Friday, 6 November 2015

श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम: श्रद्धा व आस्था के साथ मनोकामना पूर्ति का अद्भुत केन्द्र

घनश्याम डी रामावत
वैसे तो जोधपुर में अनेक ऐसे धार्मिक स्थान हैं जहां विभिन्न मान्यताओं के अनुसार सच्ची आस्था व श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना किए जाने पर मन्नतें पूरी होती हैं, लेकिन जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में स्थित श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम में मनोकामनाएं पूरी होने का दौर बरसों पुराना हैं। शायद यहीं वजह हैं कि इस मंदिर में प्रतिदिन भक्तों की भारी भीड़ रहती हैं। ऐसी धारणा हैं कि ‘भगवान रामेश्वर सिद्ध पीठ धाम’ के अलावा श्री रामेश्वरम् मंदिर के रूप में भी अपनी विशेष पहचान रखने वाले इस धार्मिक स्थल पर स्थापित ज्योतिर्लिंग का सीधा संंबंध सेतुबंध रामेश्वरम्(तमिलनाडु) से हैं, अर्थात इसे वहां से लाकर स्थापित किया गया हैं। यकीनन ऐसे में इस धार्मिक स्थल की मान्यता और श्रद्धालुओं के हृदय में ‘भगवान रामेश्वर सिद्ध पीठ धाम’ को लेकर सम्मान और आस्था का ग्राफ और भी बढ़ जाता हैं।
हजारों वर्ष पुराने इस धार्मिक स्थल के स्थान पर कभी बीहड़ जंगल हुआ करता था। धर्म-कर्म में आस्था रखने वाले कुछ जानकारों की माने तो स्वयं भगवान् श्रीराम ने ही ‘सेतुबंध रामेश्वरम्’ से अपने अनन्य भक्त द्वारा लाए गए इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की हैं। श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम के पुजारी मनमोहन बोहरा(मनु महाराज) की माने तो इस धार्मिक स्थल के अस्तित्व में आने के बाद पूजा-अर्चना के साथ ही लोगों को विभिन्न आसाध्य रोगों में लाभ मिलने की खबर के साथ अनेक प्रकार के चमत्कारों की बाते प्रसारित होने लगी। नतीजतन, यहां लगातार तरीके से श्रद्धालुओं का तांता लगने लग गया। पश्चिमी राजस्थान के साथ ही देश के अनेक भागों से श्रद्धालु श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम में दर्शन हेतु पहुंचते हैं। चमत्कारी मंदिर के रूप में विख्यात इस ‘भगवान रामेश्वर सिद्ध पीठ धाम’ में एक सूर्यकुण्ड भी बना हुआ हैं, कहा जाता हैं कि स्वयं भगवान् श्रीराम ने अपना कुछ समय यहां व्यतीत किया था।
मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ मूर्तियों की भव्यता
श्री रामेश्वर सिद्ध पीठ धाम में प्रत्येक 15 दिवस और कभी-कभी एक माह में ‘सेतुबंध रामेश्वरम्’ से भस्म भी यहां भक्तों के लिए आती हैं, जिसे स्वीकार कर भक्त अपने आप को भाग्यशाली समझते हैं। वर्षों से चमत्कारी मंदिर के रूप में
 अपनी पहचान रखने वाले इस धार्मिक स्थल पर न केवल श्रद्धालु भक्तजनों की अपनी मनोकामनाएं पूरी होती हैं अपितु वे मंदिर में स्थापित मूर्तियों की भव्यता देखकर श्री रामेश्वरम् के प्रति और कई गुना अधिक समर्पित हो जाते हैं। वर्तमान में भगवान् श्री रामेश्वर के ज्योतिर्मय शिवलिंग के साथ-साथ सिद्ध पीठ धाम में स्थापित शिव परिवार, समस्त नवग्रह, मां भगवती, पुरूणकार बालक स्वरूप भगवान् सदाशिव, भैरवनाथ और मारूति नंदन श्री हनुमान जी की प्रतिमाएं इस धाम की शोभा बढ़ा रही हैं। राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर के कुल सात दरवाजे हैं। इन दरवाजों में से पश्चिम दिशा में स्थित चांदपोल दरवाजा प्राचीन दरवाजों में से एक हैं। यहीं पर दरवाजे के बाहर व्यापक क्षेत्र में पवित्र जलाशय सूरज कुण्ड हैं, इसी के तट पर यह अति-विशिष्ट धार्मिक स्थल मौजूद हैं।

ऋषि ओम महाराज की जीवित समाधि
 एक मान्यता के अनुसार धार्मिक स्थल पर स्थापित ज्योतिर्मय शिवलिंग का अस्तित्व ईस्वी सन् 1538 से काफी पूर्व से हैं। इस शिवलिंग को एक तपस्वी(ऋषि ओम महाराज) दक्षिण भारत से अपने साथ लाए और सुरम्य स्थान जान कर यहां विराजमान कर एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे पूर्ण कुटिया में पूजा-अर्चना की। कालांतर में शिवलिंग को लाने वाले तपस्वी ने इसी स्थान पर जीवित समाधि ले ली, जो आज भी शिवालय के आंगन में विद्यमान हैं। मारवाड़ के परगना की विगत(भाग प्रथम) अनुसार राव मालदेव के शासन काल में चांदपोल-विद्याशाला मार्ग पर मिगसर माह शुक्ल पक्ष की पंचमी विक्रम संवत् 1595(ईस्वी सन् 1558) को राम बावड़ी के निकट श्री रामेश्वर भगवान का देवरा(मंदिर) बना। विक्रम संवत् 1601(ईस्वी सन् 1544) में शेरशाह सूरी के सिपाहियों द्वारा इस पवित्र धाम पर हमला किया गया किन्तु वे इसे पूरी तरह नुकसान पहुंचाने में कामयाब नहीं हो सके। तत्कालीन शासक सूरसिंह श्री रामेश्वर भगवान् के परम भक्त थे। उन्होंने शेरशाह सूरी के लोगो द्वारा सिद्ध पीठ धाम को पहुंचाए गए नुकसान का जीर्णोद्वारा करवाया। उन्होंने विक्रम संवत् 1672(ईस्वी सन् 1615) में भगवान श्री रामेश्वर की पूजा के लिए सूरज कुण्ड नामक जलाशय और एक हमाम(स्नान गृह) का निर्माण कराया।

वैशाख शुक्ला एकादशी को सिद्ध पीठ धाम की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा
मान्यता के अनुसार उस समय यहां एक बाग था और इस बाग के मध्य ही एक पक्की ईंटों से बना हुआ बंगला था जिसमें भगवान श्री रामेश्वर की सेवा पूजा होती थी। जानकारों के अनुसार विक्रम संवत् 1708(ईस्वी सन् 1651) मिगसर माह, कृष्ण पक्ष की एकम् को तत्कालीन शासक जसवन्तसिंह(प्रथम) द्वारा पुत्र प्राप्ति हेतु श्रीमाली ब्राह्मण वेणो जी दवे(अचलावत) के माध्यम से इस सिद्ध पीठ धाम में अनुष्ठान कराया गया। अनुष्ठान के एक वर्ष बाद उन्हें पृथ्वीसिंह के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। इतिहासकार आर्चा श्री बड़ी प्रसाद साकरिया के कथनानुसार सिद्ध पीठ धाम में विक्रम संवत् 1701(ईस्वी सन् 1644) में शासक जसवन्तसिंह(प्रथम) के कार्यकाल में श्रीमाली ब्राह्मण सुंदरलाल व जीवराज पुत्र मोहनदास के अथक प्रयासों से वैशाख शुक्ला एकादशी को आदमकद मां पार्वती, गणपतिराज, सूर्य नारायण और नन्दीकेश्वर की विधिवत प्राण प्रतिष्ठाएं हुई। इस संबंध में शिलालेख सिद्ध पीठ धाम में उपलब्ध हैं। इससे पूर्व यहां  जैसलमेर के पीले पत्थर से निर्मित ऋद्धि-सिद्धि सहित श्रीगणेश के अलावा स्थानीय पत्थर से निर्मित पार्वती व नन्दी की दो चल मूर्तियां जो एक फुट से अधिक लंबी नहीं थी, की पूजा होती थी। ये सभी मूर्तियां वर्ष 1946 तक यहां मौजूद थी।


विक्रम संवत् 1701 शाके 1566 वैशाख शुक्ला एकादशी को सिद्ध पीठ धाम की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा होने के कारण इसी को आधार मानकर धार्मिक स्थल पर प्रतिवर्ष वैशाख माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही पाटोत्सव मनाया जाता हैं। तत्कालीन शासक जसवन्तसिंह(प्रथम) की मृत्यु हो जाने के बाद जोधपुर पर मुगल शासक औरंगजेब का शासन रहा। औरंगजेब के आदेश से विक्रम संवत् 1737(ईस्वी सन् 1680) में पौष माह शुक्ल पक्ष की बारस को सेनापति नवाब खां द्वारा सिद्ध पीठ धाम पर हमला कर क्षति पहुंचाई गई। जिसका जीर्णोद्वार विक्रम संवत् 1901(ईस्वी सन् 1844) को तत्कालीन नरेश तख्तसिंह द्वारा करवाया गया एवं समस्त खर्च शासन द्वारा वहन किया गया। विक्रम संवत् 1933(ईस्वी सन् 1876) में शासक जसवन्तसिंह(द्वितीय) के कार्यकाल में राज कोष से शिवालय के पीछे के भाग का उछाला लेकर पूठियों का काम कराया गया, साथ ही एक मण्डप का भी निर्माण कराया गया। वर्तमान में इस मण्डप में चमत्कारी एक दन्त वाले भगवान श्री गणेश की सुंदर प्रतिमा विराजमान हैं। मारवाड़ के लोकप्रिय शासक उम्मेदसिंह की भी भगवान श्री रामेश्वर में अपार श्रद्धा थी। उनके शासन काल में भी श्री रामेश्वरम् मंदिर(भगवान रामेश्वर सिद्ध पीठ धाम) का सर्वांगीण विकास हुआ।


शैव मत से पूजा के साथ अखंड ज्योति प्रज्जवलन
जन-जन की आस्था के केन्द्र इस पवित्र चमत्कारिक धार्मिक स्थल ‘श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम’ में शैव मत से पूजन होने के साथ ही यहां पिछले करीब 200 वर्षो से अखंड ज्योति प्रज्जवलित हैं। विक्रम संवत् 1709(ईस्वी सन् 1652) को आषाढ़ शुक्ला पंचमी को शासक जसवन्तसिंह(प्रथम) को पृथ्वीसिंह के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होने पर इस धाम को नागौर परगना के ‘साठिका’ नामक गांव की जागिरी भेंट की गई। रियासती काल में ही ‘श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम’ को मेड़ता परगना के ‘मोटुस’ और जोधपुर परगना के ‘सूंथला’ गांव की जागीर अर्पित की गई(वर्तमान में इस धार्मिक स्थल के पास ‘मोटुस’ को छोडक़र कोई भी जागीर नहीं हैं)। श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम में भगवान श्री रामेश्वर की पूजा वंश परम्परानुसार(प्रथम गादीधिराज श्रीमाली शिवराम जी बोहरा/शुक्ल यजुर्वेदी-भारद्वाज गौत्र  परिवार) ही कायम हैं। धार्मिक स्थल पर उबछट, बड़ी तीज, गुरू पूर्णिमा, वैशाख शुक्ल पक्ष की एकादशी(पाटोत्सव), अन्नकूट, शिव रात्रि तथा श्रावण सोमवार जैसे अत्यधिक धार्मिक महत्व वाले अवसरों पर मैले सा माहौल रहता हैं। धार्मिक स्थल पर दर्शन हेतु प्रात: पांच बजे से एक बजे तथा सायंकाल चार बजे से नौ बजे(गर्मियों में शाम चार बजे से रात्रि दस बजे तक) समय निर्धारित हैं। सिद्ध पीठ धाम में प्रात:कालीन श्रंगार भस्म का एवं सायंकालीन शाही श्रंगार के साथ भगवान श्री रामेश्वर का शाही पूजन होता हैं(शाही श्रंगार के पश्चात ‘शिवरात्रि पर्व’ को छोडक़र किसी भी प्रकार के अभिषेक की स्वीकृति नहीं हैं)। सिद्ध पीठ धाम के पुजारी मनमोहन बोहरा(मनु महाराज) के अनुसार वर्तमान में ऐतिहासिक व धार्मिक/पौराणिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व वाले इस धार्मिक स्थल को देव स्थान विभाग द्वारा सुपुर्दगी ‘सी’ श्रेणी में रखा हुआ हैं।

विद्धान ब्राह्मणों द्वारा सहस्त्र घट पूजन
अनेक धारणाओं को समेटे चमत्कारिक इस धार्मिक स्थल का क्षेत्र में बारिश नहीं होने की स्थिति में महत्व और भी बढ़ जाता हैं। आदिकाल से इलाके में बारिश नहीं होने पर सिद्ध पीठ धाम में सहस्त्र घट पूजन का विधान रहा हैं। विद्धान ब्राह्मणों द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यह पूजा की जाती हैं जिसके तहत भगवान शिव पर पवित्र जल के एक हजार घड़े(घट) मंत्रौच्चार के बीच चढ़ाकर उन्हें जल समाधि दी जाती हैं। ऐसी मान्यता हैं कि इस प्रक्रिया के 24 से 48 घंटे के मध्य बारिश निश्चित रूप से होती हैं। किसी कारणवश इस पूजन के बाद भी बारिश नहीं आती हैं तो फिर शिवालय परिसर में ही बैंत यज्ञ का आयोजन किया जाता हैं। इसके अलावा श्री रामेश्वरम् सिद्ध पीठ धाम के शांत वातावरण में स्थित होने से शिव भक्त अपनी विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति के चलते अधिकांश हवन व यज्ञ यहीं पर संपन्न करवाते हैं।

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