Tuesday, 10 November 2015

दिल नहीं, दीयें जलाएं(Dil Nahi, Diyen Jalayen)...

घनश्याम डी रामावत
आज दीपावली हैं। एक ऐसा त्यौहार जिसमें दीपक की रोशनी के साथ-साथ रिश्ते भी जगमगाते हैं। संस्कृति के अनुसार इस दिन बैर भुलाकर लोग आपस में त्यौहार मनाते हैं और अपने रिश्तों को प्रगाढ़ भी करते हैं। भगवान् श्रीराम के संदेश को मानकर हर दीपावली पर लोग यह संकल्प लेते हैं कि दीपावली के दिन दीयें जलाएंगे.. किसी का दिल नहीं। अधिकांश लोग इस संकल्प का अनुसरण भी करते हैं मगर कई ऐसे लोग भी होते हैं जो दीयें जलाने के दिन भी दिल जलाने से बाज नहीं आते। इसलिए इस त्यौहार पर ऐसे लोगों को चाहिए कि वह लोगों में खुशियां बांटने का संकल्प ले और दिल जलाने की बजाए दीयें जलाए। निश्चित रूप से उनके जीवन में बुराई का हमेशा के लिए अंत हो जाएगा।

दीपोत्सव, दीप पर्व, दीवाली और दीपावली। नामों का क्या हैं, कितने भी रख लें। लेकिन भाव एक ही हैं। सब शुभ हो, मंगलमयी हो, कल्याणकारी हो। उमंग, उल्लास, उत्कर्ष और उजास का यह सुहाना पर्व एक साथ कितने मनोभाव रोशन कर देता हैं। हर मन में आशाओं के रंग बिरंगे फूल मुस्करा उठते हैं। भारतीय संस्कृति में कितना-कितना सौन्दर्य निहित हैं। कहां-कहां से समेटे और कितना समेटे? खूबसूरत त्यौहारों की एक लम्बी श्रंखला हैं जो किसी रेशमी डोरी की तरह खुलती चली जाती हैं और मानव मन का भोलापन इसमें बंधता चला जाता हैं। व्यक्ति सब भूल जाता हैं..राग द्वेष, विषाद, संकट, कष्ट और संताप। घर में पधारे हों जब साक्षात आनंद के देवता तो भला कहां सुध अपने दु:खों की पोटली को खोलकर बैठने की।

कितनी मनोरम हैं हमारी भावनाएं कि हम वेदों-पुराणों में वर्णित ज्ञान को संचित करते हुए उसे अपनी कल्पना का हल्का सा सौम्य स्पर्श देकर अपने लिए खुद ही सौन्दर्य का संसार रच लेते हैं। खुद ही सोच लेते हैं कि पृथ्वी पर अभी गणेश जी पधारें हैं, फिर सोचते हैं मां दुर्गा पधारी हैं और फिर पौराणिक व लोक साहित्य की अंगुली थामे प्रतीक्षा करने लगते हैं महालक्ष्मी की। इनमें झूठ कुछ भी नहीं हैं, सब सच हैं अगर अंतरआत्मा और दृढ़ कल्पनाशक्ति से किसी दिव्य-स्वरूपा का आह्वान करें तो ईश्वर भले ही प्रकट ना हो लेकिन एक अलौकिक अनुभूति से साक्षात्कार अवश्य करा देते हैं। हम चाहे कितने भी नास्तिक हों.. लेकिन इतना तो मानते हैं ना कि कहीं कोई ऐसी सुप्रीम पॉवर हैं जो इस इतने बड़े सुगठित संसार को इतनी सुव्यवस्था से संभाल रही हैं।

बस, उसी महाशक्ति को नमन करने, उसके प्रति आभार व्यक्त करने का बहाना हैं ये सुंदर, सुहाने और सजीले त्यौहार। ये त्यौहार जो हमें बांधते हैं उस अदृश्य दैवीय शक्ति के साथ, जो हमें जीवन में कलात्मक संदेश देते हैं। आइए! इस दीपावली पर ‘देह’ के दीप में ‘आत्मा’ की बाती को ‘आशा’ की तीली से रोशन करें.. ताकि महक उठे खुशियों की उजास अपने ही मन आंगन में। इन्हीं चंद पंक्तियों के साथ अनगिनत मंगलकामनाएं..!!

पौराणिक दृष्टि से ‘दीपावली’ का महत्व
दीपावली का पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मनाया जाता हैं। क्योंकि भगवान् श्रीराम रात्रि में अयोध्या वापिस आये थे और वह रात अमावस्या की थी, इसलिए अयोध्यावासियों ने पूरे शहर को दीपकों से जगमगा दिया था। दीवाली से दो बातों का गहरा संबंध हैं-एक तो लक्ष्मी पूजन और दूसरा राम का लंका विजय के बाद अयोध्या लौटना। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार इस महापर्व पर रघुवंशी भगवान श्रीराम की रावण पर विजय के बाद अयोध्या आगमन पर नागरिकों ने दीपावली को आलोक पर्व के रूप में मनाया। तभी से यह दीप महोत्सव राष्ट्र के विजय पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। दीपावली अपने अंदर प्रकाश का ऐसा उजियारा धारण कर आती हैं, जिसके प्रभाव से अनीति, आतंक और अत्याचार का अंत होता हैं और मर्यादा, नीति और सत्य की प्रतिष्ठा होती हैं।

दीपावली के रूप में विख्यात आधुनिक महापर्व स्वास्थ्य चेतना जगाने के साथ शुरू होता हैं। त्रयोदशी का पहला दिन धन्वंतरी जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। लोग इसे धनतेरस भी कहते हैं और पहले दिन का संबंध धन वैभव से जोड़ते हैं। धन्वंतरी जयंती का संबोधन धीरे-धीरे परिवर्तित होकर धनतेरस के रूप में प्रचलित हो गया। वस्तुत: यह आरोग्य के देवता धन्वंतरी का अवतरण दिवस हंै। चतुदर्शी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध तो किया ही था, इसी दिन हनुमान जी का जन्म भी हुआ था। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से दीपावली बंधन मुक्ति का दिन हैं। व्यक्ति के अंदर अज्ञानरूप अंधकार का साम्राज्य हैं। दीपक को आत्म ज्योति का प्रतीक भी माना जाता हैं। अत: दीप जलाने का तात्पर्य हैं-अपने अंतर को ज्ञान के प्रकाश से भर लेना, जिससे हृदय और मन जगमगा उठे।

इस बार दीपावली पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त
जोधपुर नक्षत्र लोक ज्योतिष विज्ञान शोध संस्थान एवं जोधपुर ज्योतिष परिषद के अध्यक्ष पण्डित अभिषेक जोशी के अनुसार 11 नवम्बर 2015 कार्तिक कृष्ण अमावस्या बुधवार को सूर्यास्त 17.47 से रात्रि 20.25 तक प्रदोष काल रहेगा। प्रदोष काल सहित स्थिर लग्न में सायं 18.05(06.05) से 20.01(8.01) तक वृषभ लग्न  में, महानिशीथकाल में रात्रि 23.56(11.56) से 00.49(12.49) व सिंह लग्न में 00.34 से 02.45 तक महालक्ष्मी और कुबेर पूजन के लिये श्रेष्ठ मुहूर्त रहेगा। चौघडिय़े के अनुसार 19.26(07.26) से 21.05(09.05) तक शुभ का, 21.05(09.05) से 22.44(10.44) तक अमृत का, 22.44(10.44) से 24.22 तक चल का और मध्य रात्रि में 03.40 से 05.29 तक लाभ का चौघडिय़ा रहेगा। इस दिन प्रात: 6.42 से 9.28 में गादी बिछाने के लिए शुभ मुहूर्त हैं।

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