Tuesday, 5 December 2017

वास्तु शास्त्र की दृष्टि से ‘जल’ का महत्व...

घनश्याम डी रामावत
‘जल’ ही जीवन हैं अर्थात जल का हमारे जीवन में अत्यधिक महत्व हैं। वास्तु शास्त्र एवं फेंग शुई में भी जल को काफी महत्व दिया गया हैं। फेंग शुई में ‘शुई’ का अर्थ ही जल होता हैं। वास्तु शास्त्र में घर, मौहल्लें व शहर इत्यादि स्थानों पर जल स्त्रोत मसलन कुआं, तालाब व ट्यूबवेल इत्यादि कहां होने चाहिए, विस्तार से वर्णन किया गया हैं। मशहूर वास्तु पिरामिड विशेषज्ञ व रैकी हीलर अर्चना प्रजापति के अनुसार जल संग्रहण के लिए किसी भी भवन में वास्तु अनुकूल भूमिगत जल स्त्रोत बनाकर जल संग्रह किया जाए तो बहुत शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। गलत स्थान पर जल स्त्रोत का होना अनेक विपदाओं का कारण बनता हैं तथा दुष्परिणामों का सामना करना पड़ता हैं। अर्चना की माने तो पूर्व ईशान में जल स्त्रोत का होना सुख समृद्धि, वंश वृद्धि तथा गृह स्वामी के यशस्वी होने की गारण्टी हैं। 

इस तरीके से होने चाहिए जल स्त्रोत
पूर्व दिशा ऐश्वर्य प्राप्ति के साथ संतान की तरक्की की सूचक हैं। वहीं, पूर्व आग्रेय दिशा में जल स्त्रोत होने से पुत्र को कष्ट, अर्थ नाश सहित अग्रि भय से दो चार होना पड़ता हैं। दक्षिण आग्रेय दिशा में जल स्त्रोत की वजह से गृहिणी बीमार तथा भय की शिकार रहती हैं। इसी प्रकार दक्षिण दिशा में जल स्त्रोत स्त्रियों को मानसिक बीमारियां, आर्थिक व शारीरिक कष्ट का कारण बनता हैं। यही कारण हैं जल स्त्रोतों के लिए गड्ढों का चयन पूरी तरह वास्तु शास्त्र में सुझाएं गए नियमों के अनुसार करना चाहिए इससे जीवन सुखमय रहेगा, जल संकट से बचा जा सकता हैं तथा अनजाने कष्टों, संकटों, पीड़ाओं व अशुभ परिणामों से भी बचाव होगा अर्थात आनन्दमय जीवन जिया जा सकता हैं।

जल को वास्तु शास्त्र में सर्वाधिक महत्व
मौजूदा दौर में हर इंसान अपने जीवन में दु:ख/तकलीफ से बचकर खुशी से रहना चाहता हैं, उसे चाहत होती हैं कि वो अपना जीवन आनंदपूर्ण तरीके से व्यतीत करें। इसी चाहत को पूरा करने के लिए कई बार हम ऐसे तरीके अपनाते हैं जिसके कारण बड़ी रकम खर्च होती चली जाती हैं, फिर भी किसी प्रकार की सफलता नहीं मिलती हंै। अर्चना प्रजापति के अनुसार वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र में अनेक ऐसे उपाय हैं जिसके जरिए बिना किसी अधिक मेहनत और खर्चे के इंसान अपनी परेशानियों को दूर कर आर्थिक स्थिति को ठीक कर सकता हैं। उनके अनुसार जल को वास्तु शास्त्र में सर्वाधिक महत्व दिया गया हैं। जल एक ऐसा तत्व हैं जो जीवन के लिए तो जरूरी हैं ही, वास्तु के अनुसार जीवन को आनंदमय बनाने व अनेक कष्टों से बचाने का सशक्त माध्यम भी हैं। 

पूजा घर के शंख में जल भरकर रखना चाहिए
मशहूर वास्तु पिरामिड विशेषज्ञ अर्चना प्रजापति के अनुसार परिवार में माता के साथ संबंध मधुर नहीं रहते हैं और साथ ही वाहन रोजाना किसी तरह का नुकसान करवाता हैं तो इसका अर्थ होता हैं कि कुंडली के चतुर्थ भाव में दोष हैं। इस दोष से बचने के लिए सोमवार के दिन चावल बनाकर उसका सेवन करना चाहिए। इस दिन घर पर अतिथि का आगमन शुभ संकेत हैं। यदि संपत्ति का झगड़ा चल रहा हैं तो इससे बचने के लिए एक कटोरी में जल सूर्य की कटोरी में रख दें और शाम के समय उस जल को अशोक या आम के पत्तों में डूबोकर पूरे घर में छिडक़ाव करें। इससे घर की सारी नकारात्मकता खत्म हो जाएगी।  वास्तु शास्त्र के अनुसार जल में नमक डालकर उसका पोछा लगाने पर घर में वैभव और सुख का आगमन होता हैं। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा घर के शंख में जल भरकर रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र की दृष्टि से घर के नल से लगातार पानी बहना/टपकना ठीक नहीं हैं, ऐसा होने पर धन की हानि होना निश्चित हैं।

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