घनश्याम डी रामावत
भाई दूज का पर्व भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का पर्व हैं। इस पर्व को प्रति वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन मनाया जाता हैं। सही मायने में भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक यह पर्व दीपावली के दो दिन बाद मनाया जाता हैं। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। यहीं कारण हैं कि इस पर्व पर यम देव की पूजा की जाती हैं। मान्यता के अनुसार जो यम देव की उपासना करता हैं, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता हैं। हिंदुओं के बाकी त्योहारों कि तरह यह पर्व भी परंपराओं से जुड़ा हुआ हैं। इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर और उपहार देकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचन देता हैं। इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रूप से शुभ होता हैं।
यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता हैं
मिथिला नगरी में इस पर्व को आज भी यम द्वितीया के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन चावलों को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता हैं। साथ ही कुछ स्थानों में भाई के हाथों में सिंदूर लगाने की भी परंपरा देखी जाती हैं। भाई के हाथों में सिंदूर और चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता हैं, उस पर जल उड़ेलते हुए भाई की दीर्घायु के लिये मंत्र बोला जाता हैं। भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं। ऐसे हुई भाई दूज की शुरूआत भाई दूज के विषय में मान्यता एक पौराणिक मान्यता के अनुसार यमुना ने इसी दिन अपने भाई यमराज की लंबी आयु के लिये व्रत किया था, और उन्हें अन्नकूट का भोजन खिलाया था। कथा के अनुसार यम देवता ने अपनी बहन को इसी दिन दर्शन दिये थे।
भाई-बहन के बीच स्नेह बंधन को मजबूती
यम की बहन यमुना अपनी बहन से मिलने के लिये अत्यधिक व्याकुल थी। अपने भाई के दर्शन कर यमुना बेहद प्रसन्न हुई। यमुना ने प्रसन्न होकर अपने भाई की बहुत आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन अगर भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेगें, तो उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी। इसी कारण से इस इन यमुना नदी में भाई-बहन के साथ स्नान करने का बड़ा महत्व हैं। इसके अलावा यम ने यमुना ने अपने भाई से वचन लिया कि आज के दिन हर भाई को अपनी बहन के घर जाना चाहिए। तभी से भाई दूज मनाने की प्रथा चली आ रही हैं। भाई दूज का महत्व यह पर्व भाई-बहन के बीच स्नेह के बंधन को और भी मजबूत करता हैं।
भारतीय परंपरा के अनुसार विवाह के बाद कन्या का अपने घर, मायके में कभी-कभार ही आना होता हैं। मायके की ओर से भी परिवार के सदस्य कभी-कभार ही उससे मिलने जा पाते हैं। ऐसे में भाई अपनी बहन के प्रति उदासीन न हों, उससे सदा स्नेह बना रहें, बहन के सुख-दु:ख का पता चलता रहें। भाई अपनी बहनों की उपेक्षा न करें, और दोनों के संबंध मधुर बने रहें. इसी भावनाओं के साथ भाई दूज का पर्व मनाया जाता हैं।
इस तरह मनाया जाता हैं भाई दूज का पर्व
भाई दूज पर्व पर बहनें सवेरे जल्दी स्नान कर, अपने ईष्ट देव का पूजन करती हैं। चावल के आटे से चौक तैयार करती हैं। इस चौक पर भाई को बैठाया जाता हैं और उनके हाथों की पूजा की जाती हैं। भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं। उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दु के फूल, सुपारी, मुद्रा आदि हाथों पर रख कर धीरे धीरे हाथों पर पानी छोड़ा जाता हैं। अनेक जगहों पर इस दिन बहनें अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिये भाईयों को माखन-मिश्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर दीये का मुख दक्षिण दिशा की ओर करके रख देती हैं।
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