घनश्याम डी रामावत
पिछले दिनों जोधपुर में फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स के तत्वावधान में राष्ट्रीय स्तर की जादू मंतरा कार्यशाला का आयोजन किया गया। एक दिवसीय इस नि:शुल्क कार्यशाला में देश के 11 प्रदेशों के कुल 155 जादूगरों ने भाग लिया। फैडरेशन की ओर से किए गए इस आयोजन और इसमें जादूगरों की बड़ी तादाद में मौजूदगी को कहीं न कहीं जादू कला को आधुनिक शक्ल देने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा हैं। इसे पुख्ता करने के लिए मैंने फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स के जिम्मेदार पदाधिकारी से मिलने का निश्चय किया। जल्दी ही मेरी मुलाकात फैडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल से हो गई।
जिज्ञासा शांत करने हेतु सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर मायावी दुनियां अर्थात जादू और जादू कला के बारे में काफी कुछ विस्तारपूर्वक जानने को मिला। फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल ने बताया कि जादू विज्ञान पर आधारित एक कला हैं और इस कला को खूबसूरती के साथ पेश करना ही मैजिक हैं। जादू प्रदर्शन में सामाजिक संदेश छिपे होते हैं जो लोगों को अंधविश्वास से लडऩे में मदद करते हैं। वहीं यह कला समाज का स्वस्थ मनोरंजन करती हैं। जादूगर अग्रवाल के अनुसार मौजूदा युग प्रतिस्पद्र्धा का युग हैं। इस दौर में हर व्यक्ति और हर एक्टिविटी को इस प्रतिस्पद्र्धा से दो-चार होना पड़ता हैं, जहां उसकी किसी अन्य से तुलना होती हैं। उन्होंने कहा कि जादू और जादू कला भी इससे अछूती नहीं हैं। आज भारतीय जादू व इसके प्रदर्शन के तरीकों की विदेशी जादू कला से तुलना की जाती हैं। चूंकि तेजी से समद्ध होती तकनीक को अपनाने में विदेशी कलाकार अग्रणी होते हैं लिहाजा वे अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से हर किसी को अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित करते हैं। फैडरेशन ने इसी कारण से कार्यशालाएं आयोजित करने का निश्चय किया, ताकि देश के जादूगर विदेश में जादू कलाकारों द्वारा अपनाई जा रही आधुनिक तकनीक का अपने हूनर में समावेश करते हुए इसको और अधिक धारदार बना सकें।
जादू प्रदर्शन को फ्रैंडली बनाने का का प्रयास
जादूगर अग्रवाल के अनुसार फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स के बैनर तले जोधपुर में यह कार्यशाला दूसरी बार आयोजित की गई हैं। इससे पूर्व पिछले वर्ष 23 फरवरी को फैडरेशन ने इसका आयोजन किया था। अग्रवाल ने कहा कि जादू ट्रिक नहीं टेक्निक हैं इसको समझना व स्वीकारना आज की जरूरत हैंं। यह ऐसा ठोस सत्य हैं जिसे सभी को मानना होगा। उन्होंने अत्याधुनिक तकनीक के जरिये जादू प्रदर्शन को और अधिक बेहतर व फ्रैंडली बनाने का फैडरेशन का प्रयास हैं। एक ऐसा प्रयास जिसके तहत जादू प्रदर्शन के दौरान पूरा परिवार एक साथ बैठकर बिना किसी भय/बाधा के इसका लुत्फ उठा सकें। उन्होंने कहा कि अब वह जमाना नहीं रहा जब जादूगर को अत्यधिक मेकअप के साथ डरानी शक्ल अख्तियार करनी पड़ती हैं, तकनीक ने इसको बहुत ही सरल बना दिया हैं। जादूगर अग्रवाल के अनुसार जादू का टोना, टोटका व तंत्र-मंत्र से कोई सरोकार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आज लोगों का रूझान जादू के प्रति घटा जरूर हैं, लेकिन अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो जादू को मनोरंजन का एक उत्तम साधन मानते हैं। उनके अनुसार जादू मनोरंजन का ऐसा साधन हैं जिसका लुत्फ 7 वर्ष के बालक से लेकर 70 वर्ष का वृद्ध परिवार के साथ सामूहिक रूप से बैठकर उठा सकता हैं। अग्रवाल ने कहा कि जादू प्राचीन भारत की 64 कलाओं में से एक हैं। मौजूदा सूचना क्रांति के युग में स्वस्थ मनोरंजन एक चुनौती बनकर रह गया हैं, ऐसे में इस कला को आज सामाजिक स्तर के साथ खासतौर से सरकारी स्तर पर संरक्षण व प्रोत्साहन की सख्त जरूरत हैं।
ललित कला का दर्जा नहीं मिलना निराशाजनक
उन्होंने कहा कि जादू कला के सम्मान, समृद्धि व प्रोत्साहन के लिए लंबे समय से फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स सहित देशभर के जादू संगठनों द्वारा आवाज उठाई जाती रही हैं। अभी हाल ही गुजरात में संपन्न विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल द्वारा चुनाव प्रचार में जादूगरों की सेवाएं लिए जाने को फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स जादू कला व जादूगरों के सम्मान के तौर पर देखता हैं। अग्रवाल ने कहा कि गुजरात चुनाव में प्रचार में जादूगरों का सहयोग लिए जादू कला के समृद्ध होने की उम्मीदों को पंख लगे हैं। इनका मानना हैं कि देश में शासन करने वाले राजनीतिक दल अब जादूगरों की अहमियत, जादू कला के महत्व व जनता में उनके प्रभाव को समझने लगे हैं। जादूगर चमन अग्रवाल के अनुसार यह एक सुखद पहल हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए सरकार अब इस कला की समृद्धि, विकास तथा समाज के हर वर्ग तक जादू कला के प्रचार-प्रसार हेतु ठोस, कारगर व निर्णायक प्रयास करेगी। जादूगर अग्रवाल ने कहा कि जादू संगठनों द्वारा राजस्थान सरकार से पिछले लंबे समय से जादू कला को ललित कला का दर्जा दिए जाने की मांग की जाती रही हैं किंतु अभी तक निराशा ही हाथ लगी हैं। जादू कला प्राचीनतम कला हैं जिसको सदियों से सम्मान मिलता आया हैं।
जादू सीखने की कोई निश्चित उम्र नहीं
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर भले ही आधुनिक तकनीक का हैं, बावजूद इसके जादू व जादूगरों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। स्वस्थ समाज के लिए स्वस्थ मनोरंजन प्राथमिक जरूरत हैं और जादू कला इस दायित्व का बखूबी निर्वहन करती हैं। ऐसे में इसे और अधिक मजबूत व परिष्कृत करने की आवश्यकता हैं। जादूगर अग्रवाल ने कर्नाटक सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि वहां विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में जादू को एक विषय के रूप में शामिल किया गया हैं जो निश्चित ही जादू की बेहतरी संदर्भ में सशक्त कदम हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि जादू सीखने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती और इसे 3 वर्ष के बालक से लेकर 90 वर्ष का व्यक्ति सीख सकता हैं। फैडरेशन ऑफ इंडियन मैजिशियन्स के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल के अनुसार एक दिवसीय नि:शुल्क जादू मंतरा कार्यशाला में राजस्थान सहित पश्चिम बंगाल, कनार्टक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश व तेलंगाना के जादूगरों ने शिरकत की। कार्यशाला में जादू कला से संबद्ध नवीन आधुनिक तकनीक से जादूगरों को अवगत कराया गया।
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