Sunday, 12 November 2017

जन-जन के आराध्य : लोक देवता गोगाजी महाराज

घनश्याम डी रामावत
भारत देश अपनी रंग बिरंगी मनभावन संस्कृति के साथ विशेष रूप से अपनी धार्मिक विशिष्टताओं के लिए दुनियां भर में सम्मानजनक स्थान रखता हैं। जन-जन के आराध्य लोक देवता ‘गोगाजी‘ महाराज संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध हैं। चौहान वंश में ‘धंधरान धंगजी’ नामक शासक हुए जिन्होंने धांधू (चुरू/राजस्थान) नगर बसाया था। 
राणा धंग के दो रानियां थी। पहली रानी से दो पुत्र हर्ष और हरकरण तथा एक पुत्री जीण हुए। सीकर से 10 किमी दूर दक्षिण पूर्व में हर्ष एवं जीण की पहाडिय़ां इनकी तपोभूमि रही हैं। यह स्थान जीणमाता के रूप में पूजनीय हैं। दूसरी रानी से तीन पुत्र हुए कन्ह, चन्द और इन्द। धंग की मृत्यु के पश्चात् कन्ह और कन्ह के बाद उसका पुत्र अमरा उत्तराधिकारी हुआ। अमरा के पुत्र झेवर (जेवर) हुआ। अमरा ने अपने युवा पुत्र की सहायता से ‘ददरेवा’ को अपनी नई राजधानी बनाया। महाकवि बांकीदास ने गोगाजी को झेवर का पुत्र बताया हैं। डॉ. तेस्सीतोरी ने भी जोधपुर में एक प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथ को देखकर उदाहरण दिया हैं कि चवांण जेवर तिणारी राणा खेताब थी गढ ददरवै राजधानी थी।

गोरखनाथ जी के आशीर्वाद से गोगाजी का जन्म
गोगाजी की माता का नाम बाछल था। बाछल के कई वर्षों तक संतान नहीं हुई। उन्हें गुरू गोरखनाथ ने आशीर्वाद दिया और फलस्वरूप बाछल की कोख से गोगाजी का जन्म हुआ। एक बार गोगाजी पालने में झूल रहे थे तब एक सर्प उन पर फन फैला कर बैठ गया। माँ व पिता ने जब उसे दूर करने का प्रयास किया तो गोगाजी ने कहा कि यह तो मेरा साथी है। इसे मेरे साथ खेलने दो। झेवर की मृत्यु के पश्चात् गोगाजी वहां के शासक हुए। गोगाजी के समय राज्य की सम्पूर्ण जनता सुखी थी जिससे इनके जीवनकाल में ही उनकी यशगाथा फैल गयी लोक मान्यता है कि पाबूजी राठौड़ की भतीजी केलम का विवाह गोगाजी के साथ हुआ था। 

गोगाजी के शासक बनने पर धंध के वंशजों में गृह युद्ध हुआ। गोगाजी के मौसेरे भाई अर्जन सर्जन ‘ददरेवा’ प्राप्त करने के लिए गोगाजी से युद्ध करने आ पहुंचे। अर्जन सर्जन सगे भाई थे और इन्हें ‘जोड़ा’ कहा जाता हैं। इन्हीं के नाम पर जोड़ी गांव (चुरू) आबाद हुआ। ददरेवा से उत्तर की ओर खुड़ी नामक गाँव के पास एक ‘जोड’ (तालाब के पास छोड़ी हुई भूमि) पर गोगाजी और अर्जन-सर्जन के बीच युद्ध हुआ और वहीं ये वीर गति को प्राप्त हुए। इस स्थान पर पत्थर की दो मूर्तियां प्रमाण स्वरूप आज भी विद्यमान हैं और भोमिया के रूप में इनकी पूजा होती हैं। उस वक्त के समाज में सम्पूर्ण भारत की राजनैतिक दशा शोचनीय थी। लुटेरे महमूद गजनवी के आक्रमण बार बार हो रहे थे। 

‘गोगामेड़ी’ नामक स्थान पर गजनवी से युद्ध हुआ
1025 ई. में महमूद सोमनाथ का मंदिर लूट कर वर्तमान राजस्थान के उत्तरी भाग से गुजर रहा था गोगाजी जैसा वीर पुरुष यह कैसे सहन कर सकता था? जन धन एवं असहाय जनता की रक्षा के लिए गोगाजी प्राणापण से तैयार रहते थे। गोगाजी ने अपने पुत्र पौत्रों सहित आक्रमणकारी का पीछा करते हुए उसे युद्ध के लिए ललकारा। वर्तमान ‘गोगामेड़ी’ नामक स्थान पर महमूद गजनवी एवं गोगाजी की सेना के बीच भयंकर युद्ध हुआ। विदेशी आक्रांता को नकलची इतिहासकारों ने साहसी सैनिक तक की उपमा दे दी हैं। अपने चंद साथियों और पुत्र पौत्रों के साथ गोगाजी ने उस विदेशी आक्रांता को धूल चटा दी। कुछ समय तक तो महमूद भी निर्णय नहीं कर सका कि यह कोई सांसारिक योद्धा हैं या यमराज ।

कर्नल टॉड ने लिखा हैं कि ‘गोगा जी’ ने महमूद का आक्रमण रोकने को सतलज के किनारे अपने सौंतालीस लडक़ों समेत जीवन को न्यौछावर किया था। गोगाजी के वीरगति प्राप्त हो जाने पर उनके भाई बैरसी का पुत्र उदयराज ददरेवा का राजा बना। उदयराज के बाद जसराज, केसोराई, विजयराज, पदमसी, पृथ्वीराज, लालचन्द, अजयचन्द, गोपाल, जैतसी, पुनपाल, रूपरावन, तिहुपाल और मोटेराव ‘ददरेवा’ के राणा बने। मोटेराव के समय ददरेवा पर फिरोज तुगलक का आक्रमण हुआ तथा मोटेराव के तीन पुत्रों को मुसलमान बना दिया गया परन्तु चौथा पुत्र जगमाल हिन्दू रहा। बड़ा पुत्र करमचन्द था जिसका नाम कयाम खां रखा गया। करमचन्द एवं उसके भाइयों के वंशज कयामखानी कहलाए। 

गोगाजी महाराज को पीर कहा जाने लगा
ददरेवा का शासक जगमाल बना तथा कयाम खां ने शेखावाटी पर अपना अधिकार कर लिया। इन्हीं के वंशजों द्वारा गोगाजी को पीर कहा जाने लगा। यह नाम तत्कालीन समय में लोकप्रिय हुआ जो वर्तमान में जाहरपीर (जहांपीर) के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। गोगामेडी उत्तर रेलवे की हनुमानगढ सादुलपुर लाईन पर मुख्य स्टेशन तथा हनुमानगढ जिले की पंचायत समिति नोहर का प्रमुख गांव हैं। गोगा नवमी का त्यौहार मारवाड़ के प्रत्येक गांव में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी व नवमी को गोगामेड़ी में बड़ा भारी मेला भरता हैं, जहां भारी तादाद में श्रद्धालु दर्शनार्थ पहुंचते हैं।

मारवाड़ में एक कहावत हैं ‘गांव-गांव गोगो अर गांव-गांव खेजड़ी’। गोगाजी को नाग देवता के रूप में पूजते हैं तो कहीं केसरिया कंवरजी के रूप में, हर गांव में एक थान (चबूतरा) मिल जायेगा जिस पर मूर्ति स्वरूप एक पत्थर पर सर्प की आकृति अंकित होती हैं। यही गोगाजी का थान माना जाता हैं। यहां नारियल, चूरमा, कच्चा दूध, खीर का प्रसाद बोला जाता हैं। बचाव के लिए घर के चारों ओर कच्चे दूध की ‘कार निकाल दी जाती हैं।जनमानस में ऐसा विश्वास हैं कि ऐसा करने पर घर में सर्प प्रवेश नहीं करता। सर्प को केसरिया कंवरजी की सौगन्ध भी दी जाती हैं। ‘हलोतिये’ के दिन नौ गांठों वाली राखड़ी ‘हाळी’ और ‘हळ दोनों के बांधी जाती हैं जिसे शुभकारी माना जाता हैं।

1 comment:

  1. बहुत ही उपयोगी जानकारी पर यहाँ ये स्पष्ठ होना चाहिए कि गोगाजी व केसरिया कुंवर जी दोनों अलग अलग लोकदेवता है ।

    ReplyDelete