घनश्याम डी रामावत
भारतीय संस्कृति में महिलाओं का शुरू से ही विशेष सम्मान रहा हैं एवं खास तौर से बेटियों के बारे में अपने देश में सदियों से बहुत कुछ कहा जाता रहा हैं। बेटी जब भी गर्व भरा काम करती
हैं, उसकी उपलब्धि पर न केवल उसका अपना परिवार नाज करता हैं बल्कि समूचा
देश स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हैं। और हो भी क्यों नहीं, आखिर
बेटियां देश, समाज व हर परिवार की शान जो होती हैं। लेकिन इन सब के बीच.. बेटी जब बहू के रूप में भी कुछ खास कर जाएं, इस शान में चार चांद लगना लाजमी हैं।
ऐसी ही एक बेटी और बहू हैं सूर्यनगरी की विजय लक्ष्मी प्रजापति। उम्र की
ढ़लान पर एक गृहिणी के रूप में इन दिनों आध्यात्मिक जीवन जी रही विजय
लक्ष्मी प्रजापति की पहचान जोधपुर की पहली महिला प्रोफशनल फोटोग्राफर के
रूप में रही हैं। राजस्थानी में एम.ए. तक शिक्षा प्राप्त विजय लक्ष्मी ने
वर्षो पहले उस समय कैमरा हाथ में पकड़ा, जब महिलाओं के व्यवसायिक तौर पर घर
से बाहर निकलने को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। प्रोफेशनल
फोटोग्राफर के तौर पर करीब तीन दशकों तक राजस्थान व खासकर सूर्यनगरी जोधपुर
की सभ्यता व संस्कृति से जुड़ी हर तस्वीर को अपने कैमरे में कैद कर इसकी
खूशबू को पूरे देश में फैलाने के साथ ही वर्ष 2013 में प्रदेश की राजधानी
जयपुर में ऑल इंडिया वैलफेयर सोसायटी और लिविंग सोल एनजीओ की ओर से आयोजित
कार्यक्रम ‘कुरजा-4’ में मशहूर ऑलम्पियन मिल्खा सिंह के हाथों ‘बेटी सृष्टि
रत्न’ अवार्ड से सम्मानित विजय लक्ष्मी प्रजापति आज किसी परिचय की मोहताज
नहीं हैं।
बचपन से ही अच्छे संस्कारों के बीच पली-बढ़ी
अस्सी
के दशक में जब महिलाओं को व्यवसायिक दृष्टि से घरों से बाहर निकलने की
पूरी आजादी नहीं थी, बचपन से ही अच्छे संस्कारों के बीच पली-बढ़ी सरल व
संजीदा व्यक्तित्व की धनी विजय लक्ष्मी ने प्रोफेशनल फोटोग्राफर के तौर पर
हाथों में कैमरा पकड़ कर सभी को चौका दिया। इसमें इन्हें सबसे बड़ा सहयोग
मिला पति जगदीश चंद्र से। शिक्षा विभाग में सेवारत्त पति जगदीश चंद्र नौकरी
के साथ फोटोग्राफी भी किया करते थे। यहीं से इन्हें फोटोग्राफी का शौक लगा
और अपने पति से इन्होंने कैमरा चलाना सीखा। अपनी उम्र के 65 बसंत पार कर
चुकी विजय लक्ष्मी अपने फोटो कला प्रेम और इससे जुड़े शुरूआती संस्मरणों को
याद कर आज भी रोमांच से भर जाती हैं। आज अचानक मन किया तो विजय लक्ष्मी से
मिलने जा पहुंचा उनके शक्ति नगर स्थित आवास पर। घर पर वे उसी अंदाज में
मिली जैसी अपेक्षा थी, उम्र के इस पड़ाव पर भी वहीं जोश-वहीं ताजगी, हाथ
में अखबार थामे वे देश-दुनियां के हालचाल जानने में व्यस्त थी। बातचीत का
सिलसिला शुरू हुआ तो वाकई बहुत कुछ जानने व समझने का मिला उनसे.. विजय
लक्ष्मी के अनुसार उन्होंने 1980 में फोटोग्राफी क्षेत्र में कदम रखा।
ब्लेक एंड व्हाइट से लेकर कलर फोटोग्राफी के बारे में अनुभव साझा करते हुए
वे बताती हैं कि उस वक्त के संघर्ष की तुलना में मौजूदा कामयाबियां व
अवार्ड बहुत छोटे प्रतीत होते हैं।
शुरूआत में बड़े-बुजुर्गों का विरोध झेलना पड़ा
अपने
फोटोग्राफी शौक के चलते विजय लक्ष्मी को संयुक्त परिवार की वजह से शुरूआत
में बड़े-बुजुर्गों का काफी विरोध भी झेलना पड़ा। किन्तु पति जगदीश चंद्र
का उन्हें हमेशा सहयोग मिला। विजय लक्ष्मी के अनुसार एक समय ऐसा आया जब पति
को बीमारी ने आंशिक रूप से जकड़ लिया, नतीजतन घर-परिवार की आर्थिक स्थिति
बिगडऩे लगी। ऐसे में उनकी शौकिया फोटोग्राफी ने प्रोफेशनल रूप ले लिया और
वे शादी-ब्याह, त्यौहारों व सभा-सम्मेलनों में फोटोग्राफी करने लगी। फोटो
खींचने से लेकर डवलपिंग(चूंकि उन दिनों ब्लेक एंड व्हाइट का जमाना था) व
प्रिंटिंग करके ग्राहकों को देना..सब कुछ खुद ही कर लेती थी। राजपूत समाज
में पर्दा प्रथा का रिवाज होने के चलते विजय लक्ष्मी बतौर फोटोग्राफर हमेशा
उनकी पहली पसंद रही। एक बार उदयपुर राजघराने के द्वारा खास तौर से इन्हें
फोटो खींचने बुलाए जाने के बाद तो विजय लक्ष्मी राजपूत घरों की पसंदीदा
फोटोग्राफर ही बन गई। राजस्थानी में एम ए विजय लक्ष्मी बताती हैं कि
उन्होंने पहली बार कैमरा उपयोग में लेते हुए एक बच्चें की फोटो खींची थी।
जोधपुर के पब्लिक पार्क में उन्होंने ‘वाइल्ड एनीमल्स’ की फोटोग्राफी
प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और यहीं से उनका प्रोफेशनल सफर शुरू हो गया।
उनके अनुसार उन्हें असली पहचान मरूधरा फोटोग्राफी सोसायटी ने दिलाई।
‘वाइल्ड एनीमल्स’ की फोटो बेस्ट अचीवमेंट
विजय
लक्ष्मी ने महानगर में होने वाली हर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया व
पुरूस्कार जीते। इसके अलावा पर्यटन, कला व संस्कृति विभाग के द्वारा भी
इन्हें, वर्ष 1984 में इनके द्वारा बांध के लिए एक छायाचित्र संदर्भ में
सम्मानित(द्वितीय पुरूस्कार) किया जा चुका हैं। अपने कैमरे में हजारों
दृश्यों को कैद कर चुकी विजय लक्ष्मी प्रजापति जीवन का बेस्ट अचीवमेंट
‘वाइल्ड एनीमल्स’ की फोटो को मानती हैं। महिला साक्षरता को बढ़ावा देने
हेतु इससे जुड़े नारे भले ही नब्बे के दशक में परवान चढ़े हो, विजय लक्ष्मी
ने ‘पढ़ी लिखी जब होगी माता, घर की बनेगी भाग्य विधाता’, ‘हर महिला को
शिक्षित बनाओ, परिवार में खुशहाली लाओ’ एवं ‘एक नारी पढ़ेगी, सात पीढ़ी
तरेगी’ जैसे नारों को वर्षो पहले ही आत्मसात करते हुए चरित्रार्थ कर दिया।
विजय लक्ष्मी ने शादी के बाद न केवल अपनी मेट्रिक से आगे की पढ़ाई करते हुए
राजस्थानी में एम ए किया, अपने परिवार की शिक्षा को लेकर भी सजगता बरती।
नतीजतन दोनो संताने सरकारी सेवा में हैं, बेटा इंजीनियर व बेटी अध्यापिका
हैं। एक महिला के तौर पर हासिल अचीवमेंट को राज्य सरकार द्वारा गंभीरता से
नहीं लिए जाने के सवाल का विजय लक्ष्मी कोई सीधा जवाब तो नहीं दे रही
किन्तु यह अवश्य कहती हैं कि महिला सम्मान व प्रोत्साहन को लेकर अब वाकई
सरकारों को दिल से संजीदा होने की आवश्यकता हैं। उनकी स्पष्ट मान्यता हैं
कि आज की महिला किसी भी मायने में पुरूषों से कम नहीं हैं। भविष्य में
गर्वनमेंट द्वारा उन्हें किसी स्तर पर सम्मानित किए जाने के सवाल पर वे बस
मुस्कराकर रह जाती हैं।
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