Wednesday 25 May 2016

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: किसानों के हित में भारत सरकार की अभिनव पहल

घनश्याम डी रामावत
भारतीय अर्थव्यवस्था के कृषि प्रधान होने के कारण भारतीय सरकार ने समय-समय पर कृषि के विकास के लिये अनेक योजनाओं को शुरु किया, जिसमें से कुछ योजनाएं, जैसे-गहन कृषि विकास कार्यक्रम(1960-61), गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम(1964-65), हरित क्रान्ति(1966-67), सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम(1973) आदि। लेकिन इन सभी योजनाओं के बाद भी कृषि क्षेत्र की अनिश्चिताओं का समाधान नहीं हुआ, जिससे आज 21वीं सदी में भी किसान सुरक्षित नहीं  हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से भारत के हरेक क्षेत्र में विकास के प्रोत्साहन के लिये अनेक योजनाओं को शुरु किया  हैं, जिसमें किसानों की फसल के संबंध में अनिश्चितताओं को दूर करने के लिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट ने इस वर्ष की शुरूआत में 13 जनवरी को ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ को मंजूरी दे दी। ये योजना यकीनन 13 जनवरी को लोहड़ी के शुभ अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी की ओर से किसानों को दिया गया बेहतरीन तोहफा  हैं। सही मायने में किसानों के हित में इस भारत सरकार की अभिनव पहल कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं हैं। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ किसानों की फसल को प्राकृतिक आपदाओं के कारण हुयी हानि को किसानों के प्रीमियम का भुगतान देकर एक सीमा तक कम करायेगी।

इस योजना को सही से समझने की आवश्यकता
‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गयी योजना  हैं, जिसके शुरू करने के प्रस्ताव को 13 जनवरी 2016 को केन्द्रीय मत्रि-परिषद ने अपनी मंजूरी दी  हैं। इस योजना के लिये 8,800 करोड़ रूपये खर्च किए जाएंगे। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ अन्तर्गत किसानों को बीमा कम्पनियों द्वारा निश्चित खरीफ की फसल के लिये 2 प्रतिशत प्रीमियम और रबी की फसल के लिये 1.5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान करेगा। ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ पूरी तरह से किसानों के हित को ध्यान में रख कर बनायी गई हैं। इसमें प्राकृतिक आपदाओं के कारण खराब हुई फसल के खिलाफ किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली बीमा की किस्तों को बहुत नीचा रखा गया  हैं, जिनका प्रत्येक स्तर का किसान आसानी से भुगतान कर सके। ये योजना न केवल खरीफ और रबी की फसलों को बल्कि वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिए भी सुरक्षा प्रदान करती  हैं, वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों के लिये किसानों को 5 प्रतिशत प्रीमियम(किस्त) का भुगतान करना होगा।

किसानों के हित में योजना के मुख्य तथ्य
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, किसानों के त्योहार लोहड़ी, मकर संक्रान्ति, पोंगल, बिहू के शुभ अवसर पर भारतीय किसानों के लिये उपहार है। किसानों के कल्याण के लिये इस फसल बीमा योजना में शामिल किये गये मुख्य तथ्य निम्नलिखित हैं-
1.प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की भुगतान की जाने वाली प्रीमियम(किस्तों) दरों को किसानों की सुविधा के लिये बहुत कम रखा गया है ताकि सभी स्तर के किसान आसानी से फसल बीमा का लाभ ले सकें।
2.इस योजना को आने वाले खरीफ फसलों के मौसम से शुरु किया जायेगा।
3.इसके अन्तर्गत सभी प्रकार की फसलों(रबी, खरीफ, वाणिज्यिक और बागवानी की फसलें) को शामिल किया गया है।
4.खरीफ(धान या चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना आदि) की फसलों के लिये 2 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा।
5.रबी(गेंहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों आदि) की फसल के लिये 1.5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा।
6.वार्षिक वाणिज्यिक और बागवानी फसलों बीमा के लिये 5 प्रतिशत प्रीमियम का भुगतान किया जायेगा।
7.सरकारी सब्सिडी पर कोई ऊपरी सीमा नहीं है। यदि बचा हुआ प्रीमियम 90 प्रतिशत होता  हैं तो ये सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
8.शेष प्रीमियम बीमा कम्पनियों को सरकार द्वारा दिया जायेगा। ये राज्य तथा केन्द्रीय सरकार में बराबर-बराबर बांटा जाएगा।
9.ये योजना राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना(एनएआईएस) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना(एमएनएआईएस) का स्थान लेती  हैं।
10.इसकी प्रीमियम दर एनएआईएस और एमएनएआईएस दोनों योजनाओं से बहुत कम हैं साथ ही इन दोनों योजनाओं की तुलना में पूरी बीमा राशि को कवर करती हैं।
11.इससे पहले की योजनाओं में प्रीमियम दर को ढकने का प्रावधान था जिसके परिणामस्वरुप किसानों के लिये भुगतान के कम दावे पेश किये जाते थे। ये कैपिंग सरकारी सब्सिडी प्रीमियम के खर्च को सीमित करने के लिये थी, जिसे अब हटा दिया गया हैं और किसान को बिना किसी कमी के दावा की गयी राशि के खिलाफ पूरा दावा मिल जायेगा।
12.प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत तकनीकी का अनिवार्य प्रयोग किया जायेगा, जिससे किसान सिर्फ मोबाईल के माध्यम से अपनी फसल के नुकसान के बारें में तुरंत आंकलन कर सकता हैं।
13.ये योजना सभी प्रकार की फसलों के प्रीमियम को निर्धारित करते हुये सभी प्रकार की फसलों के लिये बीमा योजना को लागू करती हैं।
14.प्रधानमंत्री फसल योजना के अन्तर्गत आने वाले 3 सालों के अन्तर्गत सरकार द्वारा 8,800 करोड़ खर्च करने के साथ ही 50 प्रतिशत किसानों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया हैं।
15.मनुष्य द्वारा निर्मित आपदाओं जैसे-आग लगना, चोरी होना, सेंध लगना आदि को इस योजना के अन्तर्गत शामिल नहीं किया जाता है।
16.प्रीमियम की दरों में एकरुपता लाने के लिये, भारत में सभी जिलों को समूहों में दीर्घकालीन आधार पर बांट दिया जायेगा।
17.ये नयी फसल बीमा योजना ‘एक राष्ट्र एक योजना’ विषय पर आधारित हैं। ये पुरानी योजनाओं की सभी अच्छाईयों को धारण करते हुये उन योजनाओं की कमियों और बुराईयों को दूर करता हैं।

भारतीय व्यवस्था विश्व में सबसे अनोखी अर्थव्यवस्था
पूरे विश्व में भारतीय व्यवस्था सबसे अनोखी अर्थव्यवस्था को धारण किए हुये हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था कहा जाता हैं क्योंकि भारत की लगभग 71 प्रतिशत जनसंख्या कृषि आधारित उद्योगो से अपना जीवन यापन करती हैं साथ ही पूरे विश्व में लगभग 1.5 प्रतिशत खाद्य उत्पादकों का निर्यात भी करताहैं। भारत दूसरा सबसे बड़ा कृषि उत्पादक देश हैं जो सकल घरेलू उत्पादन का लगभग 14.2 प्रतिशत आय का भाग रखता हैं। इस तरह, ये स्पष्ट हो जाता हैं कि भारत की लगभग आधी से ज्यादा जनसंख्या और देश की कुल राष्ट्रीय आय का लगभग 14 प्रतिशत आय का भाग कृषि से प्राप्त होता है जिससे देश की अर्थव्यवस्था को एक मजबूत आधार मिलता हैं। अत: कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कही जाती हैं। भारत में कृषि की इतनी अधिक महत्ता के बाद भी भारतीय कृषि, प्रकृति की अनिश्चित कालीन दशा पर निर्भर हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से भारतीय सरकार ने देश के विकास के लिये औद्योगिकीकरण पर विशेष बल दिया जिसमें कहीं न कहीं कृषि पिछड़ गयी, हांलाकि कृषि के विकास के लिये भी भारत सरकार ने अनेक कार्यक्रम चलाये जिसमें हरित क्रान्ति(1966-67) किसानों की फसल के लिये सबसे बड़ी योजना थी, जिसने कृषि के क्षेत्र में एक नयी क्रान्ति को जन्म दिया और भारत में गिरती हुयी कृषि की अवस्था में सुधार किया। लेकिन सरकार द्वारा किये गये इतने प्रयासों के बाद भी भारतीय कृषि संरचना की स्वरूप में बदलाव नहीं हुआ। हांलाकि, भारत में कृषि के विकास से संबंधित अनेक योजनाएं अस्तित्व में हैं, किन्तु वो पूरी तरह से किसानों के कृषि संबंधित जोखिमों और अनिश्चिताओं को कम नहीं करती हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना बहुत हद तक प्राकृतिक आपदाओं जैसे-सूखा, बाढ़, बारिश इत्यादि से किसानों को सुरक्षा प्रदान करती हैं। ये पुरानी योजनाओं में व्याप्त बुराईयों को दूर करके बीमा प्रदान करने वाले क्षेत्रों और बीमा के अन्तगर्त आने वाली सभी फसलों की सही-सही व्याख्या करती हैं।

किसानों की हितैषी इस योजना का महत्व और लाभ
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ को केन्द्रीय मंत्रि-परिषद से पारित कराकर भारतीय किसानों के लिये बहुत बड़ी सौगात दी हैं। ये योजना अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण योजना हैं क्योंकि ये भारतीय अर्थव्यवस्था के मुख्य आधार कृषि से जुड़ी हुई हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसे समय में अस्तित्व में आई है जब भारत दीर्घकालीन ग्रामीण संकट का सामना कर रहा हैं, इसलिये इस योजना के कैबिनेट से पास हो जाने के तुरंत बाद से स्वत: ही इसका महत्व बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त इस योजना के कुछ प्रमुख महत्व और लाभ निम्नलिखित हैं-
1.प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की प्रीमियम की दर बहुत कम हैं जिससे किसान इसकी किस्तों का भुगतान आसानी से कर सकेंगे।
2.ये योजना सभी प्रकार की फसलों को बीमा क्षेत्र में शामिल करती हैं, जिससे सभी किसान किसी भी फसल के उत्पादन के समय अनिश्चिताओं से मुक्त होकर जोखिम वाली फसलों का भी उत्पादन करेंगे।
3.ये योजना किसानों को मनोवैज्ञानिक रुप से स्वस्थ्य बनायेगी।
4.इस योजना के क्रियान्वयन के साथ ही भविष्य में सकल घरेलू उत्पादकता को बढ़ायेगी।
5.इस योजना के क्रियान्वयन से किसानों में सकारात्मक ऊर्जा का विकास होगा जिससे किसानों की कार्यक्षमता में सुधार होगा।
6.सूखे और बाढ़ के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में कमी आयेगी।
7.स्मार्टफोन के माध्यम से कोई भी किसान आसानी से अपने नुकसान का अनुमान लगा सकता हैं।

Saturday 21 May 2016

रसिक बिहारी मंदिर: राजस्थानी वास्तुशैली के साथ शिल्प व स्थापत्य कला की जीवंत तस्वीर

घनश्याम डी रामावत
जोधपुर शहर में अनेक ऐसे मंदिर हैं जो शिल्प व स्थापत्य कला की उन्नत परम्पराओं को मनमोहक रूप देते हुए अपनी पहचान कायम किए हुए हैं। उदयमंदिर मार्ग स्थित रसिक बिहारी जी का भव्य मंदिर भी ऐसी ही अद्भुत/नायाब विशेषताओं को स्वयं में समेटे हुए हैं। यह मंदिर शिल्प व स्थापत्य कला को तो स्वयं में संजाए हुए ही हैं, आस्था/श्रद्धा के साथ राजस्थानी की सुदृढ़ वास्तुशैली के दर्शन भी कराता हैं। जोधपुर अर्थात सूर्यनगरी के वाशिंदे रसिक बिहारी जी के मंदिर को ‘नैनी बाई के मंदिर’ के नाम से भी जानते हैं। महाराजा जसवंतसिंह(द्वितीय) ने विक्रम संवत 1926 में अपनी प्रेयसी नन्हीं भगतन की इच्छा से मंदिर बनवाया था।

17 फुट आयताकार चबूतरे पर बना हैं मंदिर
रसिक बिहारी मंदिर 17 फुट आयाताकार चबूतरे पर बना हैं। लाल घाटू के पत्थरों से सुघड़ 56 स्तंभों से बने गर्भगृह व परिक्रमा परिसर के बीच रसिक बिहारी विराजित हैं। मंदिर का कलात्मक मुख्यद्वार, तोरणद्वार, कंगूरे, मेहराब व कलात्मक छतरियां तत्कालीन वास्तु कौशल को दर्शाती हैं। कामनंदी व दक्षिणामुखी गणेश मंदिर प्रांगण में महाराजा जसवंतसिंह की ओर से कामनंदी प्रतिमा को विक्रम संवत 1992 में भेंट किया गया। नंदी के पास ही शिलापट्ट पर इसका वर्णन भी हैं। मंदिर में भगवान गणेश की दक्षिणामुखी रिद्धि-सिद्धि, शुभ लाभ व मूसक की अनूठी अखंड प्रतिमा, रथ पर सवार सूर्यदेव, राम लक्ष्मण व शिवालय भी हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व गणेश चतुर्थी के दिन यहां खास उत्सव मनाया जाता हैं।

महर्षि दयानंद की मृत्यु की जिम्मेदार थी नन्हीं भगतन
महर्षि दयानंद का बलिदान नन्हीं भगतन से सबंध रखता हैं। आर्य समाज के इतिहास से परिचित लोग ‘नन्हीं भगतन’ के नाम से अपरिचित नहीं हैं। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद का असामयिक निधन नन्हीं भगतन के षडयंत्र का ही परिणाम था। गायन नर्तन में निपुण नन्हीं बाई एक ऐसी रूपसी थी जिसे महाराजा जसवंतसिंह ने ‘पासवान’ का दर्जा तो नहीं दिया लेकिन उसे जीवन भर किसी भी वैभव राजसी ठाट बाट से वंचित भी नहीं रखा। महाराजा जसवंत सिंह के छोटे भाई व तत्कालीन प्रधानमंत्री सर प्रताप सिंह महाराजा की इन्हीं हरकतों से परेशान थे। महर्षि दयानंद के जोधपुर प्रवास के दौरान राई का बाग महल में महाराजा से भेंट के दौरान नन्हीं बाई के लिए कुछ कड़वे बोल कहे। उसके बाद महाराजा जसवंत सिंह को लिखे पत्र में राज की भलाई के लिए नन्हीं बाई से दूर रहने की नसीहत दी। यह पत्र नन्हीं बाई के हाथों लगा और उसे महर्षि दयानंद की यह बात नागवार गुजरी। आखिरकार उसने षडयंत्र रचकर महर्षि दयानंद को दूध में विष पिलाने में कामयाब रही। कुछ समय बाद में महाराजा जसवंत की अनुपस्थिति में महल छोडऩे का आदेश जारी करने के बाद नन्हीं भक्तन रसिक बिहारी मंदिर के पीछे कमरों में रहने लगी।

61 साल की उम्र में नन्हीं बाई ने आंखे मूंदी
रसिक बिहारी मंदिर परिसर में कई साल बिताने के बाद 23 अगस्त 1909 को 61 साल की उम्र में असाध्य रोगों से पीडि़त नन्हीं बाई ने आंखे मूंदी। कहते हैं मरने के बाद उसके पास से छह सौ जोड़ी रत्न जडि़त जूतियां, 800 से अधिक रेशमी घाघरे, घोड़े, बग्घी, सहित तत्कालीन करीब 20 लाख रुपए का बेशकीमती सामान मिला था। नि:संतान होने के कारण राज-नियमानुसार सारा सामान जब्त कर शिक्षण संस्थाओं को दान किया गया। ज्ञातव्य रहें, तत्कालीन राजपुताने में भगतन एक जाति का नाम रहा हैं। इसकी उत्पत्ति साधुओं से कही जाती हैं। महाराजा तख्तसिंह के समय मारवाड़ में करीब डेढ़ सौ परिवार आबाद थे।

गुरों का तालाब ‘पाश्र्वनाथ जैन मंदिर’: नाग करते हैं मंदिर की सुरक्षा

घनश्याम डी रामावत
गुरों का तालाब(जोधपुर) स्थित चिन्तामणी पाश्र्वनाथ जैन मंदिर पेढ़ी/तीर्थ सूर्यनगरी के प्रमुख आराध्य स्थलों में गिना जाता हैं।

यह मंदिर जैन समाज के मुख्य आराध्य स्थलों में हैं, जहां आज भी नित्य पारंपरिक तरीके से पूजा की जाती हैं। इस मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता हैं कि नागों(सर्पों) ने इस मंदिर व तपो भूमि को सैंकड़ों वर्षो से सुरक्षित कर रखा  हैं। मंदिर संचालन समिति के सचिव पारसमल भंसाली के अनुसार यह मंदिर 175 वर्ष पुराना हैं। राजा मानसिंह ने 40 बीघा जमीन धार्मिक कार्यों के लिए दान की थी। इस मंदिर की स्थापना सन् 1840 में की गई। मंदिर की स्थापना गुरोंसा(जैन समाज में जो यति होते हैं, उनको गुरोंसा कहा जाता हैं) निहालचंद के शिष्यों गुरोंसा दीपचंद, वनेचंद तथा हरखचंद ने किया था, इसलिए इस मंदिर का नाम गुरों तालाब से पड़ा। इस चालीस बीघा जमीन पर मंदिर, तालाब, बाग व अंतिम गुरोंसा लालचंद द्वारा निर्मित चरण पादुकाएं हैं।


भाद्रपद शुक्ला दशमीं को ध्वजा/सांप देते हैं दर्शन
मंदिर संचालन समिति के सचिव पारसमल भंसाली के अनुसार इस मंदिर का निर्माण गुरोंसा ने अपने तंत्र-मंत्र की विशेष विद्या द्वारा कराया था। इस मंदिर में पाश्र्वनाथ भगवान के साथ पद्मावती माता की प्राचीन/चमत्कारी प्रतिमा हैं। मंदिर पर प्रत्येक भाद्रपद शुक्ला दशमीं का ध्वजा चढ़ाई जाती हैं। ऐसी मान्यता हैं कि ध्वजा का लाभ लेने वालों की हर मनोकामना पूरी होती हैं। जैन संघ से ताल्लुक रखने वाले धनराज विनायकिया की माने तो यह मंदिर नागों द्वारा सुरक्षित हैं। यहां विभिन्न प्रजातियों के सर्प दर्शन देते रहते हैं। उनके अनुसार सर्पों ने आजतक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया हैं। उन्होंने बताया कि यहां कभी काला, कभी चितकबरा तो कभी पांच मुंह वाला नाग भी घूमता दिखाई दिया हैं। विनायकिया के अनुसार नाग मंदिर की सुरक्षा करते हैं। यह मंदिर कला की दृष्टि से भी बेजोड़ा हैं। इस मंंदिर का रंग मण्डप किले के रंग मण्डप जैसा हैं। यहां समय-समय पर साधु-संतों के चातुर्मास होते रहते हैं।

रानी जी का मंदिर: जन्माष्टमी पर होता हैं हिंडोला उत्सव

घनश्याम डी रामावत
जोधपुर महानगर में सरदारपुरा बी रोड़ स्थित रानीजी मंदिर का निर्माण महाराजा सुमेरसिंह की रानी उमराव कंवर ने संवत् 1988 में करवाया था। पुष्टीमार्गीय परम्परा से जुड़े 84 वर्ष पूर्व 1931 में निर्मित इस मंदिर में मुख्य मूर्ति भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की प्रतिष्ठित हैं।

संगमरमर से निर्मित मुख्य गर्भगृह प्रवेश द्वार में चांदी के पाट पर ठाकुर जी युगल स्वरूप में तथा लड्डू गोपाल रूप में विराजित हैं। रानी उमराव कंवर महाराजा के स्वर्गवास के बाद भगवान श्रीकृष्ण को ही अपना आरध्य मानकर सेवा पूजा करने लगी थी। रानी उमराव कंवर ने मंदिर के निर्माण के साथ एक कृष्ण कुज नोहरा तथा उसमें एक बेरे का निर्माण करवाया था। संवत् 1988 अर्थात 1931 के माघ सुदी दशमी बुधवार को महाराजा उम्मेदसिंह के सानिध्य में इस मंदिर में ठाकुर जी राधे-गोविन्द की मूर्ति की प्रतिष्ठा की गई। रानी उमराव कंवर ने वृंदावन में भी अपने आराध्य देव का मंदिर व घाट बनवाया और वहीं पर अपने आराध्य के ध्यान में मंदिर की सीढिय़ों पर अपने प्राण त्याग दिए थे। वर्तमान में मंदिर का संचालन व देखरेख मांजी चौहानजी साहिबां रिलिजियस ट्रस्ट की ओर से किया जाता हैं जिसके मुख्य ट्रस्टी पूर्व सांसद कृष्णाकुमारी, पूर्व सांसद गजसिह, हेमलता राज्ये व गायत्री देवी हैं। ट्रस्ट सचिव कल्याणसिंह राठौड़ के अनुसार मंदिर का प्रबंधन ठाकुर नटवरसिंह झालामंड देखते हैं।


जन्माष्टमी पर होता हैं हिंडोला उत्सव
रानीजी के मंदिर में प्रतिवर्ष जन्माष्टमी महोत्सव और प्रत्येक श्रावण मास में हिंडोला उत्सव मनाया जाता हैं। इसके अलावा रथ यात्रा भी आयोजित होती हैं। उत्सव के दौरान चांदी से निर्मित विशेष झूले में ठाकुर जी को विराजित किया जाता हैं। रानीजी मंदिर परिसर में भगवान श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं से ताल्लुक रखते अनेक भित्ति चित्र मौजूद हैं। इनमें श्रीकृष्ण जन्म, गोचारण लीला, पालने में यशोदानंदन व सूरदास के साथ बालकृष्ण के चित्र प्रमुख हैं। मंदिर के मध्य भाग में एक फव्वारां भी हैं जिसे खास उत्सव अथवा मौकों पर आरम्भ किया जाता हैं। लाल घाटू के पत्थरों से निर्मित मंदिर के मध्य भाग की ऊंचाई करीब चालीस फीट हैं। मंदिर परिसर में ही जोधपुर के पूर्व शासकों के चित्र भी लगे हुए हैं। मंदिर में एक दीपक स्टेण्ड भी हैं जिस पर करीब 101 दीपक एक साथ प्रज्जवलित किए जा सकते हैं।

प्रात:काल 6.30 बजे मंगला आरती
रानीजी मंदिर के वर्तमान पुजारी नरपतलाल व्यास के अनुसार मंदिर में प्रात:काल 6 बजकर तीस मिनट पर मंगला आरती, सायंकाल सात बजे संध्या तथा रात्रि आठ बजे शयन आरती का आयोजन होता हैं।

जोधपुर शनिश्चर थान: प्राचीन श्यामवर्णी शनि प्रतिमा

घनश्याम डी रामावत
जोधपुर स्थित ‘शनिश्चर थान’ भारतवर्ष में भगवान शनिदेव का अकेला एक ऐसा अनूठा मंदिर हैं, जहां सूर्यपुत्र शनिदेव की पूजा शत-प्रतिशत वैष्णव तरीके से की जाती हैं। करीब 200 वर्ष प्राचीन इस मंदिर में
शनिदेव वैष्णव व रामानन्दी तिलक धारण किए हुए हैं। मंदिर में भगवान शनिदेव की एक गर्भ मूर्ति तथा दूसरा स्वरूप श्याम वर्णी हैं। गर्भ मूर्ति(पिण्ड मूर्ति) का अभिषेक ईत्र, केसर व वर्क से होता हैं। ‘शनिश्चर थान’ स्थित शनि प्रतिमा की विशेषता हैं कि मूर्ति सौम्य स्वरूप हैं। सूर्यनगरी अर्थात जोधपुर शहर के मध्य ‘शनिश्चर थान’ के नाम से विख्यात भगवान शनिदेव का यह मन्दिर लाखों-करोड़ों या यूं कहे अनगिनत लोगों की श्रद्धा का केन्द्र हैं। शनिवार को तो यहां मेले सा माहौल रहता हैं। ‘शनिश्चर थान’ में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित हैं और यहां भगवान शनिदेव को उड़द से निर्मित इमरती मिठाई का भोग लगाया जाता हैं। शनिदेव की श्याम वर्णी प्रतिमा को मखाने, मावे तथा ऋतु पुष्प भी अर्पित किए जाते हैं।

यहां तेल नहीं चढ़ाया जाता/शनि जयंती पर उत्सव
‘शनिश्चर थान’ मंदिर में ज्येष्ठ मास में शनि जयंती उत्सव के रूप में मनाई जाती हैं। इसी प्रकार शनिश्चर अमावस्या को भी श्रद्धालु भगवान की खास पूजा अर्चना करते हैं तथा इस दिन भी यहां विशेष धार्मिक माहौल रहता हैं। शनि जयंती के दिन ‘शनि शांति हवन-अभिषेक’ में केवल औषधि, तेल, घी, पंचामृत, फलों का रस व ईत्र का प्रयोग होता हैं। शनि जयंती की रात्रि में भगवान शनिदेव की प्रतिमा कालाग्री त्रिकाल स्वरूप का श्रृंगार कर काले वस्त्र व काले खाद्यान्नों का भोग लगाया जाता हैं। यहां विशेष बात यह भी हैं कि मंदिर में प्रतिमा के समक्ष तेल नहीं चढ़ाया जाता हैं। आमतौर पर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शनिदेव की कोप दृष्टि से बचने के लिए तेल का दान किया जाता हैं किन्तु जोधपुर के इस अति-प्राचीन मंदिर में तेल, तिल, उड़द व लौह इत्यादि का दान नहीं लिया जाता हैं। यदि कोई श्रद्धालु जबरन चढ़ाता भी हैं तो उसे मंदिर प्रबंधन की ओर से गौशालाओं का भेंट कर दिया जाता हैं।

पूर्व में मंदिर श्मशान किनारे स्थापित था
जोधपुर का सबसे प्राचीन कहा जाने वाला ‘शनिश्चर थान’ मंदिर 200 वर्ष पूर्व श्मशान किनारे स्थापित था। मंदिर में वर्तमान पुजारी परमसुख वैष्णव पांचवी पीढ़ी हैं जो इस पावन धाम में सेवारत हैं। ‘शनिश्चर थान’ मंदिर का संचालन सुमेर मार्केट अनाज मंडी के व्यापारियों की ओर से निर्मित ‘शनिश्चर थान ट्रस्ट’ की ओर से किया जाता हैं। ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष दलपत डागा तथा सचिव पुखराज लोहिया हैं। व्यवस्थापक रामाराम पटेल के अनुसार मंदिर की बाउण्ड्री के बाहर वर्ष 1935 तक श्मशान था जो उम्मेद चिकित्सालय के निर्माण के बाद प्रतापनगर-सिवांची गेट मार्ग पर शिफ्ट कर दिया गया। मंदिर प्रांगण में विशाल कुआं भी हैं। ‘शनिश्चर थान’ मंदिर मुख्य गर्भ गृह के पासस राधा माधव, शिव परिवार, राम परिवार, जैन दादा गुरू एवं हनुमान जी का मंदिर भी हैं।

कभी किसान रात्रि विश्राम करते थे
करीब सात दशक पूर्व तक ‘शनिश्चर थान’ मंदिर में ग्रामीण अंचल से फसल बेचने हेतु आने वाले किसान रात्रि पड़ाव डालते थे। मंदिर के नजदीक सिवांची गेट प्रवेश का द्वार था जो शाम को बंद होने के बाद अगले दिन प्रात:काल ही खुलता था। किसान जोधपुर शहर में विलंब से पहुंचते थे, लिहाजा प्रवेश द्वार बंद होने की वजह से वे मंदिर प्रांगण के खुले परिसर में ही विश्राम करते थे।