Sunday 18 March 2018

‘शनि’ अमावस्या विशेष : सप्तम ग्रह के रूप में मान्यता

घनश्याम डी रामावत
नवग्रहों में शनि को सप्तम ग्रह के रूप में मान्यता हैं। लिखा हैं-‘अथ खेटा रविश्चन्द्रो मंगलश्व बुधस्तथा। गुरू: शुक्र: शनि राहु: केतुश्चेते यथाक्रमम्’ रवि, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु व केतु ये क्रम से नवग्रह हैं। शनि के नाम-मंद, कोण, यम और कृष्ण हैं। शनि क्रूर ग्रह हैं। तत्र्राक शनि भूस्वुत्रा: क्षीणेन्दु-राहु-केतव:। क्रूरा:, शेषग्रहा सौम्या क्रूर: क्रूर-युतोबुध:। इन ग्रहों में रवि, शनि, मंगल, क्षीणचन्द्र, राहु-केतु को क्रूर ग्रह में लिखा गया हैं जिसमें शनि भी हैं। छाया सुनुश्चेदु:खद: से शनि को दु:खस्वरूप कहा हैं। शनि को श्रमिक या भृत्य का कारक कहा गया हैं।

शनि का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को 
जोधपुर स्थित श्री सिद्धनाथ महादेव मंदिर दादा दरबार में आचार्य के रूप में सेवाएं दे रहे रामेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी ज्योतिष विषारद पण्डित मुकेश त्रिवेदी के अनुसार शनि को कृष्ण वर्ण कहा गया हैं। शनि स्त्री-पुरुषादि में नपुंसक हैं और वायुतत्व हैं। शनि तमोगुणी हैं। शनि का स्वरूप दुर्बल, लंबादेह, पिंगल नेत्र, वात प्रकृति, स्थूल दंत, आलसी, पंगु, कठोर रोम वाला कहा हैं। शरीर में स्नायुओं का शनि स्वामी हैं। कसैला रस शनि का हैं। शनि पश्चिम दिशा का स्वामी हैं। शनि रात्रि बली हैं। शनि कृष्ण पक्ष में, दक्षिणायन में बली होते हैं। कुत्सित वृक्षों का शनि स्वामी हैं। नीरस वृक्षों की उत्पत्ति शनि से होती हैं। शनि शिशिर ऋ तु का स्वामी हैं। वृद्धस्वरूप हैं। शनि पुष्प, अनुराधा व उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र का स्वामी हैं। राशियों में मकर-कुंभ राशि का अधिपति हैं। शनि के बुध, शुक्र मित्र ग्रह हैं। सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रु हैं। गुरू सम हं। शनि जन्माक्षर में स्थित अपने स्थान से 3, 7, 10वें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं। भगवान शनिदेव का जन्म ज्येष्ठ माह की अमावस्या को हुआ था, इसलिए इस दिन का खास महत्व हैं।

गति कम/38 से 30 वर्ष में पूरा भ्रमण
ज्योतिष विषारद पण्डित त्रिवेदी के अनुसार नवग्रहों में शनि आकाश में सबसे अधिक दूरी पर होने से, उसका वृत्त मार्ग बड़ा हैं इसलिए शनि की गति कम हैं। उसको पूरा चक्र भ्रमण में लगभग 38 से 30 वर्ष लगते हैं अर्थात 12 राशि के भ्रमण में लगभग 28 से 30 वर्ष लगते हैं। एक राशि का भ्रमण काल औसत 2।। वर्ष होता हं। दूरबीन से देखने पर शनि अन्य ग्रहों की अपेक्षा सबसे सुंदर दिखाई देता हैं। उसके पिंड के चारों ओर एक सुंदर वलय दिखाई देता हैं। अति दूर पर होने के बाद भी यह दु:खकारक शनि प्राणियों को संकट देता रहता हैं। ढैय़ा और साढ़ेसाती के रूप में इसका प्रभाव मनुष्यों पर होता है। लघु कल्याणी अर्थात ढ़ैया शनि, बृहत्कल्याणी अर्थात साढ़ेसाती। अपनी राशि से शनि की स्थिति 12वीं, पहली व द्वितीय होने पर साढ़ेसाती होती हैं। शनि की चतुर्थ-अष्टम स्थिति लघु कल्याणी के रूप में मानी जाती हैं। 

दोष निवृति के लिए 23 हजार शनि जाप
शनि अपनी राशि का मित्र हो और कुंडली में उत्तम स्थान या मित्र, उच्च व स्वराशि में स्थित हो तो साढ़ेसाती का प्रभाव विशेष प्रतिकूल नहीं होता हैं। शनि दोष निवृत्ति के लिए शनि के पदार्थों का दान करें, यथा नीलम, सुवर्ण, लोहा, उड़द, काली तिल, तेल, कृष्ण वस्त्र, काले या नीले पुष्प, कस्तूरी, काली गौ, भैंस का दान करें। शनि को काले तिल, सूरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा एवं खिल्ला आदि वनस्पतियों से स्नान कराया जाता हैं। शनि दोष निवृत्ति के लिए ‘ॐ खां खीं खूं स: मंदाय नम:’ बीज मंत्र का जाप करें अथवा पुराणोक्त मंत्र का जाप (नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छाया मार्तण्डसंभूतं तम नमामि शनैश्चरम्) करना चाहिए। इस मंत्र का जाप 23 हजार बार करना चाहिए। कलियुग चतुर्गुणित 92 हजार संख्या में करें। तेल का दीपक भी लगाएं। काली तिल से हवन करें।

मानवीय मूल्यों की अनदेखी चिंताजनक

घनश्याम डी रामावत
देश में इस समय जिस तरह का माहौल हैं अर्थात लोगों की जिस तरह की जीवन जीने की शैली हो गई हैं, कहीं न कहीं मानवीय मूल्य पीछे छूटते से प्रतीत होने लगे हैं। हर कोई अपने आप में मस्त हैं, कौन क्या कर रहा हैं/उसका अन्य से कोई वास्ता नहीं/सरोकार नहीं/हस्तक्षेप नहीं। विशुद्ध रूप से यहीं कारण हैं कि दिन प्रतिदिन अपराधों का ग्राफ तो बढ़ ही रहा हैं, संस्कारों का विकृत स्वरूप अर्थात नैतिक पतन के अनेक मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। अब समय आ गया हैं जब मानवीय मूल्यों की संरक्षा हेतु सभी को पूरी ताकत/दिल से आगे आना होगा। अब भी नहीं संभले तो मानवीय मूल्यों/संस्कारों की अनदेखी आगे चलकर सभी को बेहद भारी पडऩे वाली हैं। 

किसी भी इंसान के जीवन में मूल्यों का अहम योगदान रहता हैं क्योंकि इन्हीं के आधार पर अच्छा-बुरा या सही-गलत की परख की जाती हैं। इंसान के जीवन की सबसे पहली पाठशाला उसका अपना परिवार ही होता हैं और परिवार समाज का एक अंग हैं। उसके बाद उसका विद्यालय, जहां से उसे शिक्षा हासिल होती हैं। परिवार, समाज और विद्यालय के अनुरूप ही एक व्यक्ति में सामाजिक गुणों और मानव मूल्यों का विकास होता हैं। प्राचीन काल के भारत में पाठशालाओं में धार्मिक शिक्षा के साथ मूल्य आधारित शिक्षा भी जरूरी होती थी। लेकिन वक्त के साथ यह कम होता चला गया और आज वैश्वीकरण के इस युग में मूल्य आधारित शिक्षा की भागीदारी लगातार घटती जा रही हैं। सांप्रदायिकता, जातिवाद, हिंसा, असहिष्णुता और चोरी-डकैती आदि की बढ़ती प्रवृत्ति समाज में मूल्यों के विघटन के ही उदाहरण हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद-15 किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव की मुखालफत करता हैं। लेकिन सच यह हैं कि संविधान लागू होने के पैंसठ साल बाद भी हमारे विद्यालयों में जाति, धर्म, भाषा और लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाले उदाहरण आसानी से मिल जाएंगे। आज भी अक्सर देखा जाता हैं कि विद्यालय में पानी भरने के अलावा सफाई का काम लड़कियों से ही कराया जाता है। अध्यापक पीने के लिए पानी कुछ खास जाति के बच्चों को छोड़ कर दूसरी जातियों के बच्चों से ही मंगवाते हैं। ऐसे उदाहरण भी अक्सर देखने में आ जाते हैं कि विद्यार्थी मिड-डे-मील अपनी-अपनी जाति के समूह में ही बैठ कर खाते हैं। स्कूल में कबड्डी जैसे खेल सिर्फ लडक़े खेलते हैं। इस प्रकार के अनेक उदाहरण हमारे आसपास के स्कूलों में देखने को मिल जाएंगे।

एनसीईआरटी द्वारा की गई हैं सार्थक पहल
हाल ही में नई दिल्ली स्थित एनसीईआरटी ने वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक मूल्यों की सूची तैयार की हैं। इसका बदलाव संदर्भित प्राथमिक स्तर की पाठ्यपुस्तकों में भी देखा जा सकता हैं। कुछ साल पहले तक पाठ्य पुस्तकों में भी भेदभाव करने वाले चित्र नजर आते थे, मसलन, झाड़ू लगाती हुई लडक़ी, खाना बनाती औरतें, हल चलाते हुए किसान और उपदेश देते गुरू आदि। लेकिन पाठ्य पुस्तकों में बदलाव के बाद इन चित्रों में गुणात्मक बदलाव देखने को मिलता हैं। मसलन, सफाई करते हुए लडक़े और खेलती हुई लड़कियां आदि। पाठ्य-पुस्तकों में जाति, धर्म और लिंग आधारित चित्रों में जो रूढि़बद्ध जड़ता थी, उससे आगे बढ़ कर अब तस्वीर का दूसरा पहलू भी सामने आ रहा हैं। यह बदलाव केवल चित्र के स्तर पर नहीं, बल्कि विषय-वस्तु और निर्देशों के स्तर पर भी देखा जा सकता हैं। लेकिन यहां ध्यान देने योग्य बात यह हैं कि जिन मूल्यों की बात पाठ्य-पुस्तक करती हैं, उनका उपयोग शिक्षक विद्यालय में कैसे कर रहा हैं? यह एक अजीब विडंबना हैं कि पाठ्यपुस्तकों से शिक्षाविदों ने सामाजिक और मानवीय भेदभाव को अभिव्यक्त करने वाले चित्रों को तो बदल दिया, मगर विद्यालयी वातावरण में वह आज भी उसी शक्ल में मौजूद हैं। आमतौर पर शिक्षक बच्चों को पाठ पढ़ाना और नैतिक सीख देना ही काफी समझते हैं और विद्यार्थी के व्यवहार में मूल्यगत बदलाव पर कम ध्यान देते हैं, क्योंकि जिस जाति या समाज से शिक्षक संबंध रखता हैं, उसके मुताबिक उसकी अपनी कुछ मान्यताएं होती हैं।

सभी को मिल-जुल कर कार्य करने की जरूरत
उन अतार्किक जड़बद्ध सामाजिक-धार्मिक पूर्वाग्रहों की वजह से शिक्षक तर्कशील होकर नहीं सोच पाता हैं, क्योंकि उस पर जाति, धर्म और समाज विशेष की पहले से बनी धारणाएं हावी रहती हैं। उन्हीं रूढि़बद्ध मान्यताओं के अनुसार वह चलना चाहता हैं। लेकिन जब तक शिक्षक अपने आपको तर्क की कसौटी पर रख कर नहीं सोचेगा, तब तक वह न तो अपने व्यवहार में परिवर्तन ला सकता हैं और न ही विद्यार्थियों में मूल्यों के प्रति आस्था विकसित कर सकता हैं। एक शिक्षक का फर्ज बनता हैं कि वह पाठ्य-पुस्तकों में दिए गए ‘मूल्यों’ का महत्व समझे, उन्हें अपने जीवन व्यवहार का हिस्सा बनाए, फिर बच्चों के दैनिक व्यवहार में लाने का प्रयास करें। स्कूलों से समाज की अपेक्षा होती हैं कि वह तर्कशील मनुष्य प्रदान करे। इसलिए स्कूलों में ही जरूरी मानव मूल्यों की शिक्षा नहीं दी गई तो कहीं न कहीं राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारी निभाने से हम चूक जाएंगे। लिहाजा, जरूरी हैं कि पाठ्य-पुस्तकों में उल्लेखित मूल्यों के प्रति शिक्षक समाज चिंतनशील हो, उन्हें बच्चों के दैनिक जीवन में लेकर आए। मेरा तो यह मानना हैं कि इस मामले में समाज के सभी तबकों को/अभिभावकों को भी पूरे मन से आगे आना होगा और मानवीय मूल्यों की रक्षा/सुदृढ़ स्थापना हेतु कार्य करना होगा, तभी जाकर अपेक्षित सफलता हाथ लग सकेगी और एक सुखी, समृद्ध/संस्कारी समाज की स्थापना हो सकेगी।

Tuesday 13 March 2018

बाऊजी की पुण्य तिथि


घनश्याम डी रामावत
आज बाऊजी की पुण्य तिथि हैं। देखते ही देखते कैसे 8 साल बीत गए, मालूम ही नहीं चला। ऐसा प्रतीत होता हैं, मानो कल की ही बात हैं। 12 मार्च 2010/यकीनन बेहद क्रूर दिवस था यह मेरे लिए.. मैं इसे जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता। दोस्तों! ईश्वर द्वारा प्रदत्त इस जीवन में मेरे लिए सबसे प्रिय/अनमोल/सम्मानीय अर्थात जिसे मैं अत्यधिक प्रेम व स्नेह करता था/चाहता था, वो बाऊजी थे। बाऊजी मेरे लिए एक ऐसी चाहत थे जिसे मैं कभी भी खोना नहीं चाहता था या यूं कहूं उनको खोना मुझे बर्दाश्त/स्वीकार्य नहीं था। किंतु ईश्वर के द्वारा बनाए नियमों के आगे इंसान की चाहत/सिद्धांत/पसंद/नापसंद क्या वक्त रखती हैं, बाऊजी को छीन लिया नियति के क्रूर हाथों ने। यह वाकई विडम्बना ही थी कि जीवनभर अस्पताल और खासकर इंजेक्शन से दूरी बनाकर रखने वाले बाऊजी का अंतिम समय अस्पताल में गुजरा। फेफड़ों में इंफेक्शन की वजह से करीब तीन दिन तक वे जोधपुर एमडीएम अस्पताल की आपातकालीन इकाई में भर्ती रहे, चिकित्सकों के अथक प्रयासों पर मर्ज भारी पड़ा/बाऊजी ने अपनी अंतिम विदाई यही से ली। बाऊजी द्वारा इस जहां से रूखसत हो जाने के बाद पैदा हुआ सन्न कर देने वाला वातावरण/एक अलग तरह की शून्यता मेरे जीवन में आज भी यथावत हैं।  

बाऊजी परिवार में सभी लोगों को बेहद प्यार करते थे/मुझसे कुछ अधिक (ऐसा मेरा मानना हैं)। सभी की जरूरतों का/पसंद और नापसंद का अत्यधिक ख्याल रखते थे। दूसरों को कष्ट/तकलीफ देना उनके स्वभाव में नहीं था, परिजनों को भी नहीं। सकारात्मक सोच/नैतिकता व अपने सिद्धांतों पर चलकर जीवन जीने वाले अद्भुत व्यक्तित्व थे बाऊजी। सरकारी सेवा में होने के बावजूद अपने स्वाभिमान से कभी समझौता नहीं किया उन्होंने। शिक्षा विभाग में अध्यापक और बाद में प्रधानाध्यापक रहें बाऊजी। निवास स्थान से विद्यालय करीब चालीस किलोमीटर दूरी पर था, सेवानिवृति तक अनवरत रूप से साईकिल पर आना-जाना करते रहें(मारवाड़ जंक्शन(पाली) पंचायत समिति क्षेत्र सहित सोजतरोड़/कंटालिया/मुसालिया/बोरनडी/मेलाप इलाकों में भंवरलाल जी साईकिल वाले मास्टर साहबके रूप में लोग याद करते हैं बाऊजी को)। कभी भी नजदीकी स्थानांतरण अथवा किसी भी निजी समस्या के चलते यहां वहां पोस्टिंग हेतु विभाग के समक्ष आवेदन नहीं किया। यह बाऊजी के अपने अनूठे सिद्धांत/कार्य शैली/जीवन पद्धति थी। बाऊजी की इस जीवन पद्धति और सिद्धांतों का भरपूर असर मुझ सहित पूरे परिवार पर पड़ा हैं। व्यक्तिगत रूप से मेरा मौजूदा व्यक्तित्व/जीवन शैली बाऊजी द्वारा प्रदत्त संस्कारों व आशीर्वाद का ही प्रतिफल हैं।

संस्मरण बहुत हैं पर लिखने का हौसला नहीं हैं। आंखे डबडबानें लगी हैं। बाऊजी की स्मृतियां/उनकी परवरिश/सानिध्य में बीता वक्त मेरी कलम/लेखनी पर भारी पडऩे लगा हैं। गला रूंधा सा जा रहा हैं। अनायास ही अश्रुओं ने अपना आधिपत्य जमा लिया हैं। सकारात्मक सोच के साथ हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहना/सभी को हंसते-हंसाते रहना और हौसला आफजाई करना.. अद्भुत/शालीन/सादगीपूर्ण/संजीदा व्यक्तित्व था बाऊजी का। अपनी नियमित दिनचर्या के बीच स्वयं से अधिक परिजनों की अर्थात हम सभी की खुशियों की चिंता करने वाले बाऊजी अब इस जहां में नहीं हैं, किंतु उनका आशीर्वाद/उनके दिए संस्कार/मुझ सहित पूरे परिवार के सदस्यों के साथ हैं। बाऊजी के जाने से पैदा हुई शून्यता कभी खत्म होगी/ऐसा मैं नहीं मानता, हां! उनका आशीर्वाद/प्रदत्त संस्कार हमारे जीवन की अनमोल पूंजी हैं/इससे ही अब तक संबल मिला हैं और आगे भी यहीं ताकत जीवन जीने की राह को आसान बनाएगी, ऐसा मेरा मानना हैं। बाऊजी का प्रिय भजन या यूं कहे वो चंद पंक्तियां जो वह अक्सर गुनगुनाया करते थे-रे मन क्यूं अकर्म कर खोते हो, मिले ना बारम्बार शरीर..।और राजाओं के राजा यहां बजा गए हैं बाजा, बल-जल होई भस्म की ढ़ेरी/तेरा सुंदर सुगड़ शरीर..। बाऊजी ने वर्षों पूर्व इन पंक्तियों को चरितार्थ कर लिया और अनूठी अदृश्य शक्ति में विलीन हो गए।

किसी ने सच कहा हैं-पिता से ही बच्चों के ढ़ेर सारे सपने हैं/पिता हैं तो बाजार के सब खिलौने अपने हैं। इसे और बेहतर तरीके से अनुभूत करना हैं तो सिर्फ एक दिन के लिए अंगूठे के बगैर सिर्फ अंगुलियों से अपने सारे काम करके देखें/पिता की कीमत पता चल जाएगी। "पिता" जीवन हैं/सम्बल हैं/शक्ति हैं। सृष्टि में 'निर्माण' की अभिव्यक्ति हैं। पिता की लाठी कठोर अवश्य होती हैं, किंतु हमें गिरने नहीं देती..!! #In the current perspective, it's very important that।everyone। understand it seriously and live their life by assimilating it।🙏
Baau ji! We all are missing you too much.. 
#नमन/विनम्र आत्मीय श्रद्धांजलि/कोटि-कोटि प्रणाम!
(ब्लॉग 12 मार्च 2018 को प्रात: लिखा हुआ हैं, पोस्टिंग 13 मार्च अर्थात आज हुई हैं)

Friday 9 March 2018

यूपी में सपा-बसपा गठबंधन : मजबूरी का मिलन

घनश्याम डी रामावत
यूपी में जिस तरह से दो धुर विरोधी कहे जाने वाले समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में चुनावी गठबंधन हुआ हैं, उससे राजनीतिज्ञों व राजनीति को लेकर कहे जाने वाले सदाबहार वाक्य ‘राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं’ को ही बल मिला हैं। राजनीति वाकई राजनीति हैं। राजनीतिक मजबूरियां कई बार दुश्मनी को भूलने और चाहत बदलने को मजबूर कर देती हैं, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में यही हुआ हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने लोकसभा के दो उपचुनावों के लिए परस्पर हाथ मिलाया हैं ताकि भाजपा को टक्कर दी जा सके। इस राजनीतिक मिलन को भाजपा चुनौती मानती हैं अथवा नहीं/यह अलग विषय हैं लेकिन इतना तय हैं कि उसे गोरखपुर व फूलपुर संसदीय सीटें बचाने में कुछ अधिक जोर लगाना पड़ सकता हैं। 

पहले भी रहा हैं दोनों दलों के बीच गठबंधन
गोरखपुर की सीट मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व फूलपुर की सीट उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा से जुड़ी हैं। इन सीटों के चुनाव परिणामों का भारतीय राजनीति पर गहरा असर पड़े बिना नहीं रहेगा। अगर सपा-बसपा ने भाजपा को पटखनी दे दी तो फिर उनके बीच आगे गठबंधन की संभावना बनेगी और दूसरे राज्यों में कई दल अगले विधानसभा चुनावों व फिर लोकसभा चुनावों में गठबंधन की तरफ आगे बढ़ेंगे। अगर उप चुनावों में भाजपा ने अपने दम पर बाजी मार ली तो फिर गठबंधन की राजनीतिक को झटका लगेगा और संदेश यही जाएगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के प्रभाव व रणनीति से टक्कर लेना आसान नहीं हैं। इससे विपक्षी दलों में और निराशा बढ़ेगी। वैसे भी देखें तो बसपा की नीति उप चुनाव लडऩे की कभी नहीं रही हैं। सपा को समर्थन देकर इस हाथ ले, उस हाथ दे की नई नीति पर काम कर रही हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने दोनों संसदीय क्षेत्रों में सपा के उम्मीदवारों को समर्थन देने की घोषणा कर दी हैं। अपने समर्थकों को सपा को वोट दिलाने की अपील की गई हैं। इसके बदले में बसपा ने सपा के सामने मांग रखी हैं उसे राज्यसभा चुनावों में सपा अपने अतिरिक्त वोट दिलवाएगी। क्योंकि आगामी राज्यसभा चुनाव में बसपा की हैसियत अपने दम पर एक भी सीट जीतने की नहीं हैं। ऐसे ही सपा भी अपने स्तर पर दो उम्मीदवारों को भी राज्यसभा नहीं भेज सकती। यही वजह है कि सपा से सबसे अधिक दुश्मनी रखने वाली मायावती ने सपा के साथ कुछ आगे बढ़ाया है, यह सिर्फ मजबूरी का कारण है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव वैसे कई बार बसपा से गठबंधन की पेशकश सामने रख चुके हैं, लेकिन बसपा ने कभी उसका सकारात्मक उत्तर नहीं दिया। आज भी मायावती ने साफ कहा हैं कि भविष्य में गठबंधन की कोई संभावना नहीं हैं। स्पष्ट हैं कि यह तात्कालिक मिलन एक परीक्षण मात्र हैं। यदि यह सफल रहता हैं तो भविष्य की चिंता दोनों दलों को नजदीक ला भी सकती हैं। वैसे भी दोनों सपा-बसपा में पहले भी गठबंधन रहा हैं। 1993 में दोनों दलों ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। मुलायम सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी, लेकिन दो साल बाद यह गठबंधन टूट गया। बसपा ने समर्थन वापस ले लिया तो मुलायम सरकार गिर गई। यह अलगाव गेस्ट हाउस कांड के कारण दुश्मनी में बदल गया। तब से 22 साल गुजर गए और बसपा ने सपा से दूरी बनाए रखी। 

उप चुनाव परिणाम तय करेंगे भविष्य की तस्वीर
अब सपा का नेतृत्व अखिलेश कर रहे हैं तो मायावती अवसर देखकर राजनीतिक दुश्मनी को शायद भुला भी सकती हैं। वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव व पिछले विधानसभा चुनाव ने दोनों दलों को अच्छी तरह अहसास करा दिया हैं वे अलग-अलग भाजपा का सामना नहीं कर सकते। लोकसभा चुनाव में तो बसपा को एक भी सीट नहीं मिली थी। विधानसभा चुनाव में मायावती को लग रहा था वे अकेले भाजपा से बाजी मार लेंगी, लेकिन उनकी पार्टी तीसरे नंबर पर सिमट कर रह गई। अब भी सपा-बसपा के बीच जो छोटा समझौता हुआ हैं उससे ज्यादा उम्मीद तो नहीं जगती। हालांकि कुछ लोग इसे काफी महत्वपूर्ण मानकर चल रहे हैं। लेकिन यक्ष प्रश्र यह कि क्या मात्र इस समझौते से भाजपा इन दोनों सीटों को हार जाएगी? ऐसा लगता तो नहीं हैं। क्योंकि पिछले चुनाव में इन सीटों पर भाजपा को 51 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे जबकि दोनों सीटों पर सपा और बसपा को मिलाकर 37-38 प्रतिशत से ज्यादा वोट नहीं मिले। बहरहाल, अब समझौता महत्वपूर्ण नहीं रह गया हैं, बल्कि उप चुनाव के नतीजों का इंतजार महत्वपूर्ण बन गया हैं। इस अनूठे गठबंधन की सही समीक्षा व भविष्य की तस्वीर से रूबरू होने के लिए उप चुनाव नतीजों के इंतजार से बेहतर अन्य कोई विकल्प नहीं।

वसुन्धरा राजे : नहीं थमी नाराजगी/चुनावी पिटारा बेअसर!

घनश्याम डी रामावत
कल 8 मार्च को विश्व महिला दिवस के अवसर पर झुंझुनू में राष्ट्रीय पोषण मिशन के आगाज के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में सूबे की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे को अपने उद्बोधन के दौरान जिस तरह से युवाओं के विरोध का सामना करना पड़ा, यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि सत्तारूढ़ राजस्थान सरकार और खासकर इसकी मुख्या वसुन्धरा राजे की कार्यशैली को लेकर नाराजगी में कोई कमी नहीं आई हैं। यह तब हो रहा हैं जब हाल ही में विधानसभा बजट के दौरान मुख्यमंत्री राजे द्वारा अनेक लोक लुभावन घोषणाएं की गई हैं। सीधे-सीधे यह घोषणाएं जिन्हें राजनीतिक हलकों में चुनावी पिटारा नाम दिया गया, बेअसर साबित होती ही प्रतीत हो रही हैं। पीएम की मौजूदगी में युवाओं द्वारा विरोध व्यक्त किए जाने से मुख्यमंत्री राजे की एक बार फिर किरकिरी हुई हैं। 

बजट सत्रे में की गई अनेक लोक लुभावन घोषणाएं
राजस्थान सरकार ने वर्ष 2018-19 के बजट में किसानों का कर्जा माफ करने, 77 हजार रिक्त पद भरने तथा सडक़, सिंचाई, चिकित्सा, पेयजल सहित कई योजनाओं की घोषणा करते हुए 17 हजार 454 करोड़ 85 लाख रूपए का राजस्व घाटे का बजट प्रस्ताव पेश किया। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने वित्त मंत्री के रूप में विधानसभा में बजट प्रस्ताव पेश करते हुये उप चुनावों में हुई हार के बाद कई लोक लुभावनी घोषणायें की। राजे की ओर से अपनी पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत और सुंदर सिंह भंडारी को सम्मान देते हुये उनके नाम से दो योजनाएं शुरू करने की घोषणा भी की गई। बजट में कोई नया कर नहीं लगाने और 650 करोड़ रूपए की राहत दिए जाने की बात भी कही गई। राजस्थान सरकार द्वारा किसानों को राहत देने की घोषणा करते हुये किसानों को 50 हजार तक सहकारी बैंकों के लघु एवं सीमांत किसानों के ऋ ण को माफ करने, कृषि उपकरणों पर भी राहत देने के साथ ही सहकारिता क्षेत्र के मध्यम और लघु किसानों को भी अनुदान पर राहत दिए जाने की घोषणा की गई। राजस्थान राज्य कृषक ऋ ण राहत आयोग के गठन की घोषणा सहित अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछडा वर्ग एवं अति पिछड़ा वर्ग के परिवारों को जीविकोपार्जन का साधन जुटाने के लिये भैंरोसिंह शेखावत अंत्योदय स्वरोजगार योजना तथा आर्थिक रूप से पिछड़े सामान्य श्रेणी के परिवारों को जीविकोपार्जन के लिये सुंदर सिंह भंडारी ईबीसी स्वरोजगार योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई। 

प्रदेश सरकार व प्रदेश बीजेपी नेतृत्व परेशान
राजस्थान की सत्तारूढ सरकार के अनुसार इन दोनों योजनाओं के तहत 50-50 हजार परिवारों को 50 हजार रूपये का ऋ ण न्यूनतम ब्याज दर पर उपलब्ध कराया जायगा। राजस्थान सरकार की ओर से भू-कारोबार में मंदी के मद्देनजर डीएलसी दरों में कमी करने साथ भूखंडों के मूल्यांकन पर अतिरिक्त रियायत दिए जाने की उद्घोषणा भी की गई हैं। राजस्थान सरकार अपने इस बहुत ही कम रह गए कार्यकाल में इन घोषणाओं को किस हद तक लागू कर पाएगी व लोगों को इसका कितना लाभ मिलेगा/यह तो भविष्य के गर्त में हैं, किन्तु जनता खासकर युवाओं की नाराजगी जिस तरह से प्रदेश सरकार के खिलाफ खुलकर सामने आ रही हैं, सरकार व प्रदेश बीजेपी का नेतृत्व परेशान हैं, यह बात सोलह आने सच हैं। चिंता का कारण विधानसभा चुनाव 2018 तो हैं ही, लोकसभा का चुनाव भी हैं जो वर्ष 2019 में होना हैं।

Thursday 8 March 2018

शुभ होती हैं होली की ‘भस्म’

घनश्याम डी रामावत
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार होली शब्द हिरण्याकश्यप की बहन होलिका के नाम पर पड़ा हैं। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था, जिसे पहनने पर आग में नहीं जलते थे। होलिका ने अपने भाई की बात मानते हुए हिरण्याकश्यप के बेटे प्रह्लाद को लेकर होलिका चिता पर बैठ गई थी। मगर, भगवान विष्णु की कृपा से होली जल कर भस्म हो गई और प्रह्लाद उससे सकुशल निकल आए थे। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता हैं। इसके साथ ही इस त्योहार को प्रेम के त्यौहार के रूप में लोग मनाते हैं। होली के पर्व पर लोग आपस के मन-मुटावों को भूलाकर एक दूसरे से प्रेम की भावना से गले मिलते हैं।

होली की भस्म में देवताओं की कृपा
अक्सर यह देखने को मिलता हैं कि लोग होलिका दहन के अगले दिन सुबह होली जलने के स्थान पर जाते हैं और वहां होली की भस्म उड़ाकर धुलंडी मनाते हैं। कुछ लोग इस दौरान होली की भस्म को अपने घर भी ले आते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस भस्म का महत्व क्या हैं और इसे लोग घर क्यों लाते हैं? एक मान्यता के अनुसार होली की भस्म शुभ होती हैं और इसमें देवताओं की कृपा समाहित होती हैं। इस भस्म को माथे पर लगाने से भाग्य अच्छा होता हैं और बुद्धि बढ़ती हैं। एक अन्य मान्यता यह हैं कि इस भस्म में शरीर के अंदर स्थित दूषित द्रव्य सोख लेने की क्षमता होती हैं। लिहाजा, इस भस्म लेपन करने से कई तरह के चर्म रोग खत्म हो जाते हैं। 

नकारात्मक शक्तियां होती हैं बेअसर
मान्यता यह भी हैं कि होली की भस्म को अगले दिन प्रात: घर में लाने से घर को नकारात्मक शक्तियों और अशुभ शक्तियों का असर नहीं होता हैं। कुछ लोग ताबीज में भरकर इसे पहनते हैं, ताकि बुरी आत्माओं और तंत्र-मंत्र का उन पर असर नहीं हो।

Wednesday 7 March 2018

शीतला सप्तमी पर्व : ‘बसौड़ा’

घनश्याम डी रामावत
आज शीतला सप्तमी हैं अर्थात मां शीतला का पर्व। देश के हर कोने में किसी न किसी रूप में यह पर्व मनाया जाता हैं। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी व अष्टमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता हैं। इस दिन महिलाएं विधि-विधान से मां शीतला की पूजा अर्चना कर अपने परिवार की खुशहाली के साथ उत्तम स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद मांगती हैं। इस अवसर पर मां को ठंडे भोजन/व्यंजनों का भोग लगाने/पूजा अर्चना के साथ ही आज के दिन सभी लोग एक दिन पूर्व अर्थात षष्ठी की शाम तैयार किए गए भोजन का ही सेवन करते हैं। इसीलिए इस पर्व को ‘बसौड़ा’ भी कहते हैं। इस दिन अनेक स्थानों पर मेलों का आयोजन भी किया जाता हैं।

जोधपुर में भी आज से दस दिवसीय शीतला माता मेले की शुरूआत हुई। शहर के नागौरी गेट के बाहर कागा क्षेत्र में भरने वाले इस मेले का आगाज झण्डारोहण से हुआ। सूर्यनगरी जोधपुर में मां शीतला की पूजा अष्टमी के दिन की जाती हैं अर्थात यहां पर शीतलाष्टमी मनाई जाती हैं। शीतला माता पूजन से संबंधित विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता हैं। हिंदू व्रतों में केवल शीतला सप्तमी/शीतलाष्टमी का व्रत ही ऐसा हैं जिसमें बासी भोजन किया जाता हैं। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। शीतला माता का मंदिर वटवृक्ष के समीप ही होता हैं। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता हैं। ऐसी प्राचीन मान्यता हैं कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। कहते हैं कि नवरात्रि के शुरू होने से पहले यह व्रत करने से मां के वरदहस्त अपने भक्तों पर रहते हैं। यह भी मान्यता हैं कि जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए।

शीतला माता की प्रामाणिक पूजा विधि
शीतला सप्तमी के एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया), खाजा, चूरमा, मगद, नमक पारे, शक्कर पारे, बेसन चक्की, पुए, पकौड़ी, राबड़ी, पूड़ी व सब्जी आदि बना लेनी चाहिए। कुल्हड़ में मोठ, बाजरा भिगो दें। इनमें से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमेे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों। इसी दिन यानि सप्तमी के एक दिन पहले छठ को रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करनी चाहिए। यह पूजा रोली, मौली, पुष्प, वस्त्र आदि अर्पित कर हो तो उत्तम रहता हैं। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता हैं। शीतला सप्तमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहां से मंगवा लेने चाहिए। बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहाएं। एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही, राबड़ी, चावल (ओलिया), पुआ, पकौड़ी, नमक पारे, रोटी, शक्कर पारे,भीगा मोठ व बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें। एक अन्य थाली में रोली, चावल, मेहंदी, काजल, हल्दी, लच्छा (मोली), वस्त्र, होली वाली बडक़ुले की एक माला व सिक्का रखें। शीतल जल का कलश भर कर रखें। पानी से बिना नमक का आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें। यह दीपक बिना जलाए ही माता जी को चढ़ाया जाता हैं। पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए। पूजा की थाली पर, कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली, हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें। मंदिर में जाकर हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना की जानी चाहिए कि-हे माता! पूजा को स्वीकार करें एवं हमारे पर कृपा दृष्टि बरसाएं/शीतलता बनाए रखें। 

घर पर की जा सकती हैं पूजा अर्चना
घर पर भी मां शीतला को स्थापित कर पूजा की जा सकती हैं। सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएं। रोली और हल्दी से टीका करें। काजल, मेहंदी, लच्छा, वस्त्र अर्पित करें। पूजन सामग्री अर्पित करें। आटे का दीपक बिना जलाए अर्पित करें तथा आरती या गीत आदि गा कर मां की अर्चना करें। अंत में वापस जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता हैं, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता हेै। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिडक़ना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती हैं और सकारात्मक ऊर्जा आती हैं। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था वहां पूजा करें। थोड़ा जल चढ़ाएं व पूजन सामग्री चढ़ाएं। घर आने के बाद पानी रखने की जगह पर पूजा करें। मटकी की पूजा करें। इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती हैं। ठंडे व्यंजन/भोजन सपरिवार मिलजुल कर खाएं और शीतला माता पर्व का आनंद उठाएं। (अधिकांश स्थानों पर शीतला मां के पूजनोपरांत गर्दभ तथा काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ (गधा) को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी हैं)।

मां शीतला स्तुति मंत्र
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नम:।।

Monday 5 March 2018

बसंत पंचमी : बसंत ऋ तु के आगमन का उत्सव

घनश्याम डी रामावत
आनन्द-उमंग रंग, भक्ति-रंग रंग रंगी। एहो! अनुराग सत्य उर में जगावनी।। ज्ञान वैराग्य वृक्ष लता पता चारों फल। प्रेम पुष्प वाटिका सुन्दर सजवानी।। सत्संगी समझदार, देखो यह बहार बनी। अमृत की वर्षा सरस आनन्द बरसवानी।। कहता शिवदीन बेल छाई उर छाई-छाई। आई शुभ बसंत संत संतन मन भावनी।। 

वाकई! शिवदीन राम जोशी जी की इन काव्य पंक्तियों को नमन करने का मन करता हैं। बसंत और इसके आगमन की अनुभूति को दिल से आत्मसात करते हुए इसके सम्मान/महत्व को बहुत ही सारगर्भित/गरिमामय अंदाज में अभिव्यक्त किया हैं जोशी जी ने। बसंत ऋ तु हैं ही ऐसी, इसके बारे में जितना लिखा जाए कम हैं। कहावत हैं आनन्द को किसी निश्चित दायरें में नहीं बांधा जा सकता। ठीक ऐसा ही हैं बसंत और इससे ताल्लुक रखता यह मौसम। दोस्तों! बसंत ऋ तु हमारे जीवन में एक अद्भुत शक्ति लेकर आती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी ऋ तु में ही पुराने वर्ष का अंत होता हैं और नव वर्ष की शुरुरूआत होती हैं। इस ऋ तु के आगमन के साथ ही चहुंओर हरियाली छाने लगती हैं। सभी पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं हैं और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। इसी प्रकृति के कारण इसे ऋ तुराज कहा गया हैं। इस ऋ तु का स्वागत बसंत पंचमी के उत्सव से किया जाता हैं।

माघ महीने की शुक्ल पंचमी/प्रकृति का उत्सव
बसंत पंचमी हैं अर्थात प्रकृति का उत्सव। माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी होती हैं तथा इसी दिन से बसंत ऋ तु की शुरुआत होती हैं। बसंत का अर्थ हैं बसंत ऋ तु और पंचमी का अर्थ हैं शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। बसंत पंचमी पर खास पूजा भी की जाती हैं। पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और अन्य कई देशों में इसे बड़े उल्लास से मनाया जाता हैं। जिस प्रकार मनुष्य जीवन में यौवन का अपना महत्व हैं, उसी प्रकार बसंत इस सृष्टि का यौवन हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋ तुनां कुसुमाकर:’ कहकर ऋ तुराज बसंत को अपनी विभूति माना हैं। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। मां सरस्वती को विद्या व वाणी की देवी कहा जाता हैं। विद्या की देवी सरस्वती से ही हमें बुद्धि व ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। हमारी चेतना का आधार देवी सरस्वती को ही माना जाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने वाली देवी सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता हैं। सरस्वती की पूजा किए जाने का एक कारण भगवान विष्णु का वरदान भी हैं, जो उन्होंने देवी सरस्वती को प्रसन्न होकर दिया था जिसके तहत उन्होंने बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा किए जाने की बात कही थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन माघ शुक्ल पंचमी को किया था, तब से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का प्रचलन हैं। भारत में देवी सरस्वती की आराधना बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से होती हैं।

पीले रंग का खास महत्व/खास पूजा अर्चना
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का खास महत्व हैं। बसंत ऋ तु के आरंभ में हर ओर पीला ही रंग नजर आता हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के चावल बनाये जाते हैं। पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बनाई जाती हैं। खेतों में सरसों के फूल पीले रंग को प्रदर्शित करते हैं। हल्दी व चन्दन का तिलक लगाया जाता हैं। अधिकतर लोग इस दिन पीले रंग के ही कपड़े पहनते हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्यालयों में विशेष रूप से उत्सव मनाया जाता हैं। इसके तहत विद्यार्थी देवी सरस्वती की पूजा अर्चना कर अपने लिए उत्तम ज्ञान व बुद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। दोस्तों! इस ब्लॉग को 22 जनवरी को पोस्ट किया जाना था/विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उम्मीद करता हूं हमेशा की तरह यह ब्लॉग भी आपको पसंद आएगा/अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।