घनश्याम डी रामावत
जादू कला के सम्मान, समृद्धि व प्रोत्साहन के लिए लंबे समय से देशभर के जादू संगठनों द्वारा आवाज उठाई जाती रही हैं। इस बार होने जा रहे गुजरात चुनाव में जिस तरह से एक राजनीतिक दल द्वारा चुनाव प्रचार में जादूगरों की सहायता लेने का निश्चय किया गया हैं, ऐसा प्रतीत होने लगा हैं कि अब राजनीतिक दल जादू कला व जादूगरों की अहमियत को समझने लगे हैं। सूत्रों की माने तो एक प्रमुख राजनीतिक दल ने चुनाव प्रचार के लिए महाराष्ट्र के करीब 50 जादूगरों को प्रमुख जिम्मेदारी सौंपने का निश्चय किया हैं। इसके लिए बकायदा उनसे संपर्क साधा गया हैं एवं जल्दी ही उन्हें रणनीति के तहत संदर्भित चुनावी इलाकों में दायित्व सौंप दिया जाएगा। ऐसे में अब अन्य राजनीतिक दल भी चुनाव में कुछ ऐसा ही करे तो किसी को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। जानकारी के अनुसार राजनीतिक दल जादूगरों का सहयोग जादुई करतब दिखाकर सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए लेना चाह रहे हैं।
चुनाव प्रचार में जादूगरों की मौजूदगी सम्मान की बात
भारतीय जादू कला अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष गोपाल जादूगर राजनीतिक दलों की इस पहल को जादू कला व जादूगरों के सम्मान के तौर पर देखते हैं। उनका मानना हैं कि चुनाव प्रचार में भले ही जादूगरों का उपयोग भीड़ जुटाने के लिए किया जाएगा, किन्तु कड़वा सच यह भी हैं कि जादू सही मायने में स्वस्थ मनोरंजन का परिचायक हैं। ऐसे में राजनीतिक दल यदि ऐसा करते हैं तो वे जादू के माध्यम से आम जनता का स्वस्थ मनोरंजन करने हेतु सेतु का कार्य ही करेंगे।
गौरतलब हैं कि वर्ष 2003 व 2008 में राजस्थान के जोधपुर-सूरसागर क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लडऩे के दौरान अपनी सभाओं में गोपाल जादूगर ने जादू कला व जादूगरों के सम्मान की बात को प्रमुखता से उठाया था। ऐसे में गुजरात चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा जादूगरों का सहयोग लिए जाने की खबर ने यकीनन गोपाल जादूगर की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। उनका मानना हैं कि देश में शासन करने वाले राजनीतिक दल अब जादूगरों की अहमियत, जादू कला के महत्व व जनता में उनके प्रभाव को समझने लगे हैं। जादूगर गोपाल के अनुसार यह एक सुखद पहल हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
जादू कला को समृद्ध व प्रोत्साहित किए जाने की उम्मीद
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिता स्वर्गीय बाबू लक्ष्मणसिंह(अपने जमाने के मशहूर जादूगर) के शिष्य एवं कर्नाटक मैजिक फाउण्डेशन के सदस्य गोपाल जादूगर वर्ष 1982 से लगातार जादू कला को ललित कला का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं। इन्हें अब उम्मीद हैं आने वाले समय में केन्द्र में सत्तारूढ़ सरकार व प्रदेशों की सरकारें जादूगरों के कल्याण व विशेष रूप से जादू कला के प्रोत्साहन के लिए जरूरी कदम उठाएगी। जोधपुर में दो मर्तबा अखिल भारतीय जादू सम्मेलन आयोजित कर चुके गोपाल जादूगर का मानना हैं कि जादू कला प्राचीनतम कला हैं जिसको सदियों से सम्मान मिलता आया हैं। मौजूदा दौर आधुनिक तकनीक का हैं, बावजूद इसके जादू व जादूगरों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। स्वस्थ समाज के लिए स्वस्थ मनोरंजन प्राथमिक जरूरत हैं, और जादू कला इस दायित्व का बखूबी निर्वहन करती हैं। ऐसे में इसे और अधिक मजबूत व परिष्कृत करने की आवश्यकता हैं।
वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित फुटबॉल विश्व कप में अपने जादुई करतब दिखा चुके गोपाल जादूगर के अनुसार आज जबकि मनोरंजन का प्रमुख माध्यम समझी जाने वाली फिल्मों में फूहड़पन का बोलबाला बढ़ा हैं, जादू लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं। जादू एक ऐसा मनोरंंजनात्मक साधन हैं जिसे पूरा परिवार एक साथ बैठकर एन्जॉय कर सकता हैं।
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