Saturday 6 January 2018

देशी घाणी : तेल निकालने की परंपरागत तकनीक

घनश्याम डी रामावत
मौजूदा दौर में बाजार में भले ही तेल निकालने की अत्याधुनिक मशीने आ गई हैं किंतु सदियों से तेल निकालने की परम्परागत तकनीक अर्थात देशी घाणी को लेकर लोगों को भरोसा व इससे तैयार तेल को काम में लेने में जरा भी कमी नहीं आई हैं। हां! वर्तमान उच्च स्तरीय टेक्नोलोजी के जमाने में बैल के माध्यम से चलने वाली एवं परम्परागत लघु उद्योग के रूप में विख्यात ‘देशी घाणियों’ की संख्या में जरूर कमी आई हैं, किन्तु इसके माध्यम से तैयार होने वाले तेल/अन्य उत्पादों को लेकर गुणवत्ता की दृष्टि से लोगों के बेशुमार भरोसे के चलते ये आज भी मजबूती से अपने अस्तित्व को बरकरार रखे हुए हैं। देशी घाणी के रूप में परम्परागत इस लघु उद्योग को सुरेश भाई तेली जैसे लोगों से भी ताकत मिली हैं। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में रायपुर तहसील अंतर्गत खूटियां गांव के रहने वाले सुरेश भाई पिछले करीब 15 वर्षों से इस परम्परागत तकनीक को जिंदा रखने की कवायद के तौर पर देशी घाणी लघु उद्योग से जुड़े हुए हैं। सुरेश भाई तेली की ओर से वर्तमान में देश के विभिन्न भागों में कुल 42 घाणियों का संचालन किया जा रहा हैं। राजस्थान, महाराष्ट्र व गुजरात में अनेक स्थानों पर ‘देव सेना’ देशी घाणी के नाम से यह लघु परम्परागत उद्योग संचालित हैं। सभी जगहों पर सुरेश भाई की ओर से नियुक्त कार्मिकों द्वारा सेवाएं दी जा रही हैं। इनके द्वारा सर्दी की ऋतु में नवम्बर से जनवरी तक इन घाणियों को स्थापित कर लोगों को इससे निर्मित उत्पाद सुलभ कराए जाते हैं। सुरेश भाई की घाणियों से तैयार तिली के तेल व सूखे मेवे से युक्त तिलकुटे को शुद्धता व गुणवत्ता की दृष्टि से सर्वाधिक पसंद किया जाता हैं। यहीं कारण हैं देवसेना ब्रांड के रूप में यह उद्योग अपनी मौजूदगी वर्षो से कायम किए हुए हैं। 

बेहतरीन गुणवत्ता वाला परम्परागत लघु उद्योग
देशी घाणी में बैलों से कोल्हू चलाकर तेल निकाला जाता हैं। इसे कच्ची घाणी का तेल भी कहा जाता हैं। आज के दौर में बैलों की जगह मशीनों ने ले ली हैं और अनेक स्थानों पर बैल की जगह मोटरसाईकिल से भी कच्ची घाणियां संचालित होने लगी हैं। बाजार में इस समय देशी घाणी अर्थात कच्ची घाणी के नाम से अनेक ब्रांडेड तेल उपलब्ध हैं किन्तु शुद्धता व गुणवत्ता की लिहाज से विश्वासपूर्वक कुछ भी नहीं कहा जा सकता। देशी घाणी में आंखों के सामने तेल निकाल कर दिया जाता हैं और चूंकि यह परम्परागत तकनीक/तरीका हैं, पूरी प्रक्रिया लोगों को सुखद अनुभूति का अहसास भी कराती हैं। सुरेश भाई के अनुसार वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मिशन ‘स्किल इंडिया’ व ‘मेक इन इंडिया योजना’ को सर्वाधिक पसंद करते हैं व सम्मान करते हैं। उनके अनुसार ‘देवसेना देशी घाणी उद्योग’ इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं, जिसके माध्यम से वे अनवरत तरीके न केवल देशी, शुद्ध व गुणवत्तायुक्त उत्पाद लोगों का उपलब्ध कराने का कार्य कर रहे हैं अपितु परम्परागत लघु उद्योग के रूप में देशी घाणी को जिंदा रखने/अस्तित्व बनाए रखने की कवायद में जुटे हुए हैं। ज्ञातव्य रहें, सर्दी के मौसम में तिली के तेल की सर्वाधिक खपत रहती हैं। पश्चिमी राजस्थान में विशेष रूप से बाजरे की रोटी(सोगरा), तिली का तेल व गुड़ सर्दी की खास रेसिपी हैं। बाजरी से निर्मित खींच में भी तिली का तेल प्रयुक्त होता हैं। देशी घाणी के माध्यम से तैयार सूखे मेवे से युक्त ‘तिलकुटा’ को भी लोगों द्वारा बेहद पसंद किया जाता हैं। देशी घाणी में प्रयुक्त होने वाला तिल खास तौर से उदयपुर जिला अंतर्गत ऊंझा मंडी से मंगवाया/खरीदा जाता हैं।

आयुर्वेद के अनुसार भी खास महत्व
मनुष्य के लिए ईश्वर का श्रेष्ठ वरदान हैं ‘तिल’। तिल सही मायने में शरीर को तन, मन और आत्मा के बीच संतुलन बनाकर स्वास्थ्य में सुधार करता हैं। तिल और तिली के तेल के सेवन से न केवल उपचार होता हैं बल्कि यह जीवन को लंबा और खुशहाल बनाता हैं(आयुर्वेद के अनुसार)। तिली के तेल के सेवन से वात्, पित और कफ जैसे मूल तत्वों में संतुलन बना रहता हैं व बीमारी इंसान तक नहीं पहुंचती हैं। गुणवत्ता व पोष्टिकता की दृष्टि से तिली का तेल सिर्फ देशी कच्ची घाणी(लकड़ी की घाणी) से निकला हुआ ही इस्तेमाल करना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार तिल एक महा औषधि हैं जो विभिन्न असाध्य रोगों से बचाव करता हैं, यहां तक कि यह मृत कोशिकाओं को जीवित करने का काम करता हैं। ऐसे में तेल की शुद्धता व गुणवत्ता के महत्व को सहज ही समझा जा सकता हैं। साथ ही इन्हें बरकरार रखने का सशक्त माध्यम ‘देशी घाणी’ की महत्ता को भी। ‘देवसेना देशी घाणी उद्योग’ के बैनर तले जोधपुर में इस समय छ: जगहों पर घाणियां संचालित हो रही हैं। कायलाना चौराहा/डऊकिया अस्पताल के निकट स्थापित देशी घाणी पर कार्य कर रहे कार्मिक नारायण गाडरी व रोशन के अनुसार सूर्यनगरी जोधपुर में उनके अलावा भगत की कोठी(रेलवे स्टेशन), जीवन ज्योति अस्पताल के पास, ट्रांसपोर्ट नगर, पाली मार्ग पर श्री हनुमान मंदिर के निकट तथा रामसागर चौराहे के पास देशी घाणियां संचालित हो रही हैं।

Tuesday 2 January 2018

स्वास्तिक : धनात्मक ऊर्जा/सुख समृद्धि की गारंटी!

घनश्याम डी रामावत
घर का मुख्य द्वार बेहद खास होता हैं क्योंकि यहीं से हमारे घर में सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जाएं प्रवेश करती हैं। यदि घर में कोई हमेशा बीमार रहता हैं या कोई परेशानी चल रही हैं, तो इसका कारण घर के मुख्य द्वार में वास्तु दोष हो सकता हैं। इससे बचने के लिए घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक का चिह्न बनाएं।

किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यत: किसी भी पूजा-अर्चना में घर के मुख्य द्वार पर या बाहर की दीवार पर स्वास्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। स्वास्तिक श्रीगणेश का ही प्रतीक स्वरूप हैं। किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वास्तिक के नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: स्वास्तिक का पूजन करने का अर्थ यही हैं कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश का चित्र या स्वास्तिक बनाने से घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती हैं। ऐसे घर में हमेशा भगवान श्रीगणेश की कृपा रहती हैं और धन-धान्य की कमी नहीं होती। जानी मानी वास्तु पिरामिड विशेषज्ञ अर्चना प्रजापति के अनुसार स्वास्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक हैं, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती हैं।

घर में सुख और समृद्धि के लिए यह करें
वास्तु पिरामिड विशेषज्ञ अर्चना प्रजापति के अनुसार यदि घर के सामने पेड़ या खंभा हैं, तो यह एक अशुभ संकेत हैं। इसके दुष्प्रभावों को रोकने के लिए घर के मुख्य द्वार पर रोज स्वास्तिक बनाएं। घर के मुख्य द्वार के आगे गड्ढा हैं, तो परिवार के सदस्यों का मानसिक पीड़ा से गुजरना तय हैं। इसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए उस गड्ढे को भर दें। घर के मुख्य द्वार को हमेशा साफ-सुथरा और सुंदर रखना चाहिए, इससे घर में सुख और समृद्धि आती हैं। मुख्य द्वार पर पानी से भरा कांच का बर्तन रखें, जिसमें ताजे खशबू वाले फूल रखें। इससे घर में सकारात्मकता आएगी। पीपल, आम या अशोक के पत्तों की माला बनाकर प्रवेश द्वार पर बांधें। इससे नकारात्मकता दूर होती हैं। जब यह पत्तियां सुख जाएं तो इन्हें बदल दें। 

लक्ष्मी जी की तस्वीर लगाएं
धन लाभ के लिए प्रवेश द्वार पर लक्ष्मी जी की तस्वीर लगाएं, लेकिन इनके आस-पास जूते-चप्पल नहीं रखें। प्रवेश द्वार पर लक्ष्मी जी के पैर बनाएं, जो अंदर की तरफ जा रहें हों। इससे घर में समृद्धि आती हैं। प्रवेश द्वार पर शुभ लाभ का निशान बनाएं, इससे घर में रोग कम होते हैं।