Monday 5 March 2018

बसंत पंचमी : बसंत ऋ तु के आगमन का उत्सव

घनश्याम डी रामावत
आनन्द-उमंग रंग, भक्ति-रंग रंग रंगी। एहो! अनुराग सत्य उर में जगावनी।। ज्ञान वैराग्य वृक्ष लता पता चारों फल। प्रेम पुष्प वाटिका सुन्दर सजवानी।। सत्संगी समझदार, देखो यह बहार बनी। अमृत की वर्षा सरस आनन्द बरसवानी।। कहता शिवदीन बेल छाई उर छाई-छाई। आई शुभ बसंत संत संतन मन भावनी।। 

वाकई! शिवदीन राम जोशी जी की इन काव्य पंक्तियों को नमन करने का मन करता हैं। बसंत और इसके आगमन की अनुभूति को दिल से आत्मसात करते हुए इसके सम्मान/महत्व को बहुत ही सारगर्भित/गरिमामय अंदाज में अभिव्यक्त किया हैं जोशी जी ने। बसंत ऋ तु हैं ही ऐसी, इसके बारे में जितना लिखा जाए कम हैं। कहावत हैं आनन्द को किसी निश्चित दायरें में नहीं बांधा जा सकता। ठीक ऐसा ही हैं बसंत और इससे ताल्लुक रखता यह मौसम। दोस्तों! बसंत ऋ तु हमारे जीवन में एक अद्भुत शक्ति लेकर आती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी ऋ तु में ही पुराने वर्ष का अंत होता हैं और नव वर्ष की शुरुरूआत होती हैं। इस ऋ तु के आगमन के साथ ही चहुंओर हरियाली छाने लगती हैं। सभी पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम के पेड़ बौरों से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं, जौ और गेहूं की बालियां खिलने लगतीं हैं और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। इसी प्रकृति के कारण इसे ऋ तुराज कहा गया हैं। इस ऋ तु का स्वागत बसंत पंचमी के उत्सव से किया जाता हैं।

माघ महीने की शुक्ल पंचमी/प्रकृति का उत्सव
बसंत पंचमी हैं अर्थात प्रकृति का उत्सव। माघ महीने की शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी होती हैं तथा इसी दिन से बसंत ऋ तु की शुरुआत होती हैं। बसंत का अर्थ हैं बसंत ऋ तु और पंचमी का अर्थ हैं शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन। बसंत पंचमी पर खास पूजा भी की जाती हैं। पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और अन्य कई देशों में इसे बड़े उल्लास से मनाया जाता हैं। जिस प्रकार मनुष्य जीवन में यौवन का अपना महत्व हैं, उसी प्रकार बसंत इस सृष्टि का यौवन हैं। भगवान श्री कृष्ण ने भी गीता में ‘ऋ तुनां कुसुमाकर:’ कहकर ऋ तुराज बसंत को अपनी विभूति माना हैं। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। मां सरस्वती को विद्या व वाणी की देवी कहा जाता हैं। विद्या की देवी सरस्वती से ही हमें बुद्धि व ज्ञान की प्राप्ति होती हैं। हमारी चेतना का आधार देवी सरस्वती को ही माना जाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने वाली देवी सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता हैं। सरस्वती की पूजा किए जाने का एक कारण भगवान विष्णु का वरदान भी हैं, जो उन्होंने देवी सरस्वती को प्रसन्न होकर दिया था जिसके तहत उन्होंने बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा किए जाने की बात कही थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन माघ शुक्ल पंचमी को किया था, तब से बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन का प्रचलन हैं। भारत में देवी सरस्वती की आराधना बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से होती हैं।

पीले रंग का खास महत्व/खास पूजा अर्चना
बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का खास महत्व हैं। बसंत ऋ तु के आरंभ में हर ओर पीला ही रंग नजर आता हैं। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग के चावल बनाये जाते हैं। पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बनाई जाती हैं। खेतों में सरसों के फूल पीले रंग को प्रदर्शित करते हैं। हल्दी व चन्दन का तिलक लगाया जाता हैं। अधिकतर लोग इस दिन पीले रंग के ही कपड़े पहनते हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्यालयों में विशेष रूप से उत्सव मनाया जाता हैं। इसके तहत विद्यार्थी देवी सरस्वती की पूजा अर्चना कर अपने लिए उत्तम ज्ञान व बुद्धि का आशीर्वाद मांगते हैं। दोस्तों! इस ब्लॉग को 22 जनवरी को पोस्ट किया जाना था/विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। उम्मीद करता हूं हमेशा की तरह यह ब्लॉग भी आपको पसंद आएगा/अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।

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