Saturday, 12 October 2019

शरद पूर्णिमा का धार्मिक व आयुर्वेदिक दृष्टि से खास महत्व

घनश्याम डी रामावत
अश्विनी मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता हैं। इस बार यह तिथि 13 अक्टूबर अर्थात कल रविवार को हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता हैं। इस बार शुभ योग में चंद्रमा और मंगल के दृष्टि संबंध होने की वजह से महालक्ष्मी योग बन रहा हैं। अश्विनी मास की पूर्णिमा अर्थात शरद पूर्णिमा की रात में लक्ष्मी पूजन करके रात्रि जागरण करना धन समृद्धि दायक माना गया हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा का सीधा संबंध भगवान श्रीकृष्ण एवं माता लक्ष्मी से हैं। इस दिन व्रत रखे जाने का भी विधान हैं।

सूर्यनगरी जोधपुर स्थित व्यास ज्योतिष कार्यालय के निदेशक पण्डित सोहनलाल व्यास के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत बरसाएगा। पण्डित व्यास की माने तो चंद्रमा साल भर में शरद पूर्णिमा की तिथि को ही अपनी षोडश कलाओं को धारण करता है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर महालक्ष्मी, गणेश की पूजा-अर्चना करेंगी तो उन्हें अत्यधिक लाभ मिलेगा। पण्डित सोहनलाल जी व्यास से उनके 54, दिलीप नगर (लालसागर) स्थित ज्योतिष कार्यालय पर हुई संक्षिप्त परिचर्चा में शरद पूर्णिमा एवं इसके धार्मिक/आध्यात्मिक महत्व को लेकर खासी जानकारी हासिल हुई। पण्डित व्यास के अनुसार इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहा गया है। महिलाएं रात्रि के समय माता लक्ष्मी, चंद्रमा और देवराज इंद्र की पूजा करेंगी। पण्डित व्यास के अनुसार कल 13 अक्टूबर/रविवार की रात पूर्णिमा तिथि मध्य रात्रि 12.36 से प्रारंभ हो जाएगी, जो कि 14 अक्टूबर को रात 2.38 बजे तक रहेगी।

16 कलाओं से युक्त रहता हैं नक्षत्रों का स्वामी
राजस्थान सरकार के सिंचाई एवं पंचायती राज विभाग से सेवानिवृत होने के बाद ज्योतिषविद् के तौर पर समाज को अपनी सेवा देने वाले पं. सोहनलाल व्यास के अनुसार चंद्रमा तारामण्डल में स्थापित 27 नक्षत्रों (अश्विनी, भारिणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुनी, उतरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उतराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उतरा भाद्रपद एवं रेवती) का स्वामी हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त रहता हैं एवं यह धरती के निकट होकर गुजरता है। इसी दिन से शीत ऋ तु की शुरूआत मानी जाती है। इस दिन लक्ष्मी जी की साधना करने से आर्थिक और व्यापारिक लाभ मिलता है। पण्डित जी की माने तो शरद पूर्णिमा की रात्रि चंद्रमा पूर्ण कलाओं के साथ उदित होकर अमृत वर्षा करता हैं। ऐसे में इसका धार्मिक/आध्यात्मिक के साथ आयुर्वेदिक दृष्टि से भी खास महत्व हैं। 

औषधीय गुण आ जाने से 'खीर' लाभकारी
शरद पूर्णिमा की रात सोलह कलाओं से पूर्ण चंद्रमा से अमृतमयी धारा बहती है। इस दिन खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खीर को खुले में रखने से ओस के कण के रूप में अमृत की बूंदें खीर के पात्र में भी गिरती है जिसके फलस्वरूप यहीं खीर अमृत तुल्य हो जाती हैं, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से प्राणी आरोग्य एवं कांतिवान रहता हैं। औषधीय गुण आ जाने से यह खीर शरीर के लिए प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का कार्य करती है जिसे रामबाण औषधि का दर्जा भी दिया गया है। पण्डित व्यास के अनुसार जिन लोगों की जन्म-पत्रिका में चंद्रमा से संबंधित कोई समस्या है या चंद्रमा क्षीण है, उन लोगों को भी शरद पूर्णिमा के दिन भगवान शिव व कार्तिकेय की पूजा कर रात्रि में चंद्रदेव को जल व कच्चे दूध से अर्ध्य देना चाहिए।

महत्व: माता लक्ष्मी करती हैं घर में प्रवेश
पण्डित सोहनलाल व्यास के अनुसार शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। सूर्य तुला राशि में नीचे होकर मेष राशि में स्थित चंद्रमा पर पूर्ण दृष्टि डालता है। इससे चंद्रमा को अधिक शक्ति मिलती है। चंद्र की शक्ति से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ होता है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी रात्रि में विचरण करती है और भक्तों पर धन-धान्य से पूर्ण करती है। इस दिन रात भर जाग कर मां लक्ष्मी के भजन करने चाहिए। मां लक्ष्मी इस दिन रात में जगने और अपनी आराधना करने वालों को धन और वैभव का आशीर्वाद देती हैं। इसलिए इसे कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन व्रत रखने का भी विधान हैं। एक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण शरद पूर्णिमा की रात हर गोपी के लिए कृष्ण बने थे व उनके साथ नृत्य किया था जिसे महारास के नाम से जाना जाता हैं। 

इस महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने कामदेव की सुंदरता का घमण्ड तोड़ा था। इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन अपने विचारों को दूषित होने से बचाना चाहिए। मन में किसी भी प्रकार की नकारात्मकता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। उधान लेन-देन से बचना चाहिए। इस दिन खरीदारी तथा नये कार्य शुरू किए जा सकते है।

Thursday, 18 July 2019

दांतों की बीमारी को नजरअंदाज करना ठीक नहीं..

घनश्याम डी रामावत
दांत से जुड़ी किसी भी प्रकार की बीमारी को नजरअंदाज नहीं करें, तुरंत चिकित्सक के पास जाएं और इसका इलाज करवाएं। दंत रोग चिकित्सा में बरती गई कोई भी कोताही आगे जाकर सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। यह कहना हैं जाने माने दन्त रोग चिकित्सक डॉ. तरूण चौधरी का। डॉ. चौधरी के अनुसार मौजूदा दौर में बहुत बड़ी आबादी किसी न किसी रूप में दांतों से जुड़ी समस्या से पीडि़त हैं। इसका मूल कारण दांतों की सही से देखभाल नहीं किया जाना हैं।  

संक्रमण के कारण गंभीर बीमारियों का जन्म
जोधपुर स्थित मण्डोर सेटेलाइट हॉस्पिटल के दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. तरूण चौधरी के अनुसार दांत से जुड़ी बीमारियों में मुख्य रूप से दांतों में सडऩ, कीड़े लगना, पायरिया, दांतों का गलना, दांतों का टेढ़ा-मेढ़ा होना व मसूड़े खराब हो जाना हैं। डॉ. चौधरी के अनुसार इसके अलावा भी दांत से संबंधित अनेक छोटे-बड़े मर्ज है जिनमें बरती गई लापरवाही आगे जाकर संक्रमण का रूप तो लेती ही है, सेहत को गंभीर संकट में डाल देती हैं। पायरिया रोग के बारे में बताते हुए डॉ. चौधरी ने कहा कि दांत से जुड़ी इस बीमारी में मरीज के दांत ढ़ीले होकर हिलने लग जाते हैं। मसूड़ों से मवाद और रक्त निकलने लगता हैं। दांतों पर पपडिय़ां जम जाती हैं और मुंह से दुर्गंध आने लगती हैं। समय पर चिकित्सा के अभाव में मरीज के दांत कमजोर होकर गिरने लगते हैं।

डॉ. चौधरी की माने तो पायरियां सहित दांत से जुड़ी तकरीबन सभी बीमारियों की मुख्य वजह दांतों की ठीक से देखभाल नहीं करना, अनियमित ढ़ंग से कुछ न कुछ खाते रहना, भोजन का ठीक से नहीं पचना, लीवर में खराबी के कारण रक्त में अम्लता का बढ़ जाना, मांसाहार व अन्य गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का सेवन, पान गुटखा व तम्बाकू का अत्यधिक मात्रा में सेवन, नाक की बजाय मुंह से श्वास लेना, भोजन को ठीक से चबाकर नहीं खाना, अजीर्ण व कब्ज आदि हैं। उन्होंने बताया कि शरीर की अन्य बीमारियों की तरह ही दांत से ताल्लुक रखने वाली प्रत्येक छोटी से छोटी बीमारी भी बेहद गंभीर हैं। इसमें लापरवाही बरते जाने पर यह आगे जाकर संक्रमण का रूप अख्तियार कर लेती है जो आगे जाकर शरीर में नई गंभीर बीमारियों को जन्म देती हैं। दांतों का संक्रमण आगे जाकर बॉडी में ब्लड प्रेशर को तो प्रभावित करता हैं, कई मर्तबा इंसान के लिए मधुमेह जैसी लाइफ स्टाइल डिजीज का कारण भी बन जाता हैं। 

संक्रमण से बनता हैं स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया
दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. तरूण चौधरी के अनुसार दांतों के संक्रमण की वजह से ही गर्भवती महिलाओं के अलावा उनके होने वाले बच्चों को भी अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं। डॉ. चौधरी के अनुसार उत्तम स्वास्थ्य हेतु समय पर जांच, उचित परामर्श व चिकित्सा आज की प्राथमिक आवश्यकता हैं, इसे हर व्यक्ति को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि दांतों और मसूड़ों की हैल्थ सही अर्थात इनका ठीक होना जरूरी हैं। अगर दांतों और मसूड़ों में संक्रमण हैं तो मुंह में पैदा हुए बैक्टीरिया पानी व भोजन के साथ अन्य अंगों तक पहुंच सकते हैं। मुंह में संक्रमण होने पर स्ट्रेप्टोकॉकस बैक्टीरिया बनता हैं जो शरीर में दाखिल होते ही रक्त वाहिनियों में ब्लड सैल प्लॉक (दांतों पर जमी पपड़ी) बनाता हैं, इससे रक्त वाहिनियों का रास्ता अवरुद्ध होने लगता हैं। इसकी वजह से ब्लड प्रैशर बढऩा शुरू हो जाता है। आगे चलकर इसके कारण ही स्ट्रोक व हार्ट फेलियर के साथ-साथ गुर्दों आदि से जुड़े रोग मधुमेह का खतरा उत्पन्न होने लगता हैं। 

डॉ. चौधरी के अनुसार गर्भवती महिलाओं में ऐसी स्थिति में बच्चा समय से पहले या कम वजन का पैदा हो सकता हैं। अगर यही प्लॉक मस्तिष्क तक पहुंच जाए तो मैमोरी सैलों को नुक्सान हो सकता हैं और अल्जाइमर की बीमारी घेर सकती हैं। डॉ. तरूण के अनुसार सिगरेट, बीड़ी के साथ शराब का सेवन और तंबाकू या अन्य पान मसाले खाने वालों को तो अक्सर दांतों का संक्रमण होता ही रहता हैं। धूम्रपान या तंबाकू से ओरल कैंसर के काफी मामले सामने आते हैं। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों पर नजऱ डालें तो भारत में यह सबसे अधिक हैं। मुंह में अगर सफेद दाग से हो गए हैं या अल्सर होते रहते हैं तो यह स्थिति घातक साबित हो सकती हैं। डॉ. चौधरी के अनुसार यह स्थिति एक तरह से ओरल कैंसर का संकेत भी मानी जा सकती हैं। समय पर अगर ओरल कैंसर पकड़ में आ गया तो कम दिक्कत पेश आती हैं, लेकिन अगर कैंसर की स्टेज आगे बढ़ गई तो स्थिति विकट हो सकती हैं। 

स्वास्थ्य कार्यक्रमों को गंभीरता से ले नागरिक
दन्त रोग चिकित्सक के अनुसार कैंसर के मरीजों में रेडियोथेरेपी या कीमोथैरेपी की जाती हैं जिससे मुंह में लार कम बनें। उनके अनुसार स्वास्थ्य विभाग की ओर से ओरल हैल्थ के प्रति जागरूक करने के लिए समय-समय पर राष्ट्रीय मुख स्वास्थ्य कार्यक्रम, विद्यालयों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम सहित अनेक जनकल्याणकारी आयोजन व सेमिनार वगैरा आयोजित किए जाते रहते हैं। नागरिकों को चाहिए कि वे इन्हें गंभीरता से लें। मण्डोर सेटेलाइट हॉस्पिटल में सेवारत्त डॉ. तरूण चौधरी के अनुसार प्लॉक कंट्रोल करने के लिए दांतों में बैक्टीरिया की लेयर लगाई जाती हैं। एसिडिक तत्व वाले खाद्य पदार्थों जैसे ठंडे पेय पदार्थ, मिठाई या चॉकलेट आदि से मुंह की पी.एच. वैल्यू कम हो जाती हैं, जिसे फिर से सही होने में काफी वक्त लग जाता हैं। डॉ. चौधरी के अनुसार दांतों की बेहतरी के लिए कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन जितना कम हो बेहतर हैं। अगर मिठाई या चॉकलेट खानी भी हैं तो खाने के साथ एक बार ही खा लेनी चाहिए। बार-बार दिन में मीठा नहीं खाना चाहिए।

मुंह में संक्रमण न हो इसके लिए फ्लोराइड युक्त पेस्ट का इस्तेमाल करें। भोजन के बाद दांतों व मुंह की अच्छे से सफाई जरूरी हैं। दांत शरीर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं इनकी बेहतरी के लिए चिकित्सक से नियमित चैकअप करवाते रहना चाहिए। डॉ. चौधरी के अनुसार दांतों का सीधा संबंध हमारे दिलो-दिमाग से है। ऐसे में दांतों की सेहत का सही से ख्याल रखकर हम अन्य कई बीमारियों पर विराम लगा सकते है।

Saturday, 15 December 2018

चुनाव नतीजें एनडीए के लिए खतरे की घंटी!

 घनश्याम डी रामावत
2019 अर्थात करीब 5-6 माह बाद होने वाले के लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए/खासकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ महागठबंधन की कवायद अभी तक परवान न चढऩे का एक बड़ा कारण था हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा परिणाम। विपक्षी पार्टियां यह देख रही थीं कि इन राज्यों में कांग्रेस कितनी मजबूत होकर निकलती है। दरअसल सभी विपक्षी पार्टियां एक-दूसरे की ताकत आंकने में लगी हुई थीं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के इंतजार की एक वजह यह भी थी कि इससे महागठबंधन की ओर बढऩे का रास्ता खुलता दिखे। ऐसा माना जा रहा था कि पांच राज्यों के जनादेश के मार्फत सभी दलों को जमीनी हकीकत का अंदाजा लग जाएगा और उसके बाद जब वह बातचीत के लिए बैठेंगे तो किसी भ्रम में नहीं होंगे।

5 राज्यों के नतीजों से उत्साह का माहौल
कांग्रेस जिस तरह से एक के बाद एक राज्यों में बेदखल हो रही थी उसके बाद प्रमुख विपक्षी दलों में महागठबंधन के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लग गया था। पर मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आज जिस तरह से कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन सामने आया है, इन दलों का कांग्रेस के प्रति नजरिया बदलेगा। अब यह सवाल शायद ही कोई पूछे कि कांग्रेस का नेतृत्व क्यों? इन तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस दूसरा बड़ा दल देशभर में बन गया है। अब उसकी पांच राज्यों में सरकारें हैं। तीन राज्यों में भाजपा को सीधी टक्कर में हराने के बाद कांग्रेस ने राष्ट्रीय पार्टी के अपने वजूद को साबित कर दिया है। यह तय हो गया है कि अब जो भी महागठबंधन बनेगा वह कांग्रेस के ही नेतृत्व में बनेगा। इस जीत का सबसे बड़ा संदेश यह है कि भाजपा, नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी को सीधी टक्कर में हराया जा सकता है। कांग्रेस को भी यह बात समझ में आ गई होगी कि भाजपा को सीधी टक्कर देने के लिए उसे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की जरूरत होगी। कर्नाटक में बीएसपी-जेडीएस की ताकत समझने में उससे भूल हुई थी। वैसी ही गलती मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बसपा के साथ गठबंधन पर हुई। 

राहुल गांधी को स्वीकारना अब आसान हुआ
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10 सीटें जीती हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी घोषणा कर दी है कि वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का समर्थन करेंगी। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि लोगों ने भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार की नीतियों को खारिज कर दिया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने परिणामों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके गांधी परिवार पर निजी हमलों पर घेरते हुए कहा कि ऐसे ऊंचे पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसा करना शोभा नहीं देता। राकांपा सुप्रीमों पंवार के अनुसार उनका दल कांग्रेस को समर्थन देगा। उन्होंने सुझाव दिया कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को भी राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लेना चाहिए। मराठा क्षत्रप ने कहा कि जनता को यह बात पसंद नहीं आई कि कांग्रेस अध्यक्ष का मजाक उड़ाया जाए। परिणामों में साफ दिख गया है कि लोगों ने राहुल गांधी को बतौर कांग्रेस अध्यक्ष स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि लोगों ने मोदी सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की है और विधानसभा परिणाम बदलाव की शुरुआत है। लोगों ने किसान विरोधी, व्यापारी विरोधी, बेरोजगार विरोधी नीति को खारिज कर दिया है। 

विपक्षी एकजुटता से ही शिकस्त संभव
बीजेपी के पास आरएसएस का मजबूत काडर होने के साथ ही सोशल मीडिया पर जबरदस्त पकड़ है, बावजूद इसके अब यह सवाल वाकई महत्वहीन होता प्रतीत होता है कि *क्या मोदी को हराना मुश्किल है? राजनीतिक समीक्षकों की माने तो मोदी को पांच राज्यों के चुनाव नतीजों के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि नरेन्द्र मोदी को शिकस्त देना मुश्किल नहीं है, यदि विपक्षी पूरी तरह एकजुट हो जाए। अगर महागठबंधन होता है तो विपक्ष को जबरदस्त लाभ मिलेगा। ताजे चुनाव परिणामों ने साबित किया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ 2014 के मुकाबले गिरा है। लोकसभा चुनाव आज हों तो इन पांच राज्यों में भाजपा को 40 सीटों का घाटा है। 2014 के लोकसभा चुनाव की रोशनी में देखें तो भाजपा को केवल इन पांच राज्यों में ही 40 सीटों का घाटा उठाना पड़ सकता है। इन राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें हैं। भाजपा के पास वर्तमान में इनमें से 63 सीटें हैं। विपक्षी एकता लोकसभा चुनाव के लिए कितनी कामयाब होगी, यह वक्त ही बताएगा। अभी तक भाजपा के खिलाफ जो विपक्षी पार्टियों की एकजुटता में शामिल हैं, वह करीब 12 राज्यों की 285 से अधिक लोकसभा सीट पर असर डाल सकती हैं। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम से विपक्ष की एकजुटता कुछ हद तक साबित हुई है। 

लोकसभा चुनाव 2019 अत्यधिक महत्वपूर्ण
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया व्यक्तव्यों से भी यह स्पष्ट होता है कि सभी दलों में अब यह सहमति बनती जा रही है। अगर एनडीए/नरेन्द्र मोदी को 2019 के लोकसभा चुनाव में हराना है तो सबको अपने मतभेद भूलकर महागठबंधन में पूरे दिल से शामिल होना पड़ेगा। राहुल गांधी के अनुसार लोकसभा चुनाव 2019 अत्यधिक महत्वपूर्ण है, यदि विपक्ष एकजुट होकर/मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ें तो भाजपा को शत प्रतिशत शिकस्त दी जा सकती हैं।
@11th December 2018/11.38pm__

Monday, 1 October 2018

इंग्लैण्ड की परविन्दर : भारत में मनाया श्राद्ध/इंटरनेट बना मददगार

घनश्याम डी रामावत
इंटरनेट ने इंसान को कितना हाइटेक बना दिया हैं इसकी ताजा मिसाल उस वक्त देखने को मिली जब इंग्लैण्ड की परविन्दर कौर ने अपने दिवंगत परिजनों का श्राद्ध इंटरनेट का सहारा लेते हुए फेसबुक लाइव के माध्यम से भारत में मनाया। इस मौके जोधपुर के श्री हनुमान-शनिधाम में आश्विन कृष्ण पक्ष की षष्ठी को खास आयोजन किया गया। भारतीय परम्परा में श्राद्ध व इस दौरान किए जाने वाले तर्पण, पूजा पाठ, कर्मकाण्ड व दक्षिणा का खास महत्व हैं। ऐसी मान्यता हैं कि पूरे विधि-विधान से किए जाने वाले श्राद्ध के माध्यम से दिवंगत आत्माओं को मोक्ष/शांति मिलती हैं, जिसके तहत वे इस भौतिक लोक से पूरी तरह मुक्ति पा लेते है एवं जिसे लोक में वे प्रस्थान कर चुके हैं वहां वे शांति के साथ रह पाते हैं। भारत के पंजाब प्रांत से ताल्लुक रखने वाली 60 वर्षीय परविन्दर कौर अपनी चौदह वर्ष की उम्र में इंग्लैण्ड चली गई थी। इंग्लैण्ड में नर्स के रूप में सेवाएं देते हुए वही रच बस चुकी परविन्दर का भारतीय परम्पराओं/यहां के आध्यात्म व कर्मकाण्डों में पूरा भरोसा हैं। परविन्दर कौर इन सब चीजों का बखूबी पालन तो करती ही है/इस बार उन्होंने अपने दिवंगत परिजनों (पति-गरमेलसिंह, पुत्र हरप्रीतसिंह एवं पौत्र जगजीतसिंह) का श्राद्ध पूरे विधि-विधान से भारत में मनाने का निश्चय किया, जिसमें इंटरनेट ने उनकी सबसे बड़ी मदद की।

श्री हनुमान-शनिधाम धार्मिक स्थल में खास आस्था
परविन्दर कौर की जोधपुर स्थित श्री हनुमान-शनिधाम धार्मिक स्थल में खास आस्था हैं। यहीं कारण है कि इन्होंने अपने परिजनों का श्राद्ध इस धार्मिक स्थल में प्रायोजित कराया। वर्षों पूर्व अपने परिजनों को खो चुकी परविन्दर इंग्लैण्ड में प्रतिवर्ष अपने तरीके से इनका श्राद्ध मनाती है। परविन्दर कौर की माने तो इंग्लैण्ड में श्राद्ध सहित अन्य भारतीय परम्पराओं/अनुष्ठानों का सही तरीके से संपादित किया जाना असंभव है क्योंकि संदर्भ में तकनीकी जानकारों का वहां अभाव रहता हैं। अपने दिवंगत परिजनों का श्राद्ध पूरे विधि-विधान व भारतीय परम्पराओं से मनाए जाने हेतु परविन्दर ने श्री हनुमान-शनिधाम के संचालक गोपाल जादूगर (जो परविन्दर के मुंह बोले भाई भी हैं) के माध्यम से वृन्दावन के पण्डित दामोदर शर्मा से सम्पर्क किया। गोपाल जादूगर व पण्डित दामोदर शर्मा के सुदृढ़ आश्वासन के बाद ही परविन्दर कौर ने अपने परिजनों का श्राद्ध जोधपुर के श्री हनुमान-शनिधाम प्रांगण में मनाने का निश्चय किया।

पूरी प्रक्रिया फेसबुक लाइव के माध्यम से 
फेसबुक लाइव के माध्यम से संपादित पूरी प्रक्रिया में श्राद्ध से संबद्ध धार्मिक, आध्यात्मिक, कर्मकाण्ड/विधि-विधान का शत प्रतिशत पालन किया गया। श्रद्धा व आस्था को वैचारिक दृष्टि से चरम पर ले जाने वाले रोमांचकारी इस समूचे आयोजन के दौरान इंग्लैण्ड से परविन्दर कौर फेसबुक लाइव के माध्यम से न केवल ऑन लाइन रही, अपितु पण्डित दामोदर शर्मा के निर्देशन में श्राद्ध संबद्ध मंत्रों का उच्चारण कर व्यक्तिश: अपनी कर्मकाण्ड में उपस्थिति को भी सुनिश्चित किया। धार्मिक आयोजन के तहत दिवंगत परिजनों के निमित तर्पण, पिण्डदान व ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। गोपाल जादूगर के माध्यम से इंग्लैण्ड की परविन्दर के निमन्त्रण पर श्राद्ध आयोजन के तहत श्री हनुमान-शनिधाम पहुंचे 51 बच्चों ने भोजन ग्रहण किया। ऐसी मान्यता हैं कि पूर्वजों के निमित श्राद्ध में कराए जाने वाले भोजन से दिवंगत परिजनों को तृप्ति मिलती है तथा बदले में उनके आशीर्वाद से परिवार में खुशहाली बनी रहती हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि विदेशों में रह रहे अनगिनत भारतीयों के माध्यम से भविष्य में लोगों को इस प्रकार के और अधिक रोमांचकारी इवेंट देखने को मिलेंगे।

भारतीय परम्पराओं का निर्वहन जरूरी : परविन्दर
इंग्लैण्ड की परविन्दर कौर ने फेसबुक लाइव के माध्यम से भारत में इस धार्मिक आयोजन को लेकर ब्लॉगर से अपनी खास बातचीत में कहा कि इंसान कही भी रहे उसे अपने देश व उसकी परम्पराओं का सम्मान करना चाहिए। परविन्दर की माने तो धार्मिक आस्था, विश्वास व कर्मकाण्डों का अपना महत्व हैं, जीवन की कुशलता के लिए इनका पालन जरूरी है। भारतीय परम्पराओं व धार्मिक मान्यताओं को श्रेष्ठतम बताने वाली परविन्दर स्वयं के इंग्लैण्ड की होकर रह जाने के बावजूद सौ फीसदी इन्हें आत्मसात किए हुए है। ज्ञातव्य रहें, हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता हैं। मान्यता है कि अगर किसी मृत व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है और वह तथाकथित भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। इस बार श्राद्ध 24 सितम्बर को शुरू हुए जो 8 अक्टूबर को खत्म होंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिवस विशेष हैं एवं इन दिनों मेें पितृ खुश रहते है। तर्पण में दूध, तिल, कुश, पुष्प व सुगंध मिश्रित जल से पितरों को तृप्त किया जाता है। ब्राह्मणों को भोजन व पिण्डदान से पितरों को भोजन दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध की पत्नी दक्षिणा है। यहीं कारण है कि श्राद्ध का फल दक्षिणा देने पर ही मिलता है।

Thursday, 26 July 2018

गुरू पूर्णिमा 2018 : महत्व/पूजन का सही विधान

घनश्याम डी रामावत
इस वर्ष गुरू पूर्णिमा 27 जुलाई 2018 को पड़ रही हैं। अर्थात कल शुक्रवार का दिन सभी गुरूभक्तों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। गुरू पूर्णिमा के दिन सभी को अपने गुरूओं को आसन प्रदान कर के अपनी श्रद्धानुसार उनका पूजन अर्चन करके उनसे आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए। गुरू पूर्णिमा के दिन ही वर्ष का सबसे लंबा चंद्रग्रहण भी पड़ रहा हैं, जो रात्रि 11.54 से प्रारंभ होगा और रात्रि 3.49 तक रहेगा/जिसका सूतक 9 घंटे पूर्व दोपहर 2.54 से प्रारंभ हो जाएगा।

गुरू पूजन का मुहूर्त और पूजा का विधान
जोधपुर की जानी मानी वैदिक-वास्तु पिरामिड मर्मज्ञ/रैकी हीलर/हिप्रोथैरेपिस्ट व  एस्ट्रोलॉजर अर्चना प्रजापति के अनुसार जो छात्र विद्या अध्ययन कर रहे वो प्रात: 7 बजे से 8.30 बजे तक करे। जो नौकरी कर रहे वो 9.15 से 10.30 बजे तक करें, जो व्यापार कर रहे वो 10 से 11.15 बजे तक करें एवं 9.30 से 11 तक सभी लोग पूजन कर सकते हैं। गुरू पूर्णिमा वर्षा ऋ तु के आरंभ में आती हैं एवं इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता और फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, ऐसे ही गुरु चरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती हैं। गुरू पूर्णिमा का यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरू कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। 

प्रजापति के अनुसार भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे। ‘राम कृष्ण सबसे बड़ा उनहूं तो गुरु कीन्ह। तीन लोक के वे धनी गुरु आज्ञा आधीन॥’ गुरू तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है। ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किंतु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हो सका है। गुरू की महत्ता को सभी धर्मों और संप्रदायों ने माना है। प्रत्येक गुरू ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा और पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है। भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं।

गुरू का सही अर्थ?
एस्ट्रोलॉजर प्रजापति के अनुसार भारतीय संस्कृति के वाहक शास्त्रों गुरू का अर्थ बताया गया है। गुरू में गु का अर्थ है-अंधकार या मूल अज्ञान और रू का अर्थ है-उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है। अर्थात् अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरू’ कहा जाता है। गुरू और देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरू के लिए भी है। बल्कि सद्गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरू की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरू: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥

आषाढ़ की पूर्णिमा ही गुरू पूर्णिमा
वैदिक-वास्तु पिरामिड मर्मज्ञ/रैकी हीलर अर्चना प्रजापति की माने तो आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के पीछे गहरा अर्थ है। अर्थ है कि गुरू तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह, आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादलरूपी शिष्यों से गुरू घिरे हों। शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं। वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं। उसमें भी गुरू चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरू पद की श्रेष्ठता है। इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है, इसमें गुरू की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है।

धार्मिक/आध्यात्मिक दृष्टि से इस पर्व का महत्व
‘ज्योतिष भूषण अवार्ड 2018’ से सम्मानित हिप्रोथैरेपिस्ट व  एस्ट्रोलॉजर अर्चना प्रजापति के अनुसार जीवन में गुरू और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है। व्यास पूर्णिमा या गुरू पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए। गुरू का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी और ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरू पूजन के उपरांत गुरू का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। सिख धर्म में इस पर्व का महत्व अधिक इस कारण है क्योंकि सिख इतिहास में उनके दस गुरूओं का बेहद महत्व रहा है।

Saturday, 21 July 2018

कांग्रेस युवराज की नई सेना/संभावनाएं...

घनश्याम डी रामावत
टीडीपी द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर शुक्रवार को देर रात तक चली लोकसभा की कार्यवाही सरकार के कार्यकलापों पर चर्चा से ज्यादा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के तेवर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दी गई झप्पी, आंख मारने, पीएम की मुस्कराहटों, फिसलती जुबानों, शेरो-शायरी और हंसी-ठहाकों के साथ-साथ रफाल सौदे पर राहुल के दावे को फ्रांस सरकार द्वारा खारिज किए जाने की वजह से खास तौर पर याद किया जाएगा। सही मायने में 20 जुलाई 2018 अर्थात शुक्रवार को चार साल दो माह पुरानी राजग सरकार के खिलाफ पहले अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान लोकसभा 2019 चुनाव पूर्व बहस का मंच बन गई। 

युवाओं के साथ अनुभव को तरजीह, कुल 51 सदस्य
कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक-एक कर उन सारे मुद्दों पर प्रहार किया जिन्हें सदन के बाहर विपक्ष उठाता रहा हैं। माना जा रहा है कि संख्याबल न होने के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाने का उद्देश्य विभिन्न मुद्दों पर चुनावपूर्व सरकार को सदन में घेरना था जिन पर सदन के बाहर पीएम नरेन्द्र मोदी सदन के बाहर जवाब देने से बचते रहे थे। सोची समझी रणनीति के तहत कांग्रेस सुप्रीमों राहुल गांधी व अन्य विपक्षी नेताओं ने ऐसा किया भी। यहीं नहीं, राहुल गांधी ने अपने भाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास जाकर गले लगने की गांधीगिरी दिखाई और देशभर में चर्चा का केन्द्र बन गए। बहरहाल! यह तो तय हो गया कि राहुल गांधी अब लोकसभा चुनाव 2019 का मुकाबला मजबूती से करने के लिए तैयार है। उनके ताजातरीन तेवर तो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे है। लंबे इंतजार के बाद ही सही आखिरकार उनके द्वारा अब 2019 लोकसभा चुनाव लडऩे के लिए अपनी सेना भी तैयार कर ली गई है। दरअसल, राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) का पुनर्गठन किया है। राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के सात महीने बाद कांग्रेस कार्यसमिति का गठन किया है। पिछली कार्यसमिति को मार्च में अधिवेशन से पहले भंग कर दिया गया था। अधिवेशन में पार्टी सुप्रीमो राहुल गांधी को अपनी टीम चुनने के लिए अधिकृत किया गया। राहुल गांधी को समिति का गठन करने में चार महीने का समय लगा। राहुल गांधी की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कुल 51 सदस्य हैं। इनमें 23 सदस्य, 18 स्थायी सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य बनाए गए हैं। 

महासचिव से हटाए गए किसी भी नेता को जगह नहीं
राहुल गांधी ने पहली बार कांग्रेस के मोर्चा संगठन मसलन यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई, महिला कांग्रेस, इंटक और सेवा दल के अध्यक्षों को सीडब्ल्यूसी में विशेष आमंत्रित सदस्य बनाया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने अपनी नई टीम में बड़ी संख्या में युवाओं को शामिल कर साफ संकेत दे दिए हैं कि आने वाले दिनों में कांग्रेस अपने इन्हीं नौजवानों के चेहरों के दम पर आगे बढ़ेगी। हालांकि कार्यसमिति में अनुभवी नेताओं को भी पूरी तवज्जो दी गई है। पार्टी के संगठन में विधानसभा चुनाव वाले तीन राज्यों-राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेताओं को खासकर शामिल किया गया है। हालांकि अनुभव को भी तरजीह दी गई है। राहुल की कार्यसमिति में सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मोती लाल वोहरा, अहमद पटेल, अशोक गहलोत को सदस्य के तौर पर जगह मिली है। वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, पी. चिदम्बरम जैसे नेताओं को स्थायी आमंत्रित सदस्य के रूप में चुना गया। कार्यसमिति में पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, बिहार जैसे राज्यों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। महासचिव से हटाए गए किसी भी नेता को कार्यसमिति में भी जगह नहीं दी गई। इसी वजह से सी पी जोशी, मोहन प्रकाश, बी के हरिप्रसाद को कार्यसमिति से हटा दिया गया है। लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री लंबे समय से विशेष आमंत्रित सदस्य थे, पर इस बार वह भी जगह नहीं पा सके। पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिन्दर सिंह को कार्यसमिति में जगह नहीं मिलना चकित करने वाला जरूर है। आमंत्रित सदस्यों को जोड़ लें तो भी महिलाओं की संख्या 51 में से केवल सात ही है। यानि 15 प्रतिशत से भी कम। हाल-फिलहाल दलित आंदोलन की परछाईं इस समिति के चयन में दिखी। दलित चेहरों के रूप में मल्लिकार्जुन खडग़े, कुमारी शैलजा और पीएल पुनिया को शामिल किया गया है। राजनीतिक समीक्षकों की माने तो राहुल गांधी और राजस्थान के कद्दावर नेता अशोक गहलोत के लगातार साथ काम करने का असर राहुल के तेवरों में अब नजर आने लगा है और अब उनमें राजनीतिक परिपक्वता दिखाई देने लगी है। 

पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं में उत्साह
राहुल गांधी के नये अवतार व तेवरों से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी व उत्साह का माहौल है। हालांकि, राहुल गांधी की नई टीम की असली परीक्षा आने वाले विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में होगी।

Friday, 20 July 2018

सूखते जल स्रोत चिंता का विषय!

घनश्याम डी रामावत
भारत वाकई खुशनसीब हैं। यह दुनिया के उन कुछ गिने चुने देशों में से है जिसे कुदरत से बारिश का भरपूर तोहफा मिला हुआ है। हमारे यहां जितनी बारिश होती है, यूरोप के करीब 20 देशों में मिलकर भी उतनी बारिश नहीं होती। बावजूद इसके हम धीरे-धीरे जल संकट के दरवाजे पर आ खड़े हुए हैं, तो उसकी हमारी कुछ अपनी वजहें हैं और कुछ पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग की देन है। मारवाड़ और खासकर पश्चिमी राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से मानसून आगमन को लेकर लेटलतीफी सा ही रहा हैं, इसे अन्य प्रदेशों की तुलना में अपवाद भी कहा जा सकता है/किन्तु यह भी सच है कि बारिश यहां भी जमकर अर्थात बेलगाम होती रही हैं। दरअसल हमारे देश में सालभर में जितनी बारिश होती है, उस बारिश का 80 फीसदी तक हिस्सा महज 90 दिन के अंदर गिर जाता है। भारत में औसतन वार्षिक वर्षा 1,170 मिमी होती है। लेकिन करीब 90 फीसदी बारिश का पानी बहकर समुद्र पहुंच जाता है। ज्ञातव्य रहें, 80 फीसदी बारिश 3 महीने के अंदर होती है और उन 3 महीनों में भी करीब 90 फीसदी बारिश सिर्फ 20 से 30 घंटों के दौरान होती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बारिश कितनी तीव्रता और कितनी बेलगाम ढंग से होती हैं?

पहले होते थे जल संचयन के सशक्त उपाय
पुराने समय में सिर्फ वर्षा के पानी को रोकने के ही हमने तमाम देशी तरीके विकसित नहीं किये थे बल्कि इन तरीकों के साथ-साथ हम वर्षा जल के प्रबंधन के लिए तमाम प्राकृतिक जल स्रोतों का भरपूर रूप से इस्तेमाल करते थे, जिससे सिर्फ पानी ही इकट्ठा नहीं किया जाता था बल्कि प्राकृतिक रूप से भूमि के अंदर ही उसे एकत्रित किया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे विकास के नाम पर हमने इस पारंपरिक प्रबंधन को ही भुला दिया और बड़े-बड़े औद्योगिक सभ्यता वाले जल प्रबंधन पर निर्भर हो गए। लेकिन हम इस बात को भूल गए कि ये बड़े-बड़े बांध हर जगह नहीं बनाए जा सकते जहां बांध बनाये भी गए हैं, वहां सिर्फ 20 फीसदी पानी को ही रोका जा सका है। क्योंकि बारिश का पानी चूंकि अनियंत्रित होता है और साथ ही बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होती है इसलिए एक सीमा से ज्यादा बांधों में पानी रोका नहीं जा सकता। इसके साथ ही एक बड़ी समस्या यह है कि कम समय में हुई ज्यादा बारिश के कारण अकसर बांध टूट भी जाते है अथवा कई किस्म की दुर्घटनाओं का शिकार भी हो जाते हैं। जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ा है उसको देखते हुए अब पारंपरिक जल प्रबंधन की तरफ देश लौट रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राजस्थान सरकार ने भी इस दिशा में विशेष काम किए है और तमाम आधुनिक जल प्रबंधन के विशेषज्ञों को शामिल करते हुए उस पुरानी जल प्रबंधन व्यवस्था/तकनीक को विकसित करने की कोशिश की है, जो सदियों से यहां की प्रचूर जल व्यवस्था का प्रमुख आधार थी। 

'मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान' की सर्वत्र सराहना
राजस्थान सरकार की जल संचयन अन्तर्गत प्रमुख कवायद 'मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान' को प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों में भी खासा सराहा गया हैं। 27 जनवरी 2016 से राजस्थान सरकार की ओर से शुरू किए गए इस जन-कल्याणकारी ‘मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान’ का मूल उद्देश्य बारिश के पानी की एक-एक बूंद को सहेजकर गांवों को जल आत्मनिर्भरता की ओर बढाऩा है। एक जमाने में बड़े पैमाने पर खाल-चाल यानी छोटे-छोटे तालाबनुमा गड्ढे हुआ करते थे। इन गड्ढ़ों में बारिश का पानी सहेजा जाता था जो न सिर्फ कई महीने तक इंसानों और जानवरों के काम आता था बल्कि इस सहेजे गये पानी से धरती रिचार्ज होती थी जिस कारण बारिश के बाद यही रिचार्ज हुआ पानी झरनों और छोटी-छोटी बाबडिय़ों या खड्डों में रिसकर इकट्ठा होने लगता था, जो जानवरों और इंसानों दोनो के काम आता था। दरअसल यही पानी पूरे साल जल की पूर्ति करता था। यही पानी स्थानीय लोगों को पूरे साल हासिल होता था। इससे लोग अपनी प्यास भी बुझाते थे और धरती की प्यास भी इससे बुझती थी। लेकिन पुराने जल प्रबंधन को भुला दिये जाने के कारण आज जल समस्या विकराल रूप ले चुकी है। देश का 90 फीसदी क्षेत्र आज या तो जल की कमी से परेशान है या साल के कुछ महीनों में जल की कटौती से दो चार रहता है। जबकि भारत में जल प्रबंधन की सुदृढ़ व्यवस्था ईसा के लगभग 300 वर्ष पूर्व से मौजूद है। उस समय भी कच्छ और बलूचिस्तान में बांध मौजूद थे, लोग इन्हें स्थानीय संसाधनों से बनाना भी जानते थे और बांध बनाकर रोके गये पानी का उचित उपयोग भी जानते थे। लेकिन धीरे-धीरे हमने ये तमाम चीजें भुला दीं। जबकि भारत के इतिहास में कोई ऐसा समय नहीं रहा, जब पानी को सहजने की हमें व्यवस्थित तरकीब पता न रही हो और उसके जरिये हम पानी के मामले में आत्मनिर्भर न रहे हों। 

सरकारों की गंभीरता प्रसन्नता का विषय
भारत सरकार और राजस्थान सरकार के साथ देश की अन्य कई राज्य सरकारों ने अब फिर से जल प्रबंधन की उन पुरानी तकनीकों की तरफ लौटने का मन बनाया है। उम्मीद है कि अगले 5 से 8 साल के भीतर हम आज के मुकाबले 10 से 15 फीसदी ज्यादा पानी समुद्र में जाने से बचा सकेंगे। इससे हमारी दैनिक जरूरतें पूरी होने में तो आसानी होगी ही, साथ ही धरती के अंदर की सूखती हुई जलधारा भी हरी होगी जिससे देश का भविष्य सुरक्षित रहेगा।