Tuesday 27 February 2018

तेजी से बदलते परिवेश में ‘होली’

घनश्याम डी रामावत
‘होली’ भारत के प्राचीनतम त्यौहारों में से एक हैं। यह विडम्बना ही हैं कि परसों ‘होली’ हैं और वातावरण में इसका कोई खास मजबूत अहसास तक नहीं हैं। शायद यही बात इंगित करती हैं कि समाज में तेजी से बदलते परिवेश के बीच इस पर्व ने भी अपने नये स्वरूप को अख्तियार कर लिया हैं अर्थात लोगों का इस पर्व को मनाने को लेकर तौर तरीकों व मिजाज में विशेष बदलाव हुआ हैं। सीधे-सीधे कहे तो अब ‘होली’ को लेकर वह खुशी/उल्लास/उमंग लोगों में नजर नहीं आता। न डंफ/चंग की थाप न बाजारों में वह रौनक।

बुराईयों का दहन कर अच्छाई को बचाना, प्रेम, सौहार्द की भावना उत्पन्न करने वाली ‘होली’ आज फूहड़ता, शराब का सेवन, गाली-गलौच, झगड़ों के बीच में कहीं उलझ कर रह गई हैं। ‘होली’ के रंग नैसर्गिक न होकर रासायनिक हैं, पकवानों में आत्मीयता व प्रेम के मिश्रण की जगह मिलावट ने ले ली हैं। सामाजिक दृष्टि से अत्यधिम महत्वपूण यह पर्व असामाजिक तत्वों की चपेट में हैं। बीते वर्षों के ‘होली’ पर नजर डाले तो, होलिका दहन न होकर मर्यादा, संस्कार, नैतिकता का दहन अनवरत रूप से हो रहा हैं। हकीकत में आज ‘होली’ बाजारवाद की चपेट में आ चुकी हैं। प्रत्येक त्यौहार की भांति इस पर्व पर भी पूंजीपतियों की नजर गड़ चुकी हैं। ऐसी कई घटनाएं प्रकाश में आती हैं जब लोग आपसी रंजिश इस त्यौहार में निकालते हैं। नवयुवक ‘होली’ के पर्व को मस्ती व शराब का पर्व मानने लगे हैं। परम्परागत तरीके बदल रहे हैं। फिल्मी गानों के बोल ही अब होली के बोल रह गए हैं। शहरों से गांवों की ओर इस पर्व में लोगों का आना अचानक बंद सा हो गया हैं, जो साफ दर्शाता हैं कि इस पर्व के मायने बदल चुके हैं। 

समय के साथ हाईटेक हुई ‘होली’/अंदाज बदला
एक जमाना था कि बसंत के आगमन के साथ ही ‘होली’ से संबद्ध परांपरागत व द्विअर्थी गीत गांवों की गलियों, चौपालों व सार्वजनिक स्थानों पर गूंजने लगते थे। सूरज ढ़लने के बाद ‘होली’ की गीतों का जो सिलसिला शुरू होता था वह देर रात तक जारी रहता था। डंफ/चंग व झाल की ध्वनि दूर-दूर सुनाई देती थे। लेकिन अब होली भी हाईटेक हो गई हैं। अधिसंख्य लोग रंग व गुलाल से भी परहेज करने लगे हैं। एक समय था कि रंग और अबीर से तो लोग एक दूसरे को सराबोर करते ही थे। कीचड़ व गोबर के घोल से भी परहेज नहीं था। रिश्तों की मधुरता को ‘होली’ और बढ़ा देती थी। शादी के बाद लोग पहली ‘होली’ में ससुराल जाने से नहीं चूकते थे। महीनों पूर्व से ही लोगों को ‘होली’ आने का इंतजार रहता था। होलिका दहन में पूरे गांव के लोग एक जगह जुटते थे। लेकिन, अब यह सब कुछ तेजी से बदल रहा हैं। नए साल पर तो रात के 12 बजे जैसे ही अंग्रेजी कलेंडर करबट ले लेता हैं। मोबाइल पर एसएमएस और कॉल आने लगते हैं। फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे सभी माध्यमों पर बधाई संदेश का सिलसिला शुरू होता हैं। इंटरनेट तकनीकी के मामले इतना रंगीन हैं कि घर, मोहल्लें ही नहीं विदेशों में बैठे अपनों से आप ‘होली’ खेल सकते हैं। वह भी बिना कपड़े व चेहरे को गंदा किए हुए। मैसेज भेजने वाले शुभेक्षुओं में होड़ लगी हैं। यहां तक मैसेज दिया जाता हैं कि कोई और आपकों मैसेज करें उससे पहले पहला मैसेज मेरे ही द्वारा भेजा जा रहा हैं। 

इंटरनेट ने डूबोयी ग्रीटिंग्स की लुटिया, ऑन लाईन बधाई
बदलते जमाने के साथ बहुत कुछ बदल गया है। व्हाट्सएप व फेसबुक के जरिए तो रंग-बिरंगे ग्रीटिंग्स भी भेजे जा रहे हैं। होली पर डाक के जरिए ग्रीटिंग्स भेजना या देना अब पुरानी बात हो गई। इंटरनेट ने इसे बेहद आसान बना दिया हैं। कभी लोग ‘होली’ के अवसर पर भी दूर-दराज रहने वाले अपने लोगों को डाक के जरिए ग्रीटिंग्स भेजा करते थे लेकिन अब डाक से ग्रीटिंग्स भेजने की बात बीते दिनों की हो गई। लोग अब इंटरनेट के जरिए ही रंगे बिरंगे ग्रीटिंग्स भेजे जाते हैं। बाजार में अब ‘होली’ का ग्रीटिंग्स भी मुश्किल से मिलता हैं। इसके बदले लोग व्हाट्स एप व फेस बुक मैसेंजर का उपयोग करने लगे हैं। रंगों का त्यौहार होली पूरी दुनिया में अपने अनोखे अंदाज के लिए जाना जाता हैं, इस दिन रंगों में रंग ही नहीं मिलते बल्कि दिल भी आपस में मिल जाते हैं। हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार हर वर्ष फाल्गुन माह में ‘होली’ का त्यौहार मनाया जाता हैं, इस माह की पूर्णिमा को पूरी दुनिया में ‘होली’ पूर्णिमा के नाम से जाना जाता हैं। मान्यता के अनुसार ‘होली’ पूर्णिमा के दिन हिरणकश्यप नाम के राक्षस ने अपने पुत्र प्रहलाद को होलिका की गोद में बिठाकर आग लगा दी थी लेकिन इस आग में होलिका जलकर भस्म हो गई और भगवान विष्णु का भक्त होने के कारण प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ जबकि होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। तभी से पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा चल निकली। होलिका दहन की इस परंपरा और कथा के बारे में सभी जानते हैं। ‘होली’ को लेकर विस्तृत उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रंथों नारद पुराण, भविष्य पुराण में मिलता हैं। कुछ प्रसिद्ध पुस्तकों जैसे जैमिनी के पूर्व मीमांसा-सूत्र और कथा गार्ह्य-सूत्र में भी होली पर्व के बारे में वर्णन किया गया हैं।

श्लील गायन के माध्यम सामाजिक संदेश
राजस्थान में ‘होली’ पर्व पर अनेक शहरो में श्लील गाली गायन का आयोजन होता हैं। श्लील गाली गायन का अर्थ हैं समाज में व्याप्त कुरीति, अव्यवस्था और मुद्दों को चिन्हित करते हुए इन्हें नाटक व गायन के द्वारा दर्शाते हुए समाज को इनके बहिष्कार हेतु प्रेरित करना व जागरूक करना। पूर्व में श्लील गाली गायन एक गैर(जुलुस) के रूप में होती थी जिसमें चंग, मंजीरा का प्रयोग होता था और यह एक मंदिर या चौक से शुरू होकर सभी इलाको में जाकर मंचन करती थी और अंत में एक विशाल चौक में आकर समस्त लोग एकत्र हो जाते थे जहां पर पूर्ण रूप से मध्य रात्रि तक श्लील गाली गायन होता था। बहरहाल! लोगों का सामाजिकता व एकजुटता का अहसास दिलाने वाला यह पर्व उदासी, अनैतिकता, असामाजिकता में बदल चुका हैं। वातावरण में अजीब-सी गंध हैं। मौजूदा दौर क्रांति का हैं, नए विचारों का हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि सभी लोग ‘होली’ पर्व की महत्ता को समझते हुए संदर्भ में अपने सामाजिक दायित्वों को समझेंगे और ‘होली’ के मूल संदेश का प्रचार-प्रसार करेंगे।

Monday 26 February 2018

गीता धाम : धर्म व कर्म की अनूठी कर्मस्थली

घनश्याम डी रामावत
भारत में स्थापित द्वारका, बद्रीनाथ, पुरी और रामेश्वरम धाम से हर कोई वाकिफ हैं। इन सभी धार्मिक स्थलों/पावन धामों की तर्ज पर स्वामी श्री हरिहर महाराज ने वर्ष 1995 में जोधपुर से 35 किमी दूर तिंवरी में ‘गीता धाम’ की स्थापना की। धर्म और आध्यात्म में भरोसा रखने वाले लोग जहां इसे स्वामी श्री हरिहर महाराज की मौजूदा दौर की सबसे बड़ी तपस्या के तौर पर देखते हैं, वहीं यह पावन धाम धर्म व कर्म की अनूठी/आदर्श कर्मस्थली के रूप में पहचान रखता हैं।

गीताधाम तिंवरी में 27 फरवरी से 2 मार्च तक चार दिवसीय 31वां अंतरराष्ट्रीय गीता सम्मेलन एवं गुरू हरिहर महाराज का 120 वां जन्मोत्सव का आयोजन किया जा रहा हैं। धार्मिक कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे गीता धाम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमण कुमार टोगनाटा से मुलाकात के दौरान ‘गीता धाम’  व इसके माध्यम से संचालित विभिन्न गतिविधियों के बारे में काफी कुछ जानने व समझने को मिला। रमण कुमार जी के अनुसार गुरूदेव स्वामी हरिहर महाराज ने जाति, पंथ, रंग और धर्म के ऊपर उठकर महज मानवता व गीता की दिव्य शिक्षाओं के समग्र प्रचार व प्रसार के लिए आध्यात्मिक दिव्यता के प्रतीक स्वरूप तिंवरी में ‘गीता धाम’ की परिकल्पना की, जिसे वर्ष 1995 में भामाशाह मांगीलाल गांधी व चुन्नीलाल बाहेती ने 95 एकड़ भूमि गुरूदेव को दान कर इस परिकल्पना का साकार रूप प्रदान किया। उन्होंने बताया कि ‘गीता धाम’ का उद्देश्य गीता के समग्र प्रचार व प्रसार के साथ इसके संदशों को सर्वत्र प्रचारित करते हुए लोगों को इन्हें आत्मसात करने हेतु प्रेरित करना हैं। उनके अनुसार गीता मुक्ति का सशक्त माध्यम हैं, जिसेे हर किसी को समझने की आवश्यकता हैं। 

आध्यात्मिकता व सामाजिक सरोकारों का अद्भुत मिश्रण
गीता धाम के राष्ट्रीय अध्यक्ष टोगनाटा ने कहा कि ‘गीता धाम’ आध्यात्मिकता व सामाजिक सरोकारों का अद्भुत मिश्रण हैं। धाम अनवरत रूप से गुरूदेव स्वामी हरिहर महाराज की मंशानुरूप मानव मात्र में गीता की दिव्य शिक्षाओं का प्रचार करते हुए आध्यात्मिक दिव्यता के रूप में कार्य कार्य कर रहा हैं। उन्होंने कहा कि ‘गीता धाम’ की स्थापना के साथ ही एक महत्वाकांक्षी खाका तैयार किया गया था, जिसके तहत अनेक परियोजनाओं को शामिल किया गया। सर्वप्रथम धाम में गुरूकुल विद्या मंदिर की स्थापना, जिससे बालकों को अव्वल दर्जे की शिक्षा के साथ उत्तम संस्कार प्राप्त हो सके। द्वितीय प्राथमिकता के तौर गौशाला की स्थापना। टोगनाटा के अनुसार इन दोनों ही प्राथमिकताओं पर ‘गीता धाम’ शत-प्रतिशत सफल रहा हैं। उन्होंने कहा कि ‘गीता धाम’ तिंवरी स्थित ‘गीता धाम गुरूकुल उच्च माध्यमिक विद्या मंदिर’ में इस समय करीब 600 विद्यार्थी अध्ययनरत्त हैं। आरबीएससी अंतर्गत संचालित विद्या मंदिर में बालकों को निर्धारित शिक्षा के साथ अंग्रेजी व गीता के अध्ययन भी खास ध्यान दिया जाता हैं। प्राथमिक तक की शिक्षा धाम मेें नि:शुल्क दी जाती हैं। यहां छात्रावास की व्यवस्था भी हैं जिसमें इस समय 140 विद्यार्थी रह रहे हैं।

‘गीता धाम’ गौशाला में इस समय 427 गायें
टोगनाटा के अनुसार ‘गीता धाम’ गौशाला में इस समय 427 गायें हैं। सभी गायें उत्तम नस्ल की हैं जिनका खास ख्याल ‘गीता धाम ट्रस्ट’ द्वारा नियुक्त कर्मचारियों द्वारा रखा जाता हैं। ‘गीता धाम’ में गीता के दर्शन के विभिन्न पहलुओं का विशेष ख्याल रखा जाता हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2000 में गुरूदेव के ब्रह्मलीन होने के बावजूद विकास की प्रगति को कभी भी ‘गीता धाम ट्रस्ट’ की ओर से मंद नहीं होने दिया। गुरूदेव की अनेक परियोजनाएं उनके जीवनकाल में ही पूरी हो गईं, वहीं कई परियोजनाओं ने काम करना शुरू कर दिया था जो आज कामयाबी के बाद अपने उत्कर्ष पर हैं। विद्या मंदिर व गौशाला के अलावा ‘गीता धाम’ पर इस समय गोबर-गैस प्लांट्स और पौधशाला, सौर ऊर्जा प्लांट्स, मेडिकल प्लांट प्रोजेक्ट, बाल-गोपाल परियोजना व चिकित्सा सेवाएं जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं संचालित हैं। गौशाला से उत्पादित गोबर, खाद व अपशिष्टों का उचित उपयोग किया जाता हैं। उन्होंने बताया कि ‘गीता धाम’ पर स्थापित सभी गोबर गैस संयंत्र अच्छे से कार्य कर रहे हैं। गोबर गैस ने रसोई की आवश्यकता तो पूरी होती ही हैं, अतिरिक्त गैस कंटेनरों में जमा की जाती हैं। 

सामाजिक दायित्व निर्वहन में भी सदैव अग्रणी
उन्होंने बताया कि सौर ऊर्जा प्लांट्स परियोजना के तहत अभी तक तीन इकाइयां ‘गीता धाम’ में काम कर रही हैं। एक के लिए सी और डी ब्लॉकों में एक, डाइनिंग हॉल के लिए एक और प्राग्य भवन के लिए दूसरा। हाल ही में विद्या मंदिर छात्रावास के लिए एक और ऐसी इकाई स्थापित की गई हैं। ये सभी कुशलतापूर्वक काम कर रहे हैं। टोगनाटा ने बताया कि चिकित्सा सेवा परियोजना के तहत ‘तिंवरी गीता धाम’ के आस-पास के गांवों में शिविर आयोजित किए जाने के साथ ही जरूरतमंद रोगियों को समय-समय पर ‘गीता धाम चिकित्सा स्टाफ’ द्वारा नि:शुल्क चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती हैं। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट का प्रयास रहेगा कि शीघ्र ही यहां एक उचित प्राथमिक चिकित्सा केंद्र स्थापित हो ताकि क्षेत्र के  लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो सकें। 19 अप्रैल 2010 को शुरू की गई बाल-गोपाल परियोजना अंतर्गत ‘गीता धाम’ चिकित्सा कर्मचारियों द्वारा आसपास के ग्रामीण इलाकों में छ: माह से 2 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं को उत्तम सेहत के लिए न्यूट्रेशन्स/पोषक आहार की आपूूर्ति की जाती हैं। ‘गीता धाम’ इस तरह से धर्म व आध्यात्म के साथ सामाजिक दायित्व निर्वहन में भी सदैव अग्रणी रहता हैं। वर्तमान में यह परियोजना नजदीकी विभिन्न गांवों में चल रही हैं। ‘गीता धाम’ परिसर में तैयार पौधों और जड़ी-बूटियों की औषधीय व्यवहार्यता पर काम करने के लिए शुरू हुई मेडिकल प्लांट प्रोजेक्ट परियोजना भी संचालित हैं। 

गीता भारतीय दर्शन का सार ग्रंथ
‘गीता धाम’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमण कुमार टोगनाटा के अनुसार गुरूदेव स्वामी हरिहर महाराज का मूल संदेश रहा गीता में कही बातों को आत्मसात करते हुए धर्म, जाति, रंग-भेद से ऊपर उठकर मानव का मानव से प्रेम। ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।’ के सिद्धांत पर चलते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करने वाले टोगनाटा की मान्यता हैं कि गीता भारतीय दर्शन का सार ग्रंथ हैं। गीता ज्ञान-गीत हैं। गीता अत्यंत सरल और सरस श्लोकों में आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ लोक-व्यवहार के निर्देश प्रस्तुत करने वाली एक ऐसी लघु पुस्तिका हैं, जो तनाव रहित जीवन जीने की कला सिखाती हैं। जीवन-मृत्यु के चक्र का स्पष्टीकरण देती हैं, ईश्वर के प्रति अपने-अपने तरीके से निष्ठा रखने का मंत्र देती हैं तथा प्रतीक रूप में यह समझा देती हैं कि इस संपूर्ण विश्व की सृष्टि और संचालन के पीछे क्या विज्ञान हैं एवं इस समष्टि में हमारी व्यक्तिगत हैसियत क्या हैं।

Sunday 25 February 2018

जादू कला को आधुनिक शक्ल देने की कवायद!

घनश्याम डी रामावत
पिछले दिनों जोधपुर में फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स के तत्वावधान में राष्ट्रीय स्तर की जादू मंतरा कार्यशाला का आयोजन किया गया। एक दिवसीय इस नि:शुल्क कार्यशाला में देश के 11 प्रदेशों के कुल 155 जादूगरों ने भाग लिया। फैडरेशन की ओर से किए गए इस आयोजन और इसमें जादूगरों की बड़ी तादाद में मौजूदगी को कहीं न कहीं जादू कला को आधुनिक शक्ल देने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा हैं। इसे पुख्ता करने के लिए मैंने फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स के जिम्मेदार पदाधिकारी से मिलने का निश्चय किया। जल्दी ही मेरी मुलाकात फैडरेशन के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल से हो गई।

जिज्ञासा शांत करने हेतु सवाल जवाब का सिलसिला शुरू हुआ तो फिर मायावी दुनियां अर्थात जादू और जादू कला के बारे में काफी कुछ विस्तारपूर्वक जानने को मिला। फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल ने बताया कि जादू विज्ञान पर आधारित एक कला हैं और इस कला को खूबसूरती के साथ पेश करना ही मैजिक हैं। जादू प्रदर्शन में सामाजिक संदेश छिपे होते हैं जो लोगों को अंधविश्वास से लडऩे में मदद करते हैं। वहीं यह कला समाज का स्वस्थ मनोरंजन करती हैं। जादूगर अग्रवाल के अनुसार मौजूदा युग प्रतिस्पद्र्धा का युग हैं। इस दौर में हर व्यक्ति और हर एक्टिविटी को इस प्रतिस्पद्र्धा से दो-चार होना पड़ता हैं, जहां उसकी किसी अन्य से तुलना होती हैं। उन्होंने कहा कि जादू और जादू कला भी इससे अछूती नहीं हैं। आज भारतीय जादू व इसके प्रदर्शन के तरीकों की विदेशी जादू कला से तुलना की जाती हैं। चूंकि तेजी से समद्ध होती तकनीक को अपनाने में विदेशी कलाकार अग्रणी होते हैं लिहाजा वे अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से हर किसी को अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित करते हैं। फैडरेशन ने इसी कारण से कार्यशालाएं आयोजित करने का निश्चय किया, ताकि देश के जादूगर विदेश में जादू कलाकारों द्वारा अपनाई जा रही आधुनिक तकनीक का अपने हूनर में समावेश करते हुए इसको और अधिक धारदार बना सकें।

जादू प्रदर्शन को फ्रैंडली बनाने का का प्रयास
जादूगर अग्रवाल के अनुसार फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स के बैनर तले जोधपुर में यह कार्यशाला दूसरी बार आयोजित की गई हैं। इससे पूर्व पिछले वर्ष 23 फरवरी को फैडरेशन ने इसका आयोजन किया था। अग्रवाल ने कहा  कि जादू ट्रिक नहीं टेक्निक हैं इसको समझना व स्वीकारना आज की जरूरत हैंं। यह ऐसा ठोस सत्य हैं जिसे सभी को मानना होगा। उन्होंने अत्याधुनिक तकनीक के जरिये जादू प्रदर्शन को और अधिक बेहतर व फ्रैंडली बनाने का फैडरेशन का प्रयास हैं। एक ऐसा प्रयास जिसके तहत जादू प्रदर्शन के दौरान पूरा परिवार एक साथ बैठकर बिना किसी भय/बाधा के इसका लुत्फ उठा सकें। उन्होंने कहा कि अब वह जमाना नहीं रहा जब जादूगर को अत्यधिक मेकअप के साथ डरानी शक्ल अख्तियार करनी पड़ती हैं, तकनीक ने इसको बहुत ही सरल बना दिया हैं। जादूगर अग्रवाल के अनुसार जादू का टोना, टोटका व तंत्र-मंत्र से कोई सरोकार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आज लोगों का रूझान जादू के प्रति घटा जरूर हैं, लेकिन अभी भी बहुत से लोग ऐसे हैं जो जादू को मनोरंजन का एक उत्तम साधन मानते हैं। उनके अनुसार जादू मनोरंजन का ऐसा साधन हैं जिसका लुत्फ 7 वर्ष के बालक से लेकर 70 वर्ष का वृद्ध परिवार के साथ सामूहिक रूप से बैठकर उठा सकता हैं। अग्रवाल ने कहा कि जादू प्राचीन भारत की 64 कलाओं में से एक हैं। मौजूदा सूचना क्रांति के युग में स्वस्थ मनोरंजन एक चुनौती बनकर रह गया हैं, ऐसे में इस कला को आज सामाजिक स्तर के साथ खासतौर से सरकारी स्तर पर संरक्षण व प्रोत्साहन की सख्त जरूरत हैं। 

ललित कला का दर्जा नहीं मिलना निराशाजनक
उन्होंने कहा कि जादू कला के सम्मान, समृद्धि व प्रोत्साहन के लिए लंबे समय से फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स सहित देशभर के जादू संगठनों द्वारा आवाज उठाई जाती रही हैं। अभी हाल ही गुजरात में संपन्न विधानसभा चुनाव में एक राजनीतिक दल द्वारा चुनाव प्रचार में जादूगरों की सेवाएं लिए जाने को फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स जादू कला व जादूगरों के सम्मान के तौर पर देखता हैं। अग्रवाल ने कहा कि गुजरात चुनाव में प्रचार में जादूगरों का सहयोग लिए जादू कला के समृद्ध होने की उम्मीदों को पंख लगे हैं। इनका मानना हैं कि देश में शासन करने वाले राजनीतिक दल अब जादूगरों की अहमियत, जादू कला के महत्व व जनता में उनके प्रभाव को समझने लगे हैं। जादूगर चमन अग्रवाल के अनुसार यह एक सुखद पहल हैं, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए और उम्मीद की जानी चाहिए सरकार अब इस कला की समृद्धि, विकास तथा समाज के हर वर्ग तक जादू कला के प्रचार-प्रसार हेतु ठोस, कारगर व निर्णायक प्रयास करेगी। जादूगर अग्रवाल ने कहा कि जादू संगठनों द्वारा राजस्थान सरकार से पिछले लंबे समय से जादू कला को ललित कला का दर्जा दिए जाने की मांग की जाती रही हैं किंतु अभी तक निराशा ही हाथ लगी हैं। जादू कला प्राचीनतम कला हैं जिसको सदियों से सम्मान मिलता आया हैं। 

जादू सीखने की कोई निश्चित उम्र नहीं
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर भले ही आधुनिक तकनीक का हैं, बावजूद इसके जादू व जादूगरों के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। स्वस्थ समाज के लिए स्वस्थ मनोरंजन प्राथमिक जरूरत हैं और जादू कला इस दायित्व का बखूबी निर्वहन करती हैं। ऐसे में इसे और अधिक मजबूत व परिष्कृत करने की आवश्यकता हैं। जादूगर अग्रवाल ने कर्नाटक सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि वहां विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम में जादू को एक विषय के रूप में शामिल किया गया हैं जो निश्चित ही जादू की बेहतरी संदर्भ में सशक्त कदम हैं। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि जादू सीखने की कोई निश्चित उम्र नहीं होती और इसे 3 वर्ष के बालक से लेकर 90 वर्ष का व्यक्ति सीख सकता हैं। फैडरेशन ऑफ  इंडियन मैजिशियन्स के राष्ट्रीय महासचिव चमन अग्रवाल के अनुसार एक दिवसीय नि:शुल्क जादू मंतरा कार्यशाला में राजस्थान सहित पश्चिम बंगाल, कनार्टक, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश व तेलंगाना के जादूगरों ने शिरकत की। कार्यशाला में जादू कला से संबद्ध नवीन आधुनिक तकनीक से जादूगरों को अवगत कराया गया।

Saturday 10 February 2018

पायल पहनना सेहत के लिए फायदेमंद

घनश्याम डी रामावत
भारतीय महिलाओं का पहनावा दुनियां में सबसे अलग माना जाता हैं। भारत की महिलाओं की वेशभूषा और श्रृंगार वेस्टन कलचर से बिल्कुल अलग हैं। वास्तुशास्त्र के हिसाब से महिलाओं के पैरों में पायल पहनने से घर की नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। इसके अलावा पायल पहनना महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन साथी को भी बहुत फायदा पहुंचाता हैं। आइए जानते हैं पायल पहनने से महिलाओं को क्या फायदे होते हैं।

खूबसूरती बढ़ाने के साथ रिश्ते में प्रगाढ़ता
मशहूर रैकी हीलर व वास्तु पिरामिड विशेषज्ञ अर्चना प्रजापति के अनुसार पायल पहनने से अट्रैक्टिव लुक के साथ-साथ महिलाओं के पैरों की खुबसूरती भी बढ़ जाती हैं। इसके अलावा पायल की आवाज से पुरूष महिलाओं की ओर अपेक्षाकृत अधिक आकर्षित होते हैं। ऐसी महिलाएं जो अट्रैक्शन के लिहाज से परेशान हैं उनके लिए पायल अचूक अस्त्र हैं, उन्हें तुरन्त प्रभाव से पहनना शुरू कर देना चाहिए। परिवार में भी महिला जब पायल पहनकर घर में यथा-वथा गमन करती हैं, सभी लोग पायल की आवाज सुनकर सतर्क हो जाते हैं एवं स्वयं को असहजतापूर्ण स्थिति से बचा लेते हैं। अर्चना प्रजापित के अनुसार हिंदू धर्म में इसको लेकर खास मान्यता हैं जिसके अनुसार महिलाओं के पायल पहनने से उसके और जीवन साथी के मध्य की नकारात्मकता दूर हो जाती हैं। पायल पहनने से जहां जीवन साथी के साथ स्नेह/प्यार में इजाफा होता हैं, महिलाओं के पायल पहनने से घर का माहौल भी ठीक रहता हैं।

हड्डियां होती हैं मजबूत, तापमान पर भी नियंत्रण
अच्छे स्वास्थय के लिए पायल पहनना बहुत ही फायदेमंद होता हैं। सोने या चांदी की पायल पहनने से हड्डियां मजबूत होती हैं। पायल के धातु के तत्व त्वचा के द्वारा शरीर के अंदर जाकर हड्डियों को मजबूत करते हैं। सोने की तासीर गर्म होने के कारण इस पहनने से मना किया जाता हैं। आयुर्वेद के मुताबिक भी सिर ठंडा और पैर गर्म होने चाहिए। इसलिए शरीर के उपरी हिस्से में सोना और नीचे की ओर पायल पहनने से शरीर का तापमान ठीक रहता हैं।

Friday 9 February 2018

वसुन्धरा राजे : उप चुनावों में हार से पार्टी में किरकिरी!

घनश्याम डी रामावत
राजस्थान में सत्तारूढ़ वसुंधरा सरकार के मौजूदा बजट सत्र पर सबकी निगाहें हैं। इसलिए, क्योंकि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और हाल ही उप चुनावों में करारी हार से परेशान वसुंधरा सरकार का यह चुनावी बजट हैं। पेश होने वाले बजट की अहमियत इसलिए भी हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दो लोकसभा सीटों और एक विधान सभा सीट पर हुए उप चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई हैं। हार के बाद से ही चर्चाएं आम हैं कि क्या सरकार बजट के जरिये नाराज लोगों को साध पाएंगी? दूसरा यह कि क्या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हार की वजह बने लोगों को मना पाएंगी? बहरहाल! राजस्थान में अजमेर व अलवर लोकसभा के साथ मांडलगढ़ विधानसभा उप चुनाव में बीजेपी प्रत्याशियों की करारी हार से वसुन्धरा राजे की जबरदस्त किरकिरी हुई हैं तथा व्यक्तिगत रूप से उनकी साख को नुकसान पहुंचा हैं, यह कड़वी सच्चाई हैं।

नाराज लोगों की फेहरिश्त लम्बी, मनाना आसान नहीं
नाराज जनता बजट से कितनी खुश होंगी ये तो बजट पेश होने के साथ ही साफ हो जाएगा, लेकिन भाजपा से छिटक कर दूर हो चुके मतदाताओं को मनाने की कवायद कितनी सफल होंगी, ये दिसम्बर में होने वाले चुनावों से ही साफ हो पाएगा। दरअसल नाराज लोगों की फेहरिश्त इतनी लम्बी हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उन्हें मनाने में ही लम्बा वक्त लग जायेगा। इन लोगों में बीजेपी के लिए प्राण वायु कहे जाने वाला संघ(आरएसएस) भी हैं, जिसकी उप चुनाव में रहस्यमय चुप्पी(विरोध कहें तो भी गलत नहीं) भी शामिल हैं, तो राम राज्य परिषद के जमाने से कांग्रेस विरोध का झंडा थामे परम्परागत राजपूत वोट बैंक का विरोध भी शामिल हैं। बीजेपी से नाराज लोगों की इस फेहरिश्त में संघ और राजपूत वोट बैंक ही नहीं, ब्राह्मण और वैश्य मतदाता भी शामिल हैं, जो या तो अनदेखी से नाराज हैं या फिर सरकार की आर्थिक नीतियों से बेहाल हो बीजेपी का चुनावों में हाल बिगाड़ चुके हैं। बीजेपी के अपने वोट बैंक समझे जाने वाले ब्राह्मण और वैश्य की नाराजगियां कुछ इस अंदाज में हैं कि उन्हें साधना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं। ब्राह्मणों को तो सरकार नुमाईंदगी बढाकर शायद संतुष्ट भी कर दे, लेकिन बिगड़े व्यापार को पटरी पर लाने का मामला राज्य सरकार के बूते में भी नहीं। नाराज लोगों की फेहरिश्त में बीजपी के वह नेता भी हैं, जिन्होंने अपने-अपने इलाके में यह सोचकर भी विधायकों को निपटा दिया ताकि हार की सूरत में उनके टिकिट कट जाएं और विधान सभा चुनाव में टिकिट उनके हिस्से आ जाएं। ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा हैं और टिकिट के अवसर उससे भी पांच गुना कम, अर्थात टिकिट एक को मिलेगा और टिकिट के चक्कर में ‘वोट की चोट’ करने वाले पांच गुना ज्यादा।

अशोक परनामी को वसुन्धरा राजे पर भरोसा
सरकार से नाराज इन लोगों को मनाने में सरकार कामयाब होगी या नहीं, ये विधान सभा चुनाव के नतीजों से साफ होगा। फिलहाल, बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी मानते हैं कि अपनेपन के सहारे सीएम राजे हर मुश्किल से पार पाने में सक्षम हैं। आशावादी नजरिये के साथ ही बीजेपी अब अपने से नाराज हो चुके लोगों को साधने की जुगत में हैं, लेकिन किसी न किसी वजह से नाराज ये लोग बजट और सरकार के कामकाज से खुश होंगे, मौजूदा परिस्थितियों के चलते फिलहाल तो कहना आसान नहीं।

तुलसी : औषधीय गुणों से सराबोर वनस्पति

घनश्याम डी रामावत
तुलसी का उपयोग भारत में महज धार्मिक इस्तेमाल के लिए ही नहीं किया जाता हैं, बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त इसके औषधीय गुणों का भी भरपूर फायदा उठाया जाता हैं। आयुर्वेद के जानकारों की माने तो कैंसर और पथरी जैसी गंभीर बीमारियों को भी तुलसी के लगातार सेवन से ठीक किया जा सकता हैं। यह घर में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, इसलिए यह सबसे किफायती औषधि हैं। तुलसी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं जो इंफेक्शन जैसे सर्दी-जुकाम में खास राहत प्रदान करते हैं। 

आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में तुलसी का खास महत्व
इस पौधे के अनेक फायदे हैं। आयुर्वेद विभाग से प्रथम मेल नर्स के रूप में सेवानिवृत एवं वर्तमान में राजस्थान आयुर्वेद नर्सेज एसोसिएशन के मुख्य संरक्षक दामोदर लाल दाधीच के अनुसार तुलसी शत-प्रतिशत औषधीय गुणों से सराबोर वनस्पति हैं जिसका आयुर्वेद खासतौर से सम्मान करता हैं तथा इसके गुणों का चिकित्सा के दौरान भरपूर फायदा उठाता हैं। दाधीच के अनुसार पथरी निकालने में मददगार, तुलसी की पत्तियां किडनी के स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छी होती हैं। तुलसी रक्त से यूरिक एसिड लेवल को कम करती हैं जो किडनी में पथरी बनने का मुख्य कारण होती हैं। इसके साथ ही किडनी को साथ भी करती हैं। तुलसी में मौजूद एसेटिक एसिड और दूसरे तत्व किडनी की पथरी को गलाने का काम करते हैं। साथ ही इसका पेनकिलर प्रभाव पथरी के दर्द को दूर करता हैं। किडनी की पथरी को निकालने के लिए तुलसी की पत्तियों के जूस को शहद के साथ मिलाकर 6 महीने तक रोज पीना चाहिए। यह बुखार उतारने में भी मदद करती हैं। तुलसी में कीटाणुनाशक और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। एंटी-बायोटिक बुखार कम करने के लिए भी जरूरी होता हैं। यह इंफेक्शन की वजह से होने वाली बीमारियों और मलेरिया से भी राहत देती हैं। 

आयुर्वेद के अनुसार जो इंसान बुखार से पीडि़त हो उसे तुलसी का काढ़ा बहुत ही फायदा करता हैं। इसे बनाने के लिए तुलसी की कुछ पत्तियों को आधे लीटर पानी में इलायची पाउडर के साथ मिलाकर तब तक के लिए जब तक यह मिक्सचर आधा न रह जाए। तुलसी की पत्तियों और इलायची पाउडर का अनुपात (1:0:3) होना चाहिए। इस काढ़े को चीनी और दूध के साथ मिलाकर प्रत्येक दो से तीन घंटे में जरूर पिएं। यह उपचार बच्चों को बुखार से जल्दी आराम पहुंचाता हैं। डायबिटीज को कम करता हैं, तुलसी की पवित्र पत्तियां एंटी-ऑक्सीडेंट्स और एसेंशियल ऑयल से भरपूर होती हैं जो युगेनॉल, मेथाइल युगेनॉल और कार्योफेलिन का निर्माण करती हैं। ये पदार्थ पैनक्रियाटिक बेटा सेल्स (सेल्स जो इंसुलिन को स्टोर करते हैं और उसे बाहर निकालते हैं) को ठीक तरह से काम करने में मदद करते हैं। यह इंसुलिन की सेंसिविटी को बढ़ाते हैं। यह ब्लड से शुगर लेवल भी कम करते हैं और डाइबिटीज का ठीक तरह से ईलाज करते हैं। 

दिल का रखती हैं ख्याल, थकान दूर करती हैं
तुलसी में शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व- युगेनॉल होता हैं। यह तत्व ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करके दिल का देखभाल करता हैं और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करता हैं। हार्ट को हेल्दी बनाने के लिए रोज खाली पेट सूखी तुलसी की पत्तियां चबाएं। इससे किसी भी तरह के हृदय संबंधी रोग दूर रहते हैं। रिसर्च के अनुसार तुलसी स्ट्रेस हार्मोन-कोर्टिसोल के लेवल को संतुलित रखती हैं। इसकी पत्तियों में शक्तिशाली एटॉप्टोजन गुण होते हैं, जिन्हें एंटी-स्ट्रेस एजेंट भी कहते हैं। यह नर्वस सिस्टम और ब्लड सर्पुलेशन को नियमित रखता हैं। साथ ही थकान के दौरान बनने वाले फी रेडिकल्स को कम करता हैं। जिन लोगों की नौकरी बहुत थकाऊ हैं उन्हें रोज दो बार तुलसी की लगभग 12 पत्तियां खानी चाहिए।

Thursday 8 February 2018

वैचारिक प्रबंधन : आज की प्राथमिक जरूरत

घनश्याम डी रामावत
विचार सभी के महत्वपूर्ण होते हैं तथा इंसान के लिए जीवन में इसका क्या महत्व हैं, यह भी किसी से छिपा हुआ नहीं हैं। सही मायने में हमें विचारों से ही किसी व्यक्ति व उसके व्यक्तित्व का ठीक से पता चलता हैं। कहावत हैं जैसे विचार, वैसा ही इंसान। सार्वजनिक जीवन में लोग इंसान का आंकलन विचारों से ही करते हैं। यही कारण हैं कि वैचारिक प्रबंधन व विचारों का अत्यधिक महत्व हैं। कभी भी/कहीं भी कुछ भी कहेंगे अर्थात अभिव्यक्त करेंगे, परिणाम उसकेे अनुरूप ही प्राप्त होगा। कब, कहां, क्या व कैसे बोलना हैं? इसके बारे में सही तरीके से विचार कर उचित क्रियान्वयन जरूरी हैं। हमारे कॅरियर के बारे में अन्य क्या विचार रखते हैं, इसको जानने से अधिक जरूरी हैं कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं। स्वयं को कितना सफल/असफल मानते हैं। खुद कितने संतुष्ट/असंतुष्ट नजर आते हैं अर्थात खुश या दु:खी नजर आते हैं। कॅरियर को लेकर इंसान अपने विचारों को नियंत्रित कर स्वयं की खुशियों को बढ़ा सकता हैं। अगर स्वयं के विचार ही खुद के बारे में ठीक नहीं हैं तो अन्य के विचार ठीक हो ही नहीं सकते। अन्य के विचारों को तभी नियंत्रित किया जा सकता हैं, जब खुद को लेकर इंसान स्वयं नियंत्रित हैं। 

अन्य के विचार/सलाह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण
आज की जीवन शैली में हमें आसानी से सलाह देने वाले मिल जाते हैं। सलाह हमारे यहां नि:शुल्क मिलती हैं। ऐसा नहीं हैं कि सभी की सलाह या विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उसमें से कुछ महत्वपूर्ण हो सकती हैं। इंसान को दूसरें के विचारों को सुनना चाहिए, महत्वपूर्ण हैं तो उन विचारों का अपने जीवन में उपयोग किया जा सकता हैं। अगर उपयोगी नहीं हैं तो उन विचारों को स्वयं पर प्रभावी न होने दीजिए। इंसान जब अपने कॅरियर की पटकथा स्वयं ही लिखता हैं तो फिर इस कहानी को उसे खुद को ही आगे बढ़ाना हैं। दूसरों के विचार एक दिशा दे भी सकते हैं, लेकिन तरह-तरह के विचार परेशानी भी खड़ी कर सकते हैं। जीवन में कई बार ऐसा भी होता हैं कि हम बिना पूछे अपना विचार रख देते हैं, सामने वाले को अच्छा लगे या न बुरा लगे। जब कोई हमारे से अपना विचार/सलाह पूछ ही नहीं रहा हैं तो उसे बताने का फायदा क्या हैं। इस बात को गंभीरता से अंगीकार करना चाहिए कि जब तक पूछा न जाए, हम अपनी राय प्रकट न करें। ऐसे ही कुछ कहेंगे तो लोगों में सही संदेश नहीं जाएगा और व्यक्तित्व पर भी सवालियां निशान लगेगा। इंसान तब विचारों का खुद सम्मान करता हैं तभी दूसरे भी सम्मान करते हैं, यह कटु सत्य हैं। वैचारिक महत्व को समझने के लिए यह जरूरी हैं कि उन लोगों पर गौर करें जो बोलते रहते हैं/उन्हें मौका मिले या न मिले, अपने विचार वे जरूर रखते हैं.. कोई सुनना चाहे या न सुनना चाहे। सामाजिक जीवन में ऐसी मान्यता हैं कि इंसान का मान सम्मान स्वयं उसी के हाथों में होता हैं। इंसान ही ऐसा व्यक्ति हैं जो बोलकर अपने विचार रख सकता हैं, इसके महत्व को समझना जरूरी हैं। बोलने का अर्थ यह नहीं हैं कि हम कुछ भी बोलें। जरूर बोलें, बोलने का अर्थ हैं नापे, तोले और फिर बोले। कुछ लोगों को सुनने के लिए लोग कान लगाकर बैठते हैं, कुछ के बोलने से ही लोग कान बंद कर लेते हैं। 

जीवन में सरल, स्पष्ट व सपाट रहने का महत्व
ढोंगी बनने से अच्छा हैं कि हम जीवन में सरल, स्पष्ट व सपाट रहें। व्यक्तित्व में सरल हैं तो विचार भी सरल होंगे। कुछ लोग ढोंग भी करते हैं, विचार भी ढोंगी होते हैं। ऐसे विचार इंसान के लिए किसी काम के नहीं हैं। व्यक्तित्व व विचारों में ढोंगीपन व्यक्तित्व को ढोंगी बनाता हैं। इंसान कड़ी मेहनत से खुद को तराशता हैं। फिर ढोंग की जरूरत कहां हैं? जैसे हैं वैसे ही लोगों के सामने स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए। इससे लोगों को अपने बारे में सही समझ रहेगी तथा आपके विचारों का महत्व बढ़ेगा। अन्य लोग विचारों को लेकर उत्सुकता रखेंगे व उन्हें जरूर जानना चाहेंगे क्योंकि उन्हें पता हैं कि संबंधित व्यक्ति के विचार, उसके व्यक्तित्व की तरह ही सरल व ईमानदार हैं।  यह कड़वा सच हैं कि यदि इंसान के खुद के विचार ही स्वयं के बारे में ठीक नहीं हैं तो अन्य के विचार ठीक हो ही नहीं सकते। दूसरों के विचारों को भी तभी नियंत्रित किया जा सकता हैं, जब इंसान स्वयं को लेकर नियंत्रित हों।

आजादी मिलने के वर्षों बाद भी समस्याएं यथावत

घनश्याम डी रामावत
भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपना संविधान अंगीकार किया। संविधान में भारत को एक स्वतंत्र, संप्रभु और संपन्न राष्ट्र बनाने का संकल्प लिया गया। देश की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने का ध्येय तय किया गया। धर्मनिरपेक्षता, सहअस्तित्व और भाईचारे की स्थापना, नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा, कानून का राज, भेदभाव रहित समाज व सरकार का निर्माण आदि लक्ष्य निर्धारित किए गए। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका की भूमिका स्पष्टता से रेखांकित की गई। नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य पारिभाषित किए गए। केंद्र और राज्य सरकारों के कामकाजों और दायित्वों का स्पष्ट विभाजन किया गया, लेकिन आज जब हमारे संविधान को लागू हुए 68 साल हो गए हैं, तो ईमानदारी से आत्ममंथन का वक्त हैं कि क्या हमने संविधान में तय किए लक्ष्यों को हासिल किया हैं?

शासन व्यवस्था पर सवालियां निशान
आज अवलोकन करने का समय हैं कि क्या हमने वैसे ही राष्ट्र का निर्माण किया हैं, जैसा हमने संविधान में संकल्पित किया था। दुर्भाग्य से हमें अपने प्रश्नों का उत्तर नकारात्मक ही मिलेगा। लाखों बलिदानों के बाद आजादी मिली थी और करीब तीन वर्षों के अथक परिश्रम के बाद देश ने अपना संविधान बनाया था। हमने दुनिया की बेहतर शासन प्रणाली लोकतंत्र को स्वीकार किया और लोकतंत्र के उच्च नैतिक मूल्य व आदर्श का मानदंड बनाया, लेकिन आज दुखद हैं कि जिन लोगों व संस्थाओं पर संविधान के लक्ष्यों को पूरा करने, अपने दायित्वों का निर्वहन करने की जिम्मेदारी हैं, वे ही उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं। उत्तरोत्तर कार्यपालिका कमजोर होती गई हैं, सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों में गिरावट आती गई हैं, शासन में जवाबदेही कम होती गई हैं। केंद्र और राज्यों के संबंध में कटुता आई हैं। सरकारें संविधान के लक्ष्य अनुरूप शासन व्यवस्था और जनाकांक्षा पूरा करने में विफल रही हैं। संविधान की रक्षा का बोझ न्यायपालिका पर बढ़ा हैं। संसद और विधानसभाओं को जो काम करना चाहिए, संयोग से न्यायपालिका को करना पड़ रहा है। आज देश उस दोराहे पर खड़ा है, जहां अनेक समस्याएं हैं, वहीं सरकार समेत लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं पर जनता का भरोसा कम हुआ हैं। 

राजनीतिक-प्रशासनिक विफलता प्रमुख कारण
आज देश को गरीबी, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार, जातिवाद, सांप्रदायिकता, उन्माद, असहिष्णुता, क्षेत्रवाद, उग्रवाद, नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद, सीमा पर तनाव आदि समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं। ये समस्याएं देश की राजनीतिक-प्रशासनिक विफलताओं का ही परिणाम हैं। येन-केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने की प्रवृत्ति और वोट बैंक की राजनीति के चलते देश में विभाजनकारी शक्तियां मजबूत हुई हैं। देश अपने संवैधानिक लक्ष्यों व मूल्यों से भटक गया लगता है। हाल के वर्षों में जिस तरह से लोगों ने कानून अपने हाथ में लिए हैं और सरकारें मूकदर्शक बनी रही हैं, सामाजिक-राजनीतिक-बौद्धिक असहिष्णुता बढ़ी हैं, गोरक्षा के नाम पर हिंसा हुई है, दलितों पर अत्याचार की घटनाएं सामने आई हैं, सांप्रदायिक तनाव सामने आए हैं, पत्थरबाजी देखने को मिली है, वह चिंतनीय हैं। हमारा संविधान इसकी इजाजत नहीं देता। आज देश की राजनीति और सरकार के मुख्य एजेंडे से समस्याओं के समाधान गायब हो गए हैं। एक तरफ भारत वैश्विक ताकत बनने का सपना संजोए हुए है, दूसरी तरफ वह अपनी समस्यओं का हल नहीं कर पा रहा हैं। हमें अगर एक ऊर्जावान, अखंड, विकसित और संप्रभु राष्ट्र का निर्माण करना है तो इन 68 वर्षों की गलतियों से सबक लेते हुए संवैधानिक लक्ष्यों के अनुरूप सभी सरकारों व समस्त देशवासी को मिलकर काम करना होगा। हमें संविधान की मूल भावना को समझना होगा।

Wednesday 7 February 2018

‘बांसुरी’ में छिपा हैं जीवन का सार

घनश्याम डी रामावत
भगवान कृष्ण की बांसुरीको सुनकर इंसान तो क्या पशु-पक्षी भी मोहित हो जाते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की बांसुरी में जीवन का सार छुपा हुआ हैं। ये हमें बताती हैं कि इंसान को कैसा आचरण करना चाहिए। अपने इन्हीं गुणों के कारण एक छोटी सी बांसुरी भगवान कृष्ण को बहुत प्रिय थी। भगवान ने बांसुरी को अपने जीवन में इतना महत्वपूर्ण स्थान क्यों दिया इसके बारे में पुराणों में कई कहानियां बताई गई हैं इनमें से एक कहानी ये भी हैं 

भगवान श्रीकृष्ण के लिए प्रतीक्षा
पिछले दिनों जोधपुर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में सेवाएं दे चुके सेवानिवृत प्राध्यापक/जाने माने शिक्षाविद् जगदीश चंद्र जी प्रजापति से मिलना हुआ। सही मायने में छोटी सी मुलाकात ने जीवन के प्रति सोच को काफी हद तक बदल कर रख दिया। बांसुरी और भगवान श्री कृष्ण के इसके प्रति अगाध प्रेम को लेकर गहन जानकारी रखने वाले जगदीश चंद्र जी अच्छे बांसुरी वादक हैं। 72 वर्ष की उम्र में जगदीश चंद्र जी द्वारा किया जाने वाला बांसुरी वादन काबिले तारीफ हैं। मेरे समक्ष उनके द्वारा बांसुरी के माध्यम से निकाली गई धुनों(चंदन सा बदन, चंचल चितवन.. एवं पणिहारी/घूमर/गणगौर से संबद्ध लोकगीत) ने उस वक्त न केवल मुझे, अपितु वहां उपस्थित हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया। सही मायने में मेरे पास व्यक्तिगत रूप से उनकी तारीफ में कोई शब्द ही नहीं हैं। अर्थात मैं तो नि:शब्द’.. बातों ही बातों में उनके द्वारा बांसुरी और भगवान श्री कृष्ण के इससे ताल्लुक/अगाध प्रेम/लगाव को लेकर जो वृतांत सुनाया गया हैं वह इस प्रकार हैं_एक बार श्रीकृष्ण यमुना किनारे अपनी बांसुरी बजा रहे थे। बांसुरी की मधुर तान सुनकर उनके आसपास गोपियां आ गई। उन्होंने चुपचाप श्रीकृष्ण की बांसुरी को अपने पास रख लिया। गोपियों ने बांसुरी से पूछा-आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था जो तुम केशव के गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों का स्पर्श करती रहती हो। ये सुनकर बांसुरी ने मुस्कुराकर कहा-मैंने श्रीकृष्ण के समीप आने के लिए जन्मों से प्रतीक्षा की हैं। 

कठोरता की भी परवाह नहीं की

त्रेतायुग में जब भगवान राम वनवास काट रहे थे। उस दौरान मेरी भेंट उनसे हुई थी। उनके आसपास बहुत से मनमोहक पुष्प और फल थे। उन पौधों की तुलना में मुझमें कोई विशेष गुण नहीं था, पंरतु भगवान ने मुझे दूसरे पौधों की तरह ही महत्व दिया। उनके कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता था। उन्होंने मेरी कठोरता की भी कोई परवाह नहीं की। जीवन में पहली बार मुझे किसी ने इतने प्रेम से स्वीकारा था। इस कारण मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की। परंतु उस काल में वो अपनी मर्यादा से बंधे हुए थे, इसलिए उन्होंने मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखने का वचन दिया। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपना वचन निभाते हुए मुझे अपने समीप रखा। वाकई छोटी सी यह कहानी जीवन और उसके सार को समझाने के लिए काफी हैं।

रणकपुर जैन मन्दिर : धर्म/आस्था के साथ शिल्प का चमत्कार

घनश्याम डी रामावत
रणकपुर के जैन मन्दिर को धर्म और आस्था के साथ शिल्प का चमत्कार कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। रणकपुर के मन्दिर राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य उदयपुर से 96 किमी दूरी पर पत्थरों के अनगढ़ सौन्दर्य और प्रकृति की भव्य हरीतिमा के बीच भारतीय शिल्प का अनूठा उदाहरण हैं। अपनी अद्भुत वास्तुकला और जैन संस्कृति के आध्यात्मिक वैभव के साथ मुखर हैं। ये मन्दिर निकटतम रेलवे स्टेशन फालना से 33 किमी दूर पाली जिले में स्थित हैं।

मन्दिर का निर्माण ‘नलिनी गुल्म विमान’ के सदृश 
प्राचीन जैन ग्रंथों में ‘नलिनी गुल्म’ नामक देवविमान का उल्लेख मिलता हैं। ऐसी मान्यता हैं कि रणकपुर के निकट नान्दिया ग्राम के जैन श्रावक धरणशाह पोरवाल ने इस विमान की संरचना को स्वप्न में देखा था। उसने प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित ‘नलिनी गुल्म विमान’ के सदृश्य एक भव्य मन्दिर निर्माण का संकल्प लिया। संवत् 1446 में उस समय के प्रसिद्ध शिल्पकार देपा के निर्देशन में मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया गया। मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने न केवल मन्दिर निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध कराई वरन् वहां एक नगर भी बसाया और इसी परिक्षेत्र में सूर्य मन्दिर का निर्माण भी कराया। मन्दिर का निर्माण करीब 50 वर्ष तक चला। इस मन्दिर के निर्माण पर करीब 99 लाख रूपये व्यय किये गये। मन्दिर में चार कलात्मक प्रवेश द्वार हैं। संगमरमर से बने इस खूबसूरत मन्दिर में 29 विशाल कमरे हैं, जहां 1444 स्तंभ लगे हैं। प्रत्येक स्तंभ पर शिल्प कला का नया रूप हैं। हर स्तंभ अपने आप में शिल्प का नया आयाम हैं। किसी भी कोण से खड़े हों, भगवान के दर्शन में कोई स्तंभ बाधक नहीं बनता। अनेक गुम्बज और छतें हैं। प्रत्येक छत पर एक कल्पवल्ली−कल्पतरू की कलात्मक लता बनी हुई हैं। मन्दिर का निर्माण सुस्पष्ट ज्यामितीय तरीके से किया गया हंै। मूल गर्भगृह में भगवान आदिनाथ की चार भव्य प्रतिमाएं विराजमान हैं। यह प्रतिमाएं लगभग 72 इंच ऊंची हैं एवं चार अलग−अलग दिशाओं की ओर उन्मुख हैं। संभवत: इसी कारण से इस मन्दिर का उपनाम ‘चतुर्मुख जिन प्रसाद’ भी हैं। सामने दो विशाल घंटे हैं। यहीं सहस्त्रफणी नागराज के साथ भगवान पाश्र्वनाथ की प्रतिमा हैं।

प्रवेश मात्र से मोक्ष की प्राप्ति, ऐसी मान्यता
मन्दिर में 76 छोटे गुम्बदनुमा पवित्र स्थल, चार बड़े प्रार्थना कक्ष तथा चार बड़े पूजन कक्ष हैं। मन्दिर के चारों ओर 80 छोटी एवं चार बड़ी देवकुलिकाएं शिखरबंद गुम्बदों में बनी हैं। प्रधान मन्दिर 220-220 फीट वर्गाकार हैं। मन्दिर परिसर का विस्तार 48400 वर्गफुट जमीन पर किया गया हैं। मन्दिर के निर्माण में सोनाणा, सेदाड़ी और मकराणा पत्थर का प्रयोग किया गया हैं। मन्दिर के पास गलियारे में बने मंडपों में सभी 24 तीर्थंकरों की छवियां उकेरी गई हैं। मन्दिर की मुख्य देहरी में श्यामवर्ण की भगवान नेमीनाथ की भव्य मूर्ति लगी हैं। अन्य मूर्तियों में सहस्त्रकूट, भैरव, हरिहर, सहस्त्रफणा, धरणीशाह और देपाक की मूर्तियां उल्लेखनीय हैं। यहां पर 47 पंक्तियों का लेख चौमुखा मन्दिर के एक स्तम्भ में उत्कीर्ण हैं जो संवत् 1496 का हैं। इस लेख में संस्कृत तथा नागरी दोनों लिपियों का प्रयोग किया गया हैं। लेख में बापा से लेकर कुम्भा तक के बहुत से शासकों का वर्णन हैं। लेख में तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक जीवन के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती हैं। फरग्युसन एवं कर्नल टॉड ने भी इसे भव्य प्रसादों में माना और इसकी शिल्पकला को अद्वितीय बताया। मन्दिर के बारे में मान्यता हैं कि यहां प्रवेश करने से मनुष्य जीवन की 84 योनियों से मुक्ति पाकर मोक्ष प्राप्त कर लेता हैं।

Tuesday 6 February 2018

राहुल गांधी : विपक्षी नेता के रूप में स्वीकार्यता को लेकर संशय बरकरार!

घनश्याम डी रामावत
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के नव-निर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में एकजुट होने को लेकर कुछ अनुभवी-विपक्षी क्षत्रप सहमत नहीं हैं। वे अंदरखाने एतराज जता रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यूपीए) अध्यक्ष सोनिया गांधी सक्रिय हो गई हैं। उन्होंने विपक्षी एकता की सूत्रधार के नए किरदार में तमाम विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कवायद शुरू कर दी  हैं। इसी सिलसिले में उन्होंने हाल ही में विपक्षी दलों की बैठक बुलाई। यह बैठक एनडीए सरकार की नीतियों और कामकाज के विरुद्ध विपक्ष की एकजुटता के इरादे से बुलाई गई थी। इस बैठक को लेकर कोई साफ निष्कर्ष निकालना अभी जल्दबाजी ही होगी। 

विपक्ष की एकजुटता आज की प्रमुख जरूरत
बैठक में सोनिया गांधी सहित शामिल सत्रह पार्टियों के नेताओं ने महंगाई, बेरोजगारी, किसानों पर छाए संकट, कासगंज समेत देश के कई हिस्सों में नफरत की लकीर पर हुई घटनाओं का हवाला देते हुए कहा कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विपक्ष की एकजुटता वक्त की जरूरत बन गई  हैं। फिर राहुल गांधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भी इसी आशय की बातें कही। मगर एकता को कैसे व्यावहारिक बनाया जाए और इसका स्वरूप क्या हो, यह एक ऐसा सवाल  हैं जिस पर विपक्षी दलों का व्यवहार अलग-अलग रहा हैं। ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे विपक्षी नेताओं को लगता  हैं कि वे पुराने और अनुभवी नेता रहे हैं और वही विपक्ष को एकजुट करने में सफल हो सकते हैं। विपक्ष की एकजुटता के लिए उनकी अगुवाई ही कारगर सिद्ध हो सकती  हैं। पिछले दिनों शरद पंवार ने इसी मंशा को लेकर विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी। शरद पंवार की बैठक के बाद सोनिया गांधी की बैठक भी कुछ इसी इरादे की रही होगी कि अब कांग्रेस ही विपक्ष की एकजुटता को नेतृत्व देने में सक्षम हैं। 

कांग्रेस मजबूत किंतु बीजेपी को पटखनी आसान नहीं 
राहुल गांधी के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद यह विपक्ष की पहली साझा बैठक थी। एक समय में कहा जा रहा था कि वे अपनी ही पार्टी को सफल नेतृत्व नहीं दे पा रहे हैं, तो विपक्ष को नेतृत्व कैसे दे सकते हैं? लेकिन अब गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के बाद अब राजस्थान के उपचुनावों के नतीजों से कांग्रेस के हौंसले बुलंदी पर हैं। अगले लोकसभा चुनाव से पहले आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें राजस्थान भी शामिल हैं। यह भी सही  हैं कि राजस्थान में कांग्रेस को जो सफलता मिली  हैं, उसके आधार पर उसके पक्ष में कोई बड़ी तस्वीर नहीं बनाई जा सकती। और न ही यह उम्मीद की जा सकती कि अगली बार कांग्रेस को ऐसी ही कोई सफलता मिल जाएगी। लेकिन, यह जरूर माना जा सकता  हैं कि कांग्रेस चुनौती देने लायक स्थिति में जरूर आ गई हैं। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी इसे हल्के में नहीं ले सकती। ऐसे हालात में विपक्ष यदि एकजुट होकर राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी मैदान में उतरे तो भाजपा के लिए बड़ी चुनौतीपूर्ण स्थिति बन सकती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश का एक उदाहरण भी हमारे सामने हैं। इस राज्य के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व समाजवादी पार्टी ने मिलकर चुनाव लड़ा, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिली, बल्कि भाजपा को प्रचण्ड बहुमत मिला। 

सभी दलों में अपने-अपने अंतर्विरोध व हित
बहरहाल, सोनिया गांधी की बैठक में समाजवादी पार्टी शामिल हुई, लेकिन मायावती की बसपा ने दूरी बनाए रखी। फिर माकपा में कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने के लिए दो राय बनी रही। पिछले दिनों कलकत्ता में आयोजित केन्द्रीय समिति की बैठक में यह संकेत मिल चुका  हैं। भाजपा की बढ़ी ताकत से सबसे ज्यादा चिंतित भी यही दल हैं मगर फिर भी यह दल कांग्रेस के साथ जाने को लेकर दुविधा में  हैं। स्पष्ट  हैं कि सभी दलों में अपने-अपने अंतर्विरोध हैं, अपने-अपने हित हैं। यह कांग्रेस भी जानती हैं शायद, इसीलिए कांग्रेस सोनिया गांधी ने कहा कि अलग-अलग राय होने के बावजूद राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर विपक्षी एकता जरूरी  हैं। लेकिन मात्र इस राय से विपक्ष की एकजुटता संभव प्रतीत तो नहीं होती। कांग्रेस को ही आखिर कुछ सोचना होगा। 

Monday 5 February 2018

ज्योतिष के विकास में भारतवर्ष का महत्वपूर्ण योगदान

घनश्याम डी रामावत
प्राचीन विद्याओं की जननी कही जाने वाली भारत भूमि में ज्योतिष का उद्भव व विकास आज से कई हजारों वर्ष पूर्व ही हो चुका था। कई भारतीय मानक ग्रंथों में इसकी पुष्टि होती हैं कि भारतवर्ष ने सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के खातिर ज्योतिष के अद्वितीय ज्ञान को विकसित किया। यद्यपि समय चक्र ने इसे अपने थपेड़ों से चोटिल करने का भरपूर प्रयास किया, किन्तु इसकी उपयोगिता इतनी प्रखर हैं कि आज भी यह अपने पुराने रूप में स्थिति हैं और धरा पर होने वाले कई घटना चक्रों की जानकारी देता हैं। साथ ही मानव जीवन में घटने वाली घटनाएं सुख-दु:ख की बड़ी सटीक जानकारी देकर उन्हें आने वाले दु:खद समय से बचाने का भरपूर प्रयास भी करता हैं। 

हजारों वर्ष पूर्व ही हो गया था ज्योतिष का उद्भव
ज्योतिष शास्त्र के द्वारा न केवल ब्राह्माण्ड में घटने वाली घटनाओं का सटीक पता चल सकता हैं अपितु व्यक्ति के जीवन में कब कहां कैसी घटना घटित होने वाली हैं, उसका भी सही पता लगाने की शक्ति ज्योतिष शास्त्र में ही हैं। इसको ‘कालाश्रितं ज्ञानं’ भी कहा जाता हैं। अर्थात जो हमारे शुभाशुभ समय का ज्ञान कराएं वही ज्योतिष शास्त्र हैं। आज मानव जीवन में रोग, तनाव, निराशा, जल्दबाजी, असंतोष समाज व परिवार की उपेक्षा जैसे गुणों में निरन्तर वृद्धि इसका संकेत देती हैं कि व्यक्ति अपने शुभाशुभ प्रभावों से अपनी हठवादिता के कारण परिचित ही नही हो पाता है। जिससे वह कई प्रकार के दु:खों से पीडि़त रहता हैं। सूर्यनगरी जोधपुर स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर दादा दरबार में आचार्य के रूप में सेवाएं दे रहे रामेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी ज्योतिष विषारद पण्डित मुकेश त्रिवेदी के अनुसार ज्योतिष शास्त्र का उद्भव आज से कई हजारों वर्ष पहले हुआ था। यह अपनी प्रमाणिकता के कारण पूर्व काल में ही तीन स्कन्धों में विभक्त हुआ था। जिसमें सिद्धान्त, संहिता एवं होरा शास्त्र हैं। किन्तु धीरे-धीरे ज्योतिष और प्रखर व विकसित होता चला गया। जिससे सिद्धान्त में ज्योतिषीय गणना को शामिल किया गया जिससे ग्रह नक्षत्रों की गति, पंचाग निर्माण आदि सहित काल के सूक्ष्म इकाइयों का सृजन किया गया हैं। 

ज्योतिष की प्रमाणिकता, घटनाएं देश-काल-समय आधारित
ज्योतिषविद् मुकेश त्रिवेदी के अनुसार संहिता खण्ड में ब्रह्माण्ड में घटित होने वाले घटना क्रम का उल्लेख किया हैं। जिसमें मेदिनी खण्ड, वर्षाखण्ड तथा शकुन एवं लक्षण विज्ञान का वर्णन किया गया हैं। होरा शास्त्र व्यक्ति के जीवन से मृत्यु तक होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का वर्णन करता हैं। जिसे फलित ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता हैं। इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र का क्रमिक विकास होता चला गया हैं। और आज भी हम इसके उपयोग से लाभान्वित हो रहे हैं। ज्योतिष के पूर्व के प्रवर्तकों में पराशर, नारद, जैमिनी, वराहमिहिर आदि अनेकानेक नामचीन ऋ षि हैं। जिन्होंने इस शास्त्र को अधिक सारगर्भित व उपयोगी बनाने में अपना योगदान दिया हैं। ज्योतिष शास्त्र युगों से अपनी सटीक भविष्यवाणी के लिए मशहूर रहा हैं। आज भी भारतीय पंचागों में दिए गए प्रतिदिन के सूर्योंदय व सूर्यास्त के समय सहित सूर्य व चंद्र ग्रहण की घटनाएं उस देश व काल में निर्धारित समय पर होती है। जिससे आज का विज्ञान जगत भी आश्चर्य में हैं। अर्थात् काल गणना ही नहीं, अपितु फलित के क्षेत्र में ऐसी अनगिनत घटनाएं हैं, जो क्रमश: सत्य हुई हैं, जिससे ज्योतिष शास्त्र स्वत: ही प्रमाणित हैं। व्यक्ति जीवन में जन्म, रोग, प्रगति, शादी, विवाह, पद, प्रतिष्ठा, संतान, मित्र, शत्रु आदि अनेक विषयों की अनेकों भविष्यवाणियां अक्षरश: सत्य हुई है। जिससे आज भी यह शास्त्र प्रमाणित एवं प्रमाणिक हैं।

ज्योतिष शास्त्र मानव कल्याण की अनुपम विद्या
ज्योतिष शास्त्र मानव कल्याण की एक अनुपम विद्या हैं। जिससे व्यक्ति अपने जीवन में घटित होने वाली सुखद व दुखद घटनाओं का पूर्व में पता लगा लेता हैं। अर्थात आज हम भले ही विकास के उच्च स्तर पर हो पर बिना ज्योतिष के हमारा जीवन पंगु सा प्रतीत होता हैं। अर्थात हम अनेक भयावह घटनाओं से ज्योतिष के माध्यम से ही बच सकते हैं और आने वाले जीवन को सुखद व सुन्दर बना सकते हैं। अर्थात ज्योतिष शास्त्र की उपयोगिता प्रत्येक व्यक्ति के लिए प्रत्येक युग में रहेगी। चाहे वह जिस देश की सीमा हो, जिस जाति या धर्म का हो, उसे ज्योतिषीय पहलुओं की अनदेखी निश्चित ही भारी पड़ सकती हैं। जब से इस धरा पर मानव अवतरित हुआ हैं, तब से आज तक जीवन को सुखद व समृद्ध बनाने की नाना प्रकार की चुनौतियां उसके सामने आती रही हैं। चाहे व क्रमिक घटनाएं हो या फिर आकस्मिक घटनाएं हो या फिर कुछ अन्तराल के बाद घटने वाली घटनाएं या बीमारियां हो, उनसे मानव सदैव दो-चार होता रहा हैं। मानव जीवन न केवल दुर्लभ हैं, बल्कि अनमोल भी हैं। 

सही उपयोग से जीवन को सुखी बनाया जा सकता हैं
भारत भूमि में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चतुरविधि पुरूषार्थ को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया हैं। जो प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के उद्देश्यों की ओर इंगित करते हैं। किन्तु बिना ज्योतिष के उपयोग के न तो मानव जीवन सुखी हो सकता हैंऔर न ही चतुर विधि पुरूषार्थ को प्राप्त किया जा सकता हैं। अर्थात जीवन को सुखी व सम्पन्न बनाने हेतु हमें संबंधित पहलुओं की पड़ताल संबंधित विशेषज्ञ आचार्यों द्वारा करवानी चाहिए। जैसे किसी के जन्मांक में कौन से ग्रह नक्षत्रों का शुभाशुभ प्रभाव चल रहा हैं। इंसान किस ग्रह नक्षत्र का उपाय व जाप पूजन करें। जिससे उसके द्वारा उसे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त हो और संबंधित क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित करने में सफलता हो। अर्थात यदि व्यक्ति इन छोटी-छोटी किन्तु उपयोगी बातों को ध्यान मे रखें, तो वह अपने परिवार के सहित सुखी जीवन बिताने में कामयाब रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के द्वारा मानव जीवन को उपयोगी व सुखद बनाने क्रम अति प्राचीन हैं। धरा में मानवता के कल्याण हेतु ज्योतिष शास्त्र का प्रयोग होता चला आ रहा हैं। चाहे वह आंधी, तूफान, वर्षा, हिमपात, उत्पादन, जल की बात हो या फिर व्यक्ति के जीवन की व्यक्तिगत घटनाएं हो। ज्योतिषीय ज्ञान के द्वारा ही इन घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने तथा संबंधित घटनाओं से बचने में सहयोग प्राप्त होता हैं। अर्थात् हमें अपने व अपने परिवार के हितार्थ जन्मांक के विविध शुभाशुभ पहलुओं का पता लगाना चाहिए और समय रहते उनका उपचार करना ही चाहिए।

ज्योति : बालिकाओं के सशक्त पहलू को दर्शाती मार्मिक फिल्म

घनश्याम डी रामावत
समूचे देश में महिलाओं को पुरूषों के बराबर दर्जा दिए जाने की बढ़ चढक़र दुहाई दी जाती हैं, किन्तु व्यवहारिक तौर पर जब नजर दौड़ाते हैं तो यह बहुत कम दिखाई देता हैं। आज भी देश के कई प्रांतों में काबिल लड़कियों को उनके माता-पिता पढ़ाई और कुछ खास हटकर करने को प्रोत्साहित नहीं करते बल्कि यदि लडक़ी कुछ करने की सोचती भी हैं तो उनको रोक टोक कर किनारे कर दिया जाता हैं। मगर एक कड़वा सच यह भी कि जिन लड़कियों में कुछ कर गुजरने की अटूट चाहत/प्रबल इच्छा होती वो रोक प्रतिरोध के बावजूद भी उस मुकाम पर पहुंचकर ही दम लेती हैं, जिनकी वह हक़दार हैं। फिल्म ‘ज्योति’ ऐसी ही एक कहानी हैं जो समाज की हकीकत को हर आम के सामने रखती हैं अपितु लड़कियों के प्रति समाज की सोच को पूरी सकारात्मकता के साथ प्रेरणादायी स्वरूप में लोगों के समक्ष पेश करती हैं। फिल्म राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहनेवाली एक नवयौवना ‘ज्योति’ की सच्ची दास्तान हैं।

‘ज्योति’ राउडी रोशनी प्रॉडक्शन की सशक्त फिल्म
राउडी रोशनी प्रॉडक्शन के बैनर तले बनी फिल्म का जोधपुर में ग्रांड प्रीमियर हुआ तो निर्मात्री-अभिनेत्री रोशनी टाक से मिलने का मौका मिला। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो फिल्म के बारे में विस्तार से जानने को मिला। रोशनी टाक के अनुसार ‘ज्योति’ अपने माता पिता के साथ राजस्थान के एक पिछड़े गांव में रहती हैं और अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान हैं। उसके पिता गांव के धनाढ्य परिवार  के खेतों पर किसान का काम करते हैं और मां उसी परिवार में चौका बर्तन यानी घरेलू काम करके अपना गुज़ारा करते हैं। गरीबी के हद पर रहकर भी ज्योति में पढक़र असाधारण काम सीखकर अलग थलग मुकाम बनाने की चाहत हैं, मगर परिवार के सदस्यों के रुड़वादी होने की वजह से वह से वह छटपटा कर सही मौके की तलाश में रहती हैं। अचानक दिल्ली से आया उसकी मौसी का फोन उसमें आशा किरण को जन्म देता हैं। उसकी कुछ कर गुजरने की इच्छा को प्रबलता मिल जाती हैं। हुआ यूं कि ज्योति के मौसाजी की अचानक तबियत बिगड़ जाती हैं वह सहारे के लिए ज्योति को अपने पास बुला लेती हैं। अंधा क्या चाहे दो आंखे..। ज्योति घर बार का काम बढिय़ा कर अपनी मौसी का दिल जीत लेती हैं और उसे उसके मुताबिक तकनीकी काम सीखने का बढ़ावा देती हैं जिसके फलस्वरूप ज्योति कुछ ही समय में पारंगत मोबाइल रिपेयरिंग की टेक्नीशियन बन जाती हैं। गांव में वापस लौटकर उसकी योग्यता की ऐसी रोशनी फैलती हैं उसके वो मां बाप अपने आपको गौरान्वित महसूस करने लगते हैं जो कभी बेटे की कमी से दु:खी हुआ करते थे। राऊडी रोशनी प्रोडक्शन्स निर्मित आज की महिलाओं में तमाम रोड़ों के बीच अग्रसर होने के मुद्दे को साकार करने की सार्थक मुहिम हैं। 

रोशनी टाक अनुभवी अदाकारा, शीर्ष भूमिका निभाई
फिल्म निर्मात्री अभिनेत्री रोशनी टाक बॉलीवुड के साथ पिछले कई वर्षों से रचनात्मक क्षेत्र में कार्यरत हैं। अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने तारकनाथ का उल्टा चश्मा, चिडिय़ाघर, क्राइम पेट्रोल, जि़न्दगी एक भंवर आदि धारावाहिकों में छोटी किन्तु प्रभावी भूमिकाएं की हैं। इसके अतिरिक्त 200 टीवी कार्यक्रमों में एंकरिंग भी उनके वर्किंग खाते मे दर्ज हैं। हाल ही में रोशनी टाक ने नवाजुदीन सिद्दीकी और तनिष्का चटर्जी के साथ देख इंडियन सर्कस और  सांवरिया सेठ (राजस्थानी) फीचर फिल्मों मे भी बढिय़ा अभिनय किये हैं। ज्योति में शीर्ष भूमिका रोशनी टाक ने ही निभाई हैं। अन्य प्रमुख भूमिकाओं में अशोक व्यास, अनिता माहेश्वरी, उर्मि भंडारी, मंजू सोनी, श्याम यादव, महेश महावर हैं। कथा-रोशनी टाक, पटकथा-संवाद-प्रेम बनिया, निर्देशक-शुभिराज, सह-निर्माता प्रशांत कौशल हैं। बकौल रोशनी टाक के ज्योति राजस्थान के एक छोटे से गांव में रहने वाली प्रतिभावान लडक़ी की सच्ची कहानी हैं जिसे उन्होंने आत्मसात किया हैं और पूरी ईमानदारी के साथ इस किरदार को पेश करने की कोशिश की हैं।