Friday, 10 November 2017

भीम भडक़ : पाण्डवों की तपोभूमि, 150 फुट लंबी गुफा

घनश्याम डी रामावत
सूर्यनगरी जोधपुर महानगर से महज 8 किलोमीटर दूर कायलाना झील की ऊपरी पहाडिय़ों में स्थित महाभारत कालीन प्राचीन आध्यात्मिक विरासत भीम भडक़ ऐसा शांत व दर्शनीय स्थल हैं, जिसे दूर से देखने पर ऐसा लगता हैं, मानो एक विशाल शिलाखंड अधर झूल रहा हो। यह धार्मिक स्थल एक सैन्य रडार क्षेत्र से सटा हुआ हैं अर्थात यहां तक पहुंचने के लिए सेना की सुरक्षा जांच से गुजरना व अनुमति आवश्यक हैं। 
ऐसी लोक मान्यता हैं कि द्यूत क्रीड़ा में हार जाने के बाद 12 वर्ष के वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञातवास काल में पांडव भीम भडक़ आए और इसी स्थान पर गुफा में ठहरे थे। भीम भडक़ में 150 फुट लंबी गुफा हैं, ऐसी मान्यता हैं कि इसका ऊपरी सिरा ढक़ने के लिए भीम ने एक विशाल चट्टान को ऊपर रख दिया था। हजारों वर्षो से यह चट्टान आज भी उसी स्थिति में होने से हर आम के लिए यह कौतूहल का विषय हैं। विशाल गुफा में भीमसेन ने आद्यशक्ति की प्रतिमा स्थापित कर आराधना की थी। गुफा और प्रतिमा आज भी उसी स्थिति में हैं। भीम भडक़ के मुख्य महंत भास्करानंद के अनुसार जन-जन की आस्था के प्रतीक भीम भडक़ धार्मिक स्थल पर सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के बाद जाना प्रतिबंधित हैं। ऐसी धारणा हैं कि तत्कालीन महाराजा मानसिंह ने गुरू आयस देवनाथ की हत्या होने के बाद भीम भडक़ में रहकर एकांतवास में तपस्या की थी। हंस निर्वाण सम्प्रदाय के स्वरूपानंद ने पांच दशक तक यहां रहकर तपस्या की। इनके द्वारा वर्ष 1991 में गोशाला की स्थापना की गई जो आज भी मौजूद हैं। भीम भडक़ आश्रम में स्वरूपानंद सहित हीरानाथ, श्रीनाथ व लीलानाथ की समाधियां मौजूद हैं। 

महात्मा स्वरूपानंद स्मृति संस्थान की ओर से मंदिर में 3200 किलोग्राम काले ग्रेनाइट का विशाल शिवलिंग व नंदी भी स्थापित हैं, जहां नियमित पूजन होता हैं। शिवलिंग भीमकाय चट्टान के नीचे स्थापित हैं। यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं का तांता भी प्रतिदिन लगा रहता हैं। यहीं कारण हैं कि श्रद्धालुओं में इस धार्मिक स्थल की पहचान भीम भडक़ महादेव मंदिर के रूप में भी हैं। जोधपुर के लोगों के लिए प्रमुख आस्था स्थलों मेें से एक भीम भडक़ में गुरू पूर्णिमा को भरने वाला मेला, श्रद्धालुओं पर लागू नवीनतम नियमों की वजह से अब बंद हो चुका हैं। आस्था स्थल पर पहुंचने के लिए मार्ग में पडऩे वाली सेना की सुरक्षा चौकी पर परिचय पत्र दिखाए जाने, विधिवत सुरक्षा जांच, रजिस्टर में ठोस खानापूर्ति व अनुमति के बाद ही पहुंचा जा सकता हैं।

सूर्योदय और सूर्यास्त का दुर्लभ नजारा
भीम भडक़ की 300 फीट लंबी और 70 फीट चौड़ी विशाल चट्टान से जोधपुर में सूर्योदय व सूर्यास्त का अनूठा नजारा दिखता हैं, जो शहर के अन्यत्र किसी भी हिस्से से संभव नहीं हैं। भीम भडक़ की व्यवस्था देखने वाले स्वरूपानंद स्मृति संस्थान के अनुसार संस्थान के प्रयासों से राजस्थान हाईकोर्ट ने 31 मई 2013 को आदेश कर सूर्योदय से सूर्यास्त तक दर्शनार्थियों को भीम भडक़ में दर्शन की अनुमति दी हैं। धार्मिक स्थल पर पहुंचने के लिए वर्तमान में सेना चौकी की जांच से श्रद्धालुओं को गुजरना पड़ता हैं, ऐसे में धार्मिक स्थल तक पहुंचने के लिए भविष्य में अलग से मार्ग बन जाता हैं तो काफी सुविधा हो जाएगी तथा पर्यटन की दृष्टि से भी भीम भडक़ के लिए नए द्वार खुल सकते हैं।

धार्मिक स्थल पर दुर्लभ शैल चित्र विद्यमान
महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र के अनुसार भीम भडक़ में आठ हजार वर्ष पुराने शैलश्रय एवं शैल चित्र खोज गए हैं। यहां की पहाडिय़ों ग्रेनाइट पत्थर से बनी हैं। भीम भडक़ से उत्तर की ओर स्थित एक शैलाश्रय में करीब साढें पांच फुट की ऊंचाई पर लाल रंग की आकृति दिखाई देती हैं। शैलाश्रय के निकट ही चर्ट और अमेट से निर्मित ब्लंटेड ब्लेड एवं बाणों के नुकीले अग्र भाग प्राप्त हुए हैं। जोधपुर और इसके आसपास के क्षेत्र में मानव सभ्यता के अब तक प्राप्त प्राचीनतम प्रमाणों में भीम भडक़ के शैल चित्र एवं प्रस्तर उपकरणों को रखा जा सकता हैं।

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