घनश्याम डी रामावत
पिछले 32 वर्षों से वल्कल वस्त्र ही पहनावा
किसी ने बिल्कुल सही कहा हैं, आस्था व श्रद्धा का कोई निश्चित पैमाना नहीं होता। मन में जब किसी के प्रति अनुराग अथवा अनन्य भक्ति का भाव जागृत हो जाता हैं तो फि र वह उस इंसान के प्रति किसी भी हद तक समर्पित भाव से आगे बढ़ता चला जाता हैं। ऐसे ही इंसान हैं बाबा जय गुरूदेव के अनुयायी जोधपुर के 73 वर्षीय वृद्ध अशोक निम्बावत।
राजस्थान सरकार के रजिस्ट्री विभाग में नौकरी करने सहित उत्तरलाई के जिप्सम माईन्स फ र्टिलाइजर के अलावा मुम्बई में लम्बे समय तक कपड़ा व्यवसाय से जुड़ कर जीवन यापन करने वाले निम्बावत का वर्ष 1983 में दिल्ली के वोट क्लब पर अपने आराध्य बाबा जय गुरूदेव से पहली बार मिलना हुआ। वे अपने अन्य साथियों के साथ गुरूदेव का प्रवचन सुनने पहुंचे थे। पहली बार में ही गुरूदेव की कही बातों का उन पर ऐसा असर हुआ कि वे पूरी तरह बाबा जय गुरूदेव के सिद्धांतों व उनकी कही बातों के ही होकर रह गए। निम्बावत के लिए बाबा जय गुरूदेव की कही हर बात आज भी लोहे की लकीर हैं। 116 वर्ष की उम्र पाकर बाबा जय गुरूदेव भले ही यह संसार छोडक़र चले गए हो किन्तु उनके अनुयायी देश ही नहीं बल्कि विदेश तक में उनके सिद्धांतो पर चलते हुए उनकी याद को मौजूदा दौर में भी ताजा किए हुए हैं।
पिछले 32 वर्षों से वल्कल वस्त्र ही पहनावा
देश के करोड़ों लोगों को सत्य का रास्ता दिखाने वाले बाबा जय गुरूदेव पूरी उम्र गौ हत्या बंद करने, परिवार नियोजन बंद करने सहित मुक्त व्यापार के लिए संघर्ष करते रहे एवं ऐसा ही वे अपने भक्तों से प्रवचन के दौरान कहते रहे। बाबा जय गुरूदेव के अनुयायी अशोक निम्बावत के अुनसार देश की खुशहाली के लिए अपना पूरा जीवन लगा देने वाले बाबा जय गुरूदेव ने वर्ष 1983 में दिल्ली के वोट क्लब पर अपने भक्तों को पहली बार वल्कल वस्त्र धारण करने का आव्हान किया था। हिन्दू संस्कृति(रामायण) में वल्कल अर्थांत टाट के वस्त्र। इस्लाम की भाषा में सुन्नतें रसूल एवं बाइबल में इसे हेसियन क्लोथ(गनी क्लोथ) कहा गया हैं। बाबा द्वारा वल्कल वस्त्र को पवित्र वस्त्र बताते हुए इसे धारण करने के निर्देंश के बाद, पूरे तीस वर्ष हो गए हैं अशोक निम्बावत आज भी इन्हीं वस्त्रों को धारण करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
वल्कल वस्त्रों को धारण करने में आने वाली कठिनाईयों के बारे में बात करते हुए निम्बावत ने बताया कि शुरू-शुरू में जरूर उन्हें तकलीफे आई, मसलन.. कपड़े की उपलब्धता, सिलाई व इसका लम्बी अवधि तक नहीं चल पाना। किन्तु अब उन्हें इसे लेकर कहीं कोई परेशानी अथवा अजीबपन नहीं लगता। एक सामाजिक कार्यक्रम के दौरान निम्बावत से हुई मुलाकात के दौरान मालूम हुआ कि कभी जोधपुर में बाबा जय गुरूदेव के एक हजार के लगभग अनुयायी हुआ करते थे किन्तु उनके देवलोक हो जाने के बाद वर्तमान में पांच से सात अनुयायी ही यहां रह गए हैं तथा वल्कल वस्त्र धारण करने के नाम पर 3 से 4 लोग ही हैं। जोधपुर में वल्कल कपड़े की उपलब्धता पर उन्होंने कहा कि यहां यह कपड़ा मात्र दो स्थानों-जालोरी गेट व गांछा बाजार में ही मिलता हैं। सिलाई के बाद पहनने पर यह वल्कल वस्त्र महज दो से तीन महिनें तक ही चलता हैं। अर्थात इन वस्त्रों पर साल भर का खर्च लगभग तीन हजार रूपए आता हैं। गुरूदेव के जीवित रहते निम्बावत उनसें वर्ष में 3 से 4 बार उनके आश्रम सहित जहां भी अवसर मिलता, मिलकर आते थे।
समाज सुधारक के रूप में किया जाता हैं याद
ज्ञातव्य रहें, आध्यात्मिक गुरु बाबा जय गुरूदेव का नाम समाज सुधारक के रूप में लिए जाने के साथ ही उन्हें इसी रूप में याद किया जाता हैं। 116 साल उम्र पाकर देह त्यागने वाले बाबा जय गुरुदेव के ब्रह्मलीन होने के बाद अलीगढ़ का गांव चिरौली अचानक सुर्खियों में आ गया था। ये वहीं गांव था जहां से बाबा जय गुरूदेव गुरूदीक्षा लेकर दुनिया को सत्य का रास्ता दिखाने निकल पड़े थे। यह गांव बाबा जय गुरूदेव के गुरू और संत घूरेलाल महाराज का हैं। दादा गुरू का आश्रम भी यही हैं, यहां तमाम अनुयायी आज भी आते रहते हैं। बरसों तक बाबा जयगुरूदेव ने गांव की एक झोपड़ी में रहकर गुरू की सेवा की। अलीगढ़ से 25 किलोमीटर दूर गांव चिरौली में संत घूरेलाल महाराज(दादा गुरू) रहा करते थे। उनको ईश्वरीय शक्ति प्राप्त बताया जाता हैं। बाबा जय गुरूदेव चिरौली में दीक्षा लेकर और छोटी से झोपड़ी में रहकर, बरसों तक दादा गुरू की सेवा की। उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान हासिल किया। संत महाराज घूरेलाल महाराज के शरीर त्यागने के बाद, गांव में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया।
शिष्य बाबा जय गुरूदेव गुरू की अस्थि लेकर मथुरा चले गये और यही गुरू की समाधि बनाई। यहां एक विशाल आश्रम भी बनाया गया। उसके बाद बाबा जयगुरूदेव धर्म कार्य में लगकर लोगों को सत्य का रास्ता दिखाने लगे। बाबा जय गुरूदेव अपने भक्तों को पूरी उम्र सत्य के रास्ते पर चलने, मांस, और नशा से दूर रहने को कहते रहे। उनके अनुयायी उनकी कहीं हर बात और आज्ञा का आज भी बखूबी पालन करते हैं। समाज को सुधारने के संकल्प के तहत बाबा जय गुरूदेव के द्वारा चलाए गई जय गुरु देव धर्म प्रचारक संस्था एवं जय गुरु देव धर्म प्रचारक ट्रस्ट आज भी अपना कार्य विधिवत रूप से कर रहे हैं एवं तमाम लोक कल्याणकारी योजनाएं आज भी चल रही हैं। भूमि जोतक, खेतिहर-काश्तकार संगठन की स्थापना भी बाबा जय गुरूदेव की ही देन हैं।
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