घनश्याम डी रामावत
लौह पुरूष का संक्षिप्त जीवन परिचय
लौह पुरूष के नाम से पहचान रखने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को ग्राम
सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता के अदभुत शिल्पी थे जिनके ह्रदय में भारत बसता था। वास्तव में वे भारतीय जनमानस अर्थात किसान की आत्मा थे। स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं स्वतन्त्र भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल बर्फ से ढंके एक ज्वालामुखी थे। वे नवीन भारत के निर्माता थे। उन्हें भारत का ‘लौह पुरूष‘ भी कहा जाता हैं। स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान खेड़ा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेड़ा खण्ड(डिवीजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हे कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन की जिम्मेदारी भी वल्लभ भाई पटेल को सौंपी गई थी, जिसे उन्होने सफलता पूर्वक नेतृत्व प्रदान किया। वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन का असर सरकार पर हुआ और वायसराय की सलाह पर मुम्बई सरकार ने लगान के आदेश को रद्द करने की घोषणा करते हुए, सभी किसानो की भूमि तथा जानवरों को लौटाने का सरकारी फरमान जारी किया। गिरफ्तार किये गये किसानो को भी रिहा कर दिया गया। इस आन्दोलन की सफलता के उपलक्ष्य में 11 और 12 अगस्त को विजय दिवस मनाया गया। जिसमें वल्लभ भाई पटेल की सूझ-बूझ की भी प्रशंसा की गई। इसी आन्दोलन की सफलता पर एक विशाल सभा में गांधी जी ने वल्लभ भाई पटेल को सरदार की पदवी से सम्मानित किया, जिसके बाद वल्लभ भाई पटेल, सरदार पटेल के नाम से प्रसिद्ध हुए।
देशी रियासतों को भारत में मिलाने का साहसिक कार्य सरदार पटेल के प्रयासों से ही संभव हो सका। जब 15 अगस्त 1947 को भारत परतन्त्रता की बेडिय़ों से आजाद हुआ तो उस समय लगभग 562 देशी रियासतें थीं, जिन पर ब्रिटिश सरकार का हुकूमत नहीं था। उनमें से जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र अधिकतर रियासतों ने स्वेच्छा से भारत में अपने विलय की स्वीकृति दे दी। जूनागढ़ का नवाब जूनागढ़ का विलय पाकिस्तान में चाहता था। नवाब के इस निर्णय के कारण जूनागढ़ में जन विद्रोह हो गया जिसके परिणाम स्वरूप नवाब को पाकिस्तान भाग जाना पड़ा और जूनागढ़ पर भारत का अधिकार हो गया। हैदराबाद का निजाम हैदराबाद स्टेट को एक स्वतन्त्र देश का रूप देना चाहता था इसलिए उसने भारत में हैदराबाद के विलय कि स्वीकृति नहीं दी।
भारत को यद्यपि 15 अगस्त 1947 के दिन स्वतन्त्रता मिल चुकी थी किन्तु 18 सितम्बर 1948 तक हैदराबाद भारत से अलग ही रहा। इस पर तत्कालीन गृह मन्त्री सरदार पटेल ने हैदराबाद के नवाब की हेकड़ी दूर करने के लिए 13 सितम्बर 1948 को सैन्य कार्यवाही आरम्भ की जिसका नाम ‘ऑपरेशन पोलो’ रखा गया था। भारत की सेना के समक्ष निजाम की सेना टिक नहीं सकी और उन्होंने 18 सितम्बर 1948 को समर्पण कर दिया। हैदराबाद के निजाम को विवश होकर भारतीय संघ में शामिल होना पड़ा। नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था क्योंकि भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। गांधी जी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था-‘रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल सरदार पटेल ही हल कर सकते थे।’ ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यदि कश्मीर का निर्णय जवाहर लाल नेहरू के बजाय पटेल के हाथ में होता तो आज भारत में कश्मीर समस्या जैसी कोई समस्या ही नहीं होती।
किसानों एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा
भारतीय नागरिक सेवाओं(आईसीएस) का भारतीयकरण कर इसे भारतीय प्रशासनिक सेवाएं(आईएएस) में परिवर्तित करना सरदार पटेल के प्रयासो का ही परिणाम हैं। यदि सरदार पटेल को कुछ समय और मिलता तो संभवत: नौकरशाही का पूर्ण कायाकल्प हो जाता। उनके मन में किसानों एवं मजदूरों के लिये असीम श्रद्धा थी। वल्लभभाई पटेल ने किसानों एवं मजदूरों की कठिनाइयों पर अन्तर्वेदना प्रकट करते हुए कहा था-‘दुनिया का आधार किसान और मजदूर पर हैं। फिर भी सबसे ज्यादा जुल्म कोई सहता हैं, तो यह दोनों ही सहते हैं। क्योंकि ये दोनों बेजुबान होकर अत्याचार सहन करते हैं। मैं किसान हूं, किसानों के दिल में घुस सकता हूं, इसलिए उन्हें समझता हूं कि उनके दुख का कारण यही हैं कि वे हताश हो गये हैं। और यह मानने लगे हैं कि इतनी बड़ी हुकूमत के विरुद्ध क्या हो सकता हैं? सरकार के नाम पर एक चपरासी आकर उन्हें धमका जाता हैं, गालियां दे जाता हैं और बेगार करा लेता हैं।’
ऐसा माना जाता हैं कि यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल ने जिद्द नहीं की होती तो राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति पद के लिए तैयार ही नहीं होते। जब सरदार वल्लभभाई पटेल अहमदाबाद म्युनिसिपेलिटी के अध्यक्ष थे तब उन्होंने बाल गंगाघर तिलक का बुत अहमदाबाद के विक्टोरिया गार्डन में विक्टोरिया के स्तूप के समान्तर लगवाया था। जिस पर गांधी जी ने कहा था कि-‘सरदार पटेल के आने के साथ ही अहमदाबाद म्युनिसिपेलिटी में एक नयी ताकत आयी हैं। मैं सरदार पटेल को तिलक का बुत स्थापित करने की हिम्मत बताने के लिये उन्हें बधाई देता हूं।’ भारत के राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम में वे अक्षम शक्ति स्तम्भ थे। आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा दूसरों को दिव्य-शक्ति की चेतना देने वाला उनका जीवन सदैव प्रकाश-स्तम्भ की अमर ज्योति रहेगा। सरदार पटेल मितभाषी, अनुशासनप्रिय और कर्मठ व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीतिक सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी।
युवा पीढ़ी के लिये आज भी प्रेरणा स्रोत
अपने अद्म्य उत्साह, असीम शक्ति एवं मानवीय समस्याओं के प्रति व्यवहारिक दृष्टिकोण से उन्होंने निर्भय
होकर स्वतंत्र राष्ट्र की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान अद्भुत सफलता से किया। राष्ट्र के प्रति प्रेम एवं योगदान के ही कारण आज विश्व के श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों की श्रेणी में सरदार पटेल को भी याद किया जाता हंै। विश्व मानचित्र में उनका अमिट स्थान हंै। सरदार पटेल मन, वचन तथा कर्म से एक सच्चे देशभक्त थे। वे वर्ण-भेद तथा वर्ग-भेद के कट्टर विरोधी थे। वे अन्त:करण से निर्भीक थे। अपूर्व संगठन-शक्ति एवं शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता रखने वाले सरदार पटेल, आज भी युवा पीढ़ी के लिये प्रेरणा स्रोत हैं। कर्म और संघर्ष को वे जीवन का ही एक रूप समझते थे। भारत के देशभक्तों में एक अमूल्य रत्न सरदार पटेल को भारत सरकार ने सन 1991 में ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया आज सरदार वल्लभ भाई पटेल हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा। प्रतिवर्ष 31 अक्टूबर को राष्ट्र सरदार वल्लभ भाई को उनकी जयंती पर अपनी भावांजलि के साथ शत् शत् नमन करता हैं।
लौह पुरूष का संक्षिप्त जीवन परिचय
करमसद(गुजरात) में हुआ था। इनके पिता झबेर भाई पटेल थे जिन्होंने 1857 में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के समर्थन में युद्ध किया था। इनकी माता का नाम लाडोबाई था। इनके पिता बहुत ही आध्यात्मिक प्रवृति के थे। पटेल की शुरूआती पढ़ाई गांव के ही एक स्कूल में हुई। यहां पर कक्षा चार तक पढ़ाई होती थी, आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें पेटलाद गांव के सरकारी स्कूल में भर्ती होना पड़ा। यह स्कूल उनके मूल गांव से करीब सात किमी दूर था। वल्लभ भाई पटेल को बचपन से ही पढऩे-लिखने का बहुत शौक था। उनकी हाई स्कूल की शिक्षा ननिहाल में हुई। उनके जीवन का वास्तविक विकास ननिहाल से ही प्रारंभ हुआ। उनके बाल्यावस्था से ही कुशल नेतृत्व की छाप दिखलाई देने लग गई थी। वे पढ़ाई में तो तेज थे ही गीत-संगीत व खेलकूद में भी पटेल की जबरदस्त रूचि थी। वल्लभ भाई पटेल के चमत्कारिक व्यक्तित्व का कमाल ही था कि वे अपनी शिक्षा के दौरान अपनी साथियों में बेहद लोकप्रिय हो गए तथा एक समय वे उनका नेतृत्व करने लगे। पटेल बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा उनमें सीखने की अद्भुत क्षमता थी। बचपन में एक बार वे स्कूल से आते वक्त पीछे छूट गए। कुछ साथियों ने मालूम किया तो वे जमीन में गड़े एक नुकीले पत्थर को उखाड़ रहे थे। पूछने पर बोले-इसने मुझे चोट पहुंचाई हैं अब मैं इसे उखाड़ कर ही दम लूंगा.. और वे काम पूरा करके ही घर पहुंचे। वल्लभ भाई की उच्च शिक्षा कठिनाईपूर्ण रही। इंगलैंड में जाकर उन्होंने बैरिस्टरी की परीक्षा उतीर्ण की। 1926 में उनकी भेंट गांधी जी से हुई और वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े।
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