Wednesday, 18 November 2015

छठ पूजा महज एक पर्व नहीं..(Chhath Pooja Are Not Only A Festival..)

घनश्याम डी रामावत
छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं हैं बल्कि इसे महापर्व का दर्जा प्राप्त हैं। इस पर्व के साथ करोड़ों हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हैं और हो भी क्यों न.. भगवान सूर्य की उपासना से जुड़े इस महापर्व की महिमा ही ऐसी हैं। दीपावली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले इस पर्व का भारतीय संस्कृति में व्यापक महत्व हैं। हमारे देश में छठ पर्व मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही हैं। भगवान सूर्य की उपासना का यह पर्व बिहार में घर-घर मनाया जाता हैं। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और पूर्वात्तरी प्रदेशों में भी इस पर्व को लेकर खासा उत्साह रहता हैं। हिन्दुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस छठ पर्व को इस्लाम व अन्य धर्मावलंबी भी मनाते देखे गए हैं। हमारे यहां मान्यता हैं कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों क संयुक्त आराधना होती हैं। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण(उषा) और संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरण(प्रत्युषा) को अध्र्य देकर दोनों को नमन किया जाता हैं।
पौराणिक और लोक कथाओं के नजरिए से...
ऐसी मान्यता हैं कि चौदह वर्ष की वनवास अवधि पूरी करने के पश्चात् भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण के साथ कार्तिक अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे थे एवं उसी दिन स दीपावली मनाई जाती हैं। अपने प्रिय राजा राम और रानी सीता के आने के उपलक्ष्य में प्रदेश भर में घी के दिये जलाए गए थे। राम के राज्याभिषेक के पश्चात् राम राज्य की कल्पना को ध्यान में रखकर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की तथा सप्तमी को पूर्ण किया। पवित्र सरयू तट पर राम-सीता के अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। तब से छठ पर्व इस अंचल विशेष में लोकप्रिय हो गया।

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल षष्ठी के सूर्यास्त एवं सप्तमी के सर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थी। यह पवित्र मंत्र भगवान सूर्य के पूजन का परिणाम था। तभी से कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि आर्यों के लिए परम पूज्य हो गई और छठ पर्व आर्यों का महान धरोहर बन गया। एक अन्य मान्यता हैं कि जुए में पाण्डव अपना राजपाठ धन-दौलत सभी कुछ हार कर जंगल-जंगल घूम रहे थे, उस समय पाण्डवों के बुरे हाल, दुर्दशा और संकट से मुक्ति पाने के लिए द्रौपदी ने स्वयं सूर्यनारायण की आराधना करते हुए छठ व्रत किया। परिणामस्वरूप पाण्डवों को खोया राजपाठ, सम्मान और प्रतिष्ठा सभी कुछ प्राप्त हुआ।

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद की कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ किंतु वह मरा हुआ था। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए तथा पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा लोगों को प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

जल में खड़े रहकर सूर्यदेव को अध्र्य
प्रत्यक्ष देव भगवान् श्री सूर्यनारायण की उपासना से व्रतधारी सुख-शांति, भक्ति एवं अत्यंत शुद्धता से पूरे छत्तीस घंटे निर्जला रहते हुए समीप के किसी स्वच्छ जलाशय अथवा नदी के तट पर जाकर, जल में षष्ठी तिथि को नहाकर उसी जल में खड़े होकर, सायंकालीन समय अस्ताचलगामी सूर्यदेव को तथा पुन: सप्तमी तिथि को व्रती प्रात:काल उसी स्थान पर जल में खड़े होकर उदीयमान सूर्यदेव को अध्र्य देकर पूजा करता हैं। छठ पर्व का शुभारम्भ कद्दू-भात या नहाय-खाय से होता हैं। कद्दू-भात अर्थात लौकी की बिना लहसुन-प्याज की सब्जी और अरवा चावल का भोजन एवं नहाय-खाय अर्थात गंगा में स्नान करके भोजन पकाना व खाना। घरों में तो कार्तिक मास के शुरू होते ही मांसाहार, लहसुन और प्याज जैसे तामसिक भोजन बंद हो जाते हैं।

व्रती अर्थात घर की प्रमुख महिला जो छठ का व्रत रखती हैं, के साथ-साथ घर के सभी सदस्यों का उस दिन का खाना कद्दू-भात ही होता हैं। कद्दू-भात के अगले दिन व्रती महिला दिनभर का उपवास रखती हैं और संध्याकाल में देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करती हैं। भगवान के भोग स्वरूप कहीं खीर-पुड़ी या रोटी, तो कहीं चावल दाल साफ-सफाई कड़े नियमों का पालन करते हुए भोग बनाकर चढ़ाया जाता हैं। पूजा के बाद व्रती महिला भोग सामग्री से ही व्रत तोड़ती हैं, जिसे खरना कहते हैं। घर के सभी सदस्य इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि व्रती महिला नि:शब्द वातावरण में भरपेट भोजन कर ले, क्योंकि इसे अगला पूरा दिन निर्जल उपवास होता हैं। खरना के उपरांत घर के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं। इस प्रसाद को ग्रहण करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता हैं।

प्रज्जवलित दीपों से नदी तट रोशन
सूरज के अंगड़ाई लेने से पूर्व ही सभी लोग नहा-धोकर साफ कपड़े पहनकर घाट पर जाने का तैयार हो जाते हैं। सूपों के बीच की सामग्री रात में बदल दी जाती हैं। फिर उसी प्रकार सूपों को घाट पर ले जाकर सजाया जाता हैं। प्रज्जवलित दीपों से सारा नदी तट रोशन हो जाता हैं। बच्चें पटाखें-फुलझडिय़ां चलाते हैं। व्रती नदी में स्नान कर भीगे वस्त्रों में सूपों को अपनी हथेलियों पर रखती हैं तथा सभी श्रद्धा से पूरब में लालिमा बिखेर रहे सूर्य देवता को अध्र्य देते हैं। अगले दिन उगते सूर्य को अध्र्य देने के साथ ही छठ पूजा संपन्न होती हैं और साथ ही पारिवारिक-सामाजिक सौहार्द की सुखद अनुभूतियां शुरू होती हैं। घाट पर ही व्रती महिला से छोटे सभी लोग उनका चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेते हैं।

धार्मिक पर्व ‘छठ’ का वैज्ञानिक महत्व
छठ पर्व की परम्परा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ हैं, षष्ठी तिथि(छठ) एक विशेष खगोलीय अवसर हैं। उस समय सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। उसके संभावित कुप्रभावों से मानव को यथासंभव रक्षा करने का सामथ्र्य इस परम्परा में हैं। पर्वपालन से सूर्य(तारा) प्रकाश(पराबैंगनी किरण) के हानिकारक प्रभाव जीवों की रक्षा संभव हैं। पृथ्वी के जीवों को इससे बहुत लाभ मिल सकता हैं। सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैंगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश जब पृथ्वी पर पहुंचता हैं तो पहले उसे वायुमण्डल मिलता हैं। वायुमण्डल में प्रवेश करने पर उसे आयन मण्डल मिलता हैं। पराबैंगनी किरणों का उपयोग कर वायुमण्डल अपने ऑक्सीजन तत्व को संश£ेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोन में बदल देता हैं। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैंगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमण्डल में ही अवशोषित हो जाता हैं। पृथ्वी की सतह पर उसका केवल नगण्य भाग ही पहुंचता हैं। सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुंचने वाली पराबैंगनी किरण की मात्रा मनुष्यों या जीवों के सहन करने की सीमा में होती हैं। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्य पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि उस धूप द्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं जिससे मनुष्य या जीवन को लाभ ही होता हैं।

No comments:

Post a Comment