घनश्याम डी रामावत
ललित मोदी प्रकरण में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम आने के अलावा बिहार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की करारी हार ने राजस्थान कांग्रेस को सचमुच जीवन दान दे दिया हैं। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने इसे भाजपा की घटती साख मानते हुए अभी से राजस्थान में अगली सरकार अपनी पार्टी की बनने के मंसूबे पाल लिए हैं। संभवत: इसी उम्मीद में प्रदेश के दो बड़े नेताओं पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बीच अप्रत्यक्ष रूप से सीएम पद को लेकर अघोषित ‘पावर वॉर’ छिड़ गया हैं। दरअसल दो बार सीएम रह चुके गहलोत अभी भी राजस्थान की सक्रिय राजनीति में ही रहना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट को फ्री हैंड देने और नई लीडरशिप खड़ी करने के लिए गहलोत को दिल्ली बुलाना चाह रहा हैं। पायलट कैंप ने आलाकमान के सामने दलील दी हैं कि राजस्थान में अति सक्रियता दिखा रहे गहलोत को दिल्ली बुलाकर उनके लंबे अनुभव का कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर फायदा उठाना चाहिए।
सूत्रों की मानें तो पंजाब, हरियाणा के बाद अब राजस्थान कांग्रेस में बढ़ती कोल्ड वॉर से चिंतित अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में गहलोत को पायलट को पूरा सहयोग देने और केंद्रीय राजनीति में आने का बोला है, लेकिन गहलोत दिल्ली नहीं जाना चाहते। उनके कैंप के नेताओं ने राहुल को यह समझाने की कोशिश की हैं कि गहलोत की राजस्थान में दिनोंदिन बढ़ती लोकप्रियता और जनमानस के बीच साफ छवि का फायदा उठाने के लिए कांग्रेस को उन्हें सदन में नेता प्रतिपक्ष बनाकर भाजपा सरकार के खिलाफ आक्रमण की धार तेज करनी चाहिए। बहरहाल, कांग्रेस संगठन में दबे पांव बढ़ते विवाद के साथ ही गहलोत और पायलट के दिल्ली के दौरे भी बढ़ गए हैं। राजस्थान के गांधी के तौर पर प्रदेश में अपनी खास छवि रखने वाले अशोक गहलोत की अतिसक्रियता के चलते भी पायलट खेमा चिंतित हैं।
गहलोत खेमे की चिंता, दिल्ली गए तो राजस्थान में होंगे कमजोर
अति-विश्वसनीय तरीके से छन कर आ रही खबरों को माने तो अशोक गहलोत समथकों को चिंता हैं कि अगर वे दिल्ली चले गए तो राजस्थान में कमजोर होते जाएंगे और तीन साल बाद पायलट ही सीएम पद के लिए पार्टी का चेहरा हो जाएंगे। इसी कारण गहलोत पिछले दिनों से राहुल कैंप के नेताओं से लगातार दिल्ली में मुलाकात करके यह समझाने में जुटे हैं कि उनका राजस्थान में सक्रिय रहना पार्टी के लिए ज्यादा फायदेमंद हैं। गहलोत कैंप चाहता हैं कि वसुंधरा सरकार को भ्रष्टाचार समेत विभिन्न मुद्दों पर पटकनी देने के लिए अनुभवी गहलोत को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए, ताकि पीसीसी अध्यक्ष पायलट को भी सहूलियत हो और कांग्रेस संगठन मजबूत हो सके। सियासी चर्चा तो यह भी हैं कि पायलट को दिल्ली में कमजोर करने के लिए इन दिनों पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी अशोक गहलोत, डॉ. सी पी जोशी और जितेंद्र सिंह के बीच नजदीकियां बढ़ गई हैं।
राजस्थान में कांग्रेस को फिर से सत्ता में लाने के लिए राहुल गांधी बिहार चुनाव से पहले और बाद में प्रदेश के प्रमुख नेताओं के साथ लंबी गोपनीय मीटिंग कर चुके हैं। पूर्व पीडब्ल्यूडी मंत्री और हाड़ौती के दिग्गज नेता प्रमोद जैन भाया, मेवाड़ से पूर्व सांसद रघुवीर मीणा, अजमेर संभाग से पूर्व मुख्य सचेतक एवं वरिष्ठ नेता रघु शर्मा, जयपुर से पूर्व विधायक प्रताप सिंह खाचरियावास और शेखावाटी से कांग्रेस विधायक गोविंद डोटासरा, बीकानेर संभाग से पूर्व शिक्षामंत्री मास्टर भंवरलाल मेघवाल को बुलाकर प्रत्येक से डेढ़-डेढ़ घंटे का इंटरव्यू लिया गया हैं। इनसे दूसरे राज्यों से आए नेताओं के साथ ग्रुप और अकेले में भी चर्चा की गई। कथित गहलोत-पायलट टकराव को लेकर भी राहुल ने बातचीत की।
बातचीत के दौरान एक नेता ने राहुल गांधी को समझाया कि सरकार बनने की जो संभावना दिल्ली में बैठे आपको दिखाई दे रही हैं, ग्राउंड लेवल पर ऐसा नहीं हैं। जबकि पांच में से तीन नेताओं ने कहा कि अशोक गहलोत को राजस्थान से बाहर करके कांग्रेस को दुबारा खड़ा करना संभव नहीं हैं। सूत्रों की मानें तो अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी नई संभावित टीम बनाने के लिए ही शीघ्र ही सभी राज्यों के नेताओं से बुलाकर उनका विचार जानने वाले हैं।
जितेंद्र सिंह बन सकते हैं महासचिव
राजस्थान से अभी कांग्रेस में डॉ. सी पी जोशी और मोहन प्रकाश राष्ट्रीय महासचिव हैं, जबकि बाड़मेर के पूर्व सांसद हरीश चौधरी, आदिवासी नेता ताराचंद भगौरा और अल्पसंख्यक नेता जुबेर खान राष्ट्रीय सचिव हैं। हालांकि मोहन प्रकाश, भगौरा और जुबेर खान को नई टीम में जगह मिलने की संभावना कम नजर रही हैं। सी पी जोशी को भी अपना पद बचाए रखने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही हैं, क्योंकि दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को महत्वपूर्ण भूमिका में लाने की संभावना हैं। धौलपुर के मोहन प्रकाश की जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री और राहुल के करीबी अलवर के पूर्व सांसद जितेंद्र सिंह को महासचिव बनाया जाना तय माना जा रहा हैं।
वैसे तो संभावना न के बराबर हैं फिर भी अगर गहलोत को दबाव बनाकर दिल्ली लाया गया, तो उनको राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष या वे नहीं माने, तो महासचिव का पद भी दिया जा सकता हैं। राष्ट्रीय सचिव हरीश चौधरी के पंजाब में सह प्रभारी रहने के दौरान ठीक से काम करने की वजह से उनको फिर से मौका मिलने की संभावना हैं। राजस्थान के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव गुरुदास कामत की जगह राजस्थान में नया प्रभारी लगाए जाने की भी संभावना हैं। असल में महाराष्ट्र से सुशील कुमार शिंदे को कामत की जगह पर महासचिव बनाने की चर्चा हैं। ऐसे में कोई अति-श्योक्ति नहीं कि राजस्थान कांग्रेस को जल्दी ही नया प्रभारी मिल जाए।
सोनिया-राहुल के सामने गहलोत जिन्दाबाद के नारे
अभी हाल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 98वें जन्मदिन पर युवक कांग्रेस की ओर से नई दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू ऑडिटोरियम में मां तुझे सलाम रखा गया। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राहुल गांधी व पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदगी में हुए इस कार्यक्रम में राजस्थान प्रदेश के तीन वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के अलावा बड़ी तादाद में युवा नेता मौजूद थे। कार्यक्रम में राजस्थान के नेताओं को पूरी तवज्जों मिली। पूर्व सीएम अशोक गहलोत, राष्ट्रीय महासचिव सी पी जोशी व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने कार्यक्रम में अपना संबोधन दिया। यहां पर वरिष्ठ नेता गहलोत के अपने खास कद व प्रभाव ने आलाकमान को हैरत में डाल दिया। गहलोत जैसे ही उद्बोधन के लिए खड़े हुए सभागार में बैठे युवाओं ने उनके पक्ष में जमकर जिंदाबाद के नारे लगाए तथा गर्मजोशी से अभिनन्दन किया। निश्चित रूप से यह स्थिति गहलोत के समर्थकों के उस दावे की एक तरह से पुष्टि ही करती हैं कि गहलोत के बिना राजस्थान में कांग्रेस का पुन: खड़ा हो पाना शायद संभव नहीं।
No comments:
Post a Comment