Friday, 4 December 2015

हजरत गरीब शाह दातार: हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक ‘ईश्वर के नेक प्रतिनिधि’

घनश्याम डी रामावत
नेक दिल इंसानों को नवाजने का ईश्वर का सचमुच अपना एक अलग ही अंदाज हैं। निश्चित रूप से खास नजर और खास मापदंड भी.. अपने नेक बंदों का चुनाव और उन्हें उचित समय पर अपनी असीम कृपा से नवाजना तो और भी अद्भुत। कई मर्तबा वह अपने इन नेक नियत बंदों पर ऐसी मेहरबानी भी कर देते हैं अर्थात उन्हें ऐसी शक्तियां प्रदान कर देते हैं कि उनमें किसी के भी जीवन में परिवर्तन/खुशहाली ला पाने का माद्दा समाहित हो जाता हैं। ईश्वर के ऐसे ही बंदे/करिश्माई व्यक्तित्व थे हजरत गरीब शाह दातार।

पश्चिमी राजस्थान के जालोर जिला अंतर्गत आहोर तहसील की भाद्राजून पं.स. के चारों और फैले ऊंचे पहाड़ी
 क्षेत्र के बीच स्थित हैं किशनगढ़ गांव। कुल एक हजार घरों वाले इस गांव में मात्र दस मकान मुसलमानों के हैं, अन्य कुम्हार, चौधरी तथा राजपुरोहित जाति के लोग यहां निवास करते हैं। सैंकड़ों वर्ष पहले हजरत गरीब शाह दातार के रूप में काले घने लम्बे बाल, दुबला-पतला बदन, मेले फटे कपड़े और बढ़ी खिचड़ी दाढ़ी वाली एक करिश्माई शख्सियत ने गांव की सरजमी पर अपने पाक कदम रखे। यह वो वक्त था जब गांव के लोग प्राकृतिक आपदाओं, अकाल की विभीषिका तथा खेती के अभाव में विपदापूर्ण संघर्ष के दिन व्यतीत कर रहे थे। लोग कभी नीले आसमान को देखते तो कभी अपने गांव की बंजर जमीन को। सचमुच गांव के लोगों की हालत बिल्कुल परकटे परिन्दें के माफिक थी जिनके लिए शायद अपने दर्द को बयां करना सम्भव ही नहीं। और अपना दुखड़ा रोए भी तो किसके सामने? हजरत गरीब शाह ने गांव के लोगों के चेहरो को देखा तो वे अत्यधिक भावुक हो उठे। गरीब शाह अपना ठिकाना किशनगढ़ को बनाना सुनिश्चित कर चुके थे।

रहमो-करम का नूर सभी पर बराबरी से बरसा
हजरत गरीब शाह दातार ने एक-एक करके लोगों की समस्याओं का अपने तरीके से निदान करना शुरू किया तो जल्दी ही सभी को उनके करिश्माई/चमत्कारी व्यक्तित्व का भान हो गया। गांव के लोग अब हजरत गरीब शाह के अनवरत चमत्कारों के किस्से एक-दूसरे को सुनाने लगे और बल्कि ईश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर उनकी पूजा भी करने लगे। सही मायने में हजरत गरीब शाह दातार के पास जो भी पहुंचा वह बस उन्हीं का होकर रह गया। उनके पास और उनकी चौखट पर दीन-ओ-धर्म, अमीर-गरीब अथवा बड़े-छोटे के रूप में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था। सभी पर उनके रहमो-करम का नूर बराबरी से बरसा। तब से लेकर आज तक एक दशक से ज्यादा का समय हो गया किंतु राजा हो या रंग, हिंदू हो या मुसलमान.. जिसने भी उनकी चौखट चूमी वह खाली नहीं जाता हैं। गरीब शाह दातार के नाम से आम लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले इस करिश्माई फकीर ने केवल मात्र किशनगढ़ गांव में ही नही अपितु जालोर जिले और कमोबेश जोधपुर संभाग में सर्वधर्म सद्भाव की एक ऐसी अनूठी मिसाल पेश की जिसका कोई सानी नहीं हैं। पूरी उम्र हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने वाले इस लाजवाब चमत्कारिक फकीर की स्मृति को यादगार बनाने के उद्देश्य से किशनगढ़ व आसपास के क्षेत्र के श्रद्धालुजन बाबा(हजरत गरीब शाह दातार) की चौखट पर प्रतिवर्ष जलसा(मेला) का आयोजन करते हैं।

सालाना उर्स में पहुंचते हैं छत्तीस कौम के लोग
हजरत गरीब शाह दातार की दरगाह पर सालाना रूप से मनाये जाने वाले मेले को लेकर जायरीनों में जोरदार उत्साह देखने को मिलता हैं। उर्स में शामिल होने के लिए राजस्थान के विभिन्न जिलों से बड़ी तादाद में जायरीन किशनगढ़ पहुंचते हैं और दरगाह में अपनी हाजिरी देते हैं। यहां पहुंचने वाले जायरीनों में मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य मजहबों के लोग भी होते हैं। दीपावली के ठीक पखवाड़े बाद किशनगढ़ गांव में हर वर्ष गरीब शाह दातार क उर्स भरा जाता हैं। उर्स के दिनों में यहां के महफिल खाने में जाने माने कव्वाल अपनी कव्वालियां पेश करते हैं। इस मौके चादर चढ़ाने वालो की संख्या भी अधिक रहती हैं। अमन-चैन व खुशहाली की कामना से हजारों लोगों द्वारा सजदे में झुकाए जाने वालो मस्तकों को देखकर गरीब शाह की चौखट की तस्वीर उस वक्त देखते ही बनती हैं। सचमुच! दरगाह व इसके आसपास का पूरा इलाका धूप व अगरबत्ती की सुगंध से महक उठता हैं। यह इस पवित्र धाम/दरगाह/चौखट का ही कमाल हैं कि जो भी यहां आता हैं, अपने दु:खों/तकलीफों को भूल जाता हैं। यहां आने वाला हर इंसान जाते वक्त अपने साथ झोली में खुशियां भरकर ले जाता हैं।

बचपन से ही रूहानी दुनियां से जुड़ाव
ऐसी मान्यता हैं कि हजरत गरीब शाह दातार का मन बचपन से ही सांसारिक चीजों में नहीं लगता था और वह परिवार से हटकर अपनी एक अलग ही रूहानी दुनियां में खोये रहते थे। वह केवल मात्र जगत की सेवा को ही अपने जीवन का एक मात्र धर्म मानते थे। सैंकड़ों वर्ष पहले जब वह किशनगढ़ गांव पहुंचे तो उनका मन बस यहीं पर रम गया और वे यहीं के होकर रह गए। पूरे जीवन वे अपने भक्तों का दु:ख-दर्द दूर करने तथा उनकी झोली खुंशियों से भरने की ही दुआ मांगते रहे। उनके पास छत्तीस कौम के लोग अपनी परेशानियां लेकर पहुंचते थे। जो भी आता, वापस अपने साथ सुकून व खुंशियां लेकर लौटता। यहीं कारण हैं उनके उर्स में केवल मात्र मुसलमान श्रद्धालुओं की ही भीड़ नहीं रहती अन्य जाति-वर्गों की भी बड़ी संख्या रहती हैं। 

धर्म के नाम पर जिस तरह मौजूदा दौर में कट्टरपंथी ताकतें इंसानियत को बांटने में जुटी हैं। मंदिर, मस्जिद, चर्च व गुरूद्वारे ईश्वर की इबादत वाले पवित्र स्थान की जगह सियासी दांव-पेंच के अखाड़ों में तब्दील हो रहे हैं, यह स्थान वाकई सुकून का अहसास कराता हैं जहां सभी धर्म व मजहबों के लोग एक साथ सर्वे: भवंतु सुखिन:, सर्वे: सन्तु निरामया.. की भावना के साथ अमन, चैन, प्रेम, सद्भाव व खुशहाली के लिए सजदा व दुआ करते हैं। विभिन्न धर्मों के बीच की दूरियों को पाटने के साथ ही तमाम धार्मिक पाबंदियों का दरकिनार करते हुए इंसानियत का भाव जागृत करने वाले इस पावन/पवित्र धाम/स्थल/दरगाह को दिल से नमन।

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