Monday, 5 February 2018

ज्योति : बालिकाओं के सशक्त पहलू को दर्शाती मार्मिक फिल्म

घनश्याम डी रामावत
समूचे देश में महिलाओं को पुरूषों के बराबर दर्जा दिए जाने की बढ़ चढक़र दुहाई दी जाती हैं, किन्तु व्यवहारिक तौर पर जब नजर दौड़ाते हैं तो यह बहुत कम दिखाई देता हैं। आज भी देश के कई प्रांतों में काबिल लड़कियों को उनके माता-पिता पढ़ाई और कुछ खास हटकर करने को प्रोत्साहित नहीं करते बल्कि यदि लडक़ी कुछ करने की सोचती भी हैं तो उनको रोक टोक कर किनारे कर दिया जाता हैं। मगर एक कड़वा सच यह भी कि जिन लड़कियों में कुछ कर गुजरने की अटूट चाहत/प्रबल इच्छा होती वो रोक प्रतिरोध के बावजूद भी उस मुकाम पर पहुंचकर ही दम लेती हैं, जिनकी वह हक़दार हैं। फिल्म ‘ज्योति’ ऐसी ही एक कहानी हैं जो समाज की हकीकत को हर आम के सामने रखती हैं अपितु लड़कियों के प्रति समाज की सोच को पूरी सकारात्मकता के साथ प्रेरणादायी स्वरूप में लोगों के समक्ष पेश करती हैं। फिल्म राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहनेवाली एक नवयौवना ‘ज्योति’ की सच्ची दास्तान हैं।

‘ज्योति’ राउडी रोशनी प्रॉडक्शन की सशक्त फिल्म
राउडी रोशनी प्रॉडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म का जोधपुर में ग्रांड प्रीमियर हुआ तो निर्मात्री-अभिनेत्री रोशनी टाक से मिलने का मौका मिला। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो फिल्म के बारे में विस्तार से जानने को मिला। रोशनी टाक के अनुसार ‘ज्योति’ अपने माता पिता के साथ राजस्थान के एक पिछड़े गांव में रहती हैं और अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान हैं। उसके पिता गांव के धनाढ्य परिवार  के खेतों पर किसान का काम करते हैं और मां उसी परिवार में चौका बर्तन यानी घरेलू काम करके अपना गुज़ारा करते हैं। गरीबी के हद पर रहकर भी ज्योति में पढक़र असाधारण काम सीखकर अलग थलग मुकाम बनाने की चाहत हैं, मगर परिवार के सदस्यों के रुड़वादी होने की वजह से वह से वह छटपटा कर सही मौके की तलाश में रहती हैं। अचानक दिल्ली से आया उसकी मौसी का फोन उसमें आशा किरण को जन्म देता हैं। उसकी कुछ कर गुजरने की इच्छा को प्रबलता मिल जाती हैं। हुआ यूं कि ज्योति के मौसाजी की अचानक तबियत बिगड़ जाती हैं वह सहारे के लिए ज्योति को अपने पास बुला लेती हैं। अंधा क्या चाहे दो आंखे..। ज्योति घर बार का काम बढिय़ा कर अपनी मौसी का दिल जीत लेती हैं और उसे उसके मुताबिक तकनीकी काम सीखने का बढ़ावा देती हैं जिसके फलस्वरूप ज्योति कुछ ही समय में पारंगत मोबाइल रिपेयरिंग की टेक्नीशियन बन जाती हैं। गांव में वापस लौटकर उसकी योग्यता की ऐसी रोशनी फैलती हैं उसके वो मां बाप अपने आपको गौरान्वित महसूस करने लगते हैं जो कभी बेटे की कमी से दु:खी हुआ करते थे। राऊडी रोशनी प्रोडक्शन्स निर्मित आज की महिलाओं में तमाम रोड़ों के बीच अग्रसर होने के मुद्दे को साकार करने की सार्थक मुहिम हैं। 

रोशनी टाक अनुभवी अदाकारा, शीर्ष भूमिका निभाई
फिल्म निर्मात्री अभिनेत्री रोशनी टाक बॉलीवुड के साथ पिछले कई वर्षों से रचनात्मक क्षेत्र में कार्यरत हैं। अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने तारकनाथ का उल्टा चश्मा, चिडिय़ाघर, क्राइम पेट्रोल, जि़न्दगी एक भंवर आदि धारावाहिकों में छोटी किन्तु प्रभावी भूमिकाएं की हैं। इसके अतिरिक्त 200 टीवी कार्यक्रमों में एंकरिंग भी उनके वर्किंग खाते मे दर्ज हैं। हाल ही में रोशनी टाक ने नवाजुदीन सिद्दीकी और तनिष्का चटर्जी के साथ देख इंडियन सर्कस और  सांवरिया सेठ (राजस्थानी) फीचर फिल्मों मे भी बढिय़ा अभिनय किये हैं। ज्योति में शीर्ष भूमिका रोशनी टाक ने ही निभाई हैं। अन्य प्रमुख भूमिकाओं में अशोक व्यास, अनिता माहेश्वरी, उर्मि भंडारी, मंजू सोनी, श्याम यादव, महेश महावर हैं। कथा-रोशनी टाक, पटकथा-संवाद-प्रेम बनिया, निर्देशक-शुभिराज, सह-निर्माता प्रशांत कौशल हैं। बकौल रोशनी टाक के ज्योति राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहने वाली प्रतिभावान लडक़ी की सच्ची कहानी हैं जिसे उन्होंने आत्मसात किया हैं और पूरी ईमानदारी के साथ इस किरदार को पेश करने की कोशिश की हैं। 

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