Friday 18 May 2018

भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज वैद्यनाथन से मुलाकात

घनश्याम डी रामावत
आज दोपहर में जरूरी कार्य से जोधपुर सूचना केन्द्र जाना हुआ तो मालूम पड़ा पास ही स्थित मिनी ऑडिटोरियम में भरतनाट्यम कार्यशाला संचालित हो रही हैं, जिसमें देश की नामचीन भरतनाट्यम नृत्यांगना, लेखिका, म्यूजिक कंपोजर, गुरू और कोरियोग्राफर डॉ. सरोज वैद्यनाथन शिरकत कर रही हैं। बस फिर क्या था, उनके व भरतनाट्यम के बारे में बारीकी से जानने की उत्कंठा के चलते वैद्यनाथन जी से मिलने का निश्चय किया और जा पहुंचा ऑडिटोरियम। जल्दी ही मुलाकात सुनिश्चित हो गई। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो देश का गौरव कही जाने वाली/अपने फन में माहिर अथाह सागर डॉ. वैद्यनाथन से काफी कुछ जानने व समझने को मिला।

डॉ. सरोज वैद्यनाथन की माने तो शास्त्रीय संगीत व लोक नृत्य भारत की असली पहचान हैं। डॉ. सरोज के अनुसार भारत विविधताओं से भरा देश हैं और इसका हर रंग निराला हैं। यहां की संस्कृति दुनियां की तमाम संस्कृतियों से अधिक उन्नत हैं। भारत लोक नृत्य हमारी संस्कृति को और अधिक रोचक बनाते हैं। डॉ. वैद्यनाथन के अनुसार भारत में लोक नृत्यों की फेेहरिस्त लंबी हैं और देश के अलग-अलग स्थानों/प्रदेशों में अपने खास लोक नृत्य हैं। उनके अनुसार यह लोक नृत्य मनोरंजनात्मक दृष्टि से तो अपनी सार्थक भूमिका का निर्वहन करते ही हैं, देश व क्षेत्र विशेष को अपनी विशेष पहचान दिलाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज ने कहा कि देश में पंडवानी, गणगौर नृत्य, बिहू, नौटंकी, गरबा, यक्षगान, भांगड़ा, गिद्दा, कालबेलिया, घूमर, तेरहताली, भवाई नृत्य, लावणी, तमाशा, कजरी, छोलिया, कूद दंडीनाच, रूऊफ, छपेली, दांगी, थाली, छऊ, विदेशिया, जाट-जतिन, कथकली, मोहिनीअट्टम, लीम, छोंग, जात्रा, ढ़ाली, छाऊ, मंदी, ढक़नी, कुचीपुड़ी, ओडिसी, धुमरा व पंथी नृत्य प्रमुख रूप से प्रचलित हैं। 

पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित अद्वितीय प्रतिभा
भारत सरकार की ओर से वर्ष 2002 में पद्मश्री और वर्ष 2013 में पद्म भूषण से सम्मानित डॉ. सरोज वैद्यनाथन की मान्यता हैं कि लोक नृत्य अजर अमर हैं, जो कभी खत्म नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि लोक नृत्य व भारतीय शास्त्रीय संगीत की तुलना बॉलीवुड से करना सही नहीं हैं। 81 वर्षीय डॉ. वैद्यनाथन(बेल्लारी/कर्नाटक) की देश ही नहीं विदेश स्तर पर भी भरतनाट्यम नृत्यांगना, लेखिका, म्यूजिक कंपोजर, गुरू और कोरियोग्राफर के रूप में खास पहचान हैं। भरतनाट्यम को समर्पित डॉ. सरोज ने शुरूआती तालीम/प्रशिक्षण तंजावुर के गुरू कट्टुमनार मुथुकुमारन पिल्लई से प्राप्त किया। वहीं, मद्रास विश्वविद्यालय से कर्नाटक संगीत सीखा। डॉ. सरोज वैद्यनाथन इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ से नृत्य में डी.लिट हैं। भरतनाट्यम के समग्र प्रचार-प्रसार व समृद्धि को अपने जीवन का मकसद बना चुकी डॉ. सरोज अब तक देश-विदेश में दो हजार से अधिक परफॉर्मेंस दे चुकी हैं। 81 वर्ष की उम्र में भी अपने पेशे को लेकर दिली जज्बा रखने वाली डॉ. वैद्यनाथन युवाओं के लिए आदर्श हैं।

वर्ष 1974 में दिल्ली में गणेश नाट्यालय की स्थापना
पद्मश्री और पद्मभूषण के अलावा संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, कालिदास सम्मान, साहित्य कला परिषद सम्मान, तुलसी सम्मान सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी डॉ. सरोज वैद्यनाथन द्वारा वर्ष 1974 में खोले गए गणेश नाट्यालय में देश-विदेश के असंख्य विद्यार्थी अनवरत तालीम/प्रशिक्षण हासिल कर रहे हैं। विद्यार्थियों को यहां नृत्य के अलावा ‘भरतनाट्यम’ की समग्र समझ देने के लिए तमिल, हिंदी और कर्नाटक स्वर संगीत भी पढ़ाया जाता हैं। सरोज एक शानदार कोरियोग्राफर हैं और इनके अपने दस पूर्ण लंबाई वाले बैले आइटम हैं। डॉ. विद्यानाथन ने भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत पर अनेक किताबें लिखी हैं जिनमें शास्त्रीय नृत्य भारत, भरतनाट्यम-एक गहराई से अध्ययन, कर्नाटक संगीतमम और भरतनाट्यम का विज्ञान शामिल हैं। डॉ. सरोज के अनुसार पहले के जमाने में गुरू आज की तरह व्यवसायिक नहीं होते थे, नतीजतन बेहतर प्रतिभाएं उभरकर सामने आती थी। उन्होंने कहा कि ज्यादातर नवोदित आर्टिस्ट चंद कार्यक्रमों के बाद स्वयं को बड़ा कलाकार समझने लगते हैं, यह सही नहीं हैं। डॉ. वैद्यनाथन के अनुसार नृत्य एक साधना हैं।

पुत्र/बहू भी अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त उम्दा कलाकार
डॉ. सरोज वैद्यनाथन के अनुसार क्लासिकल और बॉलिवुड नृत्य करीब-करीब एक जैसे ही हैं। क्लासिकल नृत्य में नियमों का अनुसरण ज्यादा अहम होता हैं जबकि फिल्म में कहानी के अनुसार नृत्य होता हैं। अपने परफोर्मेंस के बारें में बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे कहानी के आधार पर नृत्य करती हैं। इसके अलावा वे इनोवेशन, अवेयरनेस(स्वच्छ भारत, प्रश्नचिह्न व नमामि गंगे), मिथॉलजी और सोशल आधारित नृत्य भी करती हैं। डॉ. सरोज के अनुसार समय-समय पर सब कुछ बदलता रहता हैं। डॉ. वैद्यनाथन पुरानी कहानियों मसलन-शिवपुराण, स्कंदपुराण, रामायण और महाभारत आदि पर भी नृत्य करती हैं। वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आसियान शिखर सम्मेलन यात्रा के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया का सांस्कृतिक दौरा कर चुकी डॉ. सरोज वैद्यनाथन पति आईएएस अधिकारी रहे हैं। इनका एक पुत्र कामेश और बहू राम वैद्यनाथन अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त भरतनाट्यम कलाकार हैं।

नृत्य भी स्पॉर्ट्स और योग के जैसा
सकारात्मक विचारों की धनी सुप्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ. सरोज वैद्यनाथन लोक नृत्य व शास्त्रीय संगीत की संरक्षा/समृद्धि के साथ तालीम संदर्भ में भारत सरकार के प्रयासों से संतुष्ट हैं। उन्होंने निजी स्तर पर इस दिशा में लोगों से मजबूती व गंभीरती से कार्य करने की अपील की। डॉ. सरोज के अनुसार कला के प्रति समर्पण से लेकर तनमयता.. सब कुछ प्रेरणा माता-पिता से ही मिली हैं, क्योंकि दोनों लेखक थे और मां तो पेंटर भी थी। 81 वर्ष में भी जबरदस्त एनर्जी वाले सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जब किसी भी काम पर दिल, दिमाग और शरीर समान लय में काम करते हैं तो एनर्जी स्वयं ही बन जाती हैं। डॉ. सरोज के अनुसार नृत्य भी स्पॉर्ट्स और योग के जैसा ही हैं। उन्होंने कहा कि वे शाकाहारी हैं और अनुशासित जीवन जीती हैं। डॉ. सरोज वैद्यनाथन के दिल्ली में स्थापित गणेश नाट्यालय सहित देश-विदेश की कुल 30 शाखाओं में विद्यार्थी भरतनाट्यम का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।