Friday 6 April 2018

सुरेश वाडेकर : पाश्र्व गायिकी का सुरीला/मजबूत हस्ताक्षर

घनश्याम डी रामावत
‘मेघा रे मेघा रे’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’, ‘पतझड़ सावन वसंत बहार’ जैसे गीतों से पार्श्व गायिकी में अपनी अलग पहचान बनाने वाले सुरेश वाडेकर ने अपने पिता का सपना पूरा कर अपने नाम को सार्थक किया हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार और लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित वाडेकर अपनी मधुर आवाज के बूत संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करते हैं। पाश्र्व गायिकी का मजबूत हस्ताक्षर कहे जाने वाले सुरेश वाडेकर का जन्म 7 अगस्त, 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ। इन्हें बचपन से ही गायिकी का शौक था/इनका पूरा नाम सुरेश ईश्वर वाडेकर हैं। पिता ने इनका नाम सुरेश (सुर+ईश) इसलिए रखा, ताकि वह अपने बेटे को बड़ा गायक बनता देख सकें। सुरेश ने कोशिश जारी रखी और आखिरकार उन्होंने अपने पिता का सपना पूरा किया। महज 10 साल की आयु से ही उन्होंने संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया था। वाडेकर ने बहुत ही कम उम्र में अपने गुरू पंडित जियालाल वसंत से विधिवत संगीत सीखना शुरू किया। न सिर्फ हिंदी, बल्कि मराठी सहित कई भाषाओं की फिल्मों के लिए भी गाया और भजनों को अपनी आवाज दी।

पिछले महिने जोधपुर में एक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे सुरेश वाडेकर से होटल चंद्रा इंपीरियल में मुलाकात हो गई। वही सुर/वही ताल और वही दिलकश/सुरीली/मधुर आवाज.. पाश्र्व गायिकी में इतने लंबे सफर के बाद भी कुछ भी नहीं बदला। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर गायिकी के इस बेताज बादशाह के संगीत व कामयाबी से ताल्लुक रखने वाली किताब/सफर के पन्ने भी खुलते गए। सुरेश वाडेकर ने 20 वर्ष की उम्र में एक संगीत प्रतियोगिता ‘सुर श्रृंगार’ में भाग लिया, जहां संगीतकार जयदेव और दादू यानी रवींद्र जैन बतौर जज मौजूद थे। सुरेश की आवाज से दोनों जज इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें फिल्मों में पाश्र्व गायिकी के लिए भरोसा दिलाया। रवींद्र जैन ने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘पहेली’ में उनसे पहला फिल्मी गीत ‘वृष्टि पड़े टापुर टुपुर’ गवाया था। जयदेव ने उनसे फिल्म ‘गमन’ में ‘सीने में जलन’ गाना गवाया, इसके बाद वह लोकप्रिय होने लगे, सभी उन्हें प्रतिभाशाली गायक की दृष्टि से देखने लगे। उन्होंने वर्ष 1998 में ‘शिव गुणगान’, 2014 में ‘मंत्र संग्रह’, 2016 में ‘तुलसी के राम’ नामक एलबम बनाए। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने 1981 की फिल्म ‘क्रोधी’ में ‘चल चमेली बाग में’ नामक गीत लता जी के साथ गाने का मौका दिया। उन्होंने फिल्म ‘प्यासा सावन’ का मशहूर गीत ‘मेघा रे मेघा रे’ लता जी के साथ गाया. फिल्म ‘प्रेम रोग’ में उन्होंने ‘मेरी किस्मत में तू नहीं शायद’, ‘मैं हूं प्रेम रोगी’ जैसे मधुर गीत गाए। इसके साथ ही उनके सितारे बुलंद होने लगे, वह घर-घर पहचाने जाने लगे। इस फिल्म में ऋ षि कपूर के साथ उनकी आवाज इतनी जमी कि उन्हें ऋ षि कपूर की फिल्मों के गीतों के लिए चुना जाने लगा। सुरेश ने कई बड़े संगीत निर्देशकों के लिए गीत गाए। इनमें ‘हाथों की चंद लकीरों का’ (कल्याणजी आनंदजी), ‘हुजूर इस कदर भी न’ (आर डी बर्मन), ‘गोरों की न कालों की’ (बप्पी लाहिड़ी), ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ (इलैया राजा) और ‘लगी आज सावन की’ (शिव-हरि), जैसे कई गीत शुमार हैं, जिन्हें सुरेश ने अपनी आवाज में कुछ ऐसे गाया हैं कि आज भी हम इन गीतों में किसी और गायक की कल्पना नहीं कर पाते।

गीतों का अद्भुत गुलदस्ता/भूला पाना मुश्किल
सुरेश वाडेकर ने फिल्मी-दुनिया को गीतों के रूप में ऐसा गुलदस्ता दिया हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा। वाडेकर ने आर डी बर्मन और गुलजार के साथ मिलकर कुछ गैर फिल्मी गीतों के कई अलबम भी बनाए, जो व्यावसायिक दृष्टि से भले ही कम कामयाब हो पाए लेकिन सच्चे संगीत प्रेमियों के लिए संकलन में वे शीर्ष स्थान पर हैं। गुलजार भी लता और सुरेश से बहुत अधिक प्रभावित रहे। उन्होंने लंबे अंतराल के बाद अपनी फिल्म ‘माचिस’ में उनसे ‘छोड़ आए हम’ और ‘चप्पा चप्पा चरखा चले’ जैसे गीत गवाए। विशाल भारद्वाज के साथ सुरेश ने फिल्म ‘सत्या’ और ‘ओमकारा’ में कुछ बेहद अनूठे गीत गाए। वाडेकर ने हिंदी और मराठी गीत के अलावा कुछ गीत भोजपुरी और कोंकणी भाषा में भी गाए हैं। इन्होंने अलग-अलग भाषाओं में कई भक्ति गीत गाए। 2007 में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें महाराष्ट्र प्राइड अवॉर्ड से सम्मानित किया। वर्तमान गायिकी को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में वाडेकर ने कहा कि सब कुछ लोगों की पसंद/नापसंद के अनुरूप हैं। उन्होंने कहा कि गायक को अपनी आवाज पर ध्यान देने के साथ लोगों की भावनाओं के अनुरूप भी व्यवहारगत होना पड़ता हैं। उन्होंने कहा कि गायक कभी भी रिटायर नहीं होता। वाडेकर के अनुसार यह एक ऐसी साधना/आराधना हैं जिसका कभी कोई अंत नहीं होता।

अनेक राष्ट्रीय/प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित
वर्ष 2011 में उन्हें को मराठी फिल्म ‘ई एम सिंधुताई सपकल’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। मध्यप्रदेश में उन्हें प्रतिष्ठित लता मंगेशकर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। मुंबई और न्यूयॉर्क में सुरेश का अपना संगीत स्कूल हैं, जहां वह संगीत के विद्यार्थियों को विधिवत शिक्षा देते हैं। सुरेश वाडेकर ने संगीत की दुनिया में एक नया अध्याय जोड़ा। आजिवसन म्यूजिक अकादमी नामक पहला ऑन लाइन संगीत स्कूल खोला/जिसके माध्यम से वह नए संगीत महत्वाकांक्षी छात्रों को अपना संगीत ज्ञान और अनुभव देते हैं। इनके प्रशंसक आज भी उनके गीतों को सुनते हैं और अपने पसंदीदा सुरेश वाडेकर से अब भी नए गीतों की आस लगाए हुए हैं। अभी पिछलेे महिने 30 मार्च को विख्यात सारंगीवादक उस्ताद गुलाब खां की स्मृति में जोधपुर मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट के सहयोग से आयोजित खास कार्यक्रम में सुरेश वाडेकर को ‘उस्ताद गुलाब खां लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड-2018’ से नवाजा गया हैं। पाश्र्व गायिकी के बेताज बादशाह/सुरीले/सुनहरे/मजबूत हस्ताक्षर सुरेश वाडेकर को दिल से बधाई/लम्बी उम्र के साथ उत्तम स्वास्थ्य हेतु ईश्वर से प्रार्थना।

07 अप्रैल : विश्व स्वास्थ्य दिवस

घनश्याम डी रामावत
वैश्विक स्वास्थ्य के महत्व की ओर बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान आकृष्ट करने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व में हर वर्ष 07 अप्रैल को पूरे विश्व भर में लोगों के द्वारा विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता हैं। इस बार 07 अप्रैल को शनिवार हैं अर्थात सेलिब्रेशन में महज चंद मिनट शेष। डबल्यूएचओ के द्वारा जेनेवा में वर्ष 1948 में पहली बार विश्व स्वास्थ्य सभा रखी गयी जहां 07 अप्रैल को वार्षिक तौर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने के लिये फैसला किया गया था। विश्व स्वास्थ्य दिवस के रूप में वर्ष 1950 में पूरे विश्व में इसे पहली बार मनाया गया था। डबल्यूएचओ के द्वारा अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न प्रकार के खास विषय पर आधारित कार्यक्रम इसमें आयोजित होते हैं।

स्वास्थ्य के मुद्दे और समस्या की ओर आम जनता की जागरुकता बढ़ाने के लिये वर्षों से मनाया जा रहा ये एक वार्षिक कार्यक्रम है। पूरे साल भर के स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिये और उत्सव को चलाने के लिये एक खास विषय का चुनाव किया जाता हैं। विश्व स्वास्थ्य दिवस वर्ष 1995 के खास विषयों में से एक था वैश्विक पोलियो उन्मूलन। तब से, इस घातक बीमारी से ज्यादातर देश मुक्त हो चुके हैं जबकि दुनिया के दूसरे देशों में इसकी जागरुकता का स्तर बढ़ा है। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य से जुड़े सभी मुद्दे को विश्व स्वास्थ्य दिवस लक्ष्य बनाता है जिसके लिये विभिन्न जगहों जैसे स्कूल, कॉलेजों और दूसरे भीड़ वाले जगहों पर दूसरे संबंधित स्वास्थ्य संगठनों और डबल्यूएचओ के द्वारा सालाना विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। विश्व में मुख्य स्वास्थ्य मुद्दों की ओर लोगों का ध्यान दिलाने के साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना को स्मरण करने के लिये इसे मनाया जाता है। वैश्विक आधार पर स्वास्थ्य मुद्दों को बताने के लिये यूएन के तहत काम करने वाली डबल्यूएचओ एक बड़ी स्वास्थ्य संगठन है। विभिन्न विकसित देशों से अपने स्थापना के समय से इसने कुष्ठरोग, टीबी, पोलियो, चेचक और छोटी माता आदि सहित कई गंभीर स्वास्थ्य मुद्दे को उठाया है। एक स्वस्थ् विश्व बनाने के लक्ष्य के लिये इसने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वैश्विक स्वास्थ्य रिपोर्ट के बारे में इसके पास सभी आँकड़े मौजूद हैं।

इस तरह से मनाया जाता हैं विश्व स्वास्थ्य दिवस
लोगों के स्वास्थ्य मुद्दे और जागरुकता संबंधित कार्यक्रम के आयोजन के द्वारा कई जगहों पर विभिन्न स्वास्थ्य संगठनों सहित सरकारी, गैर-सरकारी, एनजीओ के द्वारा विश्व स्तर पर विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। खबर, प्रेस विज्ञप्ति आदि साधन के द्वारा मीडिया रिपोर्ट के माध्यम से अपने क्रियाकलाप और प्रोत्साहन पर भाग लेने वाले संगठन रोशनी डालते हैं। विश्व भर के स्वास्थ्य मुद्दों पर सहायता के लिये अपनी प्रतिज्ञा के साथ विभिन्न देशों से स्वास्थ्य प्राधिकारी उत्सव में भाग लेते हैं। मीडिया क्षेत्र की मौजूदगी में अपने स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने के लिये लोगों को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य के सम्मेलन में विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप किये जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य दिवस के लक्ष्य को पूरा करने के लिये विषयों से संबंधित चर्चा, कला प्रदर्शनी, निबंध लेखन, प्रतियोगिता और पुरस्कार समारोह आयोजित किये जाते हैं।

विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने का खास प्रयोजन
तंददुरुस्त रहन-सहन की आदत के प्रोत्साहन और लोगों के जीवन के लिये अच्छे स्वास्थ्य को जोडऩे के द्वारा जीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में विश्व स्वास्थ्य दिवस ध्यान केन्द्रित करता है। एड्स और एचआईवी से मुक्त और स्वस्थ दुनिया बनाने के लिये उन्हें स्वस्थ बनाये और बचाने के लिये इस कार्यक्रम के द्वारा आज के जमाने के युवा को भी लक्ष्य बनाया जाता है। खून चूसने वाले और रोगाणु के कारण बीमारीयों के व्यापक फैलाव से मुक्त विश्व बनाने के लिये डबल्यूएचओ के द्वारा बीमारी फैलाते वेक्टर जैसे मच्छर (मलेरिया, डेंगू बुखार, फाईलेरिया, चिकनगुनिया, पीला बुखार आदि) चिचड़ी, कीट, सैंड फ्लाईस, घोंघा आदि को भी लोगों की नजर में ला रही है। वेक्टर और यात्रीयों द्वारा एक देश से दूसरे देश में वेक्टर के जन्म से फैलने वाली बीमारी से ये उपचार और रोकथाम उपलब्ध कराती है। बिना किसी बीमारी के जीवन को बेहतर बनाने के लिये लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं के लिये अपना खुद का प्रयास लगाने के लिये वैश्विक आधार पर डबल्यूएचओ विभिन्न स्वास्थ्य प्राधिकारीयों को मदद देता है।

कुछ लक्ष्यों का निर्धारण/जागरूकता प्रमुख उद्देश्य
उच्च रक्त चाप के विभिन्न कारण और बचाव के बारे में जागरुकता को बढ़ाना। विभिन्न बीमारीयों और उनकी जटिलताओं से बचाने के लिये पूरा ज्ञान उपलब्ध कराना। पेशेवर से चिकित्सा का अनुसरण और उनके रक्तचाप को बार बार जांच करने के लिये सबसे ज्यादा अतिसंवेदनशील लोगों के समूह को बढ़ावा देना। लोगों को खुद का ध्यान रखने के लिये प्रोत्साहित करना। अपने देश में स्वस्थ पर्यावरण को उत्पन्न करने में अपने खुद के प्रयास लगाने के लिये विश्व स्तर पर स्वास्थ्य प्राधिकारियों को प्रेरणा देना। रोग असुरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को बचाना। यात्रा के दौरान वेक्टर से जन्म लेने वाली बीमारी से कैसे बचा जाये के बारे में यात्री को सिखाना और उनको एक संदेश भेजना।

Wednesday 4 April 2018

हिंसा समस्या का समाधान नहीं

घनश्याम डी रामावत
दलितों, आदिवासियों का उत्पीडऩ एक सामाजिक सच्चाई हैं जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता और इसे दूर करने की भी सख्त आवश्यकता हैं पर जो तरीका इसको करने में अपनाया गया, उसे सही नहीं माना जा सकता। हिंसा की न तो गुंजाइश हैं और न ही इसके बूते किसी भी समस्या का समाधान संभव हैं। 2 अप्रैल को भारत बंद भले ही न हुआ हो, लेकिन हिल जरूर गया हैं। एससी-एसटी एक्ट के बारे में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला पिछले दिनों आया, उसे लेकर दलित समुदाय में काफी आक्रोश हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि इस कानून में महज प्राथमिकी के आधार पर जो गिरफ्तारी होती हैं, वह गलत हैं। आदर्श स्थिति तो शायद यह होती हैं कि सुप्रीम कोर्ट अगर किसी मसले पर कोई फैसला दे दे तो या तो उसे मान लिया जाए और नहीं तो उसके खिलाफ पुनर्विचार याचिका डाली जाए। केन्द्र सरकार की ओर से इस पर पुनर्विचार याचिका डाल भी दी गई हैं और इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्टीकरण दे दिया हैं/यह अलग मुद्दा हैं। 

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को समझना जरूरी 
ऐसा नहीं कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले के खिलाफ जनता पहली बार सडक़ों पर उतरी हो। लोकतंत्र में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है, क्योंकि यह न तो लाठी और बल से चलता हैं और न ही अनैतिक क्रियाकलापों से। लोकतंत्र की संचालन शक्ति सामाजिक और आर्थिक न्याय हैं और उसे अदालती स्तर पर ही नहीं बल्कि अन्य संस्थाओं के स्तर पर सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही हमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को भी समझने की कोशिश करनी होगी। दुनियाभर के नागरिक अधिकार संगठन, मानवाधिकार संस्थाएं हमेशा से यह कहती हैं कि अगर किसी भी गैर-नृशंस अपराध में महज एफआईआर के आधार पर गिरफ्तारी का प्रावधान हैं तो उसका दुरुपयोग होगा। ऐसा हमने दहेज विरोधी कानून में भी देखा हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन पर टिप्पणी की कि हमने एससी/एसटी एक्ट को कमजोर नहीं किया हैं। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उन्होंने फैसले को सही से पढ़ा ही नहीं या फिर निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा उन्हें गुमराह कर दिया गया हैं। हमने यही कहा हैं कि निर्दोष व्यक्तियों को सजा नहीं मिलनी चाहिए। भारत बंद में 15 राज्यों में प्रदर्शन हुए। इस दौरान हिन्दी बेल्ट के 10 राज्यों में उपद्रव के दौरान 13 लोगों की जानें गईं। दरअसल राजनीतिक दल दलित वोटों के लिए कुछ भी कर सकते हैं। देश में 17 प्रतिशत दलित वोट हैं और 150 से अधिक लोकसभा सीटों पर दलितों का प्रभाव है। इसलिए आंदोलन के साथ सभी राजनीतिक दल खड़े हैं। जिन 12 राज्यों में हिंसा हुई वहां एससी/एसटी वर्ग से 80 सांसद हैं। दलितों को अपनी राय प्रकट करने का पूरा अधिकार हैं पर यह तरीका सही नहीं माना जा सकता। 

अखिल भारतीय जीनगर महासभा ने की भत्र्सना
बहरहाल! यह प्रसन्नता का विषय हैं कि 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा व आगजनी के खिलाफ अब कुछ प्रमुख दलित संगठन स्वयं आगे आकर इसकी भत्र्सना करने लगे हैं। अखिल भारतीय जीनगर महासभा के राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष गोपाल जादूगर ने मंगलवार को देशभर में हुई हिंसा, तोडफ़ोड़ व आगजनी को गलत बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में विरोध का यह तरीका ठीक नहीं हैं। जादूगर ने कहा कि कुछ शरारती तत्वों की वजह से समूचे एससी-एसटी वर्ग की बदनामी होती हैं/विरोध सार्थक व गांधीवादी होना चाहिए। भविष्य में किसी भी रूप में इसकी पुनरावृति नहीं हो, आंदोलन के रणनीतिकारों का इसका विशेष ध्यान रखना होगा। गोपाल जादूगर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में हालिया किए गए बदलाव मामले में केन्द्र सरकार की ओर से दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका के लिए आभार व्यक्त करते हुए मजबूत पैरवी की अपील की हैं। जादूगर ने एक्ट में बदलाव को गैर जरूरी बताते हुए कहा कि इससे इस अधिनियम के कमजोर होने की संभावना हैं तथा एक्ट का मूल उद्देश्य भी निष्प्रभावी होगा। 

राजस्थान कांग्रेस का हल्ला बोल!

घनश्याम डी रामावत
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से बढ़ती महंगाई के विरोध में आयोजित हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत बुधवार को राजस्थान भर में प्रदर्शन कर जगह-जगह सरकार का पुतला दहन किया गया। राजधानी जयपुर में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता सडक़ों पर उतरे और नारेबाजी करते हुये जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे, यहां पर जमकर प्रदर्शन किया। कांग्रेस के हल्ला बोल कार्यक्रम को देखते हुए भारी संख्या में कायकर्ता पार्टी मुख्यालय पहुंचना शुरू हो गये थे जहां से समूह के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंचे। कार्यक्रम में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता रामेश्वर डूडी, जिला अध्यक्ष प्रताप सिंह खाचरियावास सहित पार्टी के अनेक पदाधिकारी और वरिष्ठ नेता शामिल हुये।

2 अप्रैल को हुई हिंसा की आलोचना/संयम की अपील
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भाजपा सरकार पर हल्ला बोलते हुये कहा कि राज्य सरकार की गलत नीतियों के कारण हर वर्ग में असंतोष व्याप्त हैं और आम जनता जल्द से जल्द इस सरकार से मुक्ति चाहती हैं। उन्होंने देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में लगातार हो रही वृद्धि के आंकड़े देते हुये कहा कि गत चार सालों में इनके दामों में बेतहाश वृद्धि हुई हैं जबकि अंतराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल की कीमतों में लगातार गिरावट हुई हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सेस लगाये जाने से सरकार को सात लाख तीस हजार करोड़ का नुकसान हुआ हैं। पायलट ने प्रदेश में हाल ही में हुई हिंसा का जिक्र करते हुये लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की और कहा कि राज्य में जब जब वसुंधरा राजे सरकार बनी तब तब आम जनता को लाठी गोलियों का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि भारत बंद जैसे आंदोलन में तत्पर कार्यवाही नहीं करने, आंदोलनों से निपटने की रणनीति नहीं बनाने के कारण ही प्रदेश में कई लोगों की जानें गयी और हजारों करोड़ों की सरकारी संपति को नुकसान पहुंचा। उन्होंने भाजपा सरकार पर हमला बोलते हुये सवाल किया कि भारत बंद के दौरान भाजपा शासित राज्यों में व्यापक तौर पर हिंसा क्यों हुई। इस पर गहराई से चिंतन करना चाहिये। उन्होंने राज्य सरकार द्वारा हिंसा के लिये विपक्ष को जिम्मदार बताने की निंदा करते हुये कहा कि राज्य सरकार को स्वयं आत्मचिंतन करना होगा। उन्होंने कहा कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आज समाज का हर वर्ग बंटा हुआ महसूस कर रहा हैं।

जोधपुर में पीएम का पूतला फूंका
पायलट ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घमंडी बताते हुये कहा कि वह अपना घमंड छोड़ कर जनता से संवाद करती तो संभवत राज्य के यह हालत नहीं होते और जनता को लाठी गोली का सामना नहीं करना पड़ता। पायलट ने कहा कि प्रदेश की जनता के दर्द को समझते हुये और सभी वर्ग और कौम के हित में शीघ्र ही कांग्रेस की ओर से यात्राएं आयोजित की जायेगी और आम लोगों से संवाद कर इस निकम्मी सरकार को हटाने का अभियान छेड़ा जाएगा। प्रदेश के दूसरे सबसे बड़े शहर सूर्यनगरी जोधपुर में भी शहर एवं देहात जिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हल्ला बोल कार्यक्रम के तहत विरोध प्रदर्शन किया। शहर व देहात जिला कांग्रेस कमेटी के महंगाई विरोधी धरना प्रदर्शन में जिलाध्यक्ष सईद अंसारी व हीराराम मेघवाल के नेतृत्व में कार्यकर्ता जुटे। कांग्रेस कार्यालय के निकट रणछोड़ मंदिर चौराहे पर काफी देर सरकार विरोधी नारे लगाए व प्रधानमंत्री का पूतला फूंका। प्रदर्शन के बाद कांग्रेसजन कलेक्ट्रेट पहुंचे और जिला कलक्टर डॉ. रविकुमार सुरपुर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।

दलित संगठनों का भारत बंद/मायने...

घनश्याम डी रामावत
एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के खिलाफ दलित संगठनों ने 2 अप्रैल को देशभर में प्रदर्शन किया। भारत बंद के आह्वान पर देश के अलग-अलग शहरों में दलित संगठन और उनके समर्थकों ने ट्रेने रोकीं और सडक़ों पर जाम लगाया। राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में तोडफ़ोड़, जाम और आगजनी की घटनाएं सामने आई। सही अर्थों में दलितों का यह भारत बंद अनेक सवाल खड़े कर गया। न केवल भारत बंद/आंदोलन की सार्थकता व औचित्य पर, केन्द्र व राज्य की सरकारों की मौजूदा कानून व्यवस्था पर भी/जिसके चलते वे इस भारत बंद में उपजी हिंसा को पहले से भांपने में नाकाम रहे। दलित संगठनों को भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में  किए गए बदलाव को सही तरीके से समझना चाहिए। संभव हैं उसके बाद आंदोलन अथवा भारत बंद की जरूरत ही नहीं पड़े।

कानून विशेषज्ञों की माने तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई परिवर्तन नहीं किया गया हैं जिससे संबंधित वर्गों के हितों पर कोई विपरीत प्रभाव पड़े। उम्मीद की जानी चाहिए दलित संगठनों से ताल्लुक रखने वाले बुद्धिजीवी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की सही तरीके से विवेचना करेंगे। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगे कि भविष्य में यदि कोई आंदोलन होता हैं तो वह हिंसक/अराजकतापूर्ण नहीं होगा। आखिरकार भारत बंद अथवा अन्य किसी आंदोलन के तहत जिस संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जाता हैं वह राष्ट्र की/अपनी ही संपत्ति हैं। हिंसा अपने ही समाज के विरूद्ध होती हैं, इसे जायज कैसे ठहराया जा सकता हैं। बहरहाल! राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलग-अलग इलाकों में हालात अभी भी काफी नाजुक हैं। राजस्थान में एक व्यक्ति की मौत और मध्यप्रदेश में अब तक 5 की मौत हो चुकी हैं। राजस्थान के बाडमेर में एक हिंसक झड़प में 25 लोग घायल हुए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एससी/एसटी एक्ट में कई बदलाव हुए थे। जिसके बाद केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि अदालत में इस मामले पर मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया। जिसके विरोध में 2 अप्रैल सोमवार को दलित संगठनों की तरफ से भारत बंद बुलाया गया। हालांकि, सरकार की ओर से इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका भी दाखिल की गई किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 मार्च के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हैं। अब सप्ताह भर बाद पुन: इस मामले में सुनवाई होगी।

बेअसर नजर आई पुलिस/दहशत का माहौल रहा
चूंकि व्यक्तिगत रूप से मैं जोधपुर से हूं, जोधपुर का उल्लेख करना आवश्यक हैं। जोधपुर में 2 अप्रैल/सोमवार को भारत बंद के दौरान जमकर उपद्रव हुआ। बंद समर्थकों ने सरकारी, निजी वाहनों और अनगिनत दुकानों में तोडफ़ोड़ की। भारत बंद समर्थक दिन भर शहर में सभी जगह उत्पात मचाते रहे। पुलिस व उनके बीच कई बाद लाठी-भाटा जंग हुई। अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए। जोधपुर उदयमंदिर पुलिस थाने के उप निरीक्षक महेन्द्र चौधरी के चोट लगने से कार्डियक अटेक आ गया, जिनकी आखिरकार 3 अप्रैल मंगलवार को अहमदाबाद इलाज हेतु ले जाते वक्त मृत्यु हो गई। उपद्रवियों को काबू में करने के लिए पुलिस ने 100 से अधिक आंसू गैस के गोले छोड़े। जोधपुर जिले के फलोदी, ओसियां और बाप में भी जमकर उपद्रव हुआ। फलोदी में हालात बेकाबू होने पर मजिस्ट्रेट को धारा 144 लगानी पड़ी। जोधपुर ग्रामीण इलाकों में 6 अप्रैल तक इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगी हुई हैं। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा सुप्रीमों मायावती ने हिंसा की निंदा की हैं, लेकिन उन्होंने एससी-एसटी एक्ट का समर्थन किया हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने हिंसा भडक़ाई हैं। साथ ही यह मांग भी की जिन्होंने हिंसा फैलाई उनके खिलाफ एक्शन होना चाहिए। 

देशभर में 10 से अधिक लोगों की जान गई
देश के विभिन्न शहरों में पुलिस थानों को भी निशाना बनाया गया हैं। साथ ही सरकारी वाहनों में आगजनी की गई हैं। प्रदर्शनकारियों के बवाल के चलते कई मार्गों पर ट्रेनें चल नहीं पाईं। साथ ही राष्ट्रीय राजमार्ग कई घंटों तक जाम रहे। एसटी-एसी एक्ट 1989 में संशोधन के खिलाफ दिल्ली एनसीआर में भारत बंद ने हिंसा का रूप अख्तियार कर लिया। बिहार में बंद का असर अधिक रहा। देशभर में बंद के दौरान भडक़ी हिंसा में 10 लोगों की जान चली गई। चहुंओर तोडफ़ोड़/आगजनी को कतई सही नहीं ठहराया जा सकता। विरोध का अपना तरीका हैं, हिंसा के लिए लोकतंत्र में कोई स्थान नहीं। भारत बंद अथवा अन्य आंदोलनों के नाम पर ऐसी हिंसक/अराजक वारदातों को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसके चलते आंदोलन की सार्थकता/औचित्य पर सवाल उठना लाजमी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए देश को आगे फिर कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा।

Monday 2 April 2018

इस बार भीषण गर्मी के आसार

घनश्याम डी रामावत
पश्चिमी राजस्थान अर्थात मारवाड़ में इस बार भीषण गर्मी के आसार साफ नजर आ रहे हैं। मार्च महिने के अंतिम सप्ताह में ही गर्मी का जिस प्रकार का रौद्र रूप देखने को मिला हैं, और जिस तरह सूरज की तेज तपिश का कहर निरन्तर रूप से जारी हैं/उससे तो यही लगता हैं। मारवाड़ में गर्मी की भीषणता तो रहती हैं किंतु इतना जल्दी इसका असर नजर नहीं आता हैं। इस बार शरीर को झुलसाने वाली सूरज की तेज किरणों का असर समय से काफी पहले ही शुरू हो गया हैं। सूरज की तपिश बढ़ गई हैं तथा गर्मी के साथ हवा में नमी भी कम होती जा रही हैं। इससे शरीर से पसीने के रेले बहने शुरू हो गए हैं। चैत्र खत्म होने के बाद वैशाख की शुरूआत में ही पश्चिमी राजस्थान में गर्मी ने जोर पकड़ लिया हैं। यहां दिनों-दिन गर्मी व सूरज की किरणों का असर बढ़ता जा रहा हैं। यही कारण हैं कि दोपहर में शहर की सडक़ों पर आवाजाही कम हो गई हैं।

पखवाड़ा पूर्व हो रहा था सर्दी का अहसास 
लोगों ने दोपहर में घर व कार्यालय से बाहर निकलना भी कम कर दिया हैं। खास बात यह हैं कि करीब एक पखवाड़ा पूर्व रात व सुबह के समय लोगों को सर्दी का अहसास हो रहा था लेकिन गत पन्द्रह दिनों में ही तापमान में एकाएक वृद्धि हो गई। आज सोमवार हैं, जोधपुर सहित समूचे पश्चिमी राजस्थान/मारवाड़ में गर्मी परवान पर हैं। सुबह दस बजे के बाद ही तेज धूप में लोगों का निकलना मुश्किल हो गया हैं। देशभर में आज एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ कई दलित संगठनों ने संयुक्त तौर पर भारत बंद का आव्हान कर रखा हैं। इसका असर जोधपुर व मारवाड़ में भी नजर आ रहा हैं। अधिकांश प्रतिष्ठान बंद होने से लोग अपने-अपने घरों में ही आराम कर रहे हैं, लिहाजा आज की गर्मी के कहर से तो वे बच ही गए हैं।

समय से पहले कूलर/एसी की टोह
पिछले सप्ताह भर से तो यह आलम हैं कि सूरज की तेज किरणों के कारण मकानों व दुकानों के आगे खड़ी गाडिय़ां भी गर्म होने लग गई हैं। घरों की छतों पर रखी प्लास्टिक की टंकियों में भी पानी अभी से ही गर्म होने लगा हैं। हमेशा की तरह सूर्यनगरी जोधपुर के वाशिंदों/दुकानदारों ने राहगीरों के लिए पानी के कैम्पर लगाकर ठंडे पानी का इंतजाम करना शुरू कर दिया हैं। बाजार में जहां शीतल पेय एवं ठेलों पर भी कुल्फी आदि की बिक्री एकाएक बढ़ गई हैं, घरों व प्रतिष्ठानों पर लोगों ने गर्मी के कहर से बचने हेतु समय से पहले कूलर/एसी की टोह लेना शुरू कर दिया हैं।