Thursday, 8 February 2018

वैचारिक प्रबंधन : आज की प्राथमिक जरूरत

घनश्याम डी रामावत
विचार सभी के महत्वपूर्ण होते हैं तथा इंसान के लिए जीवन में इसका क्या महत्व हैं, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं हैं। सही मायने में हमें विचारों से ही किसी व्यक्ति व उसके व्यक्तित्व का ठीक से पता चलता हैं। कहावत हैं जैसे विचार, वैसा ही इंसान। सार्वजनिक जीवन में लोग इंसान का आंकलन विचारों से ही करते हैं। यही कारण हैं कि वैचारिक प्रबंधन व विचारों का अत्यधिक महत्व हैं। कभी भी/कहीं भी कुछ भी कहेंगे अर्थात अभिव्यक्त करेंगे, परिणाम उसकेे अनुरूप ही प्राप्त होगा। कब, कहां, क्या व कैसे बोलना हैं? इसके बारे में सही तरीके से विचार कर उचित क्रियान्वयन जरूरी हैं। हमारे कॅरियर के बारे में अन्य क्या विचार रखते हैं, इसको जानने से अधिक जरूरी हैं कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं। स्वयं को कितना सफल/असफल मानते हैं। खुद कितने संतुष्ट/असंतुष्ट नजर आते हैं अर्थात खुश या दु:खी नजर आते हैं। कॅरियर को लेकर इंसान अपने विचारों को नियंत्रित कर स्वयं की खुशियों को बढ़ा सकता हैं। अगर स्वयं के विचार ही खुद के बारे में ठीक नहीं हैं तो अन्य के विचार ठीक हो ही नहीं सकते। अन्य के विचारों को तभी नियंत्रित किया जा सकता हैं, जब खुद को लेकर इंसान स्वयं नियंत्रित हैं। 

अन्य के विचार/सलाह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण
आज की जीवन शैली में हमें आसानी से सलाह देने वाले मिल जाते हैं। सलाह हमारे यहां नि:शुल्क मिलती हैं। ऐसा नहीं हैं कि सभी की सलाह या विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उसमें से कुछ महत्वपूर्ण हो सकती हैं। इंसान को दूसरें के विचारों को सुनना चाहिए, महत्वपूर्ण हैं तो उन विचारों का अपने जीवन में उपयोग किया जा सकता हैं। अगर उपयोगी नहीं हैं तो उन विचारों को स्वयं पर प्रभावी न होने दीजिए। इंसान जब अपने कॅरियर की पटकथा स्वयं ही लिखता हैं तो फिर इस कहानी को उसे खुद को ही आगे बढ़ाना हैं। दूसरों के विचार एक दिशा दे भी सकते हैं, लेकिन तरह-तरह के विचार परेशानी भी खड़ी कर सकते हैं। जीवन में कई बार ऐसा भी होता हैं कि हम बिना पूछे अपना विचार रख देते हैं, सामने वाले को अच्छा लगे या न बुरा लगे। जब कोई हमारे से अपना विचार/सलाह पूछ ही नहीं रहा हैं तो उसे बताने का फायदा क्या हैं। इस बात को गंभीरता से अंगीकार करना चाहिए कि जब तक पूछा न जाए, हम अपनी राय प्रकट न करें। ऐसे ही कुछ कहेंगे तो लोगों में सही संदेश नहीं जाएगा और व्यक्तित्व पर भी सवालियां निशान लगेगा। इंसान तब विचारों का खुद सम्मान करता हैं तभी दूसरे भी सम्मान करते हैं, यह कटु सत्य हैं। वैचारिक महत्व को समझने के लिए यह जरूरी हैं कि उन लोगों पर गौर करें जो बोलते रहते हैं/उन्हें मौका मिले या न मिले, अपने विचार वे जरूर रखते हैं.. कोई सुनना चाहे या न सुनना चाहे। सामाजिक जीवन में ऐसी मान्यता हैं कि इंसान का मान सम्मान स्वयं उसी के हाथों में होता हैं। इंसान ही ऐसा व्यक्ति हैं जो बोलकर अपने विचार रख सकता हैं, इसके महत्व को समझना जरूरी हैं। बोलने का अर्थ यह नहीं हैं कि हम कुछ भी बोलें। जरूर बोलें, बोलने का अर्थ हैं नापे, तोले और फिर बोले। कुछ लोगों को सुनने के लिए लोग कान लगाकर बैठते हैं, कुछ के बोलने से ही लोग कान बंद कर लेते हैं। 

जीवन में सरल, स्पष्ट व सपाट रहने का महत्व
ढोंगी बनने से अच्छा हैं कि हम जीवन में सरल, स्पष्ट व सपाट रहें। व्यक्तित्व में सरल हैं तो विचार भी सरल होंगे। कुछ लोग ढोंग भी करते हैं, विचार भी ढोंगी होते हैं। ऐसे विचार इंसान के लिए किसी काम के नहीं हैं। व्यक्तित्व व विचारों में ढोंगीपन व्यक्तित्व को ढोंगी बनाता हैं। इंसान कड़ी मेहनत से खुद को तराशता हैं। फिर ढोंग की जरूरत कहां हैं? जैसे हैं वैसे ही लोगों के सामने स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए। इससे लोगों को अपने बारे में सही समझ रहेगी तथा आपके विचारों का महत्व बढ़ेगा। अन्य लोग विचारों को लेकर उत्सुकता रखेंगे व उन्हें जरूर जानना चाहेंगे क्योंकि उन्हें पता हैं कि संबंधित व्यक्ति के विचार, उसके व्यक्तित्व की तरह ही सरल व ईमानदार हैं।  यह कड़वा सच हैं कि यदि इंसान के खुद के विचार ही स्वयं के बारे में ठीक नहीं हैं तो अन्य के विचार ठीक हो ही नहीं सकते। दूसरों के विचारों को भी तभी नियंत्रित किया जा सकता हैं, जब इंसान स्वयं को लेकर नियंत्रित हों।

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