से अधिक टेक्नीशियन, मैकेनिक और कुशल कारीगरों की जरूरत होती हैं। 

नौकरियां सृजन के लिए पारदर्शिता में कमी
मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए बड़ी संख्या में स्किल्ड लोगों की जरूरत हैं, जो आईटीआई जैसे संस्थानों से मिलते हैं। उनमें जरूरत के अनुरूप कुशलता की कमी होने के कारण दो-तीन साल की पढ़ाई के बाद भी उन्हें वैसी नौकरी नहीं मिल पा रही हैं, डिग्री के हिसाब से वे जिसके हकदार हैं। इस संबंध में यह विरोधाभास भी हैं कि एक ओर उद्योग को कुशल कामगार नहीं मिल रहे हैं, दूसरी तरफ अनेक सेक्टर ऐसे भी हैं, जहां कुशल कारीगर तेजी से नौकरियां खो रहे हैं। ऐसा कार्यक्षेत्र में आए बदलाव और आधुनिकता के अनुरूप कामगारों के प्रशिक्षण में कमी का नतीजा हैं। रोजगार की कमी की इनसे अलग एक और महत्वपूर्ण वजह कंपनियों व सरकारों द्वारा नए क्षेत्रों में नौकरियां सृजन के लिए वैश्विक जगह बनाने और पारदर्शिता लाने में कमी की भी हैं। इसके लिए बहुपयोगी डिजीटल इंडिया को गति देने वाले मुख्य आधार इंटरनेट की गति और उसकी अत्यधिक पहुंच बनाने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही हैं। आज जबकि चीन के पास 70 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं और वह अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान तीनों के सम्मिलित आंकड़ों से भी ऊपर हैं, तो उसने डिजिटल और ई-कॉमर्स कारोबार मॉडल को बाखूबी अपना लिया हैं। 

‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ को समझना जरूरी
ई-कॉमर्स और डिजिटल कंपनियों ने चीन में लाखों रोजगार उत्पन्न किए हैं। उसने पारंपरिक रोजगार के नुकसान की भरपाई इन्हीं से की हैं। पुराने रोजगार कम होने की अपेक्षा नए रोजगार बढ़े हैं। डिजिटल महशक्तियों में अमेरिका के साथ चीन का नाम आता हैं। इनसे बनने वाले रोजगार के अवसरों और ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ की उपयोगिता को न तो सरकार सही तरह से समझ पा रही हैं और न ही हमारे राजनेता। अर्थशास्त्र के जानकार भी इसे लेकर किसी खास नतीजे पर नहीं पहुंच रहे हैं। इस संदर्भ में यह सवाल सभी से पूछा जाना लाजमी हैं कि हमने अपने इंटरनेट के क्षेत्र में ऐसा क्यों नहीं किया? यहां गूगल और फेसबुक कारोबार कर रहा हैं और हमारी सरकार इसके समकक्ष तकनीक विकसित करने और रोजगार मुहैया करवाने में क्यों पिछड़ रही हैं? हमारा देसी कारोबार विदेशी फंडिंग पर क्यों निर्भर हैं? रोजगार में कमी आने का एक और कारण आईटी कंपनियों के उन्नत तकनीक में निवेश की अनिच्छा हैं। भारत की ऐसी कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी या डाटा एनालिटिक्स में अहम भूमिका नहीं निभा पर रही हैं। इनके पास ऐसी प्रतिभाओं और पूंजी की कमी हैं, जिस कारण नयी डिजिटल अर्थव्यवस्था में हम बहुत तेजी से पिछड़ रहे हैं। 

गंभीरता से चिंतन मनन की जरूरत
साल 2017 ने हमें ये तमाम चीजें बहुत स्पष्टता से बतायी हैं। बहरहाल! अब भी कुछ नहीं हुआ हैं, सत्तारूढ़ सरकार को युवाओं के भविष्य के बारे में गंभीरता से चिंतन मनन की आवश्यकता हैं। रोजगार सृजन आज की पहली प्राथमिकता हैं जिसे सरकार की ओर से विकसित किया जाना अत्यंत जरूरी हैं। युवाओं के चेहरों पर खुशी लाने का यहीं एक मात्र उपाय हैं। सरकार यदि अब भी इस मामले में सजग नहीं होती हैं तो आने वाले समय में फिर उसे इसके दुष्परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार रहना होगा। 

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