Wednesday, 15 November 2017

राजस्थान : कर्नल जेम्स टॉड को 'नामकरण' का श्रेय

घनश्याम डी रामावत
आजादी से पूर्व राजस्थान के भू-भाग पर विभिन्न राजपूत राजकुलों का शासन होने के कारण राजपूताना कहलाता था। राजपुताना शब्द मुगलकाल से ही प्रचलित था। इतिहासवेत्ता डॉ. रघुवीरसिंह सीतामऊ ने ‘राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार उनका कृतित्व’ में लिखा हैं-भाग्य की यह अनोखी विडम्बना ही हैं कि जिस विधर्मी विजेता अकबर के प्रति राजस्थान में सतत विरोध उभरता रहा, ‘अजमेर सूबे’ का संगठन कर उसी ने इतिहास में प्रथम बार इस समूचे क्षेत्र को प्रादेशिक इकाई का स्वरूप दिया।’ मुगलकाल के बाद अंग्रेजों के शासनकाल में यहां के राजाओं के साथ संधियाँ होने के बाद अजमेर में राजपूताना एजेंसी की स्थापना हुई। इस तरह मेवाड़, मारवाड़, ढूंढाड़, शेखावाटी, हाड़ौती, मत्स्य, जांगल, बागड़, सपालदक्ष, शाकम्बरी आदि रियासतों के नाम वाला यह प्रदेश एक प्रादेशिक इकाई के रूप में राजपूताना के नाम से पहचाना जाने लगा। पर आजादी के बाद देश की सर्वोच्च जनतंत्रीय संसद ने इस प्रदेश को राजस्थान का नाम दिया।

इतिहासकारों के अनुसार श्रेय कर्नल टॉड को
सदियों से प्रचलित रहे राजपूताना शब्द की जगह इस प्रदेश के लिए ‘राजस्थान’ शब्द सबसे पहले किसने प्रयुक्त किया, सवाल उठना लाजमी हैं। इसके लिए इतिहास पर नजर डाली जाये तो आजादी के बाद के सभी इतिहासग्रंथों में राजस्थान प्रदेश के नामकरण का श्रेय कर्नल जेम्स टॉड को प्रदान किया हैं। इतिहासवेत्ता डॉ. रघुवीरसिंह सीतामऊ ‘राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार उनका कृतित्व’ में लिखते हैं-‘अनेकों समन्दर पार कर विदेशी गोरी सत्ता का अधिपत्य करवाने में प्रमुख अभिकर्ता, कर्नल जेम्स टॉड उस प्रदेश के वर्तमान नाम ‘राजस्थान’ का सुझाव ही नहीं दिया, परन्तु अपने अनुपम ग्रन्थ ‘टॉड राजस्थान’ के द्वारा उसकी कीर्ति-गाथा को जगत विख्यात भी किया। जिससे वह सदैव आशंकित रहा, अंतत: उसी दिल्ली ने भारतीय स्वाधीनता प्राप्ति के बाद इसी राजस्थान को राजनैतिक और शासकीय इकाई के रूप में पूर्णतया सुसंगठित ही नहीं किया अपितु उसे जनतंत्रीय स्वायत्तता भी प्रदान की।’ 

डॉ. रघुवीरसिंह के समान ही अनेक इतिहासकारों ने राजस्थान नामकरण का श्रेय कर्नल टॉड को दिया हैं। क्योंकि कर्नल टॉड द्वारा लिखे गये राजस्थान के इतिहास ‘एनल्स एण्ड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ जो विश्व में प्रसिद्ध हुआ, के शीर्षक में ही राजस्थान नामकरण के इतिहास से सम्बधित गूढ़ तथ्य समाहित हैं। इसी पुस्तक के प्रसिद्ध होने के बाद राजस्थान शब्द आम प्रचलन में आया। हालांकि ऐसा नहीं कि राजस्थान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम कर्नल टॉड ने ही किया था। इससे पहले भी यह शब्द राजस्थानी भाषा में स्थान विशेष को लेकर रायथान या रायथाण के रूप में प्रयोग होता आया हैं। कर्नल टॉड कृत ‘राजस्थान का पुरातन एवं इतिहास’ पुस्तक की प्रस्तावना में इतिहासकार जहूर खां मेहर लिखते हैं- ‘यदि हम गहराई से राजस्थान शब्द की विभिन्न कालों में यात्रा की खोज करें तो ज्ञात होगा कि राजस्थान शब्द का अबतक का ज्ञात प्राचीनतम उल्लेख वि.सं. 682 का हैं जो पिण्डवाड़ा से तीन कोस की दूरी पर स्थित बसंतगढ़ में खीमल माता के मंदिर के पास शिलालेख पर उत्कीर्ण हैं। 

बांकीदास ग्रंथावली में ‘राजस्थान’ शब्द वाले वाक्य 
मुंहणोत नैणसी, जोधपुर के घड़ोई गांव के निवासी तथा महाराजा अभयसिंह (1724-1749 ई.) के आश्रित कवि वीरभांण रतनू ने अपने ग्रन्थ राजरूपक में भी राजस्थान शब्द का उल्लेख किया हैं, इसी प्रकार जोधपुर के महाराजा भीमसिंह ने 1793 ई. में जयपुर के महाराजा जगतसिंह को जो पत्र लिखा था, जिसमें मराठों के विरुद्ध राजपूत राज्यों की एकता का आव्हान किया गया था, राजस्थान शब्द का उल्लेख हैं। अनेक अन्य टॉड पूर्व के साधनों में राजस्थान शब्द विद्धमान हैं।’ इसी पुस्तक की प्रस्तावना में इतिहासवेत्ता जहूर खां मेहर ने नैणसी, जखड़ा मुखड़ा भाटी री बात, दयालदास सिंढायच री ख्यात, कहवाट सरवहिये री वात, वीरभाण रतनू का राजरूपक, बांकीदास द्वारा लिखित बांकीदास ग्रंथावली में प्रयुक्त ‘राजस्थान’ शब्द वाले कई वाक्य लिखें हैं। जैसे-इतरै गोहिलां पिण आलोच कियौ-जो राठोड़ जोरावर सिरांणै आय राजस्थान मांडियौ(नैणसी)। विणजारै रै सदाई हुवै छै, इसौ वहानौ करि चालतौ चालतौ गिरनार री तळहटी पाबासर माहै राजथांन छै, तठै आय पडिय़ौ।(कहवाट सरवहिये री वात)। सूम मिळै अन सहर में, सहर उजाड़ समान। जो जेहो-वन में मिळै, बन ही राजसथांन(बांकीदास ग्रंथावली) एवं थिर ते राजस्थान महि इक छत्र मोम सांमथ। अेके आंण अखंड, खंडण मांण प्राण नव खंडं(वीरभाण रतनू/राजरूपक)।

14 जनवरी 1949 को राजस्थान नाम दिया गया
उपरोक्त तथ्यों को पढने के बाद जाहिर हैं टॉड की कृति ‘एनल्स एण्ड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान’ के पहले भी राजस्थानी साहित्य, शिलालेख व पत्र में राजस्थान शब्द का प्रयोग किया गया हैं। टॉड पूर्व राजस्थानी शब्द का प्रयोग दो अर्थों राजधानी अर्थात् राजा का स्थान के रूप में प्रयोग किया जाता रहा हैं। शायद टॉड ने उनमें से दूसरे अर्थ यानी राजा का स्थान को ग्रहण कर अपने ग्रन्थ का नामकरण किया हो। पर इतना तय है कि इस शब्द का प्रयोग सीमित था। टॉड द्वारा अपनी पुस्तक के शीर्षक में राजस्थान शब्द के प्रयोग और टॉड की इतिहास पुस्तक के विश्व प्रसिद्ध होने के बाद राजस्थान शब्द भी प्रसिद्धि में आया। आजादी के बाद जब देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में 14 जनवरी 1949 को आयोजित बैठक में 22 रियासतों के विलय के बाद बने राज्य राजपुताना के स्थान पर ‘राजस्थान’ नाम दिया गया, यह नाम बैंक ऑफ राजस्थान से लिया गया। आजादी के बाद देश की जनतांत्रिक सरकार ने इस प्रदेश के नामकरण के लिए इसी नाम ‘राजस्थान’ को स्वीकार किया।

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