घनश्याम डी रामावत
जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित धार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में 1156 ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहां भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत् शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना हैं। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा हैं। सल्तनत काल के लगभग 300 वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 16,062 वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र 76,255 थी। जैसलमेर जिले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के युद्ध के बाद बड़ी संख्या में यादव इस ओर अग्रसर हुए व यहां आ कर बस गये।
यहां अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। सही मायने में जैसलमेर राजस्थान का सबसे ख़ूबसूरत शहर हैं और यहीं कारण हैं कि इसे पर्यटन के लिहाज से सबसे आकर्षक स्थल माना जाता हैं। जैसलमेर का गौरवशाली दुर्ग ‘सोनार किला’ त्रिभुजाकार पहाड़ी पर स्थित हैं। इसकी सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर परकोटे पर तीस-तीस फीट ऊंची 99 बुर्जियां बनी हैं। चूंकि यह किला और इसमें स्थित सैंकड आवासीय भवन पीले पत्थरों से बने हुए हैं, सूर्य की रोशनी में स्वर्णिम आभा बिखेरते हैं .. इसी वजह से इसे सोनार किला/गोल्डन फोर्ट के नाम से पुकारा जाता हैं। जैसलमेर का यह किला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रेगिस्तानी किलों में से एक हैं। सुबह जब सूर्य की अरुण चमकीली किरणें जब इस दुर्ग पर पड़ती हैं तो बालू मिट्टी के रंग-परावर्तन से यह किला पीले रंग से दमक उठता हैं। शहर के हर कोण से दिखाई देने वाला यह किला रेत में आ गिरे किसी स्वर्ण मुकुट सा लगता हैं। पीले सेन्ड स्टोन से बने इस किले में चार विशाल दरवाजों से होकर प्रवेश किया जाता हैं जिन्हें पोल कहा जाता हैं।
गोपा चौक स्थित किले का प्रथम प्रवेश द्वार
जैसलमेर के किले का मुख्य आकर्षण तो गोपा चौक स्थित किले का प्रथम प्रवेश द्वार ही हैं। यह विशाल और भव्य द्वार पत्थर पर की गई नक्काशी का शानदार नमूना है। अपने स्थापत्य से यह द्वार आने वालों को कुछ देर के लिए ठिठका देता हैं। दूसरा आकर्षण दुर्ग के अंतिम द्वार हावड़पोल के पास स्थित दशहरा चौक हैं जो इस दुर्ग का खास दर्शनीय स्थल है। यहां पर्यटक खरीददारी का आनंद ले सकते हैं और थोड़ विश्राम कर सकते हैं। दशहरा चौक में स्थानीय शिल्प और हस्तकला की बेहद खूबसूरत वस्तुओं की छोटी छोटी दुकानें हैं जिनपर कांच जड़े वस्त्र, चादरें, फ्रेम और कई अन्य कलात्मक वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। हावड़पोल के बाहर की ओर भी कई दुकानें स्थित हैं।
अंदरूनी हिस्से में बना राजमहल आकर्षण का केन्द्र
जैसलमेर किले में एक अन्य पर्यटन आकर्षण है राजमहल। यह महल किले के अंदरूनी हिस्से में बना हुआ हैं। किसी समय यह महल जैसलमेर के राजा महाराजाओं के निवास का मुख्य स्थल हुआ करता था। इस वजह से यह दुर्ग का सबसे खूबसूरत हिस्सा भी हैं। वर्तमान में इस महल के एक हिस्से को म्यूजियम और हैरिटेज सेंटर के रूप में तब्दील कर दिया गया हैं। म्यूजियम में प्रवेश शुल्क हैं। यह म्यूजियम अप्रैल से अक्टूबर तक सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के देखने के लिए खोला जाता हैं। इसके अलावा नवंबर से मार्च तक इसे सुबह 9 से शाम 6 बजे तक के लिए रोजाना खोला जाता हैं। इस रेतीले शहर में एक झील भी है घडीसर लेक। किले से बाहर अमरसागर गेट के पास एक सुंदर महल स्थित हैं बादल विलास मंदिर, यह स्थापत्य कला का अनूठा उपहार हैं। जैसलमेर चाहे एक छोटा शहर सही लेकिन अपने आस-पास कई सुन्दर पर्यटक की रूचि के स्थान सहेजे हैं। जैसलमेर से 17 कि.मी. दूर अकाल में स्थित वुड फॉसिल पार्क में अठारह करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म देखे जा सकते हैं जो कि इस क्षैत्र के भूगर्भीय अतीत के गवाह हैं।
पीले पत्थर पर बारीक कारीगरी से युक्त जैन मंदिर
दुर्ग के आकर्षणों में सात जैन मंदिर भी शामिल हैं जो दुर्ग में यत्र-तत्र बने हुए हैं। पीले पत्थर पर बारीक कारीगरी से युक्त इन मंदिरों का स्थापत्य देखते ही बनता हैं। ये सभी मंदिर लगभग 15 वीं से 16 वीं सदी के बीच बनाए गए थे। इन मंदिरों में सबसे भव्य मंदिर जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है। पार्श्वनाथ मंदिर के अलावा चंद्रप्रभु मंदिर, रिषभदेव मंदिर, संभवनाथ मंदिर आदि भी दुर्ग परिसर में बने अन्य भव्य मंदिरों में शुमार किये जाते हैं। पर्यटकों को यहां ज्ञान भंडार के दर्शन करने की भी सलाह दी जाती है। जहां एक भव्य ऐतिहासिक लाइब्रेरी बनी हुई है। इस लाइब्रेरी का निर्माण सोलहवीं सदी में किया गया था। लाइब्रेरी में कई हस्तलिखित पांडुलिपियां भी आकर्षण का बड़ा केंद्र हैं। ये सभी मंदिर दशहरा चौक के दक्षिण पश्चिम में 150 मीटर के दायरे में बने हुए हैं। पर्यटकों से प्रत्येक मंदिर में दर्शन करने का चार्ज अलग से लिया जाता है। यह शुल्क बहुत मामूली सा है। पर्यटकों के लिए ये मंदिर रोजाना सुबह 8 से दोपहर 12 बजे तक खुलते हैं।
सम के रेतीले टीले (सेन्ड डयून्स)
हवा की दिशा के साथ अपनी जगह और दिशा बदलते ये रेतीले टीले(सेन्ड डयून्स) पूरी दुनिया के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। यहां का सूर्यास्त बेहद मनमोहक और एकदम अलग किस्म का होता हैं। कहावत हैं सूर्य से बडा कोई चित्रकार नहीं, तो यहां सम में सूर्य ने अलग ही कोई तूलिका और अलग ही कोई कैनवास लिया हैं। मीलों तक फैले इस रेतीले विस्तार को सजीले ऊंटों पर बैठ कर नापा जा सकता हंै। चांदनी रात में सम में ही ढाणियों(छोटी-छोटी झोंपडिय़ों का समूह) में ठहर कर चांदनी रात, कालबेलिया नृत्य, राजस्थानी लोक गीतों तथा राजस्थानी भोजन दाल-बाटी-चूरमा का आनंद लिया जा सकता हंै। सम की ढ़ाणी नामक यह स्थान जैसलमेर से 42 कि.मी. दूर हैं।
कैमल सफारी के लिये डेर्जट नेशनल पार्क
कैमल सफारी के लिये वाकई यह एक उत्तम जगह हैं। इस पार्क का बीस प्रतिशत हिस्सा रेतीला हैं। उबड़-खाबड़ जमीन के परिदृश्य में अपनी जगह बदलते रेतीले टीलों और छोटी छोटी झाडिय़ों से भरी पहाडिय़ों वाला यह डेर्जट नेशनल पार्क रेगिस्तानी पारिस्थितकीय तन्त्र(इको सिस्टम) के मनमोहक रूप को दर्शाता हैं। इन सबके बीच खारे पानी की छोटी-छोटी झीलें चिंकारा और ब्लैक बक के रहने के लिए आरामदेह पारिस्थिति बनाती हैं। यहां डेर्जट फॉक्स, बंगाल फॉक्स, भेडिये(वुल्फ) और डेर्जट कैट भी देखने को मिल जाती हैं। रेगिस्तानी वन्य जीवन को करीब से जानने के लिये यह एक उपयुक्त स्थान हैं। इस नेशनल पार्क में विविध प्रकार के पक्षी अपनी अलग ही छटा बिखेरते हुए यदा-कदा दिखाई दे जाते हैं, जिनमें मुख्य हैं-सेन्ड ग्राउज, पॉट्रिज(तीतर), लार्क, श्राइक और बी इटर आदि।
सर्दियों में यहां डेमॉइजल क्रेन डेरा डालते हैं, जिन्हें यहां की लोक-भाषा में ‘कुरज’ कहते हैं तथा यहां के लोकगीतों में ‘कुरज’ को बड़े स्नेह से शामिल किया गया हैं। सबसे महत्वपूर्ण जीव जो अपनी भव्यता के साथ इस डेर्जट नेशनल पार्क का स्थाई निवासी हैंवह हैं गोडावण(ग्रेट इन्डियन बर्स्टड) यह एक बड़ा और लम्बा पक्षी हैं, यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी हैं। यह नेशनल पार्क सरिसृपों से भी भरा हैं। यहां स्पाइनी टेल्ड लिर्जड़, मॉनिटर लिर्जड़, सॉ स्केल्ड वाइपर, रसल वाइपर तथा करैत आदि सरिसृप मिलते हैं।
समृद्ध संस्कृति से ओत-प्रोत मेले और उत्सव
मेले और उत्सव राजस्थान की समृद्ध संस्कृति के जीवंत उदाहरण हैं। सर्दियों में त्यौहार और मेलों के साथ यह क्षेत्र सचमुच जीवंत हो उठता हैं। प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं यहां का मरू-मेला(डेर्जट फेस्टीवल), इस मेले के लिए विश्व भर के पर्यटक इस स्वर्ण-नगरी में चले आते हैं। उस समय यहां के गेस्टहाउस और होटल ही नहीं लोगों के घर भी जाने-अनजाने अतिथियों से भर जाते हैं। सचमुच उस वक्त ‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा इस गीत में साकार हो उठती हैं-‘पधारो म्हारे देश...’। तब जैसलमेर थिरक उठता हैं..घूमर, गणगौर, गैर, धाप, मोरिया, चारी और तेराताल जैसे नृत्यों के साथ। इन नृत्यों को ताल देते हैं यहां के लोक वाद्य कामयाचा, सारंगी, अलगोजा, मटका, जलतरंग, नाद, खड़ताल और सतारा।
लंगा और मंगनियार गवैयों की टोली लोकगीतों का अद्भुत/मनमोहक समां बांध देती हैं। यहां मरू उत्सव फरवरी माह में पूर्णिमा के दो दिन पहले शुरू होता हैं। इस दौरान यहां कई प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जैसे ऊंट रेस, पगडी बांधो, मरूसुंदरी, नृत्य, और ऊंट पोलो इत्यादि। इस दौरान यहां की कारीगरी के उत्कृष्ट नमूनों का प्रदर्शन तथा बिक्री भी की जाती हैं। जैसे खेजड़े की लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर, ऊंट की काठी के स्टूल व कठपुतलियां आदि। इस मेले का चरमबिन्दु होता हैं ‘सम सेन्ड ड्यून्स’ जाकर वहां फिर पूरे चांद की रात में नृत्य-संगीत की मनोरम प्रस्तुति।
जोधपुर से 280 किमी की दूरी पर
राजस्थान के सुदूर पश्चिमी कोने में बसा यह रेगिस्तानी शहर जैसलमेर जोधपुर से 280 किमी की दूरी पर है। सोनार किला जैसलमेर रेल्वे स्टेशन से मात्र तीन किमी और बस स्टैंड से 2 किमी की दूरी पर है। रेल्वे स्टेशन या फिर बस स्टैंड से सोनार किले तक जाने के लिए ऑटो की सुविधा मौजूद हैं। किले और जैसलमेर के अन्य पर्यटन स्थलों के लिए एक टैक्सी भी किराए पर ली जा सकती हैं। खास बात यह कि जब भी सोनार किला देखने का मन करे.. अपना कैमरा साथ रखना न भूलें।
जैसलमेर भारत के राजस्थान राज्य का एक शहर है। भारत के सुदूर पश्चिम में स्थित धार के मरुस्थल में जैसलमेर की स्थापना भारतीय इतिहास के मध्यकाल के प्रारंभ में 1156 ई. के लगभग यदुवंशी भाटी के वंशज रावल-जैसल द्वारा की गई थी। रावल जैसल के वंशजों ने यहां भारत के गणतंत्र में परिवर्तन होने तक बिना वंश क्रम को भंग किए हुए 770 वर्ष सतत् शासन किया, जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना हैं। जैसलमेर राज्य ने भारत के इतिहास के कई कालों को देखा व सहा हैं। सल्तनत काल के लगभग 300 वर्ष के इतिहास में गुजरता हुआ यह राज्य मुगल साम्राज्य में भी लगभग 300 वर्षों तक अपने अस्तित्व को बनाए रखने में सक्षम रहा। भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना से लेकर समाप्ति तक भी इस राज्य ने अपने वंश गौरव व महत्व को यथावत रखा। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात यह भारतीय गणतंत्र में विलीन हो गया। भारतीय गणतंत्र के विलीनकरण के समय इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 16,062 वर्ग मील के विस्तृत भू-भाग पर फैला हुआ था। रेगिस्तान की विषम परिस्थितियों में स्थित होने के कारण यहाँ की जनसंख्या बींसवीं सदी के प्रारंभ में मात्र 76,255 थी। जैसलमेर जिले का भू-भाग प्राचीन काल में ’माडधरा’ अथवा ’वल्लभमण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के युद्ध के बाद बड़ी संख्या में यादव इस ओर अग्रसर हुए व यहां आ कर बस गये।
यहां अनेक सुंदर हवेलियां और जैन मंदिरों के समूह हैं जो 12वीं से 15वीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। सही मायने में जैसलमेर राजस्थान का सबसे ख़ूबसूरत शहर हैं और यहीं कारण हैं कि इसे पर्यटन के लिहाज से सबसे आकर्षक स्थल माना जाता हैं। जैसलमेर का गौरवशाली दुर्ग ‘सोनार किला’ त्रिभुजाकार पहाड़ी पर स्थित हैं। इसकी सुरक्षा के लिए इसके चारों ओर परकोटे पर तीस-तीस फीट ऊंची 99 बुर्जियां बनी हैं। चूंकि यह किला और इसमें स्थित सैंकड आवासीय भवन पीले पत्थरों से बने हुए हैं, सूर्य की रोशनी में स्वर्णिम आभा बिखेरते हैं .. इसी वजह से इसे सोनार किला/गोल्डन फोर्ट के नाम से पुकारा जाता हैं। जैसलमेर का यह किला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रेगिस्तानी किलों में से एक हैं। सुबह जब सूर्य की अरुण चमकीली किरणें जब इस दुर्ग पर पड़ती हैं तो बालू मिट्टी के रंग-परावर्तन से यह किला पीले रंग से दमक उठता हैं। शहर के हर कोण से दिखाई देने वाला यह किला रेत में आ गिरे किसी स्वर्ण मुकुट सा लगता हैं। पीले सेन्ड स्टोन से बने इस किले में चार विशाल दरवाजों से होकर प्रवेश किया जाता हैं जिन्हें पोल कहा जाता हैं।
गोपा चौक स्थित किले का प्रथम प्रवेश द्वार
जैसलमेर के किले का मुख्य आकर्षण तो गोपा चौक स्थित किले का प्रथम प्रवेश द्वार ही हैं। यह विशाल और भव्य द्वार पत्थर पर की गई नक्काशी का शानदार नमूना है। अपने स्थापत्य से यह द्वार आने वालों को कुछ देर के लिए ठिठका देता हैं। दूसरा आकर्षण दुर्ग के अंतिम द्वार हावड़पोल के पास स्थित दशहरा चौक हैं जो इस दुर्ग का खास दर्शनीय स्थल है। यहां पर्यटक खरीददारी का आनंद ले सकते हैं और थोड़ विश्राम कर सकते हैं। दशहरा चौक में स्थानीय शिल्प और हस्तकला की बेहद खूबसूरत वस्तुओं की छोटी छोटी दुकानें हैं जिनपर कांच जड़े वस्त्र, चादरें, फ्रेम और कई अन्य कलात्मक वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। हावड़पोल के बाहर की ओर भी कई दुकानें स्थित हैं।
अंदरूनी हिस्से में बना राजमहल आकर्षण का केन्द्र
जैसलमेर किले में एक अन्य पर्यटन आकर्षण है राजमहल। यह महल किले के अंदरूनी हिस्से में बना हुआ हैं। किसी समय यह महल जैसलमेर के राजा महाराजाओं के निवास का मुख्य स्थल हुआ करता था। इस वजह से यह दुर्ग का सबसे खूबसूरत हिस्सा भी हैं। वर्तमान में इस महल के एक हिस्से को म्यूजियम और हैरिटेज सेंटर के रूप में तब्दील कर दिया गया हैं। म्यूजियम में प्रवेश शुल्क हैं। यह म्यूजियम अप्रैल से अक्टूबर तक सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक पर्यटकों के देखने के लिए खोला जाता हैं। इसके अलावा नवंबर से मार्च तक इसे सुबह 9 से शाम 6 बजे तक के लिए रोजाना खोला जाता हैं। इस रेतीले शहर में एक झील भी है घडीसर लेक। किले से बाहर अमरसागर गेट के पास एक सुंदर महल स्थित हैं बादल विलास मंदिर, यह स्थापत्य कला का अनूठा उपहार हैं। जैसलमेर चाहे एक छोटा शहर सही लेकिन अपने आस-पास कई सुन्दर पर्यटक की रूचि के स्थान सहेजे हैं। जैसलमेर से 17 कि.मी. दूर अकाल में स्थित वुड फॉसिल पार्क में अठारह करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म देखे जा सकते हैं जो कि इस क्षैत्र के भूगर्भीय अतीत के गवाह हैं।
पीले पत्थर पर बारीक कारीगरी से युक्त जैन मंदिर
दुर्ग के आकर्षणों में सात जैन मंदिर भी शामिल हैं जो दुर्ग में यत्र-तत्र बने हुए हैं। पीले पत्थर पर बारीक कारीगरी से युक्त इन मंदिरों का स्थापत्य देखते ही बनता हैं। ये सभी मंदिर लगभग 15 वीं से 16 वीं सदी के बीच बनाए गए थे। इन मंदिरों में सबसे भव्य मंदिर जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है। पार्श्वनाथ मंदिर के अलावा चंद्रप्रभु मंदिर, रिषभदेव मंदिर, संभवनाथ मंदिर आदि भी दुर्ग परिसर में बने अन्य भव्य मंदिरों में शुमार किये जाते हैं। पर्यटकों को यहां ज्ञान भंडार के दर्शन करने की भी सलाह दी जाती है। जहां एक भव्य ऐतिहासिक लाइब्रेरी बनी हुई है। इस लाइब्रेरी का निर्माण सोलहवीं सदी में किया गया था। लाइब्रेरी में कई हस्तलिखित पांडुलिपियां भी आकर्षण का बड़ा केंद्र हैं। ये सभी मंदिर दशहरा चौक के दक्षिण पश्चिम में 150 मीटर के दायरे में बने हुए हैं। पर्यटकों से प्रत्येक मंदिर में दर्शन करने का चार्ज अलग से लिया जाता है। यह शुल्क बहुत मामूली सा है। पर्यटकों के लिए ये मंदिर रोजाना सुबह 8 से दोपहर 12 बजे तक खुलते हैं।
सम के रेतीले टीले (सेन्ड डयून्स)
हवा की दिशा के साथ अपनी जगह और दिशा बदलते ये रेतीले टीले(सेन्ड डयून्स) पूरी दुनिया के पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। यहां का सूर्यास्त बेहद मनमोहक और एकदम अलग किस्म का होता हैं। कहावत हैं सूर्य से बडा कोई चित्रकार नहीं, तो यहां सम में सूर्य ने अलग ही कोई तूलिका और अलग ही कोई कैनवास लिया हैं। मीलों तक फैले इस रेतीले विस्तार को सजीले ऊंटों पर बैठ कर नापा जा सकता हंै। चांदनी रात में सम में ही ढाणियों(छोटी-छोटी झोंपडिय़ों का समूह) में ठहर कर चांदनी रात, कालबेलिया नृत्य, राजस्थानी लोक गीतों तथा राजस्थानी भोजन दाल-बाटी-चूरमा का आनंद लिया जा सकता हंै। सम की ढ़ाणी नामक यह स्थान जैसलमेर से 42 कि.मी. दूर हैं।
कैमल सफारी के लिये डेर्जट नेशनल पार्क
कैमल सफारी के लिये वाकई यह एक उत्तम जगह हैं। इस पार्क का बीस प्रतिशत हिस्सा रेतीला हैं। उबड़-खाबड़ जमीन के परिदृश्य में अपनी जगह बदलते रेतीले टीलों और छोटी छोटी झाडिय़ों से भरी पहाडिय़ों वाला यह डेर्जट नेशनल पार्क रेगिस्तानी पारिस्थितकीय तन्त्र(इको सिस्टम) के मनमोहक रूप को दर्शाता हैं। इन सबके बीच खारे पानी की छोटी-छोटी झीलें चिंकारा और ब्लैक बक के रहने के लिए आरामदेह पारिस्थिति बनाती हैं। यहां डेर्जट फॉक्स, बंगाल फॉक्स, भेडिये(वुल्फ) और डेर्जट कैट भी देखने को मिल जाती हैं। रेगिस्तानी वन्य जीवन को करीब से जानने के लिये यह एक उपयुक्त स्थान हैं। इस नेशनल पार्क में विविध प्रकार के पक्षी अपनी अलग ही छटा बिखेरते हुए यदा-कदा दिखाई दे जाते हैं, जिनमें मुख्य हैं-सेन्ड ग्राउज, पॉट्रिज(तीतर), लार्क, श्राइक और बी इटर आदि।
सर्दियों में यहां डेमॉइजल क्रेन डेरा डालते हैं, जिन्हें यहां की लोक-भाषा में ‘कुरज’ कहते हैं तथा यहां के लोकगीतों में ‘कुरज’ को बड़े स्नेह से शामिल किया गया हैं। सबसे महत्वपूर्ण जीव जो अपनी भव्यता के साथ इस डेर्जट नेशनल पार्क का स्थाई निवासी हैंवह हैं गोडावण(ग्रेट इन्डियन बर्स्टड) यह एक बड़ा और लम्बा पक्षी हैं, यह राजस्थान का राज्य पक्षी भी हैं। यह नेशनल पार्क सरिसृपों से भी भरा हैं। यहां स्पाइनी टेल्ड लिर्जड़, मॉनिटर लिर्जड़, सॉ स्केल्ड वाइपर, रसल वाइपर तथा करैत आदि सरिसृप मिलते हैं।
समृद्ध संस्कृति से ओत-प्रोत मेले और उत्सव
मेले और उत्सव राजस्थान की समृद्ध संस्कृति के जीवंत उदाहरण हैं। सर्दियों में त्यौहार और मेलों के साथ यह क्षेत्र सचमुच जीवंत हो उठता हैं। प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं यहां का मरू-मेला(डेर्जट फेस्टीवल), इस मेले के लिए विश्व भर के पर्यटक इस स्वर्ण-नगरी में चले आते हैं। उस समय यहां के गेस्टहाउस और होटल ही नहीं लोगों के घर भी जाने-अनजाने अतिथियों से भर जाते हैं। सचमुच उस वक्त ‘अतिथि देवो भव:’ की परंपरा इस गीत में साकार हो उठती हैं-‘पधारो म्हारे देश...’। तब जैसलमेर थिरक उठता हैं..घूमर, गणगौर, गैर, धाप, मोरिया, चारी और तेराताल जैसे नृत्यों के साथ। इन नृत्यों को ताल देते हैं यहां के लोक वाद्य कामयाचा, सारंगी, अलगोजा, मटका, जलतरंग, नाद, खड़ताल और सतारा।
लंगा और मंगनियार गवैयों की टोली लोकगीतों का अद्भुत/मनमोहक समां बांध देती हैं। यहां मरू उत्सव फरवरी माह में पूर्णिमा के दो दिन पहले शुरू होता हैं। इस दौरान यहां कई प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं जैसे ऊंट रेस, पगडी बांधो, मरूसुंदरी, नृत्य, और ऊंट पोलो इत्यादि। इस दौरान यहां की कारीगरी के उत्कृष्ट नमूनों का प्रदर्शन तथा बिक्री भी की जाती हैं। जैसे खेजड़े की लकड़ी का नक्काशीदार फर्नीचर, ऊंट की काठी के स्टूल व कठपुतलियां आदि। इस मेले का चरमबिन्दु होता हैं ‘सम सेन्ड ड्यून्स’ जाकर वहां फिर पूरे चांद की रात में नृत्य-संगीत की मनोरम प्रस्तुति।
जोधपुर से 280 किमी की दूरी पर
राजस्थान के सुदूर पश्चिमी कोने में बसा यह रेगिस्तानी शहर जैसलमेर जोधपुर से 280 किमी की दूरी पर है। सोनार किला जैसलमेर रेल्वे स्टेशन से मात्र तीन किमी और बस स्टैंड से 2 किमी की दूरी पर है। रेल्वे स्टेशन या फिर बस स्टैंड से सोनार किले तक जाने के लिए ऑटो की सुविधा मौजूद हैं। किले और जैसलमेर के अन्य पर्यटन स्थलों के लिए एक टैक्सी भी किराए पर ली जा सकती हैं। खास बात यह कि जब भी सोनार किला देखने का मन करे.. अपना कैमरा साथ रखना न भूलें।
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