घनश्याम डी रामावत
राजस्थान में सत्तारूढ़ वसुंधरा सरकार के मौजूदा बजट सत्र पर सबकी निगाहें हैं। इसलिए, क्योंकि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और हाल ही उप चुनावों में करारी हार से परेशान वसुंधरा सरकार का यह चुनावी बजट हैं। पेश होने वाले बजट की अहमियत इसलिए भी हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दो लोकसभा सीटों और एक विधान सभा सीट पर हुए उप चुनाव में बीजेपी की करारी हार हुई हैं। हार के बाद से ही चर्चाएं आम हैं कि क्या सरकार बजट के जरिये नाराज लोगों को साध पाएंगी? दूसरा यह कि क्या मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे हार की वजह बने लोगों को मना पाएंगी? बहरहाल! राजस्थान में अजमेर व अलवर लोकसभा के साथ मांडलगढ़ विधानसभा उप चुनाव में बीजेपी प्रत्याशियों की करारी हार से वसुन्धरा राजे की जबरदस्त किरकिरी हुई हैं तथा व्यक्तिगत रूप से उनकी साख को नुकसान पहुंचा हैं, यह कड़वी सच्चाई हैं।
नाराज लोगों की फेहरिश्त लम्बी, मनाना आसान नहीं
नाराज जनता बजट से कितनी खुश होंगी ये तो बजट पेश होने के साथ ही साफ हो जाएगा, लेकिन भाजपा से छिटक कर दूर हो चुके मतदाताओं को मनाने की कवायद कितनी सफल होंगी, ये दिसम्बर में होने वाले चुनावों से ही साफ हो पाएगा। दरअसल नाराज लोगों की फेहरिश्त इतनी लम्बी हैं कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को उन्हें मनाने में ही लम्बा वक्त लग जायेगा। इन लोगों में बीजेपी के लिए प्राण वायु कहे जाने वाला संघ(आरएसएस) भी हैं, जिसकी उप चुनाव में रहस्यमय चुप्पी(विरोध कहें तो भी गलत नहीं) भी शामिल हैं, तो राम राज्य परिषद के जमाने से कांग्रेस विरोध का झंडा थामे परम्परागत राजपूत वोट बैंक का विरोध भी शामिल हैं। बीजेपी से नाराज लोगों की इस फेहरिश्त में संघ और राजपूत वोट बैंक ही नहीं, ब्राह्मण और वैश्य मतदाता भी शामिल हैं, जो या तो अनदेखी से नाराज हैं या फिर सरकार की आर्थिक नीतियों से बेहाल हो बीजेपी का चुनावों में हाल बिगाड़ चुके हैं। बीजेपी के अपने वोट बैंक समझे जाने वाले ब्राह्मण और वैश्य की नाराजगियां कुछ इस अंदाज में हैं कि उन्हें साधना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती हैं। ब्राह्मणों को तो सरकार नुमाईंदगी बढाकर शायद संतुष्ट भी कर दे, लेकिन बिगड़े व्यापार को पटरी पर लाने का मामला राज्य सरकार के बूते में भी नहीं। नाराज लोगों की फेहरिश्त में बीजपी के वह नेता भी हैं, जिन्होंने अपने-अपने इलाके में यह सोचकर भी विधायकों को निपटा दिया ताकि हार की सूरत में उनके टिकिट कट जाएं और विधान सभा चुनाव में टिकिट उनके हिस्से आ जाएं। ऐसे लोगों की तादाद ज्यादा हैं और टिकिट के अवसर उससे भी पांच गुना कम, अर्थात टिकिट एक को मिलेगा और टिकिट के चक्कर में ‘वोट की चोट’ करने वाले पांच गुना ज्यादा।
अशोक परनामी को वसुन्धरा राजे पर भरोसा
सरकार से नाराज इन लोगों को मनाने में सरकार कामयाब होगी या नहीं, ये विधान सभा चुनाव के नतीजों से साफ होगा। फिलहाल, बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी मानते हैं कि अपनेपन के सहारे सीएम राजे हर मुश्किल से पार पाने में सक्षम हैं। आशावादी नजरिये के साथ ही बीजेपी अब अपने से नाराज हो चुके लोगों को साधने की जुगत में हैं, लेकिन किसी न किसी वजह से नाराज ये लोग बजट और सरकार के कामकाज से खुश होंगे, मौजूदा परिस्थितियों के चलते फिलहाल तो कहना आसान नहीं।
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