घनश्याम डी रामावत
धार्मिक स्थल का प्राचीन इतिहास से गहरा संबंध
श्वेतांबर जैन परम्परा का यह पावन तीर्थ पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले में बालोतरा औद्योगिक कस्बे से महज 12 किलोमीटर दूर पर्वतीय श्रृंखलाओं के मध्य स्थित हैं। प्राकृतिक नयनाभिराम दृश्यों, प्राचीन स्थापत्य एवं शिल्पकला कृतियों के बेजोड़ नमूनों को समेटे आधुनिक साज सज्जा से परिपूर्ण विश्वविख्यात इस जैन तीर्थ ‘श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ’ का देश ही नहीं विश्व के धार्मिक स्थलों में अपना प्रमुख स्थान हैं। नाकोडा तीर्थ स्थल के विश्वविख्यात होने मे श्रद्धालुओं की अपार श्रद्धा/आस्था के साथ प्रमुख दो कारण हैं। पहला-श्वेताम्बर जैन समाज के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की दसवीं शताब्दी की प्राचीनतम मूर्ति का मिलना और 500-600 वर्षों पूर्व इस चमत्कारी मूर्ति का जिनालय में स्थापित होना(मुख्य मंदिर की भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा चूंकि सिन्दरी के पास नाकोड़ा ग्राम से आई थी, यह तीर्थ नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ) तथा दूसरा अधियक देव श्री भैरव देव की स्थापना श्री पार्श्वनाथ मंदिर के परिसर में होना(इनके देवी चमत्कारों के कारण हजारों लोग प्रतिवर्ष श्री नाकोड़ा भैरव के दर्शन करने यहां पहुंचते है और मनवांछित फल पाते हैं)। यह क्षेत्र लगभग दो हजार वर्ष से जैन आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र रहा हैं।
त्याग, बलिदान, देशभक्ति एवं शूरवीरता के लिए देश ही नहीं विश्वभर में अपना विशेष पहचान रखने वाला राजस्थान अपने यहां की बेहतरीन गंगा-जमुनी संस्कृति, कला व विभिन्न धर्म-संप्रदायों से ताल्लुक रखने वाले अनगिनत धार्मिक स्थलों के लिए भी जाना जाता हैं। राजस्थान प्रदेश के साहित्य, शिल्प एवं स्थापत्य क्षेत्र में जैन धर्मावलंबियों का विशेष योगदान रहा हैं। सूक्ष्म शिल्पकला-कृतियों व गगनचुंबी इमारतों के रूप में राजस्थान के प्रत्येक हिस्से में अनेक जैन तीर्थ स्थल मौजूद हैं। श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ जैन तीर्थ भी एक ऐसा ही तीर्थ हैं जो न केवल जैन परम्परा के लोगों के लिए आस्था का प्रमुख केन्द्र हैं अपितु एक अनुकरणीय गौरव के रूप में वर्षों से राजस्थान का मस्तक शान से ऊंचा किए हुए हैं। प्राचीन वैभव, सुंदर शिल्पकला, दानदाताओं की उदारता, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, त्याग, मुनिवरों का प्रेरणा केंद्र, तपस्वियों की साधना भूमि, पुरातत्व विशेषज्ञों के लिए जिज्ञासा स्थल, जैनाचार्यों द्वारा दिए गए उपदेशों के पश्चात निर्मित अनेक जैन बिम्ब, सेकड़ों प्राचीन एवं नवनिर्मित जिन प्रतिमाओं का संग्रहालय, श्री पार्श्वनाथ प्रभु के जन्म कल्याणक मेले की पुण्य भूमि के तौर पर इस तीर्थ की दुनियाभर में अपनी विशेष पहचान हैं।
धार्मिक स्थल का प्राचीन इतिहास से गहरा संबंध
इस धार्मिक स्थल का प्राचीन इतिहास से गहरा संबंध है। श्री जैन श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत काल अर्थात भगवान श्री नेमिनाथ के समय/काल से प्रतीत होता हैं किन्तु आधारभूत ऐतिहासिक प्रमाण के अभाव में इसकी प्राचीनता 2000-2300 वर्ष पूर्व की मानी जा रही हैं। कहा जा सकता हैं कि श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ राजस्थान के उन प्राचीनतम जैन तीर्थो में से एक हैं जो 2000 वर्षों से भी अधिक समय से आबाद हैं एवं इस क्षेत्र की खेड़पटन एवं मेवानगर की ऐतिहासिक समृद्ध तथा सांस्कृतिक धरोहर का श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। मेवानगर के पूर्व में वीरमपुर नगर के नाम से प्रसिद्ध था। वीरमसेन ने वीरमपुर तथा नाकोरसेन ने नाकोड़ा नगर बसाया था। आज भी बालोतरा-सिणधरी मुख्य मार्ग पर नाकोड़ा ग्राम लूनी नदी के तट पर बसा हुआ हैं, जिसके पास से ही इस तीर्थ के मूल नायक भगवान की प्रतिमा की पुन: प्रतिष्ठा तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री कीर्तिरत्न सुरीजी म.सा. द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता हैं। यद्यपि संदर्भ में प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी कुछ प्राचीन गीतों, भजनों एवं इस बारे में जानकारी रखने वालो के अनुसार वीरमदेव एवं नाकोरसेन ने ही वीरमपुर, वीरपुर एवं नाकार नगरों की स्थापना की थी, ऐसा ज्ञात होता हैं।
अधिष्ठायक देव प्रभू भैरवनाथ की आकर्षक प्रतिमा
श्री नाकोड़ा तीर्थ में प्रमुख आराध्य देव भगवान पार्श्वनाथ मंदिर का विशाल शिखर हैं तथा आजू-बाजू दो छोटे शिखर हैं। मंदिर में मूल गंभारा, गूढ़ मंडप, सभा मंडप, नवचौकी, श्रृंगार चौकी और झरोखे बने हुए हैं जो देखने में साधारण से लगते हैं.. वास्तव में संगमरमर पाषाणों की बारीक शिल्प-कलाकृतियों से इन्हें सुसज्जित किया हुआ हैं। मंदिर में तीर्थोंद्धारक खतरगच्छ आचार्य कीर्तिरत्न सुरी म.सा. की पित्त पाषाण प्रतिमा विराजमान हैं, जिस पर संवत् 1356 का शिलालेख विद्यमान हैं। इनके ठीक सामने इस पावन तीर्थ के अधिष्ठायक देव प्रभू भैरवनाथ की मनमोहक आकर्षक प्रतिमा हैं। इन्हीं के चमत्कारों से इस तीर्थ की ख्याति वर्षों से बढ़ती चली आ रही हैं जो आज भी यथावत रूप से जारी हैं। मंदिर में निर्माण संबंधित शिलालेख सं. 1638, 1667, 1682, 1864 एवं 1865 के भी मौजूद हैं। मुख्य मंदिर के पीछे ऊंचाई पर प्रथम तीर्थंकर आदेश्वर भगवान का शिल्पकला कृतियों का खजाना लिए हुए मंदिर विद्यमान हैं। इस मंदिर का निर्माण वीरमपुर के सेठ मालाशाह की बहिन लाछीबाई ने करवाकर इसकी प्रतिष्ठा सं. 1512 में करवाई। उस समय इस मंदिर में विमलनाथ स्वामी की प्रतिमा थी, लेकिन अब मूलनायक के रूप में श्वेत पाषाण की ऋ षभदेव भगवान की प्रतिमा भी विराजमान हैं।
खंभों पर आबू व देलवाड़ा के मंदिरों की कारीगरी
श्री नाकोड़ा तीर्थ/श्री पार्श्वनाथ मंदिर के विशाल शिखर व खंभों पर विभिन्न आकृतियों की सुंदर प्रतिमाएं शिल्पकला के बेजोड़ नमूने को प्रदर्शित करती हैं। यहीं कारण हैं कि यहां आने वाले श्रद्धालु घंटों तक निहारने के बाद भी थकान महसूस नहीं करते। इसके समीप ही भारत पाक विभाजन के समय सिंधु प्रदेश के हानानगर से आई प्रतिमाओं का भव्य चौमुखा मंदिर कांच की कारीगरी का बेजोड़ नमूना हैं। इस पावन तीर्थ का तीसरा मुख्य मंदिर 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथजी का हैं, जिसका निर्माण सुखमालीसी गांव के सेठ मालाशाह संखलेचा ने अपनी माता की इच्छा पर करवाया। मंदिर के खंभों पर आबू व देलवाड़ा के मंदिरों की कारीगरी परिलक्षित होती हैं। सूरजपोल में प्रवेश करते ही बाईं ओर सफेद संगमरमर की बारीक नक्काशीदार सीढिय़ों से मंदिर का मुख्य मार्ग हैं तथा मंदिर के मुख्य मार्ग पर कलात्मक पटवों की हवेली जैसलमेर जैसे झरोखे बनाए हुए हैं। इस मंदिर की प्रतिष्ठा वि.स. 1518 में गुरुदेव श्री जिनदत्त सूरी म.सा. ने एक बड़े महोत्सव में करवाई। मंदिर के प्रवेश द्वार बारीक नक्काशीदार के ठीक ऊपर श्रृंगार चौकी बनी हुई हैं जहां पीत पाषाण से निर्मित देव पुतलिकाएं विभिन्न वाद्य यंत्रों, नृत्य मुद्राओं के साथ संगीतमय उत्सव की झांकी प्रस्तुत करती हैं।
भगवान श्री शांतिनाथ के 12 भवों को कलात्मक चित्रण
नवचौकी के नीचे ही एक पीत पाषाण पर बारीकी कलाकृतियों के बीच लक्ष्मीदेवी की मूर्ति उत्कीर्ण हैं। मूल गंभारे के बाईं ओर गोखले(आलेय) में दादा जिनदत्त सूरी जी विराजमान हैं, जिनकी निश्रा में इस मंदिर की प्रतिष्ठा हुई थी। यशस्वी गुरुदेव के पावन पगलिये बाईं ओर के गोखले में सफेद संगमरमर पर स्वर्ण निर्मित हैं। इन प्रतिमाओं एवं पगलियों की प्रतिष्ठा 2008 में दादा जिनदत्त सूरी जी म.सा. ने करवाई थी। मंदिर के पिछवाड़े में श्रीपाल मेयनासुंदरी भव्य अनुपम चौमुखा मंदिर हैं। इसके आगे चलने पर श्रृंखलाबद्ध खंभों की कतार के मध्य विविध चित्रों के माध्यम से भगवान श्री शांतिनाथ के बारह भवों को कलात्मक चित्रों के जरिये उल्लेखित किया गया हैं। सूरजपोल के बाहर एक ओर महावीर स्मृति भवन स्थित हैं। वर्ष 1975 में भगवान श्री महावीर स्वामी का 2500वां निर्वाण महोत्सव मनाया गया था तब ट्रस्ट मंडल द्वारा इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके भीतर श्री महावीर स्वामी की आदमकद प्रतिमा विराजमान हैं। यहां आधुनिक भवन निर्माण कला और सुसज्जित विशाल एक हॉल में आकर्षक चित्रों के माध्यम से भगवान श्री महावीर स्वामी के जीवन काल की घटनाओं का चित्रण किया गया हैं।
संगमरमर के पाषाण का कलात्मक तोरण द्वार
सूरजपोल के ठीक सामने टेकरी पर पूर्व की ओर दादा श्री जिनदत्त सूरी जी म.सा. की दादावाड़ी हैं। दादावाड़ी की सीढय़ों पर चढऩे से पूर्व सफेद संगमरमर के पाषाण का कलात्मक तोरण द्वार हैं जिसे शिल्पकारों ने अपने अथक कला एवं श्रम से सजाया एवं संवारा हैं। दादावाड़ी में श्री जिनदत्त सूरी जी, मणिधारी श्री जिनचंद्रसूरी जी, श्री जिनकुशल सूरीजी व युगप्रधान श्री चंद्र सूरी जी के छोटे चरण प्रतिष्ठित हैं। दादावाड़ी से नीचे उतरते समय एक ओर सफेद संगमरमर का श्रृंखलाबद्ध भव्य नवनिर्मित मंगल कलश दिखाई देता हैं। दादावाड़ी के पीछे आचार्य लक्ष्मी सूरी जी का भव्य सफेद संगमरमर का बना गुरु मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं। मुख्य मंदिर के पीछे 1200 फीट की ऊंची पहाड़ी पर सफेद रंग की आभा से सुशोभित श्री जिन कुशल सूरी जी की दादावाड़ी स्थित हैं। तीर्थ के विकास में आचार्य हिमाचल सूरी जी एवं आचार्य जिन कांति सागर सूरिश्वर जी म.सा. के सहयोग को भुलाया नहीं जा सकता। मुख्य मंदिर के समीप सफेद संगमरमर के पाषाण की पेढ़ी एवं सभागार हैं, जहां पौष दशमी मेले एवं अन्य बैठकों का आयोजन के साथ ट्रस्ट मंडल द्वारा विभिन्न समारोह इसी प्रांगण में आयोजित किए जाते हैं।
‘श्री जैन श्वेतांबर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट’
तीर्थ की सुरक्षा, रख-रखाव, नवनिर्माण, यात्रियों को पूर्ण सुविधाओं के साथ साधु-साध्वियों को पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए बकायदा ‘श्री जैन श्वेतांबर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट’ बना हुआ हैं। ट्रस्ट मंडल हर समय पूरी तरह सक्रिय रहकर अपने दायित्वों का निर्वहन करता हैं। संभवत: यह भी एक प्रमुख कारण हैं कि यहां आने वाले श्रद्धालु पूरी तरह संतुष्ट होकर लौटते हैं एवं तीर्थ की प्रतिष्ठा अनवरत रूप से बढ़ती जा रही हैं। इस पावन तीर्थ पर दर्शनार्थ जैन धर्मावलंबियों के अतिरिक्त अन्य धर्म-संप्रदायों के लोग भी पहुंचते हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए तीर्थ पर कमरों की लंबी श्रृंखला हैं। अनेक विशाल धर्मशालाएं बनी हुई हैं। यहीं नहीं, यात्रियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ट्रस्ट मंडल की ओर से और धर्मशालाएं बनाया जाना प्रस्तावित हैं। तीर्थ पर विशाल भैरव भोजनशाला हैं तथा मेले के समय विशाल भू-भाग में फैले नवकारसी भवन का उपयोग किया जाता हैं।
जोधपुर मुख्यालय से 116 किमी/बालोतरा से 12 किमी
जैन तीर्थ ‘श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ’ जोधपुर से 116 किमी तथा बालोतरा से 12 किमी दूरी पर होने के साथ ही जोधपुर-बाड़मेर मुख्य रेल मार्ग पर स्थित हैं। जोधपुर-बाड़मेर सहित आसपास के लगभग सभी स्थानों से सडक़ मार्ग से तीर्थ स्थल पर सुगमता से पहुंचा जा सकता हैं। मंदिर के खुलने का समय गर्मी(चैत्र सुदी एकम् से कार्तिक वदी अमावस तक) में प्रात: 5.30 बजे से रात्रि 10 बजे तक एवं सर्दी(कार्तिक सुदी एकम. से चैत्र वदी अमावस तक) प्रात: 6 बजे से रात्रि 9.30 बजे तक रहता हैं।
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