घनश्याम डी रामावत
मौजूदा दौर की अति-व्यस्ततम जीवन शैली के बावजूद त्यौहारों का इंतजार हर किसी को होता हैं। यहीं वह मौका होता हैं जब लोग अपनी तमाम टेंशंस का छोडक़र त्यौहारों की तैयारी में जुट जाते हैं। दीपावली की आहट होते ही बच्चे, बूढ़े और युवा सभी त्यौहार का आनन्द लेते हैं। बच्चे घर में सहेज कर रखी लाइटों और बत्तियों की लडिय़ों की तलाश शुरू कर देत हैं। दीयों और गमलों को रंग रोगन व पेंट से सजाया जाने लगता हैं। सवाल यह कि खुशियां मनाने के लिए त्यौहारों का ही इंतजार क्यों? क्यों हम केवल मात्र त्यौहार पर ही रंगोली सजाएं। चेहरे पर मुस्कान ओढक़र उत्साही और क्षमाशील बन जाएं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम हमेशा ऐसे ही बने रहें और हमारे लिए हर दिन एक उत्सव हो। हम खुश रहें और अच्छी तरह पकाएं-खाएं तथा सबसे अच्छी तरह पेश आएं और रोज ही त्यौहार मनाएं।
यकीनन त्यौहार हमें उत्साह से भर देते हैं। त्यौहार हमारे अपने भीतर के उस बचपन को जगाते हैं जो हम बड़े होने के बाद जबरन अपने आप पर एक गंभीरता का लबादा ओढक़र अपने उस भीतर के बच्चे को अपने से दूर कर देते हैं। त्यौहारों के आते ही हम मौज मस्ती करते हैं। त्यौहार ही हमारे लिए नृत्य करने का बहाना हैं। त्यौहार ही वह मौका हैं जब स्त्री-पुरूष मिलकर गरबा व डांडिया नृत्य करते हैं। दीवाली पर पटाखे चलाते हैं। यही वह मौका हैं जब हम अपने बच्चों के साथ बच्चे हो जाते हैं और जहां हम सामान्य दिनों में पटाखे चलाना तो छोडि़ए, नाचने व गाने में भी हिचक महसूस करते हैं.. यही वह मौका होता हैं जब हम सब कुछ भूलकर त्यौहार मनाते हैं। वास्तव में यही वह अवसर होता हैं जब हमें किसी भी तरह का बचकाना व्यवहार करने की छूट होती हैं।
सोच व विचारों की सकारात्मकता
त्यौहार में हमारी सोच ही बदल जाती हैं। अपनी सारी चिंताएं हम खुद से दूर करके पूरे मन से त्यौहार की तैयारी में जुट जाते हैं। इस तैयारी में हम इतने व्यस्त हो जाते हैं कि हमें किसी की भी चिंता नहीं होती। शॉपिंग करना, रिश्तेदारों के घर जाना व शिड्यूल में बदलाव आना.. यकीनन इन सबमें हमें बेहद थकान होती हैं लेकिन यहीं एकमात्र ऐसा मौका हैं जब हमारे मूड में पूरी तरह बदलाव हो जाता हैं। त्यौहार वह मौका हैं जब हम अपने रूठों को मना सकते हैं, उनके साथ मिलकर एंज्वॉय कर सकते हैं ओर उनके साथ अपने समय को बेहतर तरीके से गुजार सकते हैं। त्यौहारों में हमें खुशी इसलिए भी मिलती हैं क्योंकि हम अपनी सोच व विचारों को सकारात्मक बनाकर रखते हैं। दूसरों की नकारात्मक बाते भी हमें इस मौके पर परेशान नहीं करती हैं। इम अपनी सोच को पूरी तरह सकारात्मक रखते हैं ताकि त्यौहार के मौके पर सब कुछ खुशी-खुशी हो और घर/माहौल में सुख शांति बनी रहे।
किन्तु सवाल यह कि इस सुख शांति को हम सिर्फ त्यौहार के मौके पर ही क्यों? हमेशा ही क्यों न बनाकर रखें। हर दिन उत्सव बनाकर भी तो हम रख सकते हैं ना। सीधा व स्पष्ट यहीं कि त्यौहार के दिनों में हम खुद को तनाव से दूर रखने के लिए अपने भीतर विशेष ताकत अख्तियार करते हैं। हम दूसरों के सामने बेहतर दिखने व उनके सामने श्रेष्ठतम व्यवहार के प्रदर्शन की कोशिश करते हैं.. बदले में हम दूसरों से भी ऐसे ही बेहतरीन व्यवहार की अपेक्षा करते हैं। इसी वजह से हम त्यौहार को खुशी-खुशी मनाते हैं। इन सब में सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं सोच। जीवन के उत्साह को अगर हम हमेशा बनाए रखने के लिए अपनी सोच को विकसित कर लेते हैं, हर दिन हमारे लिए एक उत्सव हो सकता हैं। त्यौहार के दिन घर में पूजा होती हैं। इस पूजा के माध्यम से हम भले ही भगवान को खुश करने का प्रयास कर रहे हो, किन्तु भगवान के सामने बैठकर हम उनसे सिर्फ अपनी बात ही करते हैं।
पूजा का मनोवैज्ञानिक असर
पूजा का एक मनोवैज्ञानिक असर होता हैं। पूजा करने वाले को खुशी के साथ-साथ एक नया बल मिलता हैं और उसमें दु:ख में या तनाव में ईश्वर को शामिल करके हम अपनी मजबूती को सुनिश्चित कर लेते हैं। पूजा व उपवास के द्वारा हम अपने मन की भावना को संतुष्ट करते हैं। किसी के लिए पूजा या व्रत करने का मतलब ही हैं प्यार से लबालब होना। दीवाली में घर तथा बाजार सब सज जाते हैं। चारो ओर रोशनी होती हैं जो मन में एक नया उत्साह तथा जोश का संचार करती हैं। हमारी जो सोच हमारे इन त्यौहारी दिनों को खूबसूरत, शांत और खुशहाल बनाती हैं, इसी सोच को हम अपनी रोजमर्रा की सोच में तब्दील कर हमेशा खुश रह सकते हैं।
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