Saturday 15 December 2018

चुनाव नतीजें एनडीए के लिए खतरे की घंटी!

 घनश्याम डी रामावत
2019 अर्थात करीब 5-6 माह बाद होने वाले के लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए/खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ महागठबंधन की कवायद अभी तक परवान न चढऩे का एक बड़ा कारण था हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा परिणाम। विपक्षी पार्टियां यह देख रही थीं कि इन राज्यों में कांग्रेस कितनी मजबूत होकर निकलती है। दरअसल सभी विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे की ताकत आंकने में लगी हुई थीं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के इंतजार की एक वजह यह भी थी कि इससे महागठबंधन की ओर बढऩे का रास्ता खुलता दिखे। ऐसा माना जा रहा था कि पांच राज्यों के जनादेश के मार्फत सभी दलों को जमीनी हकीकत का अंदाजा लग जाएगा और उसके बाद जब वह बातचीत के लिए बैठेंगे तो किसी भ्रम में नहीं होंगे।

5 राज्यों के नतीजों से उत्साह का माहौल
कांग्रेस जिस तरह से एक के बाद एक राज्यों में बेदखल हो रही थी उसके बाद प्रमुख विपक्षी दलों में महागठबंधन के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया था। पर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आज जिस तरह से कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन सामने आया है, इन दलों का कांग्रेस के प्रति नजरिया बदलेगा। अब यह सवाल शायद ही कोई पूछे कि कांग्रेस का नेतृत्व क्यों? इन तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस दूसरा बड़ा दल देशभर में बन गया है। अब उसकी पांच राज्यों में सरकारें हैं। तीन राज्यों में भाजपा को सीधी टक्कर में हराने के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय पार्टी के अपने वजूद को साबित कर दिया है। यह तय हो गया है कि अब जो भी महागठबंधन बनेगा वह कांग्रेस के ही नेतृत्व में बनेगा। इस जीत का सबसे बड़ा संदेश यह है कि भाजपा, नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी को सीधी टक्कर में हराया जा सकता है। कांग्रेस को भी यह बात समझ में आ गई होगी कि भाजपा को सीधी टक्कर देने के लिए उसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की जरूरत होगी। कर्नाटक में बीएसपी-जेडीएस की ताकत समझने में उससे भूल हुई थी। वैसी ही गलती मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बसपा के साथ गठबंधन पर हुई। 

राहुल गांधी को स्वीकारना अब आसान हुआ
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीती हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी घोषणा कर दी है कि वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करेंगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों को खारिज कर दिया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने परिणामों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गांधी परिवार पर निजी हमलों पर घेरते हुए कहा कि ऐसे ऊंचे पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसा करना शोभा नहीं देता। राकांपा सुप्रीमों पंवार के अनुसार उनका दल कांग्रेस को समर्थन देगा। उन्होंने सुझाव दिया कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लेना चाहिए। मराठा क्षत्रप ने कहा कि जनता को यह बात पसंद नहीं आई कि कांग्रेस अध्यक्ष का मजाक उड़ाया जाए। परिणामों में साफ दिख गया है कि लोगों ने राहुल गांधी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि लोगों ने मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है और विधानसभा परिणाम बदलाव की शुरुआत है। लोगों ने किसान विरोधी, व्यापारी विरोधी, बेरोजगार विरोधी नीति को खारिज कर दिया है। 

विपक्षी एकजुटता से ही शिकस्त संभव
बीजेपी के पास आरएसएस का मजबूत काडर होने के साथ ही सोशल मीडिया पर जबरदस्त पकड़ है, बावजूद इसके अब यह सवाल वाकई महत्वहीन होता प्रतीत होता है कि *क्या मोदी को हराना मुश्किल है? राजनीतिक समीक्षकों की माने तो मोदी को पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि नरेन्द्र मोदी को शिकस्त देना मुश्किल नहीं है, यदि विपक्षी पूरी तरह एकजुट हो जाए। अगर महागठबंधन होता है तो विपक्ष को जबरदस्त लाभ मिलेगा। ताजे चुनाव परिणामों ने साबित किया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 2014 के मुकाबले गिरा है। लोकसभा चुनाव आज हों तो इन पांच राज्यों में भाजपा को 40 सीटों का घाटा है। 2014 के लोकसभा चुनाव की रोशनी में देखें तो भाजपा को केवल इन पांच राज्यों में ही 40 सीटों का घाटा उठाना पड़ सकता है। इन राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें हैं। भाजपा के पास वर्तमान में इनमें से 63 सीटें हैं। विपक्षी एकता लोकसभा चुनाव के लिए कितनी कामयाब होगी, यह वक्त ही बताएगा। अभी तक भाजपा के खिलाफ जो विपक्षी पार्टियों की एकजुटता में शामिल हैं, वह करीब 12 राज्यों की 285 से अधिक लोकसभा सीट पर असर डाल सकती हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से विपक्ष की एकजुटता कुछ हद तक साबित हुई है। 

लोकसभा चुनाव 2019 अत्यधिक महत्वपूर्ण
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया व्यक्तव्यों से भी यह स्पष्ट होता है कि सभी दलों में अब यह सहमति बनती जा रही है। अगर एनडीए/नरेन्द्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनाव में हराना है तो सबको अपने मतभेद भूलकर महागठबंधन में पूरे दिल से शामिल होना पड़ेगा। राहुल गांधी के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 अत्यधिक महत्वपूर्ण है, यदि विपक्ष एकजुट होकर/मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ें तो भाजपा को शत प्रतिशत शिकस्त दी जा सकती हैं।
@11th December 2018/11.38pm__

Monday 1 October 2018

इंग्लैण्ड की परविन्दर : भारत में मनाया श्राद्ध/इंटरनेट बना मददगार

घनश्याम डी रामावत
इंटरनेट ने इंसान को कितना हाइटेक बना दिया हैं इसकी ताजा मिसाल उस वक्त देखने को मिली जब इंग्लैण्ड की परविन्दर कौर ने अपने दिवंगत परिजनों का श्राद्ध इंटरनेट का सहारा लेते हुए फेसबुक लाइव के माध्यम से भारत में मनाया। इस मौके जोधपुर के श्री हनुमान-शनिधाम में आश्विन कृष्ण पक्ष की षष्ठी को खास आयोजन किया गया। भारतीय परम्परा में श्राद्ध व इस दौरान किए जाने वाले तर्पण, पूजा पाठ, कर्मकाण्ड व दक्षिणा का खास महत्व हैं। ऐसी मान्यता हैं कि पूरे विधि-विधान से किए जाने वाले श्राद्ध के माध्यम से दिवंगत आत्माओं को मोक्ष/शांति मिलती हैं, जिसके तहत वे इस भौतिक लोक से पूरी तरह मुक्ति पा लेते है एवं जिसे लोक में वे प्रस्थान कर चुके हैं वहां वे शांति के साथ रह पाते हैं। भारत के पंजाब प्रांत से ताल्लुक रखने वाली 60 वर्षीय परविन्दर कौर अपनी चौदह वर्ष की उम्र में इंग्लैण्ड चली गई थी। इंग्लैण्ड में नर्स के रूप में सेवाएं देते हुए वही रच बस चुकी परविन्दर का भारतीय परम्पराओं/यहां के आध्यात्म व कर्मकाण्डों में पूरा भरोसा हैं। परविन्दर कौर इन सब चीजों का बखूबी पालन तो करती ही है/इस बार उन्होंने अपने दिवंगत परिजनों (पति-गरमेलसिंह, पुत्र हरप्रीतसिंह एवं पौत्र जगजीतसिंह) का श्राद्ध पूरे विधि-विधान से भारत में मनाने का निश्चय किया, जिसमें इंटरनेट ने उनकी सबसे बड़ी मदद की।

श्री हनुमान-शनिधाम धार्मिक स्थल में खास आस्था
परविन्दर कौर की जोधपुर स्थित श्री हनुमान-शनिधाम धार्मिक स्थल में खास आस्था हैं। यहीं कारण है कि इन्होंने अपने परिजनों का श्राद्ध इस धार्मिक स्थल में प्रायोजित कराया। वर्षों पूर्व अपने परिजनों को खो चुकी परविन्दर इंग्लैण्ड में प्रतिवर्ष अपने तरीके से इनका श्राद्ध मनाती है। परविन्दर कौर की माने तो इंग्लैण्ड में श्राद्ध सहित अन्य भारतीय परम्पराओं/अनुष्ठानों का सही तरीके से संपादित किया जाना असंभव है क्योंकि संदर्भ में तकनीकी जानकारों का वहां अभाव रहता हैं। अपने दिवंगत परिजनों का श्राद्ध पूरे विधि-विधान व भारतीय परम्पराओं से मनाए जाने हेतु परविन्दर ने श्री हनुमान-शनिधाम के संचालक गोपाल जादूगर (जो परविन्दर के मुंह बोले भाई भी हैं) के माध्यम से वृन्दावन के पण्डित दामोदर शर्मा से सम्पर्क किया। गोपाल जादूगर व पण्डित दामोदर शर्मा के सुदृढ़ आश्वासन के बाद ही परविन्दर कौर ने अपने परिजनों का श्राद्ध जोधपुर के श्री हनुमान-शनिधाम प्रांगण में मनाने का निश्चय किया।

पूरी प्रक्रिया फेसबुक लाइव के माध्यम से 
फेसबुक लाइव के माध्यम से संपादित पूरी प्रक्रिया में श्राद्ध से संबद्ध धार्मिक, आध्यात्मिक, कर्मकाण्ड/विधि-विधान का शत प्रतिशत पालन किया गया। श्रद्धा व आस्था को वैचारिक दृष्टि से चरम पर ले जाने वाले रोमांचकारी इस समूचे आयोजन के दौरान इंग्लैण्ड से परविन्दर कौर फेसबुक लाइव के माध्यम से न केवल ऑन लाइन रही, अपितु पण्डित दामोदर शर्मा के निर्देशन में श्राद्ध संबद्ध मंत्रों का उच्चारण कर व्यक्तिश: अपनी कर्मकाण्ड में उपस्थिति को भी सुनिश्चित किया। धार्मिक आयोजन के तहत दिवंगत परिजनों के निमित तर्पण, पिण्डदान व ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। गोपाल जादूगर के माध्यम से इंग्लैण्ड की परविन्दर के निमन्त्रण पर श्राद्ध आयोजन के तहत श्री हनुमान-शनिधाम पहुंचे 51 बच्चों ने भोजन ग्रहण किया। ऐसी मान्यता हैं कि पूर्वजों के निमित श्राद्ध में कराए जाने वाले भोजन से दिवंगत परिजनों को तृप्ति मिलती है तथा बदले में उनके आशीर्वाद से परिवार में खुशहाली बनी रहती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि विदेशों में रह रहे अनगिनत भारतीयों के माध्यम से भविष्य में लोगों को इस प्रकार के और अधिक रोमांचकारी इवेंट देखने को मिलेंगे।

भारतीय परम्पराओं का निर्वहन जरूरी : परविन्दर
इंग्लैण्ड की परविन्दर कौर ने फेसबुक लाइव के माध्यम से भारत में इस धार्मिक आयोजन को लेकर ब्लॉगर से अपनी खास बातचीत में कहा कि इंसान कही भी रहे उसे अपने देश व उसकी परम्पराओं का सम्मान करना चाहिए। परविन्दर की माने तो धार्मिक आस्था, विश्वास व कर्मकाण्डों का अपना महत्व हैं, जीवन की कुशलता के लिए इनका पालन जरूरी है। भारतीय परम्पराओं व धार्मिक मान्यताओं को श्रेष्ठतम बताने वाली परविन्दर स्वयं के इंग्लैण्ड की होकर रह जाने के बावजूद सौ फीसदी इन्हें आत्मसात किए हुए है। ज्ञातव्य रहें, हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता हैं। मान्यता है कि अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है और वह तथाकथित भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। इस बार श्राद्ध 24 सितम्बर को शुरू हुए जो 8 अक्टूबर को खत्म होंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिवस विशेष हैं एवं इन दिनों मेें पितृ खुश रहते है। तर्पण में दूध, तिल, कुश, पुष्प व सुगंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन व पिण्डदान से पितरों को भोजन दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध की पत्नी दक्षिणा है। यहीं कारण है कि श्राद्ध का फल दक्षिणा देने पर ही मिलता है।

Thursday 26 July 2018

गुरू पूर्णिमा 2018 : महत्व/पूजन का सही विधान

घनश्याम डी रामावत
इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 27 जुलाई 2018 को पड़ रही हैं। अर्थात कल शुक्रवार का दिन सभी गुरूभक्तों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। गुरू पूर्णिमा के दिन सभी को अपने गुरूओं को आसन प्रदान कर के अपनी श्रद्धानुसार उनका पूजन अर्चन करके उनसे आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। गुरू पूर्णिमा के दिन ही वर्ष का सबसे लंबा चंद्रग्रहण भी पड़ रहा हैं, जो रात्रि 11.54 से प्रारंभ होगा और रात्रि 3.49 तक रहेगा/जिसका सूतक 9 घंटे पूर्व दोपहर 2.54 से प्रारंभ हो जाएगा।

गुरू पूजन का मुहूर्त और पूजा का विधान
जोधपुर की जानी मानी वैदिक-वास्तु पिरामिड मर्मज्ञ/रैकी हीलर/हिप्रोथैरेपिस्ट व  एस्ट्रोलॉजर अर्चना प्रजापति के अनुसार जो छात्र विद्या अध्ययन कर रहे वो प्रात: 7 बजे से 8.30 बजे तक करे। जो नौकरी कर रहे वो 9.15 से 10.30 बजे तक करें, जो व्यापार कर रहे वो 10 से 11.15 बजे तक करें एवं 9.30 से 11 तक सभी लोग पूजन कर सकते हैं। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋ तु के आरंभ में आती हैं एवं इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरु चरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती हैं। गुरू पूर्णिमा का यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरू कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। 

प्रजापति के अनुसार भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। ‘राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूं तो गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥’ गुरू तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किंतु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका है। गुरू की महत्ता को सभी धर्मों और संप्रदायों ने माना है। प्रत्येक गुरू ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा और पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है। भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं।

गुरू का सही अर्थ?
एस्ट्रोलॉजर प्रजापति के अनुसार भारतीय संस्कृति के वाहक शास्त्रों गुरू का अर्थ बताया गया है। गुरू में गु का अर्थ है-अंधकार या मूल अज्ञान और रू का अर्थ है-उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरू’ कहा जाता है। गुरू और देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरू के लिए भी है। बल्कि सद्गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरू की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरू: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

आषाढ़ की पूर्णिमा ही गुरू पूर्णिमा
वैदिक-वास्तु पिरामिड मर्मज्ञ/रैकी हीलर अर्चना प्रजापति की माने तो आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के पीछे गहरा अर्थ है। अर्थ है कि गुरू तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह, आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादलरूपी शिष्यों से गुरू घिरे हों। शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं। उसमें भी गुरू चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरू पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है, इसमें गुरू की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।

धार्मिक/आध्यात्मिक दृष्टि से इस पर्व का महत्व
‘ज्योतिष भूषण अवार्ड 2018’ से सम्मानित हिप्रोथैरेपिस्ट व  एस्ट्रोलॉजर अर्चना प्रजापति के अनुसार जीवन में गुरू और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है। व्यास पूर्णिमा या गुरू पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए। गुरू का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी और ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरू पूजन के उपरांत गुरू का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। सिख धर्म में इस पर्व का महत्व अधिक इस कारण है क्योंकि सिख इतिहास में उनके दस गुरूओं का बेहद महत्व रहा है।

Saturday 21 July 2018

कांग्रेस युवराज की नई सेना/संभावनाएं...

घनश्याम डी रामावत
टीडीपी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर शुक्रवार को देर रात तक चली लोकसभा की कार्यवाही सरकार के कार्यकलापों पर चर्चा से ज्यादा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के तेवर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी गई झप्पी, आंख मारने, पीएम की मुस्कराहटों, फिसलती जुबानों, शेरो-शायरी और हंसी-ठहाकों के साथ-साथ रफाल सौदे पर राहुल के दावे को फ्रांस सरकार द्वारा खारिज किए जाने की वजह से खास तौर पर याद किया जाएगा। सही मायने में 20 जुलाई 2018 अर्थात शुक्रवार को चार साल दो माह पुरानी राजग सरकार के खिलाफ पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा 2019 चुनाव पूर्व बहस का मंच बन गई। 

युवाओं के साथ अनुभव को तरजीह, कुल 51 सदस्य
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक-एक कर उन सारे मुद्दों पर प्रहार किया जिन्हें सदन के बाहर विपक्ष उठाता रहा हैं। माना जा रहा है कि संख्याबल न होने के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाने का उद्देश्य विभिन्न मुद्दों पर चुनावपूर्व सरकार को सदन में घेरना था जिन पर सदन के बाहर पीएम नरेन्द्र मोदी सदन के बाहर जवाब देने से बचते रहे थे। सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस सुप्रीमों राहुल गांधी व अन्य विपक्षी नेताओं ने ऐसा किया भी। यहीं नहीं, राहुल गांधी ने अपने भाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास जाकर गले लगने की गांधीगिरी दिखाई और देशभर में चर्चा का केन्द्र बन गए। बहरहाल! यह तो तय हो गया कि राहुल गांधी अब लोकसभा चुनाव 2019 का मुकाबला मजबूती से करने के लिए तैयार है। उनके ताजातरीन तेवर तो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे है। लंबे इंतजार के बाद ही सही आखिरकार उनके द्वारा अब 2019 लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए अपनी सेना भी तैयार कर ली गई है। दरअसल, राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का पुनर्गठन किया है। राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के सात महीने बाद कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है। पिछली कार्यसमिति को मार्च में अधिवेशन से पहले भंग कर दिया गया था। अधिवेशन में पार्टी सुप्रीमो राहुल गांधी को अपनी टीम चुनने के लिए अधिकृत किया गया। राहुल गांधी को समिति का गठन करने में चार महीने का समय लगा। राहुल गांधी की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुल 51 सदस्य हैं। इनमें 23 सदस्य, 18 स्थायी सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। 

महासचिव से हटाए गए किसी भी नेता को जगह नहीं
राहुल गांधी ने पहली बार कांग्रेस के मोर्चा संगठन मसलन यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, इंटक और सेवा दल के अध्यक्षों को सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी नई टीम में बड़ी संख्या में युवाओं को शामिल कर साफ संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस अपने इन्हीं नौजवानों के चेहरों के दम पर आगे बढ़ेगी। हालांकि कार्यसमिति में अनुभवी नेताओं को भी पूरी तवज्जो दी गई है। पार्टी के संगठन में विधानसभा चुनाव वाले तीन राज्यों-राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेताओं को खासकर शामिल किया गया है। हालांकि अनुभव को भी तरजीह दी गई है। राहुल की कार्यसमिति में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मोती लाल वोहरा, अहमद पटेल, अशोक गहलोत को सदस्य के तौर पर जगह मिली है। वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पी. चिदम्बरम जैसे नेताओं को स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया। कार्यसमिति में पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बिहार जैसे राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। महासचिव से हटाए गए किसी भी नेता को कार्यसमिति में भी जगह नहीं दी गई। इसी वजह से सी पी जोशी, मोहन प्रकाश, बी के हरिप्रसाद को कार्यसमिति से हटा दिया गया है। लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री लंबे समय से विशेष आमंत्रित सदस्य थे, पर इस बार वह भी जगह नहीं पा सके। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को कार्यसमिति में जगह नहीं मिलना चकित करने वाला जरूर है। आमंत्रित सदस्यों को जोड़ लें तो भी महिलाओं की संख्या 51 में से केवल सात ही है। यानि 15 प्रतिशत से भी कम। हाल-फिलहाल दलित आंदोलन की परछाईं इस समिति के चयन में दिखी। दलित चेहरों के रूप में मल्लिकार्जुन खडग़े, कुमारी शैलजा और पीएल पुनिया को शामिल किया गया है। राजनीतिक समीक्षकों की माने तो राहुल गांधी और राजस्थान के कद्दावर नेता अशोक गहलोत के लगातार साथ काम करने का असर राहुल के तेवरों में अब नजर आने लगा है और अब उनमें राजनीतिक परिपक्वता दिखाई देने लगी है। 

पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं में उत्साह
राहुल गांधी के नये अवतार व तेवरों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी व उत्साह का माहौल है। हालांकि, राहुल गांधी की नई टीम की असली परीक्षा आने वाले विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में होगी।

Friday 20 July 2018

सूखते जल स्रोत चिंता का विषय!

घनश्याम डी रामावत
भारत वाकई खुशनसीब हैं। यह दुनिया के उन कुछ गिने चुने देशों में से है जिसे कुदरत से बारिश का भरपूर तोहफा मिला हुआ है। हमारे यहां जितनी बारिश होती है, यूरोप के करीब 20 देशों में मिलकर भी उतनी बारिश नहीं होती। बावजूद इसके हम धीरे-धीरे जल संकट के दरवाजे पर आ खड़े हुए हैं, तो उसकी हमारी कुछ अपनी वजहें हैं और कुछ पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग की देन है। मारवाड़ और खासकर पश्चिमी राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से मानसून आगमन को लेकर लेटलतीफी सा ही रहा हैं, इसे अन्य प्रदेशों की तुलना में अपवाद भी कहा जा सकता है/किन्तु यह भी सच है कि बारिश यहां भी जमकर अर्थात बेलगाम होती रही हैं। दरअसल हमारे देश में सालभर में जितनी बारिश होती है, उस बारिश का 80 फीसदी तक हिस्सा महज 90 दिन के अंदर गिर जाता है। भारत में औसतन वार्षिक वर्षा 1,170 मिमी होती है। लेकिन करीब 90 फीसदी बारिश का पानी बहकर समुद्र पहुंच जाता है। ज्ञातव्य रहें, 80 फीसदी बारिश 3 महीने के अंदर होती है और उन 3 महीनों में भी करीब 90 फीसदी बारिश सिर्फ 20 से 30 घंटों के दौरान होती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बारिश कितनी तीव्रता और कितनी बेलगाम ढंग से होती हैं?

पहले होते थे जल संचयन के सशक्त उपाय
पुराने समय में सिर्फ वर्षा के पानी को रोकने के ही हमने तमाम देशी तरीके विकसित नहीं किये थे बल्कि इन तरीकों के साथ-साथ हम वर्षा जल के प्रबंधन के लिए तमाम प्राकृतिक जल स्रोतों का भरपूर रूप से इस्तेमाल करते थे, जिससे सिर्फ पानी ही इकट्ठा नहीं किया जाता था बल्कि प्राकृतिक रूप से भूमि के अंदर ही उसे एकत्रित किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे विकास के नाम पर हमने इस पारंपरिक प्रबंधन को ही भुला दिया और बड़े-बड़े औद्योगिक सभ्यता वाले जल प्रबंधन पर निर्भर हो गए। लेकिन हम इस बात को भूल गए कि ये बड़े-बड़े बांध हर जगह नहीं बनाए जा सकते जहां बांध बनाये भी गए हैं, वहां सिर्फ 20 फीसदी पानी को ही रोका जा सका है। क्योंकि बारिश का पानी चूंकि अनियंत्रित होता है और साथ ही बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होती है इसलिए एक सीमा से ज्यादा बांधों में पानी रोका नहीं जा सकता। इसके साथ ही एक बड़ी समस्या यह है कि कम समय में हुई ज्यादा बारिश के कारण अकसर बांध टूट भी जाते है अथवा कई किस्म की दुर्घटनाओं का शिकार भी हो जाते हैं। जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा है उसको देखते हुए अब पारंपरिक जल प्रबंधन की तरफ देश लौट रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान सरकार ने भी इस दिशा में विशेष काम किए है और तमाम आधुनिक जल प्रबंधन के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए उस पुरानी जल प्रबंधन व्यवस्था/तकनीक को विकसित करने की कोशिश की है, जो सदियों से यहां की प्रचूर जल व्यवस्था का प्रमुख आधार थी। 

'मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान' की सर्वत्र सराहना
राजस्थान सरकार की जल संचयन अन्तर्गत प्रमुख कवायद 'मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान' को प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों में भी खासा सराहा गया हैं। 27 जनवरी 2016 से राजस्थान सरकार की ओर से शुरू किए गए इस जन-कल्याणकारी ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान’ का मूल उद्देश्य बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर गांवों को जल आत्मनिर्भरता की ओर बढाऩा है। एक जमाने में बड़े पैमाने पर खाल-चाल यानी छोटे-छोटे तालाबनुमा गड्ढे हुआ करते थे। इन गड्ढ़ों में बारिश का पानी सहेजा जाता था जो न सिर्फ कई महीने तक इंसानों और जानवरों के काम आता था बल्कि इस सहेजे गये पानी से धरती रिचार्ज होती थी जिस कारण बारिश के बाद यही रिचार्ज हुआ पानी झरनों और छोटी-छोटी बाबडिय़ों या खड्डों में रिसकर इकट्ठा होने लगता था, जो जानवरों और इंसानों दोनो के काम आता था। दरअसल यही पानी पूरे साल जल की पूर्ति करता था। यही पानी स्थानीय लोगों को पूरे साल हासिल होता था। इससे लोग अपनी प्यास भी बुझाते थे और धरती की प्यास भी इससे बुझती थी। लेकिन पुराने जल प्रबंधन को भुला दिये जाने के कारण आज जल समस्या विकराल रूप ले चुकी है। देश का 90 फीसदी क्षेत्र आज या तो जल की कमी से परेशान है या साल के कुछ महीनों में जल की कटौती से दो चार रहता है। जबकि भारत में जल प्रबंधन की सुदृढ़ व्यवस्था ईसा के लगभग 300 वर्ष पूर्व से मौजूद है। उस समय भी कच्छ और बलूचिस्तान में बांध मौजूद थे, लोग इन्हें स्थानीय संसाधनों से बनाना भी जानते थे और बांध बनाकर रोके गये पानी का उचित उपयोग भी जानते थे। लेकिन धीरे-धीरे हमने ये तमाम चीजें भुला दीं। जबकि भारत के इतिहास में कोई ऐसा समय नहीं रहा, जब पानी को सहजने की हमें व्यवस्थित तरकीब पता न रही हो और उसके जरिये हम पानी के मामले में आत्मनिर्भर न रहे हों। 

सरकारों की गंभीरता प्रसन्नता का विषय
भारत सरकार और राजस्थान सरकार के साथ देश की अन्य कई राज्य सरकारों ने अब फिर से जल प्रबंधन की उन पुरानी तकनीकों की तरफ लौटने का मन बनाया है। उम्मीद है कि अगले 5 से 8 साल के भीतर हम आज के मुकाबले 10 से 15 फीसदी ज्यादा पानी समुद्र में जाने से बचा सकेंगे। इससे हमारी दैनिक जरूरतें पूरी होने में तो आसानी होगी ही, साथ ही धरती के अंदर की सूखती हुई जलधारा भी हरी होगी जिससे देश का भविष्य सुरक्षित रहेगा।

Friday 18 May 2018

भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज वैद्यनाथन से मुलाकात

घनश्याम डी रामावत
आज दोपहर में जरूरी कार्य से जोधपुर सूचना केन्द्र जाना हुआ तो मालूम पड़ा पास ही स्थित मिनी ऑडिटोरियम में भरतनाट्यम कार्यशाला संचालित हो रही हैं, जिसमें देश की नामचीन भरतनाट्यम नृत्यांगना, लेखिका, म्यूजिक कंपोजर, गुरू और कोरियोग्राफर डॉ. सरोज वैद्यनाथन शिरकत कर रही हैं। बस फिर क्या था, उनके व भरतनाट्यम के बारे में बारीकी से जानने की उत्कंठा के चलते वैद्यनाथन जी से मिलने का निश्चय किया और जा पहुंचा ऑडिटोरियम। जल्दी ही मुलाकात सुनिश्चित हो गई। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो देश का गौरव कही जाने वाली/अपने फन में माहिर अथाह सागर डॉ. वैद्यनाथन से काफी कुछ जानने व समझने को मिला।

डॉ. सरोज वैद्यनाथन की माने तो शास्त्रीय संगीत व लोक नृत्य भारत की असली पहचान हैं। डॉ. सरोज के अनुसार भारत विविधताओं से भरा देश हैं और इसका हर रंग निराला हैं। यहां की संस्कृति दुनियां की तमाम संस्कृतियों से अधिक उन्नत हैं। भारत लोक नृत्य हमारी संस्कृति को और अधिक रोचक बनाते हैं। डॉ. वैद्यनाथन के अनुसार भारत में लोक नृत्यों की फेेहरिस्त लंबी हैं और देश के अलग-अलग स्थानों/प्रदेशों में अपने खास लोक नृत्य हैं। उनके अनुसार यह लोक नृत्य मनोरंजनात्मक दृष्टि से तो अपनी सार्थक भूमिका का निर्वहन करते ही हैं, देश व क्षेत्र विशेष को अपनी विशेष पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज ने कहा कि देश में पंडवानी, गणगौर नृत्य, बिहू, नौटंकी, गरबा, यक्षगान, भांगड़ा, गिद्दा, कालबेलिया, घूमर, तेरहताली, भवाई नृत्य, लावणी, तमाशा, कजरी, छोलिया, कूद दंडीनाच, रूऊफ, छपेली, दांगी, थाली, छऊ, विदेशिया, जाट-जतिन, कथकली, मोहिनीअट्टम, लीम, छोंग, जात्रा, ढ़ाली, छाऊ, मंदी, ढक़नी, कुचीपुड़ी, ओडिसी, धुमरा व पंथी नृत्य प्रमुख रूप से प्रचलित हैं। 

पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित अद्वितीय प्रतिभा
भारत सरकार की ओर से वर्ष 2002 में पद्मश्री और वर्ष 2013 में पद्म भूषण से सम्मानित डॉ. सरोज वैद्यनाथन की मान्यता हैं कि लोक नृत्य अजर अमर हैं, जो कभी खत्म नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि लोक नृत्य व भारतीय शास्त्रीय संगीत की तुलना बॉलीवुड से करना सही नहीं हैं। 81 वर्षीय डॉ. वैद्यनाथन(बेल्लारी/कर्नाटक) की देश ही नहीं विदेश स्तर पर भी भरतनाट्यम नृत्यांगना, लेखिका, म्यूजिक कंपोजर, गुरू और कोरियोग्राफर के रूप में खास पहचान हैं। भरतनाट्यम को समर्पित डॉ. सरोज ने शुरूआती तालीम/प्रशिक्षण तंजावुर के गुरू कट्टुमनार मुथुकुमारन पिल्लई से प्राप्त किया। वहीं, मद्रास विश्वविद्यालय से कर्नाटक संगीत सीखा। डॉ. सरोज वैद्यनाथन इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से नृत्य में डी.लिट हैं। भरतनाट्यम के समग्र प्रचार-प्रसार व समृद्धि को अपने जीवन का मकसद बना चुकी डॉ. सरोज अब तक देश-विदेश में दो हजार से अधिक परफॉर्मेंस दे चुकी हैं। 81 वर्ष की उम्र में भी अपने पेशे को लेकर दिली जज्बा रखने वाली डॉ. वैद्यनाथन युवाओं के लिए आदर्श हैं।

वर्ष 1974 में दिल्ली में गणेश नाट्यालय की स्थापना
पद्मश्री और पद्मभूषण के अलावा संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, कालिदास सम्मान, साहित्य कला परिषद सम्मान, तुलसी सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी डॉ. सरोज वैद्यनाथन द्वारा वर्ष 1974 में खोले गए गणेश नाट्यालय में देश-विदेश के असंख्य विद्यार्थी अनवरत तालीम/प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं। विद्यार्थियों को यहां नृत्य के अलावा ‘भरतनाट्यम’ की समग्र समझ देने के लिए तमिल, हिंदी और कर्नाटक स्वर संगीत भी पढ़ाया जाता हैं। सरोज एक शानदार कोरियोग्राफर हैं और इनके अपने दस पूर्ण लंबाई वाले बैले आइटम हैं। डॉ. विद्यानाथन ने भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत पर अनेक किताबें लिखी हैं जिनमें शास्त्रीय नृत्य भारत, भरतनाट्यम-एक गहराई से अध्ययन, कर्नाटक संगीतमम और भरतनाट्यम का विज्ञान शामिल हैं। डॉ. सरोज के अनुसार पहले के जमाने में गुरू आज की तरह व्यवसायिक नहीं होते थे, नतीजतन बेहतर प्रतिभाएं उभरकर सामने आती थी। उन्होंने कहा कि ज्यादातर नवोदित आर्टिस्ट चंद कार्यक्रमों के बाद स्वयं को बड़ा कलाकार समझने लगते हैं, यह सही नहीं हैं। डॉ. वैद्यनाथन के अनुसार नृत्य एक साधना हैं।

पुत्र/बहू भी अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त उम्दा कलाकार
डॉ. सरोज वैद्यनाथन के अनुसार क्लासिकल और बॉलिवुड नृत्य करीब-करीब एक जैसे ही हैं। क्लासिकल नृत्य में नियमों का अनुसरण ज्यादा अहम होता हैं जबकि फिल्म में कहानी के अनुसार नृत्य होता हैं। अपने परफोर्मेंस के बारें में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे कहानी के आधार पर नृत्य करती हैं। इसके अलावा वे इनोवेशन, अवेयरनेस(स्वच्छ भारत, प्रश्नचिह्न व नमामि गंगे), मिथॉलजी और सोशल आधारित नृत्य भी करती हैं। डॉ. सरोज के अनुसार समय-समय पर सब कुछ बदलता रहता हैं। डॉ. वैद्यनाथन पुरानी कहानियों मसलन-शिवपुराण, स्कंदपुराण, रामायण और महाभारत आदि पर भी नृत्य करती हैं। वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आसियान शिखर सम्मेलन यात्रा के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया का सांस्कृतिक दौरा कर चुकी डॉ. सरोज वैद्यनाथन पति आईएएस अधिकारी रहे हैं। इनका एक पुत्र कामेश और बहू राम वैद्यनाथन अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त भरतनाट्यम कलाकार हैं।

नृत्य भी स्पॉर्ट्स और योग के जैसा
सकारात्मक विचारों की धनी सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज वैद्यनाथन लोक नृत्य व शास्त्रीय संगीत की संरक्षा/समृद्धि के साथ तालीम संदर्भ में भारत सरकार के प्रयासों से संतुष्ट हैं। उन्होंने निजी स्तर पर इस दिशा में लोगों से मजबूती व गंभीरती से कार्य करने की अपील की। डॉ. सरोज के अनुसार कला के प्रति समर्पण से लेकर तनमयता.. सब कुछ प्रेरणा माता-पिता से ही मिली हैं, क्योंकि दोनों लेखक थे और मां तो पेंटर भी थी। 81 वर्ष में भी जबरदस्त एनर्जी वाले सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब किसी भी काम पर दिल, दिमाग और शरीर समान लय में काम करते हैं तो एनर्जी स्वयं ही बन जाती हैं। डॉ. सरोज के अनुसार नृत्य भी स्पॉर्ट्स और योग के जैसा ही हैं। उन्होंने कहा कि वे शाकाहारी हैं और अनुशासित जीवन जीती हैं। डॉ. सरोज वैद्यनाथन के दिल्ली में स्थापित गणेश नाट्यालय सहित देश-विदेश की कुल 30 शाखाओं में विद्यार्थी भरतनाट्यम का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

Friday 6 April 2018

सुरेश वाडेकर : पाश्र्व गायिकी का सुरीला/मजबूत हस्ताक्षर

घनश्याम डी रामावत
‘मेघा रे मेघा रे’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’, ‘पतझड़ सावन वसंत बहार’ जैसे गीतों से पार्श्व गायिकी में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सुरेश वाडेकर ने अपने पिता का सपना पूरा कर अपने नाम को सार्थक किया हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार और लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित वाडेकर अपनी मधुर आवाज के बूत संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते हैं। पाश्र्व गायिकी का मजबूत हस्ताक्षर कहे जाने वाले सुरेश वाडेकर का जन्म 7 अगस्त, 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। इन्हें बचपन से ही गायिकी का शौक था/इनका पूरा नाम सुरेश ईश्वर वाडेकर हैं। पिता ने इनका नाम सुरेश (सुर+ईश) इसलिए रखा, ताकि वह अपने बेटे को बड़ा गायक बनता देख सकें। सुरेश ने कोशिश जारी रखी और आखिरकार उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया। महज 10 साल की आयु से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था। वाडेकर ने बहुत ही कम उम्र में अपने गुरू पंडित जियालाल वसंत से विधिवत संगीत सीखना शुरू किया। न सिर्फ हिंदी, बल्कि मराठी सहित कई भाषाओं की फिल्मों के लिए भी गाया और भजनों को अपनी आवाज दी।

पिछले महिने जोधपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे सुरेश वाडेकर से होटल चंद्रा इंपीरियल में मुलाकात हो गई। वही सुर/वही ताल और वही दिलकश/सुरीली/मधुर आवाज.. पाश्र्व गायिकी में इतने लंबे सफर के बाद भी कुछ भी नहीं बदला। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर गायिकी के इस बेताज बादशाह के संगीत व कामयाबी से ताल्लुक रखने वाली किताब/सफर के पन्ने भी खुलते गए। सुरेश वाडेकर ने 20 वर्ष की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता ‘सुर श्रृंगार’ में भाग लिया, जहां संगीतकार जयदेव और दादू यानी रवींद्र जैन बतौर जज मौजूद थे। सुरेश की आवाज से दोनों जज इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें फिल्मों में पाश्र्व गायिकी के लिए भरोसा दिलाया। रवींद्र जैन ने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘पहेली’ में उनसे पहला फिल्मी गीत ‘वृष्टि पड़े टापुर टुपुर’ गवाया था। जयदेव ने उनसे फिल्म ‘गमन’ में ‘सीने में जलन’ गाना गवाया, इसके बाद वह लोकप्रिय होने लगे, सभी उन्हें प्रतिभाशाली गायक की दृष्टि से देखने लगे। उन्होंने वर्ष 1998 में ‘शिव गुणगान’, 2014 में ‘मंत्र संग्रह’, 2016 में ‘तुलसी के राम’ नामक एलबम बनाए। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने 1981 की फिल्म ‘क्रोधी’ में ‘चल चमेली बाग में’ नामक गीत लता जी के साथ गाने का मौका दिया। उन्होंने फिल्म ‘प्यासा सावन’ का मशहूर गीत ‘मेघा रे मेघा रे’ लता जी के साथ गाया. फिल्म ‘प्रेम रोग’ में उन्होंने ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’ जैसे मधुर गीत गाए। इसके साथ ही उनके सितारे बुलंद होने लगे, वह घर-घर पहचाने जाने लगे। इस फिल्म में ऋ षि कपूर के साथ उनकी आवाज इतनी जमी कि उन्हें ऋ षि कपूर की फिल्मों के गीतों के लिए चुना जाने लगा। सुरेश ने कई बड़े संगीत निर्देशकों के लिए गीत गाए। इनमें ‘हाथों की चंद लकीरों का’ (कल्याणजी आनंदजी), ‘हुजूर इस कदर भी न’ (आर डी बर्मन), ‘गोरों की न कालों की’ (बप्पी लाहिड़ी), ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ (इलैया राजा) और ‘लगी आज सावन की’ (शिव-हरि), जैसे कई गीत शुमार हैं, जिन्हें सुरेश ने अपनी आवाज में कुछ ऐसे गाया हैं कि आज भी हम इन गीतों में किसी और गायक की कल्पना नहीं कर पाते।

गीतों का अद्भुत गुलदस्ता/भूला पाना मुश्किल
सुरेश वाडेकर ने फिल्मी-दुनिया को गीतों के रूप में ऐसा गुलदस्ता दिया हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। वाडेकर ने आर डी बर्मन और गुलजार के साथ मिलकर कुछ गैर फिल्मी गीतों के कई अलबम भी बनाए, जो व्यावसायिक दृष्टि से भले ही कम कामयाब हो पाए लेकिन सच्चे संगीत प्रेमियों के लिए संकलन में वे शीर्ष स्थान पर हैं। गुलजार भी लता और सुरेश से बहुत अधिक प्रभावित रहे। उन्होंने लंबे अंतराल के बाद अपनी फिल्म ‘माचिस’ में उनसे ‘छोड़ आए हम’ और ‘चप्पा चप्पा चरखा चले’ जैसे गीत गवाए। विशाल भारद्वाज के साथ सुरेश ने फिल्म ‘सत्या’ और ‘ओमकारा’ में कुछ बेहद अनूठे गीत गाए। वाडेकर ने हिंदी और मराठी गीत के अलावा कुछ गीत भोजपुरी और कोंकणी भाषा में भी गाए हैं। इन्होंने अलग-अलग भाषाओं में कई भक्ति गीत गाए। 2007 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र प्राइड अवॉर्ड से सम्मानित किया। वर्तमान गायिकी को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वाडेकर ने कहा कि सब कुछ लोगों की पसंद/नापसंद के अनुरूप हैं। उन्होंने कहा कि गायक को अपनी आवाज पर ध्यान देने के साथ लोगों की भावनाओं के अनुरूप भी व्यवहारगत होना पड़ता हैं। उन्होंने कहा कि गायक कभी भी रिटायर नहीं होता। वाडेकर के अनुसार यह एक ऐसी साधना/आराधना हैं जिसका कभी कोई अंत नहीं होता।

अनेक राष्ट्रीय/प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित
वर्ष 2011 में उन्हें को मराठी फिल्म ‘ई एम सिंधुताई सपकल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। मध्यप्रदेश में उन्हें प्रतिष्ठित लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। मुंबई और न्यूयॉर्क में सुरेश का अपना संगीत स्कूल हैं, जहां वह संगीत के विद्यार्थियों को विधिवत शिक्षा देते हैं। सुरेश वाडेकर ने संगीत की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ा। आजिवसन म्यूजिक अकादमी नामक पहला ऑन लाइन संगीत स्कूल खोला/जिसके माध्यम से वह नए संगीत महत्वाकांक्षी छात्रों को अपना संगीत ज्ञान और अनुभव देते हैं। इनके प्रशंसक आज भी उनके गीतों को सुनते हैं और अपने पसंदीदा सुरेश वाडेकर से अब भी नए गीतों की आस लगाए हुए हैं। अभी पिछलेे महिने 30 मार्च को विख्यात सारंगीवादक उस्ताद गुलाब खां की स्मृति में जोधपुर मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित खास कार्यक्रम में सुरेश वाडेकर को ‘उस्ताद गुलाब खां लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-2018’ से नवाजा गया हैं। पाश्र्व गायिकी के बेताज बादशाह/सुरीले/सुनहरे/मजबूत हस्ताक्षर सुरेश वाडेकर को दिल से बधाई/लम्बी उम्र के साथ उत्तम स्वास्थ्य हेतु ईश्वर से प्रार्थना।

07 अप्रैल : विश्व स्वास्थ्य दिवस

घनश्याम डी रामावत
वैश्विक स्वास्थ्य के महत्व की ओर बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में हर वर्ष 07 अप्रैल को पूरे विश्व भर में लोगों के द्वारा विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता हैं। इस बार 07 अप्रैल को शनिवार हैं अर्थात सेलिब्रेशन में महज चंद मिनट शेष। डबल्यूएचओ के द्वारा जेनेवा में वर्ष 1948 में पहली बार विश्व स्वास्थ्य सभा रखी गयी जहां 07 अप्रैल को वार्षिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिये फैसला किया गया था। विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में वर्ष 1950 में पूरे विश्व में इसे पहली बार मनाया गया था। डबल्यूएचओ के द्वारा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के खास विषय पर आधारित कार्यक्रम इसमें आयोजित होते हैं।

स्वास्थ्य के मुद्दे और समस्या की ओर आम जनता की जागरुकता बढ़ाने के लिये वर्षों से मनाया जा रहा ये एक वार्षिक कार्यक्रम है। पूरे साल भर के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिये और उत्सव को चलाने के लिये एक खास विषय का चुनाव किया जाता हैं। विश्व स्वास्थ्य दिवस वर्ष 1995 के खास विषयों में से एक था वैश्विक पोलियो उन्मूलन। तब से, इस घातक बीमारी से ज्यादातर देश मुक्त हो चुके हैं जबकि दुनिया के दूसरे देशों में इसकी जागरुकता का स्तर बढ़ा है। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य से जुड़े सभी मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य दिवस लक्ष्य बनाता है जिसके लिये विभिन्न जगहों जैसे स्कूल, कॉलेजों और दूसरे भीड़ वाले जगहों पर दूसरे संबंधित स्वास्थ्य संगठनों और डबल्यूएचओ के द्वारा सालाना विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। विश्व में मुख्य स्वास्थ्य मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान दिलाने के साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना को स्मरण करने के लिये इसे मनाया जाता है। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य मुद्दों को बताने के लिये यूएन के तहत काम करने वाली डबल्यूएचओ एक बड़ी स्वास्थ्य संगठन है। विभिन्न विकसित देशों से अपने स्थापना के समय से इसने कुष्ठरोग, टीबी, पोलियो, चेचक और छोटी माता आदि सहित कई गंभीर स्वास्थ्य मुद्दे को उठाया है। एक स्वस्थ् विश्व बनाने के लक्ष्य के लिये इसने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वैश्विक स्वास्थ्य रिपोर्ट के बारे में इसके पास सभी आँकड़े मौजूद हैं।

इस तरह से मनाया जाता हैं विश्व स्वास्थ्य दिवस
लोगों के स्वास्थ्य मुद्दे और जागरुकता संबंधित कार्यक्रम के आयोजन के द्वारा कई जगहों पर विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों सहित सरकारी, गैर-सरकारी, एनजीओ के द्वारा विश्व स्तर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। खबर, प्रेस विज्ञप्ति आदि साधन के द्वारा मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से अपने क्रियाकलाप और प्रोत्साहन पर भाग लेने वाले संगठन रोशनी डालते हैं। विश्व भर के स्वास्थ्य मुद्दों पर सहायता के लिये अपनी प्रतिज्ञा के साथ विभिन्न देशों से स्वास्थ्य प्राधिकारी उत्सव में भाग लेते हैं। मीडिया क्षेत्र की मौजूदगी में अपने स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिये लोगों को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य के सम्मेलन में विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप किये जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य दिवस के लक्ष्य को पूरा करने के लिये विषयों से संबंधित चर्चा, कला प्रदर्शनी, निबंध लेखन, प्रतियोगिता और पुरस्कार समारोह आयोजित किये जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का खास प्रयोजन
तंददुरुस्त रहन-सहन की आदत के प्रोत्साहन और लोगों के जीवन के लिये अच्छे स्वास्थ्य को जोडऩे के द्वारा जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में विश्व स्वास्थ्य दिवस ध्यान केन्द्रित करता है। एड्स और एचआईवी से मुक्त और स्वस्थ दुनिया बनाने के लिये उन्हें स्वस्थ बनाये और बचाने के लिये इस कार्यक्रम के द्वारा आज के जमाने के युवा को भी लक्ष्य बनाया जाता है। खून चूसने वाले और रोगाणु के कारण बीमारीयों के व्यापक फैलाव से मुक्त विश्व बनाने के लिये डबल्यूएचओ के द्वारा बीमारी फैलाते वेक्टर जैसे मच्छर (मलेरिया, डेंगू बुखार, फाईलेरिया, चिकनगुनिया, पीला बुखार आदि) चिचड़ी, कीट, सैंड फ्लाईस, घोंघा आदि को भी लोगों की नजर में ला रही है। वेक्टर और यात्रीयों द्वारा एक देश से दूसरे देश में वेक्टर के जन्म से फैलने वाली बीमारी से ये उपचार और रोकथाम उपलब्ध कराती है। बिना किसी बीमारी के जीवन को बेहतर बनाने के लिये लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं के लिये अपना खुद का प्रयास लगाने के लिये वैश्विक आधार पर डबल्यूएचओ विभिन्न स्वास्थ्य प्राधिकारीयों को मदद देता है।

कुछ लक्ष्यों का निर्धारण/जागरूकता प्रमुख उद्देश्य
उच्च रक्त चाप के विभिन्न कारण और बचाव के बारे में जागरुकता को बढ़ाना। विभिन्न बीमारीयों और उनकी जटिलताओं से बचाने के लिये पूरा ज्ञान उपलब्ध कराना। पेशेवर से चिकित्सा का अनुसरण और उनके रक्तचाप को बार बार जांच करने के लिये सबसे ज्यादा अतिसंवेदनशील लोगों के समूह को बढ़ावा देना। लोगों को खुद का ध्यान रखने के लिये प्रोत्साहित करना। अपने देश में स्वस्थ पर्यावरण को उत्पन्न करने में अपने खुद के प्रयास लगाने के लिये विश्व स्तर पर स्वास्थ्य प्राधिकारियों को प्रेरणा देना। रोग असुरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को बचाना। यात्रा के दौरान वेक्टर से जन्म लेने वाली बीमारी से कैसे बचा जाये के बारे में यात्री को सिखाना और उनको एक संदेश भेजना।

Wednesday 4 April 2018

हिंसा समस्या का समाधान नहीं

घनश्याम डी रामावत
दलितों, आदिवासियों का उत्पीडऩ एक सामाजिक सच्चाई हैं जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता और इसे दूर करने की भी सख्त आवश्यकता हैं पर जो तरीका इसको करने में अपनाया गया, उसे सही नहीं माना जा सकता। हिंसा की न तो गुंजाइश हैं और न ही इसके बूते किसी भी समस्या का समाधान संभव हैं। 2 अप्रैल को भारत बंद भले ही न हुआ हो, लेकिन हिल जरूर गया हैं। एससी-एसटी एक्ट के बारे में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला पिछले दिनों आया, उसे लेकर दलित समुदाय में काफी आक्रोश हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि इस कानून में महज प्राथमिकी के आधार पर जो गिरफ्तारी होती हैं, वह गलत हैं। आदर्श स्थिति तो शायद यह होती हैं कि सुप्रीम कोर्ट अगर किसी मसले पर कोई फैसला दे दे तो या तो उसे मान लिया जाए और नहीं तो उसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका डाली जाए। केन्द्र सरकार की ओर से इस पर पुनर्विचार याचिका डाल भी दी गई हैं और इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टीकरण दे दिया हैं/यह अलग मुद्दा हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को समझना जरूरी 
ऐसा नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले के खिलाफ जनता पहली बार सडक़ों पर उतरी हो। लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि यह न तो लाठी और बल से चलता हैं और न ही अनैतिक क्रियाकलापों से। लोकतंत्र की संचालन शक्ति सामाजिक और आर्थिक न्याय हैं और उसे अदालती स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्य संस्थाओं के स्तर पर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी समझने की कोशिश करनी होगी। दुनियाभर के नागरिक अधिकार संगठन, मानवाधिकार संस्थाएं हमेशा से यह कहती हैं कि अगर किसी भी गैर-नृशंस अपराध में महज एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी का प्रावधान हैं तो उसका दुरुपयोग होगा। ऐसा हमने दहेज विरोधी कानून में भी देखा हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन पर टिप्पणी की कि हमने एससी/एसटी एक्ट को कमजोर नहीं किया हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उन्होंने फैसले को सही से पढ़ा ही नहीं या फिर निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा उन्हें गुमराह कर दिया गया हैं। हमने यही कहा हैं कि निर्दोष व्यक्तियों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। भारत बंद में 15 राज्यों में प्रदर्शन हुए। इस दौरान हिन्दी बेल्ट के 10 राज्यों में उपद्रव के दौरान 13 लोगों की जानें गईं। दरअसल राजनीतिक दल दलित वोटों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। देश में 17 प्रतिशत दलित वोट हैं और 150 से अधिक लोकसभा सीटों पर दलितों का प्रभाव है। इसलिए आंदोलन के साथ सभी राजनीतिक दल खड़े हैं। जिन 12 राज्यों में हिंसा हुई वहां एससी/एसटी वर्ग से 80 सांसद हैं। दलितों को अपनी राय प्रकट करने का पूरा अधिकार हैं पर यह तरीका सही नहीं माना जा सकता। 

अखिल भारतीय जीनगर महासभा ने की भत्र्सना
बहरहाल! यह प्रसन्नता का विषय हैं कि 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा व आगजनी के खिलाफ अब कुछ प्रमुख दलित संगठन स्वयं आगे आकर इसकी भत्र्सना करने लगे हैं। अखिल भारतीय जीनगर महासभा के राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष गोपाल जादूगर ने मंगलवार को देशभर में हुई हिंसा, तोडफ़ोड़ व आगजनी को गलत बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में विरोध का यह तरीका ठीक नहीं हैं। जादूगर ने कहा कि कुछ शरारती तत्वों की वजह से समूचे एससी-एसटी वर्ग की बदनामी होती हैं/विरोध सार्थक व गांधीवादी होना चाहिए। भविष्य में किसी भी रूप में इसकी पुनरावृति नहीं हो, आंदोलन के रणनीतिकारों का इसका विशेष ध्यान रखना होगा। गोपाल जादूगर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में हालिया किए गए बदलाव मामले में केन्द्र सरकार की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका के लिए आभार व्यक्त करते हुए मजबूत पैरवी की अपील की हैं। जादूगर ने एक्ट में बदलाव को गैर जरूरी बताते हुए कहा कि इससे इस अधिनियम के कमजोर होने की संभावना हैं तथा एक्ट का मूल उद्देश्य भी निष्प्रभावी होगा। 

राजस्थान कांग्रेस का हल्ला बोल!

घनश्याम डी रामावत
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से बढ़ती महंगाई के विरोध में आयोजित हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत बुधवार को राजस्थान भर में प्रदर्शन कर जगह-जगह सरकार का पुतला दहन किया गया। राजधानी जयपुर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता सडक़ों पर उतरे और नारेबाजी करते हुये जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे, यहां पर जमकर प्रदर्शन किया। कांग्रेस के हल्ला बोल कार्यक्रम को देखते हुए भारी संख्या में कायकर्ता पार्टी मुख्यालय पहुंचना शुरू हो गये थे जहां से समूह के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंचे। कार्यक्रम में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी, जिला अध्यक्ष प्रताप सिंह खाचरियावास सहित पार्टी के अनेक पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता शामिल हुये।

2 अप्रैल को हुई हिंसा की आलोचना/संयम की अपील
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भाजपा सरकार पर हल्ला बोलते हुये कहा कि राज्य सरकार की गलत नीतियों के कारण हर वर्ग में असंतोष व्याप्त हैं और आम जनता जल्द से जल्द इस सरकार से मुक्ति चाहती हैं। उन्होंने देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में लगातार हो रही वृद्धि के आंकड़े देते हुये कहा कि गत चार सालों में इनके दामों में बेतहाश वृद्धि हुई हैं जबकि अंतराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमतों में लगातार गिरावट हुई हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सेस लगाये जाने से सरकार को सात लाख तीस हजार करोड़ का नुकसान हुआ हैं। पायलट ने प्रदेश में हाल ही में हुई हिंसा का जिक्र करते हुये लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की और कहा कि राज्य में जब जब वसुंधरा राजे सरकार बनी तब तब आम जनता को लाठी गोलियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि भारत बंद जैसे आंदोलन में तत्पर कार्यवाही नहीं करने, आंदोलनों से निपटने की रणनीति नहीं बनाने के कारण ही प्रदेश में कई लोगों की जानें गयी और हजारों करोड़ों की सरकारी संपति को नुकसान पहुंचा। उन्होंने भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुये सवाल किया कि भारत बंद के दौरान भाजपा शासित राज्यों में व्यापक तौर पर हिंसा क्यों हुई। इस पर गहराई से चिंतन करना चाहिये। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा हिंसा के लिये विपक्ष को जिम्मदार बताने की निंदा करते हुये कहा कि राज्य सरकार को स्वयं आत्मचिंतन करना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज समाज का हर वर्ग बंटा हुआ महसूस कर रहा हैं।

जोधपुर में पीएम का पूतला फूंका
पायलट ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घमंडी बताते हुये कहा कि वह अपना घमंड छोड़ कर जनता से संवाद करती तो संभवत राज्य के यह हालत नहीं होते और जनता को लाठी गोली का सामना नहीं करना पड़ता। पायलट ने कहा कि प्रदेश की जनता के दर्द को समझते हुये और सभी वर्ग और कौम के हित में शीघ्र ही कांग्रेस की ओर से यात्राएं आयोजित की जायेगी और आम लोगों से संवाद कर इस निकम्मी सरकार को हटाने का अभियान छेड़ा जाएगा। प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े शहर सूर्यनगरी जोधपुर में भी शहर एवं देहात जिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत विरोध प्रदर्शन किया। शहर व देहात जिला कांग्रेस कमेटी के महंगाई विरोधी धरना प्रदर्शन में जिलाध्यक्ष सईद अंसारी व हीराराम मेघवाल के नेतृत्व में कार्यकर्ता जुटे। कांग्रेस कार्यालय के निकट रणछोड़ मंदिर चौराहे पर काफी देर सरकार विरोधी नारे लगाए व प्रधानमंत्री का पूतला फूंका। प्रदर्शन के बाद कांग्रेसजन कलेक्ट्रेट पहुंचे और जिला कलक्टर डॉ. रविकुमार सुरपुर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।

दलित संगठनों का भारत बंद/मायने...

घनश्याम डी रामावत
एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को देशभर में प्रदर्शन किया। भारत बंद के आह्वान पर देश के अलग-अलग शहरों में दलित संगठन और उनके समर्थकों ने ट्रेने रोकीं और सडक़ों पर जाम लगाया। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में तोडफ़ोड़, जाम और आगजनी की घटनाएं सामने आई। सही अर्थों में दलितों का यह भारत बंद अनेक सवाल खड़े कर गया। न केवल भारत बंद/आंदोलन की सार्थकता व औचित्य पर, केन्द्र व राज्य की सरकारों की मौजूदा कानून व्यवस्था पर भी/जिसके चलते वे इस भारत बंद में उपजी हिंसा को पहले से भांपने में नाकाम रहे। दलित संगठनों को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में  किए गए बदलाव को सही तरीके से समझना चाहिए। संभव हैं उसके बाद आंदोलन अथवा भारत बंद की जरूरत ही नहीं पड़े।

कानून विशेषज्ञों की माने तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया गया हैं जिससे संबंधित वर्गों के हितों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़े। उम्मीद की जानी चाहिए दलित संगठनों से ताल्लुक रखने वाले बुद्धिजीवी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सही तरीके से विवेचना करेंगे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में यदि कोई आंदोलन होता हैं तो वह हिंसक/अराजकतापूर्ण नहीं होगा। आखिरकार भारत बंद अथवा अन्य किसी आंदोलन के तहत जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता हैं वह राष्ट्र की/अपनी ही संपत्ति हैं। हिंसा अपने ही समाज के विरूद्ध होती हैं, इसे जायज कैसे ठहराया जा सकता हैं। बहरहाल! राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलग-अलग इलाकों में हालात अभी भी काफी नाजुक हैं। राजस्थान में एक व्यक्ति की मौत और मध्यप्रदेश में अब तक 5 की मौत हो चुकी हैं। राजस्थान के बाडमेर में एक हिंसक झड़प में 25 लोग घायल हुए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एससी/एसटी एक्ट में कई बदलाव हुए थे। जिसके बाद केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि अदालत में इस मामले पर मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया। जिसके विरोध में 2 अप्रैल सोमवार को दलित संगठनों की तरफ से भारत बंद बुलाया गया। हालांकि, सरकार की ओर से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की गई किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 मार्च के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हैं। अब सप्ताह भर बाद पुन: इस मामले में सुनवाई होगी।

बेअसर नजर आई पुलिस/दहशत का माहौल रहा
चूंकि व्यक्तिगत रूप से मैं जोधपुर से हूं, जोधपुर का उल्लेख करना आवश्यक हैं। जोधपुर में 2 अप्रैल/सोमवार को भारत बंद के दौरान जमकर उपद्रव हुआ। बंद समर्थकों ने सरकारी, निजी वाहनों और अनगिनत दुकानों में तोडफ़ोड़ की। भारत बंद समर्थक दिन भर शहर में सभी जगह उत्पात मचाते रहे। पुलिस व उनके बीच कई बाद लाठी-भाटा जंग हुई। अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए। जोधपुर उदयमंदिर पुलिस थाने के उप निरीक्षक महेन्द्र चौधरी के चोट लगने से कार्डियक अटेक आ गया, जिनकी आखिरकार 3 अप्रैल मंगलवार को अहमदाबाद इलाज हेतु ले जाते वक्त मृत्यु हो गई। उपद्रवियों को काबू में करने के लिए पुलिस ने 100 से अधिक आंसू गैस के गोले छोड़े। जोधपुर जिले के फलोदी, ओसियां और बाप में भी जमकर उपद्रव हुआ। फलोदी में हालात बेकाबू होने पर मजिस्ट्रेट को धारा 144 लगानी पड़ी। जोधपुर ग्रामीण इलाकों में 6 अप्रैल तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा सुप्रीमों मायावती ने हिंसा की निंदा की हैं, लेकिन उन्होंने एससी-एसटी एक्ट का समर्थन किया हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने हिंसा भडक़ाई हैं। साथ ही यह मांग भी की जिन्होंने हिंसा फैलाई उनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए। 

देशभर में 10 से अधिक लोगों की जान गई
देश के विभिन्न शहरों में पुलिस थानों को भी निशाना बनाया गया हैं। साथ ही सरकारी वाहनों में आगजनी की गई हैं। प्रदर्शनकारियों के बवाल के चलते कई मार्गों पर ट्रेनें चल नहीं पाईं। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग कई घंटों तक जाम रहे। एसटी-एसी एक्ट 1989 में संशोधन के खिलाफ दिल्ली एनसीआर में भारत बंद ने हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया। बिहार में बंद का असर अधिक रहा। देशभर में बंद के दौरान भडक़ी हिंसा में 10 लोगों की जान चली गई। चहुंओर तोडफ़ोड़/आगजनी को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। विरोध का अपना तरीका हैं, हिंसा के लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं। भारत बंद अथवा अन्य आंदोलनों के नाम पर ऐसी हिंसक/अराजक वारदातों को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके चलते आंदोलन की सार्थकता/औचित्य पर सवाल उठना लाजमी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए देश को आगे फिर कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।

Monday 2 April 2018

इस बार भीषण गर्मी के आसार

घनश्याम डी रामावत
पश्चिमी राजस्थान अर्थात मारवाड़ में इस बार भीषण गर्मी के आसार साफ नजर आ रहे हैं। मार्च महिने के अंतिम सप्ताह में ही गर्मी का जिस प्रकार का रौद्र रूप देखने को मिला हैं, और जिस तरह सूरज की तेज तपिश का कहर निरन्तर रूप से जारी हैं/उससे तो यही लगता हैं। मारवाड़ में गर्मी की भीषणता तो रहती हैं किंतु इतना जल्दी इसका असर नजर नहीं आता हैं। इस बार शरीर को झुलसाने वाली सूरज की तेज किरणों का असर समय से काफी पहले ही शुरू हो गया हैं। सूरज की तपिश बढ़ गई हैं तथा गर्मी के साथ हवा में नमी भी कम होती जा रही हैं। इससे शरीर से पसीने के रेले बहने शुरू हो गए हैं। चैत्र खत्म होने के बाद वैशाख की शुरूआत में ही पश्चिमी राजस्थान में गर्मी ने जोर पकड़ लिया हैं। यहां दिनों-दिन गर्मी व सूरज की किरणों का असर बढ़ता जा रहा हैं। यही कारण हैं कि दोपहर में शहर की सडक़ों पर आवाजाही कम हो गई हैं।

पखवाड़ा पूर्व हो रहा था सर्दी का अहसास 
लोगों ने दोपहर में घर व कार्यालय से बाहर निकलना भी कम कर दिया हैं। खास बात यह हैं कि करीब एक पखवाड़ा पूर्व रात व सुबह के समय लोगों को सर्दी का अहसास हो रहा था लेकिन गत पन्द्रह दिनों में ही तापमान में एकाएक वृद्धि हो गई। आज सोमवार हैं, जोधपुर सहित समूचे पश्चिमी राजस्थान/मारवाड़ में गर्मी परवान पर हैं। सुबह दस बजे के बाद ही तेज धूप में लोगों का निकलना मुश्किल हो गया हैं। देशभर में आज एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ कई दलित संगठनों ने संयुक्त तौर पर भारत बंद का आव्हान कर रखा हैं। इसका असर जोधपुर व मारवाड़ में भी नजर आ रहा हैं। अधिकांश प्रतिष्ठान बंद होने से लोग अपने-अपने घरों में ही आराम कर रहे हैं, लिहाजा आज की गर्मी के कहर से तो वे बच ही गए हैं।

समय से पहले कूलर/एसी की टोह
पिछले सप्ताह भर से तो यह आलम हैं कि सूरज की तेज किरणों के कारण मकानों व दुकानों के आगे खड़ी गाडिय़ां भी गर्म होने लग गई हैं। घरों की छतों पर रखी प्लास्टिक की टंकियों में भी पानी अभी से ही गर्म होने लगा हैं। हमेशा की तरह सूर्यनगरी जोधपुर के वाशिंदों/दुकानदारों ने राहगीरों के लिए पानी के कैम्पर लगाकर ठंडे पानी का इंतजाम करना शुरू कर दिया हैं। बाजार में जहां शीतल पेय एवं ठेलों पर भी कुल्फी आदि की बिक्री एकाएक बढ़ गई हैं, घरों व प्रतिष्ठानों पर लोगों ने गर्मी के कहर से बचने हेतु समय से पहले कूलर/एसी की टोह लेना शुरू कर दिया हैं।

Sunday 18 March 2018

‘शनि’ अमावस्या विशेष : सप्तम ग्रह के रूप में मान्यता

घनश्याम डी रामावत
नवग्रहों में शनि को सप्तम ग्रह के रूप में मान्यता हैं। लिखा हैं-‘अथ खेटा रविश्चन्द्रो मंगलश्व बुधस्तथा। गुरू: शुक्र: शनि राहु: केतुश्चेते यथाक्रमम्’ रवि, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु व केतु ये क्रम से नवग्रह हैं। शनि के नाम-मंद, कोण, यम और कृष्ण हैं। शनि क्रूर ग्रह हैं। तत्र्राक शनि भूस्वुत्रा: क्षीणेन्दु-राहु-केतव:। क्रूरा:, शेषग्रहा सौम्या क्रूर: क्रूर-युतोबुध:। इन ग्रहों में रवि, शनि, मंगल, क्षीणचन्द्र, राहु-केतु को क्रूर ग्रह में लिखा गया हैं जिसमें शनि भी हैं। छाया सुनुश्चेदु:खद: से शनि को दु:खस्वरूप कहा हैं। शनि को श्रमिक या भृत्य का कारक कहा गया हैं।

शनि का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को 
जोधपुर स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर दादा दरबार में आचार्य के रूप में सेवाएं दे रहे रामेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी ज्योतिष विषारद पण्डित मुकेश त्रिवेदी के अनुसार शनि को कृष्ण वर्ण कहा गया हैं। शनि स्त्री-पुरुषादि में नपुंसक हैं और वायुतत्व हैं। शनि तमोगुणी हैं। शनि का स्वरूप दुर्बल, लंबादेह, पिंगल नेत्र, वात प्रकृति, स्थूल दंत, आलसी, पंगु, कठोर रोम वाला कहा हैं। शरीर में स्नायुओं का शनि स्वामी हैं। कसैला रस शनि का हैं। शनि पश्चिम दिशा का स्वामी हैं। शनि रात्रि बली हैं। शनि कृष्ण पक्ष में, दक्षिणायन में बली होते हैं। कुत्सित वृक्षों का शनि स्वामी हैं। नीरस वृक्षों की उत्पत्ति शनि से होती हैं। शनि शिशिर ऋ तु का स्वामी हैं। वृद्धस्वरूप हैं। शनि पुष्प, अनुराधा व उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र का स्वामी हैं। राशियों में मकर-कुंभ राशि का अधिपति हैं। शनि के बुध, शुक्र मित्र ग्रह हैं। सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रु हैं। गुरू सम हं। शनि जन्माक्षर में स्थित अपने स्थान से 3, 7, 10वें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं। भगवान शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को हुआ था, इसलिए इस दिन का खास महत्व हैं।

गति कम/38 से 30 वर्ष में पूरा भ्रमण
ज्योतिष विषारद पण्डित त्रिवेदी के अनुसार नवग्रहों में शनि आकाश में सबसे अधिक दूरी पर होने से, उसका वृत्त मार्ग बड़ा हैं इसलिए शनि की गति कम हैं। उसको पूरा चक्र भ्रमण में लगभग 38 से 30 वर्ष लगते हैं अर्थात 12 राशि के भ्रमण में लगभग 28 से 30 वर्ष लगते हैं। एक राशि का भ्रमण काल औसत 2।। वर्ष होता हं। दूरबीन से देखने पर शनि अन्य ग्रहों की अपेक्षा सबसे सुंदर दिखाई देता हैं। उसके पिंड के चारों ओर एक सुंदर वलय दिखाई देता हैं। अति दूर पर होने के बाद भी यह दु:खकारक शनि प्राणियों को संकट देता रहता हैं। ढैय़ा और साढ़ेसाती के रूप में इसका प्रभाव मनुष्यों पर होता है। लघु कल्याणी अर्थात ढ़ैया शनि, बृहत्कल्याणी अर्थात साढ़ेसाती। अपनी राशि से शनि की स्थिति 12वीं, पहली व द्वितीय होने पर साढ़ेसाती होती हैं। शनि की चतुर्थ-अष्टम स्थिति लघु कल्याणी के रूप में मानी जाती हैं। 

दोष निवृति के लिए 23 हजार शनि जाप
शनि अपनी राशि का मित्र हो और कुंडली में उत्तम स्थान या मित्र, उच्च व स्वराशि में स्थित हो तो साढ़ेसाती का प्रभाव विशेष प्रतिकूल नहीं होता हैं। शनि दोष निवृत्ति के लिए शनि के पदार्थों का दान करें, यथा नीलम, सुवर्ण, लोहा, उड़द, काली तिल, तेल, कृष्ण वस्त्र, काले या नीले पुष्प, कस्तूरी, काली गौ, भैंस का दान करें। शनि को काले तिल, सूरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा एवं खिल्ला आदि वनस्पतियों से स्नान कराया जाता हैं। शनि दोष निवृत्ति के लिए ‘ॐ खां खीं खूं स: मंदाय नम:’ बीज मंत्र का जाप करें अथवा पुराणोक्त मंत्र का जाप (नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसंभूतं तम नमामि शनैश्चरम्) करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 23 हजार बार करना चाहिए। कलियुग चतुर्गुणित 92 हजार संख्या में करें। तेल का दीपक भी लगाएं। काली तिल से हवन करें।

मानवीय मूल्यों की अनदेखी चिंताजनक

घनश्याम डी रामावत
देश में इस समय जिस तरह का माहौल हैं अर्थात लोगों की जिस तरह की जीवन जीने की शैली हो गई हैं, कहीं न कहीं मानवीय मूल्य पीछे छूटते से प्रतीत होने लगे हैं। हर कोई अपने आप में मस्त हैं, कौन क्या कर रहा हैं/उसका अन्य से कोई वास्ता नहीं/सरोकार नहीं/हस्तक्षेप नहीं। विशुद्ध रूप से यहीं कारण हैं कि दिन प्रतिदिन अपराधों का ग्राफ तो बढ़ ही रहा हैं, संस्कारों का विकृत स्वरूप अर्थात नैतिक पतन के अनेक मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। अब समय आ गया हैं जब मानवीय मूल्यों की संरक्षा हेतु सभी को पूरी ताकत/दिल से आगे आना होगा। अब भी नहीं संभले तो मानवीय मूल्यों/संस्कारों की अनदेखी आगे चलकर सभी को बेहद भारी पडऩे वाली हैं। 

किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का अहम योगदान रहता हैं क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की परख की जाती हैं। इंसान के जीवन की सबसे पहली पाठशाला उसका अपना परिवार ही होता हैं और परिवार समाज का एक अंग हैं। उसके बाद उसका विद्यालय, जहां से उसे शिक्षा हासिल होती हैं। परिवार, समाज और विद्यालय के अनुरूप ही एक व्यक्ति में सामाजिक गुणों और मानव मूल्यों का विकास होता हैं। प्राचीन काल के भारत में पाठशालाओं में धार्मिक शिक्षा के साथ मूल्य आधारित शिक्षा भी जरूरी होती थी। लेकिन वक्त के साथ यह कम होता चला गया और आज वैश्वीकरण के इस युग में मूल्य आधारित शिक्षा की भागीदारी लगातार घटती जा रही हैं। सांप्रदायिकता, जातिवाद, हिंसा, असहिष्णुता और चोरी-डकैती आदि की बढ़ती प्रवृत्ति समाज में मूल्यों के विघटन के ही उदाहरण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव की मुखालफत करता हैं। लेकिन सच यह हैं कि संविधान लागू होने के पैंसठ साल बाद भी हमारे विद्यालयों में जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाले उदाहरण आसानी से मिल जाएंगे। आज भी अक्सर देखा जाता हैं कि विद्यालय में पानी भरने के अलावा सफाई का काम लड़कियों से ही कराया जाता है। अध्यापक पीने के लिए पानी कुछ खास जाति के बच्चों को छोड़ कर दूसरी जातियों के बच्चों से ही मंगवाते हैं। ऐसे उदाहरण भी अक्सर देखने में आ जाते हैं कि विद्यार्थी मिड-डे-मील अपनी-अपनी जाति के समूह में ही बैठ कर खाते हैं। स्कूल में कबड्डी जैसे खेल सिर्फ लडक़े खेलते हैं। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हमारे आसपास के स्कूलों में देखने को मिल जाएंगे।

एनसीईआरटी द्वारा की गई हैं सार्थक पहल
हाल ही में नई दिल्ली स्थित एनसीईआरटी ने वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक मूल्यों की सूची तैयार की हैं। इसका बदलाव संदर्भित प्राथमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में भी देखा जा सकता हैं। कुछ साल पहले तक पाठ्य पुस्तकों में भी भेदभाव करने वाले चित्र नजर आते थे, मसलन, झाड़ू लगाती हुई लडक़ी, खाना बनाती औरतें, हल चलाते हुए किसान और उपदेश देते गुरू आदि। लेकिन पाठ्य पुस्तकों में बदलाव के बाद इन चित्रों में गुणात्मक बदलाव देखने को मिलता हैं। मसलन, सफाई करते हुए लडक़े और खेलती हुई लड़कियां आदि। पाठ्य-पुस्तकों में जाति, धर्म और लिंग आधारित चित्रों में जो रूढि़बद्ध जड़ता थी, उससे आगे बढ़ कर अब तस्वीर का दूसरा पहलू भी सामने आ रहा हैं। यह बदलाव केवल चित्र के स्तर पर नहीं, बल्कि विषय-वस्तु और निर्देशों के स्तर पर भी देखा जा सकता हैं। लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि जिन मूल्यों की बात पाठ्य-पुस्तक करती हैं, उनका उपयोग शिक्षक विद्यालय में कैसे कर रहा हैं? यह एक अजीब विडंबना हैं कि पाठ्यपुस्तकों से शिक्षाविदों ने सामाजिक और मानवीय भेदभाव को अभिव्यक्त करने वाले चित्रों को तो बदल दिया, मगर विद्यालयी वातावरण में वह आज भी उसी शक्ल में मौजूद हैं। आमतौर पर शिक्षक बच्चों को पाठ पढ़ाना और नैतिक सीख देना ही काफी समझते हैं और विद्यार्थी के व्यवहार में मूल्यगत बदलाव पर कम ध्यान देते हैं, क्योंकि जिस जाति या समाज से शिक्षक संबंध रखता हैं, उसके मुताबिक उसकी अपनी कुछ मान्यताएं होती हैं।

सभी को मिल-जुल कर कार्य करने की जरूरत
उन अतार्किक जड़बद्ध सामाजिक-धार्मिक पूर्वाग्रहों की वजह से शिक्षक तर्कशील होकर नहीं सोच पाता हैं, क्योंकि उस पर जाति, धर्म और समाज विशेष की पहले से बनी धारणाएं हावी रहती हैं। उन्हीं रूढि़बद्ध मान्यताओं के अनुसार वह चलना चाहता हैं। लेकिन जब तक शिक्षक अपने आपको तर्क की कसौटी पर रख कर नहीं सोचेगा, तब तक वह न तो अपने व्यवहार में परिवर्तन ला सकता हैं और न ही विद्यार्थियों में मूल्यों के प्रति आस्था विकसित कर सकता हैं। एक शिक्षक का फर्ज बनता हैं कि वह पाठ्य-पुस्तकों में दिए गए ‘मूल्यों’ का महत्व समझे, उन्हें अपने जीवन व्यवहार का हिस्सा बनाए, फिर बच्चों के दैनिक व्यवहार में लाने का प्रयास करें। स्कूलों से समाज की अपेक्षा होती हैं कि वह तर्कशील मनुष्य प्रदान करे। इसलिए स्कूलों में ही जरूरी मानव मूल्यों की शिक्षा नहीं दी गई तो कहीं न कहीं राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने से हम चूक जाएंगे। लिहाजा, जरूरी हैं कि पाठ्य-पुस्तकों में उल्लेखित मूल्यों के प्रति शिक्षक समाज चिंतनशील हो, उन्हें बच्चों के दैनिक जीवन में लेकर आए। मेरा तो यह मानना हैं कि इस मामले में समाज के सभी तबकों को/अभिभावकों को भी पूरे मन से आगे आना होगा और मानवीय मूल्यों की रक्षा/सुदृढ़ स्थापना हेतु कार्य करना होगा, तभी जाकर अपेक्षित सफलता हाथ लग सकेगी और एक सुखी, समृद्ध/संस्कारी समाज की स्थापना हो सकेगी।

Tuesday 13 March 2018

बाऊजी की पुण्य तिथि


घनश्याम डी रामावत
आज बाऊजी की पुण्य तिथि हैं। देखते ही देखते कैसे 8 साल बीत गए, मालूम ही नहीं चला। ऐसा प्रतीत होता हैं, मानो कल की ही बात हैं। 12 मार्च 2010/यकीनन बेहद क्रूर दिवस था यह मेरे लिए.. मैं इसे जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता। दोस्तों! ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस जीवन में मेरे लिए सबसे प्रिय/अनमोल/सम्मानीय अर्थात जिसे मैं अत्यधिक प्रेम व स्नेह करता था/चाहता था, वो बाऊजी थे। बाऊजी मेरे लिए एक ऐसी चाहत थे जिसे मैं कभी भी खोना नहीं चाहता था या यूं कहूं उनको खोना मुझे बर्दाश्त/स्वीकार्य नहीं था। किंतु ईश्वर के द्वारा बनाए नियमों के आगे इंसान की चाहत/सिद्धांत/पसंद/नापसंद क्या वक्त रखती हैं, बाऊजी को छीन लिया नियति के क्रूर हाथों ने। यह वाकई विडम्बना ही थी कि जीवनभर अस्पताल और खासकर इंजेक्शन से दूरी बनाकर रखने वाले बाऊजी का अंतिम समय अस्पताल में गुजरा। फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से करीब तीन दिन तक वे जोधपुर एमडीएम अस्पताल की आपातकालीन इकाई में भर्ती रहे, चिकित्सकों के अथक प्रयासों पर मर्ज भारी पड़ा/बाऊजी ने अपनी अंतिम विदाई यही से ली। बाऊजी द्वारा इस जहां से रूखसत हो जाने के बाद पैदा हुआ सन्न कर देने वाला वातावरण/एक अलग तरह की शून्यता मेरे जीवन में आज भी यथावत हैं।  

बाऊजी परिवार में सभी लोगों को बेहद प्यार करते थे/मुझसे कुछ अधिक (ऐसा मेरा मानना हैं)। सभी की जरूरतों का/पसंद और नापसंद का अत्यधिक ख्याल रखते थे। दूसरों को कष्ट/तकलीफ देना उनके स्वभाव में नहीं था, परिजनों को भी नहीं। सकारात्मक सोच/नैतिकता व अपने सिद्धांतों पर चलकर जीवन जीने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे बाऊजी। सरकारी सेवा में होने के बावजूद अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने। शिक्षा विभाग में अध्यापक और बाद में प्रधानाध्यापक रहें बाऊजी। निवास स्थान से विद्यालय करीब चालीस किलोमीटर दूरी पर था, सेवानिवृति तक अनवरत रूप से साईकिल पर आना-जाना करते रहें(मारवाड़ जंक्शन(पाली) पंचायत समिति क्षेत्र सहित सोजतरोड़/कंटालिया/मुसालिया/बोरनडी/मेलाप इलाकों में भंवरलाल जी साईकिल वाले मास्टर साहबके रूप में लोग याद करते हैं बाऊजी को)। कभी भी नजदीकी स्थानांतरण अथवा किसी भी निजी समस्या के चलते यहां वहां पोस्टिंग हेतु विभाग के समक्ष आवेदन नहीं किया। यह बाऊजी के अपने अनूठे सिद्धांत/कार्य शैली/जीवन पद्धति थी। बाऊजी की इस जीवन पद्धति और सिद्धांतों का भरपूर असर मुझ सहित पूरे परिवार पर पड़ा हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरा मौजूदा व्यक्तित्व/जीवन शैली बाऊजी द्वारा प्रदत्त संस्कारों व आशीर्वाद का ही प्रतिफल हैं।

संस्मरण बहुत हैं पर लिखने का हौसला नहीं हैं। आंखे डबडबानें लगी हैं। बाऊजी की स्मृतियां/उनकी परवरिश/सानिध्य में बीता वक्त मेरी कलम/लेखनी पर भारी पडऩे लगा हैं। गला रूंधा सा जा रहा हैं। अनायास ही अश्रुओं ने अपना आधिपत्य जमा लिया हैं। सकारात्मक सोच के साथ हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहना/सभी को हंसते-हंसाते रहना और हौसला आफजाई करना.. अद्भुत/शालीन/सादगीपूर्ण/संजीदा व्यक्तित्व था बाऊजी का। अपनी नियमित दिनचर्या के बीच स्वयं से अधिक परिजनों की अर्थात हम सभी की खुशियों की चिंता करने वाले बाऊजी अब इस जहां में नहीं हैं, किंतु उनका आशीर्वाद/उनके दिए संस्कार/मुझ सहित पूरे परिवार के सदस्यों के साथ हैं। बाऊजी के जाने से पैदा हुई शून्यता कभी खत्म होगी/ऐसा मैं नहीं मानता, हां! उनका आशीर्वाद/प्रदत्त संस्कार हमारे जीवन की अनमोल पूंजी हैं/इससे ही अब तक संबल मिला हैं और आगे भी यहीं ताकत जीवन जीने की राह को आसान बनाएगी, ऐसा मेरा मानना हैं। बाऊजी का प्रिय भजन या यूं कहे वो चंद पंक्तियां जो वह अक्सर गुनगुनाया करते थे-रे मन क्यूं अकर्म कर खोते हो, मिले ना बारम्बार शरीर..।और राजाओं के राजा यहां बजा गए हैं बाजा, बल-जल होई भस्म की ढ़ेरी/तेरा सुंदर सुगड़ शरीर..। बाऊजी ने वर्षों पूर्व इन पंक्तियों को चरितार्थ कर लिया और अनूठी अदृश्य शक्ति में विलीन हो गए।

किसी ने सच कहा हैं-पिता से ही बच्चों के ढ़ेर सारे सपने हैं/पिता हैं तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं। इसे और बेहतर तरीके से अनुभूत करना हैं तो सिर्फ एक दिन के लिए अंगूठे के बगैर सिर्फ अंगुलियों से अपने सारे काम करके देखें/पिता की कीमत पता चल जाएगी। "पिता" जीवन हैं/सम्बल हैं/शक्ति हैं। सृष्टि में 'निर्माण' की अभिव्यक्ति हैं। पिता की लाठी कठोर अवश्य होती हैं, किंतु हमें गिरने नहीं देती..!! #In the current perspective, it's very important that।everyone। understand it seriously and live their life by assimilating it।🙏
Baau ji! We all are missing you too much.. 
#नमन/विनम्र आत्मीय श्रद्धांजलि/कोटि-कोटि प्रणाम!
(ब्लॉग 12 मार्च 2018 को प्रात: लिखा हुआ हैं, पोस्टिंग 13 मार्च अर्थात आज हुई हैं)

Friday 9 March 2018

यूपी में सपा-बसपा गठबंधन : मजबूरी का मिलन

घनश्याम डी रामावत
यूपी में जिस तरह से दो धुर विरोधी कहे जाने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में चुनावी गठबंधन हुआ हैं, उससे राजनीतिज्ञों व राजनीति को लेकर कहे जाने वाले सदाबहार वाक्य ‘राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं’ को ही बल मिला हैं। राजनीति वाकई राजनीति हैं। राजनीतिक मजबूरियां कई बार दुश्मनी को भूलने और चाहत बदलने को मजबूर कर देती हैं, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में यही हुआ हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने लोकसभा के दो उपचुनावों के लिए परस्पर हाथ मिलाया हैं ताकि भाजपा को टक्कर दी जा सके। इस राजनीतिक मिलन को भाजपा चुनौती मानती हैं अथवा नहीं/यह अलग विषय हैं लेकिन इतना तय हैं कि उसे गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीटें बचाने में कुछ अधिक जोर लगाना पड़ सकता हैं। 

पहले भी रहा हैं दोनों दलों के बीच गठबंधन
गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व फूलपुर की सीट उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं। इन सीटों के चुनाव परिणामों का भारतीय राजनीति पर गहरा असर पड़े बिना नहीं रहेगा। अगर सपा-बसपा ने भाजपा को पटखनी दे दी तो फिर उनके बीच आगे गठबंधन की संभावना बनेगी और दूसरे राज्यों में कई दल अगले विधानसभा चुनावों व फिर लोकसभा चुनावों में गठबंधन की तरफ आगे बढ़ेंगे। अगर उप चुनावों में भाजपा ने अपने दम पर बाजी मार ली तो फिर गठबंधन की राजनीतिक को झटका लगेगा और संदेश यही जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के प्रभाव व रणनीति से टक्कर लेना आसान नहीं हैं। इससे विपक्षी दलों में और निराशा बढ़ेगी। वैसे भी देखें तो बसपा की नीति उप चुनाव लडऩे की कभी नहीं रही हैं। सपा को समर्थन देकर इस हाथ ले, उस हाथ दे की नई नीति पर काम कर रही हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने दोनों संसदीय क्षेत्रों में सपा के उम्मीदवारों को समर्थन देने की घोषणा कर दी हैं। अपने समर्थकों को सपा को वोट दिलाने की अपील की गई हैं। इसके बदले में बसपा ने सपा के सामने मांग रखी हैं उसे राज्यसभा चुनावों में सपा अपने अतिरिक्त वोट दिलवाएगी। क्योंकि आगामी राज्यसभा चुनाव में बसपा की हैसियत अपने दम पर एक भी सीट जीतने की नहीं हैं। ऐसे ही सपा भी अपने स्तर पर दो उम्मीदवारों को भी राज्यसभा नहीं भेज सकती। यही वजह है कि सपा से सबसे अधिक दुश्मनी रखने वाली मायावती ने सपा के साथ कुछ आगे बढ़ाया है, यह सिर्फ मजबूरी का कारण है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव वैसे कई बार बसपा से गठबंधन की पेशकश सामने रख चुके हैं, लेकिन बसपा ने कभी उसका सकारात्मक उत्तर नहीं दिया। आज भी मायावती ने साफ कहा हैं कि भविष्य में गठबंधन की कोई संभावना नहीं हैं। स्पष्ट हैं कि यह तात्कालिक मिलन एक परीक्षण मात्र हैं। यदि यह सफल रहता हैं तो भविष्य की चिंता दोनों दलों को नजदीक ला भी सकती हैं। वैसे भी दोनों सपा-बसपा में पहले भी गठबंधन रहा हैं। 1993 में दोनों दलों ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन दो साल बाद यह गठबंधन टूट गया। बसपा ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सरकार गिर गई। यह अलगाव गेस्ट हाउस कांड के कारण दुश्मनी में बदल गया। तब से 22 साल गुजर गए और बसपा ने सपा से दूरी बनाए रखी। 

उप चुनाव परिणाम तय करेंगे भविष्य की तस्वीर
अब सपा का नेतृत्व अखिलेश कर रहे हैं तो मायावती अवसर देखकर राजनीतिक दुश्मनी को शायद भुला भी सकती हैं। वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव व पिछले विधानसभा चुनाव ने दोनों दलों को अच्छी तरह अहसास करा दिया हैं वे अलग-अलग भाजपा का सामना नहीं कर सकते। लोकसभा चुनाव में तो बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। विधानसभा चुनाव में मायावती को लग रहा था वे अकेले भाजपा से बाजी मार लेंगी, लेकिन उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर सिमट कर रह गई। अब भी सपा-बसपा के बीच जो छोटा समझौता हुआ हैं उससे ज्यादा उम्मीद तो नहीं जगती। हालांकि कुछ लोग इसे काफी महत्वपूर्ण मानकर चल रहे हैं। लेकिन यक्ष प्रश्र यह कि क्या मात्र इस समझौते से भाजपा इन दोनों सीटों को हार जाएगी? ऐसा लगता तो नहीं हैं। क्योंकि पिछले चुनाव में इन सीटों पर भाजपा को 51 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे जबकि दोनों सीटों पर सपा और बसपा को मिलाकर 37-38 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले। बहरहाल, अब समझौता महत्वपूर्ण नहीं रह गया हैं, बल्कि उप चुनाव के नतीजों का इंतजार महत्वपूर्ण बन गया हैं। इस अनूठे गठबंधन की सही समीक्षा व भविष्य की तस्वीर से रूबरू होने के लिए उप चुनाव नतीजों के इंतजार से बेहतर अन्य कोई विकल्प नहीं।

वसुन्धरा राजे : नहीं थमी नाराजगी/चुनावी पिटारा बेअसर!

घनश्याम डी रामावत
कल 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के अवसर पर झुंझुनू में राष्ट्रीय पोषण मिशन के आगाज के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में सूबे की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को अपने उद्बोधन के दौरान जिस तरह से युवाओं के विरोध का सामना करना पड़ा, यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि सत्तारूढ़ राजस्थान सरकार और खासकर इसकी मुख्या वसुन्धरा राजे की कार्यशैली को लेकर नाराजगी में कोई कमी नहीं आई हैं। यह तब हो रहा हैं जब हाल ही में विधानसभा बजट के दौरान मुख्यमंत्री राजे द्वारा अनेक लोक लुभावन घोषणाएं की गई हैं। सीधे-सीधे यह घोषणाएं जिन्हें राजनीतिक हलकों में चुनावी पिटारा नाम दिया गया, बेअसर साबित होती ही प्रतीत हो रही हैं। पीएम की मौजूदगी में युवाओं द्वारा विरोध व्यक्त किए जाने से मुख्यमंत्री राजे की एक बार फिर किरकिरी हुई हैं। 

बजट सत्रे में की गई अनेक लोक लुभावन घोषणाएं
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2018-19 के बजट में किसानों का कर्जा माफ करने, 77 हजार रिक्त पद भरने तथा सडक़, सिंचाई, चिकित्सा, पेयजल सहित कई योजनाओं की घोषणा करते हुए 17 हजार 454 करोड़ 85 लाख रूपए का राजस्व घाटे का बजट प्रस्ताव पेश किया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वित्त मंत्री के रूप में विधानसभा में बजट प्रस्ताव पेश करते हुये उप चुनावों में हुई हार के बाद कई लोक लुभावनी घोषणायें की। राजे की ओर से अपनी पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत और सुंदर सिंह भंडारी को सम्मान देते हुये उनके नाम से दो योजनाएं शुरू करने की घोषणा भी की गई। बजट में कोई नया कर नहीं लगाने और 650 करोड़ रूपए की राहत दिए जाने की बात भी कही गई। राजस्थान सरकार द्वारा किसानों को राहत देने की घोषणा करते हुये किसानों को 50 हजार तक सहकारी बैंकों के लघु एवं सीमांत किसानों के ऋ ण को माफ करने, कृषि उपकरणों पर भी राहत देने के साथ ही सहकारिता क्षेत्र के मध्यम और लघु किसानों को भी अनुदान पर राहत दिए जाने की घोषणा की गई। राजस्थान राज्य कृषक ऋ ण राहत आयोग के गठन की घोषणा सहित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग के परिवारों को जीविकोपार्जन का साधन जुटाने के लिये भैंरोसिंह शेखावत अंत्योदय स्वरोजगार योजना तथा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य श्रेणी के परिवारों को जीविकोपार्जन के लिये सुंदर सिंह भंडारी ईबीसी स्वरोजगार योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई। 

प्रदेश सरकार व प्रदेश बीजेपी नेतृत्व परेशान
राजस्थान की सत्तारूढ सरकार के अनुसार इन दोनों योजनाओं के तहत 50-50 हजार परिवारों को 50 हजार रूपये का ऋ ण न्यूनतम ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जायगा। राजस्थान सरकार की ओर से भू-कारोबार में मंदी के मद्देनजर डीएलसी दरों में कमी करने साथ भूखंडों के मूल्यांकन पर अतिरिक्त रियायत दिए जाने की उद्घोषणा भी की गई हैं। राजस्थान सरकार अपने इस बहुत ही कम रह गए कार्यकाल में इन घोषणाओं को किस हद तक लागू कर पाएगी व लोगों को इसका कितना लाभ मिलेगा/यह तो भविष्य के गर्त में हैं, किन्तु जनता खासकर युवाओं की नाराजगी जिस तरह से प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आ रही हैं, सरकार व प्रदेश बीजेपी का नेतृत्व परेशान हैं, यह बात सोलह आने सच हैं। चिंता का कारण विधानसभा चुनाव 2018 तो हैं ही, लोकसभा का चुनाव भी हैं जो वर्ष 2019 में होना हैं।

Thursday 8 March 2018

शुभ होती हैं होली की ‘भस्म’

घनश्याम डी रामावत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली शब्द हिरण्याकश्यप की बहन होलिका के नाम पर पड़ा हैं। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था, जिसे पहनने पर आग में नहीं जलते थे। होलिका ने अपने भाई की बात मानते हुए हिरण्याकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठ गई थी। मगर, भगवान विष्णु की कृपा से होली जल कर भस्म हो गई और प्रह्लाद उससे सकुशल निकल आए थे। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता हैं। इसके साथ ही इस त्योहार को प्रेम के त्यौहार के रूप में लोग मनाते हैं। होली के पर्व पर लोग आपस के मन-मुटावों को भूलाकर एक दूसरे से प्रेम की भावना से गले मिलते हैं।

होली की भस्म में देवताओं की कृपा
अक्सर यह देखने को मिलता हैं कि लोग होलिका दहन के अगले दिन सुबह होली जलने के स्थान पर जाते हैं और वहां होली की भस्म उड़ाकर धुलंडी मनाते हैं। कुछ लोग इस दौरान होली की भस्म को अपने घर भी ले आते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस भस्म का महत्व क्या हैं और इसे लोग घर क्यों लाते हैं? एक मान्यता के अनुसार होली की भस्म शुभ होती हैं और इसमें देवताओं की कृपा समाहित होती हैं। इस भस्म को माथे पर लगाने से भाग्य अच्छा होता हैं और बुद्धि बढ़ती हैं। एक अन्य मान्यता यह हैं कि इस भस्म में शरीर के अंदर स्थित दूषित द्रव्य सोख लेने की क्षमता होती हैं। लिहाजा, इस भस्म लेपन करने से कई तरह के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं। 

नकारात्मक शक्तियां होती हैं बेअसर
मान्यता यह भी हैं कि होली की भस्म को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को नकारात्मक शक्तियों और अशुभ शक्तियों का असर नहीं होता हैं। कुछ लोग ताबीज में भरकर इसे पहनते हैं, ताकि बुरी आत्माओं और तंत्र-मंत्र का उन पर असर नहीं हो।

Wednesday 7 March 2018

शीतला सप्तमी पर्व : ‘बसौड़ा’

घनश्याम डी रामावत
आज शीतला सप्तमी हैं अर्थात मां शीतला का पर्व। देश के हर कोने में किसी न किसी रूप में यह पर्व मनाया जाता हैं। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी व अष्टमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन महिलाएं विधि-विधान से मां शीतला की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली के साथ उत्तम स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस अवसर पर मां को ठंडे भोजन/व्यंजनों का भोग लगाने/पूजा अर्चना के साथ ही आज के दिन सभी लोग एक दिन पूर्व अर्थात षष्ठी की शाम तैयार किए गए भोजन का ही सेवन करते हैं। इसीलिए इस पर्व को ‘बसौड़ा’ भी कहते हैं। इस दिन अनेक स्थानों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता हैं।

जोधपुर में भी आज से दस दिवसीय शीतला माता मेले की शुरूआत हुई। शहर के नागौरी गेट के बाहर कागा क्षेत्र में भरने वाले इस मेले का आगाज झण्डारोहण से हुआ। सूर्यनगरी जोधपुर में मां शीतला की पूजा अष्टमी के दिन की जाती हैं अर्थात यहां पर शीतलाष्टमी मनाई जाती हैं। शीतला माता पूजन से संबंधित विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता हैं। हिंदू व्रतों में केवल शीतला सप्तमी/शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा हैं जिसमें बासी भोजन किया जाता हैं। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता हैं। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता हैं। ऐसी प्राचीन मान्यता हैं कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। कहते हैं कि नवरात्रि के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से मां के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं। यह भी मान्यता हैं कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

शीतला माता की प्रामाणिक पूजा विधि
शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, पूड़ी व सब्जी आदि बना लेनी चाहिए। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमेे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इसी दिन यानि सप्तमी के एक दिन पहले छठ को रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करनी चाहिए। यह पूजा रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर हो तो उत्तम रहता हैं। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता हैं। शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए। बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं। एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ व बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें। एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, होली वाली बडक़ुले की एक माला व सिक्का रखें। शीतल जल का कलश भर कर रखें। पानी से बिना नमक का आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता हैं। पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए। पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें। मंदिर में जाकर हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना की जानी चाहिए कि-हे माता! पूजा को स्वीकार करें एवं हमारे पर कृपा दृष्टि बरसाएं/शीतलता बनाए रखें। 

घर पर की जा सकती हैं पूजा अर्चना
घर पर भी मां शीतला को स्थापित कर पूजा की जा सकती हैं। सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं। रोली और हल्दी से टीका करें। काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें। पूजन सामग्री अर्पित करें। आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करें तथा आरती या गीत आदि गा कर मां की अर्चना करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता हैं, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता हेै। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिडक़ना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा आती हैं। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं व पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। मटकी की पूजा करें। इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती हैं। ठंडे व्यंजन/भोजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं और शीतला माता पर्व का आनंद उठाएं। (अधिकांश स्थानों पर शीतला मां के पूजनोपरांत गर्दभ तथा काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ (गधा) को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी हैं)।

मां शीतला स्तुति मंत्र
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नम:।।