Wednesday, 8 November 2017

गुजरात चुनाव : राजस्थान की कांग्रेस राजनीति पर पड़ेगा असर

घनश्याम डी रामावत
अगले महिने की 9 व 18 दिसम्बर को गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर मतदान होना हैं। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस बार 150 से ज्यादा सीटें जिताकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तोहफा देने की बात कह रहे हैं। सूत्रों की मानें तो राज्यसभा में अहमद पटेल की जीत के बाद अमित शाह ने मिशन-150 को निजी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया हैं। लिहाजा भाजपा का गुजरात प्रदेश संगठन चुनाव को बेहद गंभीरता से लेते हुए जीत की जुगत में जी-जान से जुट गया हैं। इस बीच, दबे स्वर में ही सही लेकिन कुछ राजनैतिक हलकों में इस बार भाजपा के हाथ से गुजरात फिसलने की भी संभावनाएं जताई जा रही हैं। बहरहाल, गुजरात में ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन यह तय माना जा रहा हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव का असर राजस्थान की कांग्रेस राजनीति पर अवश्य पड़ेगा।

असल में गुजरात विधानसभा चुनाव से कई राजनैतिक दिग्गजों का भविष्य जुड़ा हुआ हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव अशोक गहलोत इसी फेहरिस्त में शामिल एक प्रमुख नाम हैं। कांग्रेस आलाकमान ने गुजरात में अपने प्रभारी गुरुदास कामत से इस्तीफा लेकर यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी अशोक गहलोत को सौंपी हैं। पार्टी के इस फैसले को राजनैतिक जानकार दो अलग-अलग नजरिए से देख रहे हैं। पिछले कई महीनों से भाजपा का सूर्य मध्यान्ह में हैं। भाजपा उन राज्यों में भी सरकार बनाने में सफल रही हैं जहां अब तक ऐसा सोचना भी उसके लिए दूर की कौड़ी था। ऐसे में गुजरात जैसे राज्य में सेंध लगा पाना कांग्रेस के लिए बहुत मुश्किल माना जा रहा हैं जहां भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीन चुनाव जीत चुकी हैं और पिछले 15 सालों से सत्ता पर काबिज हैं। जानकारों का एक वर्ग कहता हैं कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को गुजरात की जिम्मेदारी सौंपकर पार्टी ने उन्हें डूबते जहाज पर बिठा दिया हैं।

वहीं इस बारे में दूसरा नजरिया यह भी हैं कि कांग्रेस हाईकमान को राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत की बाजीगरी पर अब भी विश्वास हैं। जानकार कहते हैं कि गुजरात में भाजपा को पटेल आंदोलन और उना कांड के अलावा पहले नोटबंदी और फिर जीएसटी के बाद छोटे व्यापारियों में नाराजगी जैसी घटनाओं का खामियाजा भुगतना पड़ सकता हैं। उनके मुताबिक गुजरात में कांग्रेस भले ही चुनाव न जीत पाए लेकिन यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह राज्य में पार्टी औसत से ऊपर प्रदर्शन करने में भी सफल रही तो संगठन में अशोक गहलोत का कद बढऩा लगभग तय हैं। राज्यसभा सीट पर अहमद पटेल की जीत को इसकी बानगी के तौर पर देखा जा रहा हैं।

राजस्थान से जुड़े हैं गुजरात चुनाव के तार
गुजरात चुनावों के ठीक बाद अगले साल के आखिर तक राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। राजस्थान की राजनीति पर नजर रखने वाले लोग बताते हैं कि अन्य राज्यों की तरह यहां भी कांग्रेस भाजपा के खिलाफ एकजुट होने के बजाय अंतर्कलह में उलझी हैं। स्वीकर भले ही कोई नहीं रहा किन्तु यह सत्य हैं कि पिछले तीन वर्षो से राजस्थान कांग्रेस दो प्रमुख धड़ों में बंटी हुई हैं जिनमें से एक की अगुवाई पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट कर रहे हैं और दूसरे की अशोक गहलोत स्वयं। सचिन पायलट युवा चेहरे और ऊर्जावान व्यक्तित्व के साथ प्रदेश में कांग्रेस के पारंपरिक वोटर माने जाने वाले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं अशोक गहलोत राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री रहने के साथ प्रदेश संगठन के पुराने दिग्गज हैं जिन्होंने कांग्रेस में रहकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर पार्टी के मौजूदा उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक तीन पीढिय़ों का दौर देखा हैं। 

गुजरात की हालिया राजनैतिक घटनाओं पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश चुनावों में दोनों ही नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गयी थी। जहां सचिन पायलट चुनाव प्रचार में लगे थे वहीं अशोक गहलोत के पास सीट बंटवारे की रणनीति बनाने का काम था। लेकिन टिकट स्क्रीनिंग के तुरंत बाद गहलोत पार्टी प्रचार के लिए पंजाब चले गए। जहां उत्तरप्रदेश में भाजपा की आंधी के आगे कांग्रेस-सपा गठबंधन ताश के महल की तरह ढह गया वहीं पंजाब में कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही। इस जीत को राजनैतिक जानकारों ने पार्टी के मनोबल के लिए बहुत अहम माना। हालांकि कांग्रेस की पंजाब फतह के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण थे। लेकिन सिर्फ राजस्थान के नजरिए से देखें तो इस जीत के बाद अशोक गहलोत का कद सचिन पायलट से ऊपर माना गया। एक सर्वे के मुताबिक राजस्थान में करीब 65 से 70 प्रतिशत कांग्रेस कार्यकर्ता अशोक गहलोत को ही अपना मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं। पिछले महिने स्वयं अशोक गहलोत ने भी इस बात का इशारा देते हुए कहा था कि चाहे उन्हें कहीं की भी जिम्मेदारी सौंपी जाए लेकिन राजस्थान उनका अपना प्रदेश हैं ऐसे में उनका पूरा ध्यान लगातार राजस्थान पर बना हुआ हैं।

सचिन की तुलना में गहलोत परिपक्व व अनुभवी
अशोक गहलोत को नजदीक से जानने वाले लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि वे एक मजे हुए गेम चेंजर हैं जो आखिर समय में बाजी अपने पक्ष में कर सकते हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व अपनी उन नीतियों में बदलाव करने का मन बना चुका हैं जिनके मुताबिक पार्टी कुछ राज्यों में नए चेहरों के सहारे अपनी नैया पार लगाने की सोच रही थी। बताया जा रहा हैं कि अब पार्टी का प्रमुख लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा चुनाव जीतना रह गया हैं, फिर भले ही उसके लिए कोई पुराना नाम ही आगे क्यों न बढ़ाना पड़े। कांग्रेस के कई नेताओं की माने तो सचिन पायलट नि:संदेह प्रदेश में पार्टी को मजबूती देने के साथ वोटर को खींचने में सफल रहेंगे लेकिन अभी मुख्यमंत्री पद के लिए उन्हें थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता हैं। कड़वा सच यह भी हैं कि अशोक गहलोत हमेशा पार्टी प्रदेशाध्यक्षों पर हावी रहे हैं। चाहे वे डॉ. चंद्रभान हों या उनके प्रबल विरोधी सी पी जोशी, गेंद हमेशा गहलोत के ही पाले में रही हैं। ऐसा संभवत: गहलोत के राजनीतिक कद की वजह से हैं जो उन्होंने राजनीति में वर्षो की तपस्या व मेहनत से बनाया हैं।

गुजरात में अहमद पटेल की जीत से कांग्रेस का आम कार्यकर्ता जबरदस्त आत्मविश्वास से लबरेज हैं। ऐसे में यदि गुजरात चुनाव में कांग्रेस अपेक्षित प्रदर्शन के आस-पास पहुंचने में सफल रहती हैं तो राजस्थान में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस एक बार फिर अशोक गहलोत के ही नेतृत्व में मैदान में उतर सकती हैं।  लेकिन अशोक गहलोत की डगर इतनी आसान भी नहीं। जानकार कहते हैं कि एक छोटे अंतराल में सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस का बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं और जनमानस में पैठ बनाने में सफल रहे हैं। कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद पर अशोक गहलोत समर्थकों के दावे के विरोध में पायलट को चाहने वाले कार्यकर्ता इस बात का हवाला देते हैं कि गहलोत सरकार की नाकामियां ही थीं, जो उनके कार्यकाल के तुरंत बाद हुए (2013 में) विधानसभा चुनावों में पार्टी को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। इन चुनावों में पार्टी पहली बार 199 में से महज 21 सीटों पर सिमट गयी थी। इसके अलावा 2003 विधानसभा चुनावों में भी गहलोत की ही सरपरस्ती में मिली इसी तरह की एक और हार का जिक्र भी किया जाता रहा हैं।

सचिन पायलट को अपना नेता मानने वाले कार्यकर्ताओं का कहना हैं पायलट ने पार्टी में नयी जान फूंकी और फिर से खड़ा किया। उसी का नतीजा था कि पिछले साल हुए निकाय उपचुनावों में कांग्रेस भाजपा पर बढ़त पाने में सफल रही। ऐसे में राजनीतिकारों का मानन हैं कि यदि गुजरात में कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक रहे या फिर बिल्कुल बुरा, तो दोनों ही स्थितियों में आलाकमान को यह निर्णय लेने में आसानी रहेगी कि राजस्थान के विधानसभा चुनाव में किसे आगे किया जाए. लेकिन यदि ऐसा न हो पाया तो निश्चित ही पार्टी का अंतर्द्वंद सुलझने की बजाय उलझने वाला हैं।

राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जा सकते हैं गहलोत
बहरहाल, राहुल गांधी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की अब महज रस्म अदायगी बची हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणाम बाद राहुल गांधी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय हैं। राहुल के साथ एआईसीसी की नई टीम का भी गठन होगा। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस इस बार पांच राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के फार्मूले को अपना सकती है, जिसमें राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाएं जोरों पर हैं। अगर ऐसा होता हैं तो पार्टी में अशोक गहलोत का कद औऱ बढ जाएगा। गुजरात चुनाव प्रभारी के तौर पर काम करते हुए गहलोत के राहुल से अब रिश्ते पहले से कई अधिक मधुर व बेहतर हो गए हैं, जिसके चलते उन्हें यह नई जिम्मेदारी दी जा सकती हैं। अशोक गहलोत को उनके अनुभव और हमेशा पार्टी के हित में काम करने के चलते उन्हें इस पद के लिए योग्य माना जा रहा हैं। गहलोत के साथ गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल और पी चिदंबरम को भी उपाध्यक्ष बनाए जाने की संभावनाएं जताई जा रही हैं। अभी पार्टी में सिर्फ एक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष खुद राहुल गांधी ही हैं।

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