घनश्याम डी रामावत
भारत की पावन भूमि पर कई संत-महात्मा अवतरित हुए हैं, जिन्होंने धर्म से विमुख सामान्य मनुष्य में अध्यात्म की चेतना जागृत कर उसका नाता ईश्वरीय मार्ग से जोड़ा हैं। ऐसे ही एक अलौकिक अवतार गुरू श्री नानक देव हैं। कहा जाता हैं कि श्री गुरू नानक देव का आगमन ऐसे युग में हुआ, जो इस देश के इतिहास के सबसे अंधेरे युगों में था। उनका जन्म 1449 में लाहौर से 30 मील दूर दक्षिण-पश्चिम में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ जो इस समय पाकिस्तान में हैं। आगे जाकर गुरूदेव के सम्मान में इस स्थान का नाम ‘ननकाना साहिब’ रखा गया। श्री गुरू नानक देव संत, कवि व समाज सुधारक थे। धर्म काफी समय से थोथी रस्मों और रीति-रिवाजों का नाम बनकर रह गया था। उत्तरी भारत के लिए यह कुशासन और अफरा-तफरी का समय था। सामाजिक जीवन में भारी भ्रष्टाचार था और धार्मिक क्षेत्र में द्वेष और कशमकश का दौर था। न केवल हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच में ही, बल्कि दोनों बड़े धर्मों के भिन्न-भिन्न संप्रदायों के बीच भी। इन कारणो से भिन्न-भिन्न संप्रदायों में और भी कट्टरता व बैर-विरोध की भावना पैदा हो चुकी थी। उस वक्त समाज की हालत वाकई बदत्तर थी।
ब्राह्मणवाद ने अपना एकाधिकार बना रखा था। उसका परिणाम यह था कि गैर- ब्राह्मण को वेद शास्त्राध्ययन से हतोत्साहित किया जाने लगा। निम्न जाति के लोगों को इन्हें पढऩा बिल्कुल वर्जित था। इस ऊंच-नीच का गुरू श्री नानक देव अपनी मुखवाणी जपुजी साहिब में कहते हैं कि ‘नानक उत्तम-नीच न कोई..’ जिसका भावार्थ हैं कि ईश्वर की निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं फिर भी अगर कोई व्यक्ति अपने आपकों उस प्रभु की निगाह में छोटा समझे तो ईश्वर उस व्यक्ति के हर समय साथ हैं। यह तभी हो सकता हैं जब व्यक्ति ईश्वर के नाम द्वारा अपना अहंकार दूर कर लेता हैं। तब व्यक्ति ईश्वर की निगाह में सबसे बड़ा हैं और उसके समान कोई नहीं। गुरू श्री नानक देव की वाणी में-नीचा अंदर नीच जात, नीची हूं अति नीच। नानक तिन के संगी साथ, वडियां सिऊ कियां रीस? समाज में समानता का नारा देने के लिए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता हैं और हम सब उसके बच्चे हैं। पिता की निगाह में कोई छोटा अथवा बड़ा नहीं होता। वहीं हमें पैदा करता हैं और हमारे पेट भरने के लिए खाना भेजता हैं। नानक जंत उपाइके, संभालै सभनाह। जिन करते करना कीआ, चिंताभिकरणी ताहर? जब हम एक पिता एकस के वारिस बन जाते हैं तो पिता की निगाह में जात-पात का सवाल ही नहीं पैदा होता।
श्री गुरू नानक देव जात-पात का विरोध करते थे। उन्होंंने समाज को बताया कि मानव जाति तो एक ही हैं फिर यह जाति के कारण ऊंच-नीच क्यों? श्री गुरू नानक देव ने कहा कि मनुष्य की जाति न पूछो, जब व्यक्ति ईश्वर की दरगाह में जाएगा तो वहां जाति नहीं पूछी जाएगी। सिर्फ आपके कर्म ही देखे जाएंगे। श्री गुरू नानक देव ने पित्तर-पूजा, तंत्र-मंत्र और छुआ-छूत की भी आलोचना की। इस प्रकार हम देखते हैं कि श्री गुरू नानक साहिब हिन्दू और मुसलमानों में एक सेतु के समान हैं। हिन्दू उन्हें गुरू एवं मुसलमान पीर के रूप में मानते हैं। उन्होंने हमेशा ऊंच-नीच और जाति-पांति का विरोध करने वाले श्री गुरू नानक देव ने सबको समान समझकर गुरू का लंगर शुरू किया, जो एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करने की प्रथा हैं। श्री गुरू नानक देव महत्वपूर्ण व गंभीर संदेश आमजन को बेहद साधारण तरीके से दे देते थे। उन्होंने एक बार महज एक सुई के माध्यम से एक रईस इंसान को अपनी गलती का अहसास करा दिया। श्री गुरू नानक देव बहुत दयालु और हिम्मती होने के साथ ही हमेशा मुस्कराते रहने वाले महापुरूष थे।
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