घनश्याम डी रामावत
भगवान कृष्ण की ‘बांसुरी’ को
सुनकर इंसान तो क्या पशु-पक्षी भी मोहित हो जाते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि
भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी में जीवन का सार छुपा हुआ हैं। ये हमें बताती हैं कि इंसान को कैसा आचरण करना
चाहिए। अपने इन्हीं गुणों के कारण एक छोटी सी बांसुरी भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय
थी। भगवान ने बांसुरी को अपने जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान क्यों दिया इसके
बारे में पुराणों में कई कहानियां बताई गई हैं इनमें से एक कहानी ये भी हैं ।
भगवान श्रीकृष्ण के लिए प्रतीक्षा
पिछले दिनों जोधपुर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में सेवाएं दे
चुके सेवानिवृत प्राध्यापक/जाने माने शिक्षाविद् जगदीश चंद्र जी प्रजापति से मिलना
हुआ। सही मायने में छोटी सी मुलाकात ने जीवन के प्रति सोच को काफी हद तक बदल कर रख
दिया। बांसुरी और भगवान श्री कृष्ण के इसके प्रति अगाध प्रेम को लेकर गहन जानकारी
रखने वाले जगदीश चंद्र जी अच्छे बांसुरी वादक हैं। 72 वर्ष की उम्र में जगदीश चंद्र जी द्वारा किया जाने
वाला बांसुरी वादन काबिले तारीफ हैं। मेरे समक्ष उनके द्वारा बांसुरी के माध्यम से
निकाली गई धुनों(चंदन सा बदन, चंचल चितवन.. एवं पणिहारी/घूमर/गणगौर से संबद्ध लोकगीत) ने उस वक्त न
केवल मुझे, अपितु
वहां उपस्थित हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। सही मायने में मेरे पास व्यक्तिगत
रूप से उनकी तारीफ में कोई शब्द ही नहीं हैं। अर्थात मैं तो ‘नि:शब्द’.. बातों ही बातों में उनके
द्वारा बांसुरी और भगवान श्री कृष्ण के इससे ताल्लुक/अगाध प्रेम/लगाव को लेकर जो
वृतांत सुनाया गया हैं वह इस प्रकार हैं_एक बार श्रीकृष्ण यमुना किनारे अपनी बांसुरी बजा रहे थे। बांसुरी की
मधुर तान सुनकर उनके आसपास गोपियां आ गई। उन्होंने चुपचाप श्रीकृष्ण की बांसुरी को
अपने पास रख लिया। गोपियों ने बांसुरी से पूछा-आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा
कौन-सा पुण्य कार्य किया था जो तुम केशव के गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों का स्पर्श
करती रहती हो। ये सुनकर बांसुरी ने मुस्कुराकर कहा-मैंने श्रीकृष्ण के समीप आने के
लिए जन्मों से प्रतीक्षा की हैं।
कठोरता की भी परवाह नहीं की
त्रेतायुग में जब भगवान राम वनवास काट रहे थे। उस दौरान मेरी भेंट
उनसे हुई थी। उनके आसपास बहुत से मनमोहक पुष्प और फल थे। उन पौधों की तुलना में
मुझमें कोई विशेष गुण नहीं था, पंरतु भगवान ने मुझे दूसरे पौधों की तरह ही महत्व दिया। उनके कोमल
चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता था। उन्होंने मेरी कठोरता की भी
कोई परवाह नहीं की। जीवन में पहली बार मुझे किसी ने इतने प्रेम से स्वीकारा था। इस
कारण मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की। परंतु उस काल में वो अपनी मर्यादा से
बंधे हुए थे, इसलिए
उन्होंने मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखने का वचन दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने
अपना वचन निभाते हुए मुझे अपने समीप रखा। वाकई छोटी सी यह कहानी जीवन और उसके सार
को समझाने के लिए काफी हैं।
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