Wednesday, 20 December 2017

मौली (कलावा) : धार्मिक आस्था का प्रतीक/वैदिक रक्षा सूत्र

घनश्याम डी रामावत
मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा हैं। यज्ञ के दौरान इसे बांधे जाने की परंपरा तो पहले से ही रही हैं लेकिन इसको संकल्प सूत्र के साथ ही रक्षा-सूत्र के रूप में तब से बांधा जाने लगा, जबसे असुरों के दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था। इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता हैं, जबकि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था। मौली को हर हिन्दू बांधता हैं। इसे मूलत: रक्षा सूत्र कहते हैं।

मौली का शाब्दिक अर्थ व बांधने के स्थान
पश्चिमी राजस्थान के आदिवासी अंचल से संबद्ध नाणा (पाली) क्षेत्र के जाने माने ज्योतिषविद् पण्डित दिलीप 
महाराज के अनुसार ‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ हैं ‘सबसे ऊपर’। मौली का तात्पर्य सिर से भी हैं। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी हैं। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान हैं इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता हैं। मौली कच्चे धागे (सूत) से बनाई जाती हैं जिसमें मूलत: तीन रंग के धागे होते हैं-लाल, पीला और हरा, लेकिन कभी-कभी यह पांच धागों की भी बनती हैं जिसमें नीला और सफेद भी होता हैं। तीन और पांच का अर्थ कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव। मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता हैं। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती हैं तो इसे खोल दिया जाता हैं। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता हैं। 

आध्यात्मिक दृष्टि से कुछ सावधानियां जरूरी
शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में कलावा बांधने का नियम है। ज्योतिषविद् पण्डित दिलीप महाराज के अनुसार कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों, उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। मौली कहीं पर भी बांधें, एक बात का हमेशा ध्यान रहे कि इस सूत्र को केवल तीन बार ही लपेटना चाहिए व इसके बांधने में वैदिक विधि का प्रयोग करना चाहिए। दिलीप महाराज के अनुसार पर्व-त्योहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता हैं। हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली को उतारकर नई मौली बांधना उचित माना गया हैं। उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के वृक्ष के पास रख दें या किसी बहते हुए जल में बहा दें। प्रतिवर्ष की संक्रांति के दिन, यज्ञ की शुरुआत में, कोई इच्छित कार्य के प्रारंभ में, मांगलिक कार्य, विवाह आदि हिन्दू संस्कारों के दौरान मौली बांधी जाती हैं।

धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं ‘मौली’
मौली को धार्मिक आस्था का प्रतीक माना जाता है। किसी अच्छे कार्य की शुरुआत में संकल्प के लिए भी बांधते हैं। किसी देवी या देवता के मंदिर में मन्नत के लिए भी बांधते हैं। मौली बांधने के तीन कारण हैं-पहला आध्यात्मिक, दूसरा चिकित्सीय और तीसरा मनोवैज्ञानिक। किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे मौली बांधते हैं ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे। हिन्दू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानी पूजा-पाठ, उद्घाटन, यज्ञ, हवन, संस्कार आदि के पूर्व पुरोहितों द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली बांधी जाती है। इसके अलावा पालतू पशुओं में हमारे गाय, बैल और भैंस को भी पड़वा, गोवर्धन और होली के दिन मौली बांधी जाती है। मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में तीन रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।

‘मौली’ बंधन पश्चात आसुरी शक्तियां बेअसर
मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढक़र कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता। आध्यात्मिक लिहाज से अर्थात शास्त्रों का ऐसा मत हैं कि मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों-लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती हैं। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता हैं। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती हैं। यह मौली किसी देवी या देवता के नाम पर भी बांधी जाती हैं जिससे संकटों और विपत्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती हैं। यह मंदिरों में मन्नत के लिए भी बांधी जाती हैं।

धार्मिक/चिकित्सकीय दृष्टि से खास महत्व
इसमें संकल्प निहित होता है। मौली बांधकर किए गए संकल्प का उल्लंघन करना अनुचित और संकट में डालने वाला सिद्ध हो सकता हैं। यदि आपने किसी देवी या देवता के नाम की यह मौली बांधी हैं तो उसकी पवित्रता का ध्यान रखना भी जरूरी हो जाता हैं। कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता हैं। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती हैं। यह काला धागा भी होता हैं। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते। प्राचीनकाल से ही कलाई, पैर, कमर और गले में भी मौली बांधे जाने की परंपरा के चिकित्सीय लाभ भी हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार इससे त्रिदोष अर्थात वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। पुराने वैद्य और घर-परिवार के बुजुर्ग लोग हाथ, कमर, गले व पैर के अंगूठे में मौली का उपयोग करते थे, जो शरीर के लिए लाभकारी था। ब्लड प्रेशर, हार्टअटैक, डायबिटीज और लकवा जैसे रोगों से बचाव के लिए मौली बांधना हितकर बताया गया है।

‘मौली’ बांधने के मनोवैज्ञानिक लाभ
शरीर की संरचना का प्रमुख नियंत्रण हाथ की कलाई में होता हैं अत: यहां मौली बांधने से व्यक्ति स्वस्थ रहता हैं। उसकी ऊर्जा का ज्यादा क्षय नहीं होता हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती हैं। कमर पर बांधी गई मौली के संबंध में विद्वान लोग कहते हैं कि इससे सूक्ष्म शरीर स्थिर रहता है और कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती हैं। बच्चों को अक्सर कमर में मौली बांधी जाती हैं। यह काला धागा भी होता हैं। इससे पेट में किसी भी प्रकार के रोग नहीं होते। मौली बांधने से उसके पवित्र और शक्तिशाली बंधन होने का अहसास होता रहता हैं और इससे मन में शांति और पवित्रता बनी रहती हैं। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में बुरे विचार नहीं आते और वह गलत रास्तों पर नहीं भटकता हैं। कई मौकों पर इससे व्यक्ति गलत कार्य करने से बच जाता हैं।

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