घनश्याम डी रामावत
मारवाड़ का दीवान था फरासात खां
राजस्थान के जोधपुर स्थित चांदपोल विद्याशाला मार्ग पर ‘पीरा की मजार’ मुगल-राजपूत स्थापत्य कला का लाजवाब मिश्रण हैं। मारवाड़ के दो बार दीवान मेड़ता के हाकिम और मुसाहिब रहे खोजा फरासात खां की याद में मकबरे का निर्माण महाराजा जसवंतसिंह(1638-1678) के कार्यकाल में करवाया गया। स्थापत्य की दृष्टि से यह इमारत मुगल राजपूत स्थापत्य कला का सम्मिश्रण हैं। इस स्मारक निर्माण में जोधपुर के लाल घाटू पत्थर प्रयुक्त किए गए हैं। छोटे से आकार की बनी यह मजार जोधपुर में अपनी तरह की एक अलग ही होने के कारण विशेष आकर्षण रखती हैं। मान्यता हैं कि जहां मकबरा बना हैं वहां खोजा फरासात ने जीवित रहते एक सुंदर बाग व बावड़ी का निर्माण करवाया था।
मारवाड़ का दीवान था फरासात खां
महाराजा जसवंतसिंह(1638-1678) के कार्यकाल में सबसे विश्वासपात्र और विशिष्ट अधिकारी फरासात ने मारवाड़ के कई परगनों की हाकमी करने के अलावा मारवाड़ के दीवान, मेड़ता का हाकिम तथा मुसाहिब का पद भी संभाला था। किरयावर की बही से मालूम होता हैं कि विशिष्ट घरेलू अवसरों पर जो दस्तूर बड़े से बड़े उमरावों व मुत्सदियों का होता था वह खोजा फरासात को भी दिया गया। जोधपुर की ख्यात के अनुसार खोजा फरासात 1645 से 1648 तक और 1650 से 1658 तक जोधपुर के दीवान रहे। ख्यात से ज्ञात होता हैं कि उनकी मृत्यु के बाद 1690 में उनके घर से खूब दौलत मिली थी जिसे नवाब सुजाइता खां के नाईव काजमबेग ने ले ली थी। फरासात ने जीवन काल में मेहरानगढ़ के नीचे एक नाडी बनवाई जिसे फरासात सागर कहा जाता हैं जो अब गोल नाडी कहलाती हैं। फरासात महाराज कुमार पृथ्वीसिंह के अभिभावक भी रह चुके थे। विक्रम संवत् 1746 ई. में चैत्र सुदी दूज रविवार तदनुसार 2 मार्च 1690 में फरासात की मृत्यु के बाद चांदपोल क्षेत्र के बाग में दफनाया गया तथा उनकी स्मृति में एक मकबरा बनवाया गया। ऐसा जोधपुर राज्य की ख्यात से ज्ञात होता हैं।
विभिन्न धर्मो के लोग आते हैं मजार पर
चांदपोल क्षेत्र में विद्याशाला के सामने की ओर रिहायसी इलाके में यह मजार स्थित हैं। क्षेत्र के प्रतिष्ठित नागरिक भीमसिंह सांखला के अनुसार मजार पर श्रद्धालुओं की प्रत्येक बुधवार व गुरूवार को जबरदस्त भीड़ रहती हैं। अपनी मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु यहां चादर व प्रसाद चढ़ाते हैं। मजार के प्रति विभिन्न धर्मों के लोगों की आस्था हैं। मजार से संबंधित क्षेत्र के लोग अपने परिवारों में होने वाली शादियों के दौरान वर-वधुओं को अन्य धार्मिक स्थलों की तरह ही यहां भी धोक लगवाते हैं। रोचक बात यह कि मजार पर आज तक कोई ताला नहीं लगा हैं। हां! मौजूदा दौर को गंभीरता से लेते हुए सतर्कतावश अब यहां सीसी टीवी कैमरे अवश्य लगवा दिए गए हैं। मजार की देखरेख व सफाई क्षेत्रवासी ही करते हैं। इस मजार की पहचान ‘पहलवान साहब की दरगाह’ के रूप में भी हैं।
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