Saturday 30 January 2021

गांधीजी के विचारों के सम्मान से ही समृद्धि संभव (पुण्यतिथि विशेष)

घनश्याम डी रामावत

भारत के बारे हमारे देश के महापुरूषों की स्पष्ट सोच थी। भारत की जड़ों से बहुत गहरे तक जुड़े हुए थे। वर्तमान में भारत का जो स्वरूप हमारी आंखों के सामने हैं, वह भारत के महापुरूषों की मान्यताओं के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। गांधीजी सत्य को जीवन का बड़ा आधार मानते थे। मौजूदा समय में हमें नैतिकता और सिद्धांत के केवल भाषण सुनाई देते हैं, वास्तविकता इसके उलट हैं। गांधीजी का जीवन दर्शन स्वदेशी की भावना पर ही आधारित था। जबकि आज भारत में लोग विदेशी पहनावा, विदेशी खानपान और विदेशी विचारों को आत्मसात करने में गर्व महसूस करने लगे हैं। भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात इस बात पर गहन चिंतन किया गया कि अब कैसा भारत बनाना चाहिए। महात्मा गांधी की इस बारे में स्पष्ट कल्पना थी। वे कहते थे कि मैं एक ऐसे भारत का निर्माण करना चाहता हूं जिसमें शराब जैसी बुराई का नामोनिशान न हो, जहां समाज में भेदभाव न हो, गौहत्या पाप हो और रामराज्य स्थापित हो।
 
भारत का आधार राम, भारत की संस्कृति राम
गांधीजी की दृष्टि में भविष्य के भारत की बुनियाद में पुरातन और सांस्कृतिक मान बिन्दुओं का समावेश था। वे जानते थे कि इसके बिना भारत नहीं, क्योंकि भारत का आधार ही राम हैं, राम भारत की संस्कृति हैं। आज भगवान राम को भले हिन्दू समाज का आराध्य मानकर प्रचारित किया जा रहा हो लेकिन यह सत्य है कि भारत में मुगलों और अंग्रेजों के शासन से पूर्व भी इस देवभूमि में श्रीराम का अस्तित्व था और आज भी है। आज भारत को श्रीराम के जीवन के अनुशासन और मर्यादा को आत्मसात करने की आवश्यकता हैं। महात्मा गांधी के इन विचारों को हमारे राजनीतिक दल आत्मसात करने में संकोच कर रहे हैं। कहीं न कहीं इन बातों को सांप्रदायिक बताने का खेल भी चल रहा है, लेकिन ऐसा करने में वे भूल जाते हैं कि भारत में रामराज्य की संकल्पना स्वतंत्रता मिलने के बाद की नहीं है और न ही यह केवल महात्मा गांधी का ही विचार है, बल्कि महात्मा गांधी ने उसी बात को आगे बढ़ाने का प्रयास किया, जो भारत में सनातन काल से चल रहा है। भारत के मनीषियों ने जो सांस्कृतिक मूल्य स्थापित किए थे, गांधीजी ने उनका हृदय से अनुगमन किया और आत्मसात किया। इसीलिए वे भारत में इसके स्थापन का प्रयास करते दिखाई दिए।
 
अंग्रेजों की विभाजन नीति का विरोध किया
महात्मा गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों की उस नीति का भी विरोध किया, जो समाज में विभाजन की रेखा खींचती थी। इसलिए वे समाज में भाईचारे के भाव का विस्तार चाहते थे। महात्मा गांधी जैसा चाहते थे, उन्हें वैसा दृश्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में दिखाई दिया। उन्होंने संघ के वर्धा शिविर में भाग लिया। वहां उन्होंने भेदभाव रहित समाज का दर्शन किया, जो उस समय उनकी कल्पना में अपेक्षित था। गांधीजी जानते थे कि सामाजिक एकता इस देश के लिए कितनी आवश्यक हैं। वर्तमान में समाज की फूट के चलते अनेक विसंगतियों का जन्म हो रहा हैं। व्यभिचार बढ़ रहे हैं। जो गांधीजी के विचारों के प्रतिकूल हैं। गांधीजी भगवान राम को सभी धर्म और संप्रदाय से ऊपर मानते थे। आज भगवान राम को जिस प्रकार केवल हिन्दू समाज से जोडक़र देखा जाता है, वह दृष्टि महात्मा गांधी की नहीं थी। श्रीराम जी का जीवन एक ऐसा आदर्श है जो सबके लिए उत्थानकारी है। गांधीजी ने राम को भारतीय दृष्टि से देखा। आज के समाज से भी यही अपेक्षा की जाती है कि वह राम जी को संकुचित दायरे से न देखकर भारतीयता की दृष्टि से देखें। ऐसा करेंगे तो उन्हें राम अपने दिखाई देंगे, भारत के दिखाई देंगे। महात्मा गांधी का पूरा चिंतन भारत के विकास पर भी केंद्रित रहा। उन्होंने देश में स्वदेशी भावना को जगाने के लिए स्वयं के जीवन से कई उदाहरण दिए।
 
स्वदेशी को अपनाया, समाज को प्रेरित किया
इस समय बाजार में जिस प्रकार से विदेशी वस्तुओं का आक्रमण हुआ हैं, उसके कारण हमारे देश का पैसा विदेशी संस्थाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है। अपने देश का पैसा अपने देश में ही रहे, इसलिए गांधीजी ने स्वदेशी का विचार अपने जीवन में अपनाया और समाज को प्रेरित किया। आज इस भाव को इसलिए भी अपनाने की आवश्यकता हैं, क्योंकि आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता हैं, जो केवल स्वदेशी के विचार से ही संभव हैं। इतना ही नहीं गांधी जी भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना को भी देश के विकास का मजबूत आधार मानते थे। हालांकि अब भारत का समाज स्वदेशी की ओर जाग्रत भाव के साथ अग्रसर हुआ हैं। महात्मा गांधी गौहत्या पर पूरी तरह प्रतिबंध चाहते थे। हम जानते हैं गौ हमारे देश का अर्थशास्त्र हैं। गाय देश की आर्थिक उन्नति से जुड़ी हैं। देश में जब गौ आधारित खेती होती थी, तब देश धन धान्य से संपन्न था। धरती के सोना उगलने का समय भी यही था। वास्तव में गांधीजी का चिंतन अद्भुत था। उनका हर शब्द भारत की आत्मा ही था। हमें भारत की आत्मा को बचाना है तो गांधीजी के विचारों को आत्मसात करना होगा। इसी से भारत की समृद्धि का मार्ग निर्मित होगा और हम आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे।

मण्डोर उद्यान: देवताओं की साळ का कार्य अधूरा

 घनश्याम डी रामावत

जोधपुर का मण्डोर उद्यान किसी परिचय का मोहताज नहीं हैं। ऐतिहासिक मण्डोर उद्यान में स्थित देवताओं की साळ में मारवाड़ के वीरों, लोकदेवता और विभिन्न देवी देवताओं की विशालकाय प्रतिमाओं की मरम्मत व जीर्णोंद्धार का काम अब भी अधूरा पड़ा हैं। देश ही नहीं विश्व स्तर पर अपनी खास अहमियत रखने वाले इस उद्यान से संबंद्ध देवताओं की इस साळ की मरम्मत के लिए राजस्थान सरकार ने 70 लाख रूपये जारी किए थे। इससे देवताओं की साळ के जर्जर छज्जे, सुरक्षा दीवार और प्रतिमाओं को तो नया स्वरूप प्रदान कर दिया गया हैं, लेकिन साळ में लाइटें और पारदर्शी कांच लगाने का कार्य अब भी पूरा नहीं हो सका हैं। सूत्रों के अनुसार पुरातत्व विभाग के जोधपुर वृत अधिकारी सेवानिवृत हो गए हैं तो मण्डोर संग्रहालय के प्रभारी को पाली का अतिरिक्त कार्यभार सौंप दिया गया हैं। ऐसे में काम की मॉनिटरिंग नहीं हो पा रही हैं।
 
ये प्रतिमाएं विशेष आकर्षण का केन्द्र
देवताओं की साळ में राठौड़ों की इष्ट देवी और परिहारों (ईदों) की कुलदेवी मां चामुण्डा, महिषासुर मर्दिनी, गुसाई सम्प्रदाय के महात्मा गुंसाई जी, रावल मल्लीनाथ, पाबू जी राठौड़, लोकदेवता बाबा रामदेव, हड़बू जी, मेहा जी, गोगा जी, ब्रह्मा जी, सूर्यदेव, रामचन्द्र, कृष्ण, महादेव, जलंधरनाथ जी व श्रीगणेश आदि प्रतिमाएं खास आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं।

उखड़ गई थी अधिकांश प्रतिमाएं
देवताओं और वीरों की प्रतिमाएं सीलन के कारण जगह-जगह से उखड़ गई थी। जीर्णोद्वार के दौरान यथा स्थिति का प्रयास किया गया लेकिन मूर्तियों के स्वरूप में काफी बदलाव हुआ हैं। जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह एवं महाराजा अभयसिंह के शासन काल में सन् 1707 से 1749 के मध्य निर्मित मूर्तियों में 7 देवताओं और 9 मारवाड़ के वीर पुरूषों की प्रतिमाएं शामिल हैं। करीब 15 फीट ऊंची मूर्तियां मारवाड़वासियों की श्रद्धा का केन्द्र भी हैं।

काफी काम अभी भी बाकी
मण्डोर पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग के परिरक्षक महेन्द्र कुमावत के अनुसार मण्डोर उद्यान से संबद्ध देवताओं की साळ परिसर में पक्षियों के प्रवेश और मिट्टी को रोकने के लिए 15 एमएम का कांच तथा लाइटे लगाने का कार्य बाकी हैं। विभाग के जोधपुर वृत अधीक्षक के सेवानिवृत होने के कारण काम शेष रह गया, जिसे जल्दी ही पूरा करा लिया जाएगा।